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जयपुर में पिछले 73 दिनों से नेशनल हैंडलूम के कर्मचारी क्यों कर रहे हैं हड़ताल ?

कर्मचारियों से 365 दिन काम कराया जा रहा है उन्हें न तो साप्ताहिक अवकाश मिलता है और न ही त्योहारों पर कोई छुट्टी दी जाती है ,साथ ही उन्हें 12 से 13 घंटे काम कराया जाता है जो श्रम कानूनों का उल्लंघन है I
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राजस्थान की राजधानी जयपुर में पिछले 73 दिनों से नेशनल हैंडलूम कॉर्पोरेशन के 145 कर्मचारी CITU (Center Of Indian Trade Unions ) के झंडे तले धरने पर बैठे हुए हैं। ये धरना प्रदर्शन नेशनल हैंडलूम कॉर्पोरेशन के प्रशासन द्वारा लगातार मज़दूर विरोधी नीतियों को लागू किये जाने के विरोध में है। कर्मचारियों का ये आरोप है कि उनसे 365 दिन काम कराया जा रहा है उन्हें न तो साप्ताहिक अवकाश मिलता है और न  ही त्योहारों पर कोई छुट्टी दी जाती है । इसके साथ ही उनका कहना है कि उनसे दिन में 12 -13 घंटे काम कराया जाता है और मुश्किल से 5 से 6 हज़ार रुपये वेतन दिया जाता है। साथ ही प्रोविडेंट फण्ड (पीएफ ) और ESI के पैसे तो वेतन से कट रहे हैं लेकिन उनके खाते नहीं बनाये रखे जा रहे हैं , उनका ये भी कहना है कि उन्हें ESI कार्ड का कोई लाभ नहीं मिल रहा है।  

इसी शोषण से परेशान होकर नेशनल हैंडलूम के कर्मचारियों ने 14 अप्रैल को वैशाली नगर की ब्रांच के सामने धरना देना शुरू किया। नेशनल हैंडलूम  की एक कपड़ों और हस्तशिल्प का व्यापार करती है और इसकी दुकानें गुजरात और राजस्थान के कई शहरों में मौजूद हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए CITU राजस्थान सचिव भंवर सिंह ने बताया कि कुल मिलाकर इन दुकानों में 3500 तक कर्मचारी काम करते हैं और हर जगह हैंडलूम प्रशासन श्रम कानूनों को ताक पर रखकर काम कराता है। जयपुर में नेशनल हैंडलूम की 3 दुकानें हैं एक जौहरी बाज़ार में , एक वैशाली नगर में और तीसरी विद्याधर नगर में। तीनों को मिलकार यहाँ 215 कर्मचारी काम करते हैं जिनमें से 145 कर्मचारी हड़ताल पर वैशाली नगर की दूकान के सामने  बैठे हुए हैं। 

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कर्मचारियों का ये भी आरोप है कि प्रशासन के साथ पिछले साल इन सभी मुद्दों को लेकर एक समझौता हुआ था, लेकिन उसमें से काफी चीज़ों को अब तक  लागू नहीं किया गया। इस समझौते में PF, ESI , काम के घंटे को कम कराने ,साप्ताहिक अवकाश देने और बाकि मुद्दों के आलावा ग्रेचुटी फॉर्म  देने और वेतन पर्ची देने की माँग भी की गयी थी।

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भंवर सिंह का कहना है कि जयपुर में नेशनल हैंडलूम कर्मचारियों के द्वारा CITU के नेतृत्व में 2015 में यूनियन बनायीं थी। उन्होंने बताया कि "यूनियन बनने के बाद से ही प्रशासन लगातार इसे तोड़ने का प्रयास कर रहा है। मार्च में प्रशासन ने यूनियन अध्यक्ष पर ये आरोप लगाया था कि उन्होंने दुकान में हुई चोरी को नहीं रोका और इस आरोप पर मुक़दमा दर्ज़ कर दिया गया। ताजुब्ब की बात ये है कि जिस महिला पर चोरी का आरोप लगाया गया था उसे तो पुलिस ने छोड़ दिया था ,लेकिन अध्यक्ष को जेल में रखा गया था। हमने इसके खिलाफ माणिक चौक थाने का घेराव किया तब जाकर उन्हें छोड़ा गया। ये पुलिस और हैंडलूम प्रशासन की मिली भगत है। दरअसल यूनियन बनने के बाद से मज़दूरों का शोषण इतना आसान नहीं रहा है। अब प्रशासन को कर्मचारियों को उनके कुछ हक़ देने पड़ते हैं ,यही वजह है कि प्रशासन यूनियन को ख़त्म करना चाहता है । लेकिन जब तक हमारी माँगे पूरी नहीं की जाती तब तक ये हड़ताल जारी रहेगी।  "

गौरतलब है कि राजस्थान में श्रम कानूनों की हालत वैसे भी बहुत ही ज़्यादा ख़राब है। इसका एक उदहारण ये है कि राजस्थान में मासिक न्यूनतम वेतन सिर्फ 6 हज़ार रुपये है। वसुंधरा राजे सरकार ने सत्ता में आने के बाद कानूनों में बदलाव करके इन्हे बद से बदतर बना दिया है। Industrial Disputes Act, Factories Act, Contract Labor act में सभी में एक एक कर बदलाव किये गए हैं। Industrial Disputes Act में ये बदलाव किया कि जहाँ पहले 100 लोगों को फैक्ट्री को बिना इजाज़त बंद किया जा सकता तो अब उससे कई बड़ी यानि 300 मज़दूरों की फैक्ट्री को बंद किया जा सकता है।  इससे मज़दूरों  को कभी भी निकला  जा सकता है, और उनका भविष्य  हमेशा खतरे में रहेगा। इसके आलावा अब किसी फैक्ट्री में 30 % लोगों को यूनियन का सदस्य  होना होगा तभी यूनियन बनायी जा सकती है , पहले फैक्ट्री में यूनियन बनाने के लिए के 15 % लोगों की ज़रुरत होती थी। इसके साथ ही factory act में बदलाव करके अब ये नियम बना दिया गया है कि बिना बिजली के काम करने वाली फैक्टरियाँ में अब 40 लोगों को रखा जा सकता था , पहले ये आँकड़ा 20 था। इसके आलावा बिजली से काम करने वाली फैक्ट्रियों में अब 10 के बजाये 20 मज़दूरों को रखा जा सकता है। इसका अर्थ ये है कि पहले जो फैक्ट्रियां Factories Act और  Contract Labor act  के दायरे  में आती थी, उन्हें अब बाहर कर दिया गया है। इससे हुआ  ये कि इन कानूनों से मज़दूरों को मिलने वाली सुरक्षा को ख़त्म कर दिया गया है साथ ही ठेकाकरण को बढ़ावा दिया गया है।   

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