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झारखण्ड : पत्थलगड़ी प्रकरण - 2

कोचांग और घाघरा काण्ड : एक तीर से कई शिकार फिर भी घिरी सरकार
पत्थलगड़ी प्रकरण

      झारखण्ड के खूंटी जिले के पत्थलगड़ी अभियान के इलाकों में मानो सरकार ने अघोषित युद्ध सा छेड़ दिया है . हर ओर दहशत-दमन और अविश्वास का  माहौल इस कदर व्याप्त है कि कई गांवों के लोग अपने घरों को छोड़ चुके हैं . गाँव में बचे हैं तो सिर्फ बूढ़े ,बच्चे ,गर्भवती महिलायें और गश्त लगाते हुए अर्धसैन्य बल के लोग . अभी चंद दिनों पहले पूरा ग्रामीण इलाका पत्थलगड़ी अभियान से सरगर्म था . लेकिन पिछले 19 जून को कोचांग में नुक्कड़ नाटक करने गयी टीम पर हमला कर पांच महिला सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का दिनदहाड़े बंदूक की नोक पर अपहरण कर किये गए ‘ गैंग रेप ‘ की भयावह घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया . इस काण्ड के तीन दिन बाद ही 26 जून को इसी इलाके के घाघरा गाँव में जब लोग पूर्व घोषित पत्थलगड़ी कार्यक्रम के लिए इक्कट्ठे हो रहे थे तभी आ रहे लोगों को घेरकर अर्धसैन्य बालों द्वारा किये गए एकतरफा लाठी – चार्ज व पुलिसिया दमन से पूरा इलाका अशांत हो गया . इस घटना में सैकड़ों महिला – पुरुष बुरी तरह घायल हो गए और पुलिसिया लाठी से एक ग्रामीण आदिवासी घटनास्थल पर ही मारा गया . गुस्साए आदिवासियों ने प्रतिक्रया में पास ही अवस्थित खूंटी के भाजपा सांसद कड़ीया मुंडा के आवास से तीन पुलिसकर्मियों का अपहरण कर लिया . सरकार तो मानो ऐसी ही घटना के इंतज़ार में थी और अब उसे ठोस बहाना मिल गया था . इस घटना को कानून – व्यवस्था का सवाल बनाकर आनन-फानन में पूरा इलाका पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया . आलम ये है कि यहाँ बाहर से आनेवाला हर शख्स स्थानीय ग्रामीणों से अधिक पुलिसवालों की नज़र में संदेहास्पद है . वहीँ कोचांग में जाकर किसी से कुछ कहने – पूछने पर एक ही जवाब मिलेगा – हम लोग कुछ नहीं जानते ..

     क्षेत्र के लोगों की मानें और अध्ययन भी यही कहता है कि उक्त दोनों घटनाएं कोई अलग-थलग नहीं हैं और इन्हें बड़े ही सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया गया है . कोचांग - गैंगरेप काण्ड को सरकार पत्थलगड़ी और चर्च से जोड़ रही है , तो घाघरा पुलिसिया ज़ुल्म – काण्ड को कानून-व्यवस्था बहाली के लिए सही करार दे रही है . कोचांग – कांड में तो सरकार ने प्रशासन को घटनास्थल पर भेजे बगैर ही और बिना किसी ठोस जांच-पड़ताल के पत्थलगड़ी अभियान के स्थानीय नेता जॉन जोनास तींडू को कोचांग – कांड का मास्टर माइंड घोषित कर काण्ड में स्थानीय उग्रवादी संगठन पीएलेफ़आई के हाथ होने की बात मीडिया से जारी कर दिया . साथ ही जिस मिशन स्कूल के बहार से लड़कियों को अगवा किया था , उसके फादर अल्फौंस आइंद को यह कहकर जेल में डाल दिया कि उन्होंने जानबूझकर समय पर पुलिस को सूचना नहीं दी , जिससे समय रहते करवाई नहीं की जा सकी . उनपर दर्ज मुकदमे में अपनी सिस्टर को बचाने और बाक़ी लड़कियों को अपहरणकर्ताओं द्वारा ले जाने देने को संज्ञेय अपराध ठहराया गया .

कोचांग काण्ड : सरकार – प्रशासन की भूमिका संदेहास्पद !

रिपोर्ट

     कोचांग गैंग रेप - काण्ड प्रकरण में विभिन्न सूत्रों से हो रहे नित नए खुलासों और सरकार व प्रशासन के परस्पर विरोधाभासी बयानों , पीड़ित महिलाओं व टीम के अन्य पुरुष सदस्यों को पूरी तरह नज़रबंद किये जाने के अलावे पीड़ितांओं की आनन्-फानन  में हुई मेडिकल – जाँच और कांड के एफआईआर मामले को लेकर हर तरफ से काफी सवाल उठ रहें हैं . क्योंकि घटना के इतने दिनों बाद भी पीड़ित महिलाओं का कोर्ट में दिए बयान को सरकार ने जनता के सामने अबतक नहीं आने दिया है . उनके परिजनों तक को उनसे नहीं मिलाने दिया जा रहा है . अभी तक पुलिस ने यह भी नहीं खुलासा किया है कि आखिर किसके बुलावे पर टीम वहां गयी थी तथा उस टीम के संयोजक संजय शर्मा जिनका ब्यान पुलिस के द्वारा जारी हो रहा है , अभी तक खुलकर सामने नहीं आये हैं . अबतक मीडिया से जो भी बातें आयीं हैं वे सब की सब केवल पुलिस के आला –अधिकारियों की ओर से ही आयीं हैं . दूसरी तरफ , पत्थलगड़ी अभियान के लोगों ने भी काण्ड में उनके स्थानीय नेता को सरकार द्वारा मास्टरमाइंड घोषित कर उनके अभियान को बदनाम किये जाने का कड़ा विरोध किया है . कोचांग की ग्रामसभा ने तो अभियुक्तों को खुद ढूँढकर सज़ा देने ( सेन्दरा करने ) का ऐलान कर दिया है . पीएलफआई के स्वयंभू सुप्रीमो दिनेश गोप ने भी पुलिस द्वारा इस काण्ड में उनके संगठन के लोगों के शामिल होने को सिरे से ख़ारिज किया है जबकि दूसरी ओर राज्य के जसम , जलेस , प्रलेस व इप्टा समेत कई महिला व सामाजिक – आदिवासी जन संगठनों ने पीड़ीतांओं को इंसाफ़ देने के साथ – साथ पुरे मामले की उच्चस्तरीय - न्यायिक जांच की मांग कर कांड के असली दोषियों व सभी साजिशकर्त्ताओं  को सामने लाने की मांग की है . वहीँ वामदलों ने भी राज्यपाल को ज्ञापन देकर काण्ड कि निष्पक्ष जांच हाई कोर्ट के जज से कराये जाने की मांग की है . उस क्षेत्र के ग्रामीण तो यह भी संदेह जाहिर कर रहें हैं पत्थलगड़ी को बदनाम करने की सरकार की एक सुनियोजित साज़िश है . इतना ही नहीं इस काण्ड को लेकर पुलिस का ये कहना कि उसे समय पर सूचना नहीं मिली , इसे भी उस नुक्कड़ नाटक टीम के साथ गयी आशा किरण शेल्टर होम ( खूंटी ) की सिस्टर रंजीता कीड़ो ने गलत साबित कर दिया है . उन्होंने प्रशासन के तमाम आला अधिकारीयों को भेजे लिखित पात्र में ये साफ़-साफ़ कहा है कि 19 जून को ही पुलिस एडीजीपी को टीम के संयोजक संजय शर्मा ने काण्ड की सूचना दी थी .

पत्थलगड़ी प्रकरण

       ऐसे कई अन्य और भी महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनपर सरकार अपने दावों का कोई पुख्ता आधार नहीं प्रस्तुत कर पा रही है . लोगों की चर्चाओं में अब यही कहा जा रहा है कि इस काण्ड के जरिये सरकार जो पत्थलगड़ी अभियान के लोगों तथा उस क्षेत्र में सामाजिक तौर पर प्रभावी चर्च , दोनों को ही अपनी फांस में लेकर राजनीति करना चाह रही थी , फिलहाल वही फंसती नज़र आ रही है . 

 

घाघरा दमन काण्ड  :  26 जून को घाघरा गाँव में होनेवाला पत्थलगड़ी कार्यक्रम पूर्व घोषित था .  जिसमें भाग लेने के लिए आस-पास के विभीन्न गांवों के लोग शांतिपूर्ण ढंग वहाँ इकट्ठे हो रहे थे और कहीं से भी किसी कीस्म के तनाव या उत्तेजना का माहौल नहीं था . यहाँ भी अन्य पत्थलगड़ी हुए जगहों की भांति सबकुछ सामान्य हो  रहा था . फर्क था तो केवल ये कि यहाँ स्थानीय पुलिस टुकड़ी कि बजाय भारी तादाद में अर्धसैन्यबल आये हुए थे . उधर कार्यक्रम शुरू हुआ ही था प्रशासन ने अचानक से लोगों के आनेवाले प्रमुख सड़क को ब्लाक कर माईक से आ रहे लोगों को वापस जाने की चेतावनी देना शुरू कर दिया . इधर लोग कुछ समझ पाते तबतक लाठी चार्ज और अश्रु गैस के गोलों की बौछार शुरू हो गयी जिससे चरों ओर भगदड़ मच गयी . अर्धसैन्य बल के जवानों ने वहाँ लगे सभी वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया और जिसे जहां पाया दौड़ा-दौड़ा कर पीटने लगे . बदहवास लोग गाँव के अन्दर भागे तो पुलिस वहाँ भी पहुंचकर महिलाओं तक को घरों से खींच-खींच कर पीटने लगे जिसमें एक आदिवासी किसान जो कार्यक्रम देखने आया था , पुलिस की मार से बुरी तरह घायल होकर गिर पड़ा . बदहवासी में जान बचाकर भागते हुए लोग उसे नहीं देख सके लेकिन लाठी चला रहे पुलिसवालों ने भी उसे मरने के लिए छोड़ आगे बढ़ गए . न वहाँ प्रशासन ने कोई निषेधाज्ञा लागू की थी और न ही किसी प्रकार के रोक की कोई पूर्व सूचना ग्रामीणों को दी गयी थी . फलतः लोगों में भी गुस्सा भड़क उठा और वे प्रतिकार स्वरुप खूंटी के भाजपा सांसद कड़ीया मुंडा के घर पर धावा बोलकर वहाँ तैनात तीन पुलिस के जवानों को अगवा कर ले गए .

      तीन जवानों के अपहरण की बात को सरकार ने मीडिया के माध्यम से कुछ ऐसे परोसा मानो इन इलाकों में कोई विदेशी दुश्मन आ गए हों , जिन्हें मार गिराना सबसे ज़रूरी है . जवानों की तलाशी के नाम पर सैकड़ों अर्धसैन्यबल के जवान आसपास के सभी गांवों में घुस घुसकर भयानक कहर ढाना शुरू कर दिए . छोटे बच्चों , बूढों और गर्भवती महिलाओं तक को पिटा गया . अचानक तीन दीं बाद तीनों जवान सकुशल मिल गए और उनके भी हथियार दिव्यदृष्टि से पुआल में रखे हुए मिल गए .

     इस काण्ड के जरिये सरकार को अपनी ताक़त का अहसास करने में आंशिक सफलता तो मिली ही , कोचांग – काण्ड पर से भी लोगों का ध्यान हटाने में भी वह कामयाब रही . फिलहाल पत्थलगड़ी वाले इन गावों में सन्नाटा पसरा हुआ है . हालाँकि प्रशासन माइक से घूम-घूम कर ग्रामीणों से गाँव वापस लौटने का प्रचार करवा रहा है लेकिन पुलिस की मौजूदगी से लोगों का विश्वास प्रशासन पर नहीं हो पा रहा है . स्थिति अभी भी ऐसी नहीं हुई है कि बिना प्रशासन की अनुमति के कोई भी वहाँ जाकर अलग से कोई जांच-पड़ताल कर सके . 7 जुलाई को राज्य के सभी विपक्षी दलों कि संयुक्त टीम वहां के दौरे पर गयी तो दमन के दहशत का माहौल खुली आँखों से देखा तो जनजीवन सामान्य कंरने हेतु पुलिस बालों को अविलम्ब हटाने की मांग की .

      राज्य के मुख्यमंत्री का चेतावनी भरे लहजे में ये कहना कि अभी आंशिक सफलता मिली है और पत्थलगड़ी के गांवों में वे खुद जायेंगे , कोई माई का लाल रोककर दिखाए , लोकतान्त्रिक नहीं कहा जा सकता . कोचांग – काण्ड के असली मुजरिमों और सभी साज़िशकर्ताओं का पकड़ा जाना .... पीड़ितों को इंसाफ़ मिलना .... घाघरा – काण्ड में निर्दोष आदिवासियों पर हुए ज़ुल्म का हिसाब ...... राज्य के आदिवासी बुद्धिजीवी , सामाजिक कार्यकर्त्ता , वाम व अन्य विपक्षी दल-नेता से लेकर पत्थलगड़ी अभियान चला रहे नेताओं तक का कहना है कि सरकार ग्राम सभा में आये और बात करे , देखना है ऐसा कब हो पाता है  ....... !

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