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झारखंडः स्कूलों के विलय नीति के विरोध में 5 सितंबर को शिक्षक करेंगे महाधरना

ग्रामीण स्कूलों के विलय, लंबित वेतन और काम करने की ख़राब स्थिति इस विरोध प्रदर्शन के मूल मुद्दे हैं।


jharkhand

झारखंड सरकार की स्कूल विलय नीति से राज्य के शिक्षक बेहद नाराज़ हैं। इस नीति के तहत राज्य के क़रीब 5000 स्कूलों को बंद किया जा रहा है। इन्हीं स्कूलों के शिक्षकों में से एक शिक्षक संजय कुमार दुबे ने कहा, "मैं 15 वर्षों से ज़्यादा समय से विरोध कर रहा हूंमुझे अपना वेतन पाने के लिए कब तक ऐसा करना चाहिएविद्यालयों के विलय की नीति मामलों को और ख़राब करेगीजब मुझे भुगतान नहीं किया जा रहा है तो मैं पढ़ाने के लिए कितना सफर करूंगा।"

शिक्षकों ने अब एक रिपोर्ट में शिक्षक की मांग का जवाब देने के लिए राज्य सरकार को अल्टीमेटम दिया है। अगर सितंबर तक जवाब प्राप्त नहीं होते हैं तो इन शिक्षकों ने राज्यव्यापी हड़ताल और विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है। संजय कुमार जो कि राज्य के शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी हैं उन्होंने कहा, "वर्तमान नीतियां राज्य में शिक्षा प्रणाली को बर्बाद करने वाली है।शिक्षकों की कई चिंताएं हैंइस सूची में सबसे ऊपर आरटीई के तहत उनकी भर्ती को लेकर विसंगतियां हैं।

जमशेदपुर के शिक्षक मित्र शंकर गुप्ता ने बताया, "मुझे वेतन प्राप्त किए हुए अब चार महीने से ज्यादा हो गया है। सरकार की भर्ती नीति में विसंगतियां हैं,वह प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित शिक्षकों को एक ही श्रेणी में रख रही है। जो कुछ भी हम मांग कर रहे हैं वह हमारी न्यूनतम मज़दूरी हैसही मायने में हम जिसके लायक हैं।"

राज्य में शिक्षकों के संगठन 27 अगस्त को किए गए उनके दावों के नए प्रयास में राज्य सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं। सरकार की उदासीनता से निराश शिक्षक सड़कों पर उतरने के लिए तैयार हैं। योजना के मुताबिक़ वे राजभवन के बाहर अपनी विभिन्न मांगों के समर्थन में एक प्रदर्शन करेंगे। ये महाधरना सुबह 11 बजे से शाम बजे तक किया जाएगा। शिक्षकों द्वारा किए गए विरोधों को उस वक़त और गति मिल गई जब शिक्षकों ने अगस्त महीने में शिक्षक दिवस समारोहों के बहिष्कार करने का फैसला किया था।

वेतन के मुद्दों के अलावा ये शिक्षक बड़े अंतर्निहित मुद्दों जैसे राज्य में स्कूलों के पुनर्गठन या विलय को लेकर चिंतित हैं। सरकार ने वर्तमान में राज्य में क़रीब 6,000 से अधिक स्कूलों को विलय कर लिया है। विलय के लिए बताया गया कारण इन स्कूलों में नामांकन की संख्या कम रही हैजो अक्सर राज्य के दूरस्थ ज़िलों में स्थित है। वे स्कूल जिन्हें अब बंद किया जा रहा है वे 2000 के दशक के बाद से राज्य में यूनिवर्सल शिक्षा देने के दृष्टिकोण का हिस्सा था। विलय का नया समूह जो 2018-19 के बीच होने को तैयार है उसे लेकर शिक्षकों और छात्रों में समान रूप से चिंताओं को जन्म दे रहा है। दुबे ने आगे कहा, "इन स्कूलों को विशेष क्षेत्र में 20 छात्रों को शिक्षा देने के लिए स्थापित किया गया थाअब सरकार जिसमें 60 से अधिक छात्र हैं उस स्कूल को बंद कर रही है और इस मामले में शिक्षकों को कोई न्याय नहीं दिया जा रहा है। मुझे बस अपने जॉब का लोकेशन बदलने या खोने का विकल्प दिया जा रहा है।"

शिक्षकों के लिए एक प्रमुख चिंता की सच्चाई यह भी है कि विलय के दूसरे चरण में वंचित समूहों के छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। विशेष रूप से दुर्गम इलाके के आसपास कोई स्कूल नहीं होने के चलते छात्रों को अपने नए स्कूलों से वंचित रहने की संभावना है।

जुलाई 2017 में शुरू हुई ये नीति दिशानिर्देश ने कार्य कुशलता के लिए राज्य भर के छोटे स्कूलों के तर्कसंगतकरण की ओर इशारा किया।यद्यपि वर्तमान में बीजेपी के सांसदों द्वारा इस नीति का विरोध किया जा रहा हैहालांकि उनकी निर्देश और कार्यवाही की योजनाएं अभी तक क़ायम नहीं हुई हैं। राजस्थान में पहले इस कार्यक्रम की स्पष्ट सफलता के बाद इस नीति को झारखंड सरकार ने राज्य में लागू किया था। सरकार ने तर्क दिया है कि ये नीति संसाधनों विशेष रूप से शिक्षकों के अधिक कुशल उपयोग करने की अनुमति देगी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुएशंकर गुप्ता ने कहा, "कुशल उपयोग का कोई सवाल नहीं हैअगर मैं केवल 8,000 रुपए महीने ही कमा रहा हूं और सफर के लिए बड़ी रक़म ख़र्च करने पड़ेंगे तो मैं कुशलतापूर्वक योगदान कैसे करूंगा।उन्होंने यह भी कहा कि इन दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन से किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति नहीं होगी बल्कि शिक्षकों और छात्रों दोनों को ही दूर कर दिया जाएगा।

इस नीति के तहतओडिशामध्य प्रदेश और झारखंड पहले तीन राज्य थे जिन्हें 30 महीने के कार्यक्रम के लिए चयन किया गया थाजिसके तहत नीति आयोग ने इन सुधारों को लागू करने के लिए दो निजी संगठनोंप्रबंधन परामर्शदाता बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और पिरामल ग्रुप के गैर-लाभकारी संगठन पिरामल फाउंडेशन फॉर एजुकेशन लीडरशिप को शामिल किया।

इस मॉडल ने शिक्षकों के बीच डर पैदा कर दिया है कि यह राज्य में शैक्षणिक संस्थानों को निजीकृत और कमज़ोर करने का एकमात्र प्रयास है। यही शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन के मुख्य कारणों में से एक है।

प्राथमिक विद्यालयों का पुनर्गठन राज्य में शिक्षा प्रणाली के कायापलट का कारण बन गया हैऔर झारखंड में शिक्षकों की आजीविका के नुकसान की चिंताओं के साथ छात्रों के बाहर करने को लेकर सिविल सोसाइटी संगठनें और शिक्षकों के संघ फरवरी से इस विलय के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने पर भविष्य में इस आंदोलन के तीव्र होने की संभावना है।

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