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जम्मू-कश्मीर : क्षेत्रीय दलों ने परिसीमन आयोग के प्रस्ताव पर जताई नाराज़गी, प्रस्ताव को बताया जनता को शक्तिहीन करने का ज़रिया

महबूबा मुफ़्ती का कहना है कि बीजेपी गांधी के भारत को गोडसे के भारत में बदलना चाहती है। इस लक्ष्य के लिए जम्मू-कश्मीर को प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
jammu and kashmir
Image Courtesy: Flickr

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि परिसीमन आयोग का प्रस्ताव आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि यह जम्मू और कश्मीर में लोकतंत्र पर व्यापक हमले का का हिस्सा मात्र था।

श्रीनगर में अपनी पार्टी मुख्यालय के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए पीडीपी नेता ने कहा कि परिसीमन आयोग का लक्ष्य बीजेपी के हितों के लिए हर किसी को शक्तिविहीन कर देना था। 

उन्होंने कहा, "बीजेपी अपनी विधानसभाओं को मजबूत करना चाहती है और बहुसंख्यक समुदायों को शक्तिविहीन।" महबूबा ने यह भी कहा कि बीजेपी नाथूराम गोडसे के एजेंडे पर चल रही है। 

महबूबा ने कहा, "वे इस देश में किसी भी बात नहीं सुन रहे हैं और गोडसे के एजेंडे का पालन कर रहे हैं। वे गांधी के भारत को गोडसे के भारत में बदलना चाहते हैं और कश्मीर इसके लिए प्रयोगशाला बन गया है।"

पीडीपी अध्यक्ष ने चेतावनी देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में की जा रही परिसीमन की कवायद उस वक्त पूरे देश में करवाई जाएगी, जब बीजेपी के लिेए वक़्त मुफ़ीद होगा। बता दें परीसीमन आयोग द्वारा दूसरे मसौदे को अपने सदस्यों के साझा करने के बाद महबूबा मुफ़्ती की यह प्रतिक्रिया आई है। पीडीपी समेत सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने इसका विरोध किया है। 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के जनरल सेक्रेटरी अली मुहम्मद सागर ने रविवार को मसौदे के प्रस्ताव का निंदा करते हुए कहा कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर के लोगों को विभाजित करने की कोशिशों को नहीं मानेगी। 

मंत्री रह चुके मुहम्मद सागर ने कहा, "मसौदे में दिए गए सुझाव विचित्र हैं। पैनल ने उसमें अपने मनमुताबिक़ सुझाव शामिल किए हैं। यह प्रतिनिधित्व के सर्वमान्य और सैद्धांतिक सिद्धांतों का माखौल है।"

परिसीमन आयोग को मार्च, 2020 में केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन के लिए बनाया गया था। इसकी एक साल की समय-सीमा तय की गई थी। लेकिन इस साल इसकी समयसीमा मार्च तक बढ़ा दी गई थी। लेकिन जस्टिस (रिटायर्ड) रंजन प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा पेश किए गए शुरुआती दो मसौदों की खूब आलोचना हुई है। आयोग ने विधानसभा क्षेत्रों में भारी बदलाव की अनुशंसा की है, जिसके तहत भौगोलिक तौर पर विभाजित पीर पंजाल घाटी इलाकों को अनंतनाग संसदीय सीट में जोड़ा गया है। कई लोगों को यह बदलाव बेहद उग्र लग रहे हैं। 

पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों ने कहा है कि वे विधानसभाओं से जानकारी लेने के बाद वे इन मसौदों के जवाब में विस्तृत प्रस्ताव पेश करेंगी। सिर्फ़ पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने ही नहीं, बल्कि सज्जाद लोन की अध्यक्षता वाली पीपल्स कॉन्फ्रेंस, जो पहले बीजेपी के साथ रह चुकी है, उसने भी एक वक्तव्य जारी कर कहा है कि पार्टी का मानना है कि पूरी कवायद कश्मीर के लोगों को "शक्तिविहीन और मताधिकार" से वंचित करने की साजिश है। 

पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता ने वक्तव्य पढ़ते हुए कहा, "परिसीमन आयोग द्वारा अपने पुराने प्रावधानों में बदलाव ना करना हैरानी भरा नहीं है। कश्मीरियों के घावों पर नमक रगड़ते हुए, हमें इसमें दक्षिण कश्मीर और राजौरी जैसे दो अलग-अलग भूभागों को एकसाथ लाकर नया संसदीय क्षेत्र देखने को मिला है।"

वक्तव्य में कहा गया है कि इन दो इलाकों के रहवासियों की आकांक्षाएं पूरी तरह अलग-अलग हैं। उनकी समस्याएं और चुनौतियां भिन्न हैं, उनकी भौगोलिक बनावट भी अलग है। लेकिन आयोग ही जाने कि कौन सी वज़ह से दो इतने अलग क्षेत्रों को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया है।

इसी तरह की चिंताएं सीपीआई (एम) के नेता मोहम्मद युसुफ तारागामी ने जताई हैं। उन्होंने आयोग की अनुशंसाओं को "मौजूदा क्षेत्रवार विधानसभा क्षेत्रों को मनमाने ढंग से पूरी तरह बदलने वाला बताया, जिसमें आबादी तो छोड़िए, भौगोलिक स्थितियों की भी परवाह नहीं की गई है।"

तारिगामी ने कहा "सहायक सदस्यों के साथ साझा किया गया मसौदा, आयोग द्वारा पहले दिए गए तर्क कि विधानसभा सीटों के पुनर्गठन के लिए भौगोलिक बनावट और दूर-दराज के इलाकों को ध्यान में रखा जाएगा, उससे भी पूरी तरह अलग दिखाई देता है।"

तारागामी पीएडीजी (पीपल्स अलायंस फॉ़र गुपकार डिक्लेरेशन) के भी प्रवक्ता हैं। यह क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का एक समूह है, जिसकी मुख्य मांग राज्य में 5 अगस्त, 2019 के पहले का दर्जा वापस किए जाने की है। अनुमान है कि समूह 13 फरवरी को एक बैठक करेगा, जिसमें परिसीमन रिपोर्ट पर एक संयुक्त प्रतिक्रिया जारी की जाएगी। 

इस पूरी कवायद के खिलाफ़ जम्मू कश्मीर के दल गंभीर चिंताएं जताते रहे हैं। इन दलों का विश्वास है कि यह कवायद नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का स्थानीय प्रतिनिधित्व अस्थिर करने की कोशिश है। पीडीपी के भीतरी मामलों से परिचित एक शख़्स ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अभी तक परिसीमन इस तरीके से किया गया है कि पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस का आधार कमज़ोर हो। नाम ना छापने की शर्त पर शख़्स ने कहा, "ऐसे बदलाव किए जा रहे हैं जिनसे सिर्फ़ बीजेपी को अपने हित साधने और पारंपरिक तौर पर अपने प्रत्याशियों को जिताने में नाकामयाब रहे बीजेपी के साथियों को मदद मिलेगी।" 

लेकिन पीडीपी के सदस्य नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ नाराज़ हैं, जिनके तीन सांसद आयोग के सहायक सदस्य हैं। बता दें पहले बॉयकाट करने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने दिसंबर 2020 में आयोग की बैठक में हिस्सा लिया था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

J&K Parties Rage Against Delimitation Panel's Proposal, Term it ‘Disempowering’

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