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पत्रकार मनदीप पुनिया ने किया गिरफ़्तारी के बाद का घटनाक्रम बयां

प्रदर्शनकारी किसानों और उन पर रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर लगातार दमन चक्र चलाया जा रहा है। इस बीच मनदीप पुनिया को बेल पर छोड़े जाने से कुछ राहत मिली है। स्वतंत्र पत्रकार पुनिया को दिल्ली की सिंघु बॉर्डर पर किसान प्रदर्शन में अपने पत्रकारीय दायित्व निभाते वक़्त गिरफ़्तार किया गया था।
मनदीप पुनिया

प्रदर्शनकारी किसानों और उन पर रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर लगातार दमन चक्र चलाया जा रहा है। इस बीच मनदीप पुनिया को बेल पर छोड़े जाने से कुछ राहत मिली है। स्वतंत्र पत्रकार पुनिया को दिल्ली की सिंघु बॉर्डर पर किसान प्रदर्शन में अपने पत्रकारीय दायित्व निभाते वक़्त गिरफ़्तार किया गया था। बेतवा शर्मा इस पूरे घटनाक्रम पर मनदीप से बात कर रही हैं।

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"और कर ले रिपोर्ट, और ले कर रिपोर्ट".... मनदीप पुनिया के मुताबिक, जब उन्हें दिल्ली और हरियाणा की सिंघु बॉर्डर के पास 30 जनवरी को पुलिस ने एक टेंट में बंद कर रखा था, तब पुलिसकर्मी उनसे यही शब्द कह रहे थे।

इससे कुछ घंटे पहले ही पुनिया की गिरफ़्तारी हुई थी। पुनिया बताते हैं कि पुलिसकर्मियों ने उनकी पिटाई की, कैमरा तोड़ दिया और उनका फोन छीन लिया।

पुनिया के मुताबिक़, "मेरे दोस्तों और परिवार को नहीं पता था कि मैं कहा हूं। मैं उनसे लगातार कानूनी सहायता पाने के लिए एक फोन करने देने की अपील करता रहा, लेकिन उन्होंने कहा कि अब तुम तिहाड़ से ही फोन लगाओगे।"

24 साल के पुनिया भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) से पढ़े हैं, वे लगातार नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे प्रदर्शनों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। पुनिया कारवां मैगजीन के लिए भी प्रदर्शन से रिपोर्टिंग कर रहे थे। वह बताते हैं कि पुलिसकर्मियों ने उनसे एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, जिसमें लिखा गया था कि वे पुलिसकर्मियों के साथ गलत व्यवहार नहीं करेंगे।

पुनिया बताते हैं कि जब वे टेंट में थे, तो शपथपत्र पर जबरदस्ती हस्ताक्षर करवाने की कोशिश की गई, उन्हें कई थप्पड़ मारे गए और पैरों पर लाठियां भी बरसाई गईं। लेकिन पुनिया ने शपथपत्र पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। 

पुनिया ने पुलिसकर्मियों से कहा, "मैं शपथपत्र पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा....मैंने कुछ किया ही नहीं है। तो मैं शपथपत्र पर हस्ताक्षर क्यों करूं? मैं समझौता क्यों करूं? अगर तुम चाहते हो, तो मुझे जेल भेज दो....तुम मुझे मार रहे हो और मुझसे कह रहे हो कि मैं पुलिसवालों के साथ अभद्र व्यवहार नहीं करूंगा। यह सही नहीं है। मैं शपथपत्र पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा।"

किसान आंदोलन पर मोदी सरकार के दमन, जिसमें कई पत्रकारों के खिलाफ़ बहुत सारी FIR दर्ज की जा रही हैं, इसके बीच पुनिया की गिरफ़्तारी ने सोशल मीडिया पर नाराज़गी का तूफान खड़ा कर दिया था। 

एक फरवरी को बेल पर सुनवाई के दौरान पुनिया की पत्नी लीलाश्री गोदारा ने कहा, "मैं मानसिक तौर पर तैयार हूं। यह मेरी जवाबदेही है। मुझे लगता है कि हर किसी को आवाज़ उठाने की जरूरत है।"

पुनिया को 2 फरवरी के दिन मुख्य मेट्रोपॉलिटिन न्यायाधीश (CMM), जिला-उत्तर, सतवीर सिंह लाम्बा की कोर्ट से बेल दी गई है। 3 फरवरी की रात पुनिया जेल से छूटे।

वह आगे कहती हैं, "मुझे इस बात की चिंता है कि वे FIR में दूसरी चीजें जोड़ रहे हैं। पूरा सिस्टम ऐसा ही है। सरकार भी ऐसी ही है। हम कहते हैं कि यह लोकतंत्र है, लेकिन हम तानाशाही की तरफ बढ़ रहे हैं। आपको कुछ भी हो सकता है। इसलिए हर किसी को मानसिक तौर पर तैयार रहना चाहिए।"

दिल्ली पुलिस का कहना है कि पुनिया को सिंघु बॉर्डर पर पुलिसकर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार करने के लिए हिरासत में लिया गया था। पुलिस का आरोप है कि हाथापाई के वक़्त पुनिया ने एक कॉन्सटेबल को धक्का दिया था। पुनिया के खिलाफ़ IPC की धारा 186 और 353 के तहत मामला दर्ज किया गया, जो क्रमश: किसी सरकारी अधिकारी को उसके सार्वजनिक कर्तव्यों से रोकने और ड्यूटी पर तैनात अधिकारी पर हमले से संबंधित हैं। इसके बाद अलीपुर पुलिस थाने में उनके खिलाफ़ IPC की धारा 332 (जानबूझकर नुकसान पहुंचाने) और धारा 34 (सामान्य आशय को अग्रसर करने) भी जोड़ी गईं।

अतिरिक्त लोक अभियोजक बंदुराज बाघरावत राज्य के प्रतिनिधि के तौर पर कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने कहा कि मनदीप प्रदर्शन स्थल पर प्रदर्शनकारियों को भड़का सकता है और वहां स्थितियां खराब कर सकता है। बाघरावत ने इसी आधार पर मनदीप की बेल याचिका का विरोध किया।

पुनिया कहते हैं कि पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद और तिहाड़ ले जाने के बीच के घंटो में वे स्तब्ध थे। बतौर पुनिया, “मैं बस इतना ही सोच रहा था कि किसी तरह यह सब ख़त्म हो।”

पुनिया को बेल देने वाले आदेश में CMM लाम्बा ने टिप्पणी में कहा कि हाथापाई 30 जनवरी को शाम 6 बजकर 30 मिनट पर हुई, लेकिन FIR 31 जनवरी को 1:21 am पर दर्ज की गई। आदेश में कहा गया, "ऊपर से शिकायतकर्ता, पीड़ित और गवाह सभी पुलिसकर्मी ही हैं। इसलिए कोई संभावना नहीं है कि आरोपी किसी पुलिस अधिकारी को प्रभावित कर सकता है।" 

पुनिया बताते हैं कि तिहाड़ पहुंचने के बाद वहां पहले से बंद किसानों से मिलने के बाद उन्होंने एक पेन का प्रबंध किया और उनकी स्टोरी सुनना चालू कर दिया, इस दौरान पुनिया ने अपने पैरों पर इन किसानों के नाम, वे कहां से आते हैं और उन्हें कैसी चोटें लगी हैं, इससे संबंधित जानकारी लिखी।

वह कहते हैं, “एक रिपोर्टर का काम रिपोर्ट करना है, खासकर तब जब आपके आसपास सताये हुए लोग हों। अगर तुम ज़्यादा या कम वक़्त के लिए तिहाड़ में भी हो, तो भी समय बर्बाद क्यों करना? रिपोर्ट करना चाहिए।”

पुनिया बताते हैं कि स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम करना जोख़िम भरा और कठिन होता है, जब चीजें मुश्किल हो जाती हैं तो किसी भी तरह की मदद मिलना कठिन हो जाता है।

हालांकि इस मामले में पुनिया के दोस्त और साथ काम करने वाले बड़ी संख्या में इकट्ठे हो गए थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पुनिया कहते हैं, “मेरे लिए यही सबकुछ है।”

बेतवा शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो राजनीति और नागरिक आज़ादी से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं। वे हफपोस्ट इंडिया की राजनीतिक संपादक रह चुकी हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Journalist Mandeep Punia Recalls Moments After Arrest

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