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कैमूर पुलिस फायरिंग: सबूतों के अभाव में 15 आदिवासी-कार्यकर्ताओं को मिली जमानत

वन भूमि और वन संसाधनों पर अधिकार की मांग को लेकर सितंबर 2020-21 में आदिवासियों द्वारा किए गए धरना प्रदर्शन के दौरान, बिहार पुलिस ने गोलियां चलाईं, लाठीचार्ज किया और उनमें से कुछ को गिरफ्तार भी कर लिया।
कैमूर पुलिस फायरिंग: सबूतों के अभाव में 15 आदिवासी-कार्यकर्ताओं को मिली जमानत

वन भूमि और वन संसाधनों पर अधिकार की मांग को लेकर सितंबर 2020-21 में आदिवासियों द्वारा किए गए धरना प्रदर्शन के दौरान, बिहार पुलिस ने गोलियां चलाईं, लाठीचार्ज किया और उनमें से कुछ को गिरफ्तार भी कर लिया। अब आकर कैमूर बिहार, की एक सत्र अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी 15 आदिवासी प्रदर्शनकारियों को जमानत दे दी है। 

आरोपी कैलाश उरवां, महेंद्र सिंह, जवाहर सिंह, रामलाल सिंह, रामलयक सिंह, मोहन सिंह, सुनील कुमार, फुलमटिया देवी, विजय शंकर सिंह, बालकेश्वर सिंह, परीक्षा सिंह, रूपनारायण राम, लाल बिहारी सिंह, दीनानाथ सिंह और महकी देवी को  गिरफ्तार किया था और उन्हें 2 हफ्ते  जेल में बिताने पड़े। उन पर धारा 147 (दंगा करने की सजा), 148 (घातक हथियार से लैस), 149 (गैरकानूनी सभा), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने), 307 (हत्या का प्रयास), 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल के तहत मामला दर्ज किया गया), 332 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुँचाना), 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुँचाने वाली शरारत),  भारतीय दंड संहिता की धारा 342 (गलत कारावास की सजा) और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 (हथियारों या गोला-बारूद का उपयोग) के तहत आरोप थे। 

राज्य के आरोप

अतिरिक्त लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि आरोप गंभीर प्रकृति के थे। भीड़ द्वारा ईंट पत्थर फेंकने में 8 पुलिसकर्मियों को चोटें आई हैं जिनमें 15 आदिवासी प्रदर्शनकारी शामिल हैं। उन्होंने आगे तर्क दिया कि कुछ परिस्थितियों में जहां पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल भी नहीं होते हैं, उन्हें भी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि यह सीधे "पुलिस द्वारा कानून और व्यवस्था के रखरखाव को प्रभावित करता है और समाज को एक गलत संदेश देता है कि कानून तोड़ने वाले कानून तोड़ सकते हैं और  पुलिस कुछ नहीं करेगी।

अधौरा पुलिस स्टेशन के एसएचओ द्वारा केस दर्ज किया गया था कि 10 सितंबर, 2020 को एक संगठन कैमूर मुक्ति मोर्चा (केएमएम) के सदस्यों ने बिना किसी अनुमति के अधौरा ब्लॉक कार्यालय के पास दो दिवसीय धरना प्रदर्शन आयोजित किया था। जिसमें उन्होंने अवैध रूप से ब्लॉक कार्यालय और वन विभाग के कार्यालय से बाहर तालाबंदी कर दी थी जिसे पुलिस बल की मदद से खोला गया था।

11 सितंबर को केएमएम के कुछ सदस्यों ने मुख्य और शाखा मार्ग को जाम कर दिया और वहीं बैठकर लाउडस्पीकर पर भड़काऊ भाषण दिया। इस धरना प्रदर्शन में 400-500 पुरुष और महिलाएं हिस्सा ले रहे थे। कार्यवाही शांतिपूर्ण ढंग से चल रही थी, लेकिन दोपहर में भीड़ ने प्रखंड कार्यालय में घुसकर तोड़फोड़ की जिसे बल प्रयोग से रोका गया। पुलिस ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों ने प्रखंड कार्यालय के मुख्य द्वार को बंद कर दिया जिसे बाद में पुलिस को तोड़ना पड़ा। यही नहीं, इसके बाद, यह कथित अनियंत्रित भीड़ वन विभाग के कार्यालय की ओर दौड़ी और बैरक में घुसकर कंप्यूटर सेट, फोटोकॉपी मशीन, टेबल, कुर्सी, अलमीरा और कई आधिकारिक दस्तावेजों, गश्ती वाहन और रेंज कार्यालय के दरवाजों को क्षतिग्रस्त कर दिया। अभियोजक ने आरोप लगाया कि पुलिस और वनाधिकारियों ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके अलावा, प्रदर्शनकारियों पर इन परिसर में आग लगाने और पुलिस और वनाधिकारियों पर पथराव का भी आरोप लगाया था। अभियोजक ने तर्क दिया कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए, पुलिस को 'हल्का बल' इस्तेमाल करना पड़ा और खुद को बचाने के लिए हवा में गोलियां चलानी पड़ी लेकिन भीड़ ईंट पत्थर फेंकती रही जिसमें छह पुलिस वाले और वन विभाग के दो कर्मियों को चोटें आईं। भीड़ में शामिल करीब 30 लोगों की पहचान की गई, जिनमें 15 कार्यकर्ता शामिल हैं।

कोर्ट को नहीं मिला कोई सबूत

हालांकि, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने राज्य (पुलिस) के मामले में कोई मेरिट नहीं पाई। अदालत ने पाया कि केस डायरी में उन्हें आदिवासियों की कोई विशेष भूमिका नजर नहीं आई और न ही यह उल्लेख किया गया है कि उन्होंने घटना को किस तरह अंजाम दिया था। आदेश में यह भी लिखा गया है, "जिस अवधि के दौरान याचिकाकर्ताओं को पुलिस रिमांड में पूछताछ के लिए ले जाया जा सकता था, वह समाप्त हो गया है और 15 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रखने के बावजूद उनकी कोई (टीआईपी) पहचान तक नहीं कराई गई है। कोर्ट ने माना कि उनकी राय में आदिवासी प्रदर्शनकारियों को निरंतर हिरासत से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी। इसके अलावा रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से भी स्पष्ट हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 307, 333 के तहत अपराध का कोई मामला नहीं बनता है, भले ही उन्हें आईपीसी की धारा 149 का सहारा लेकर व्यक्तियों पर चोट के रूप में आरोपी बनाया गया हो। घायलों की चोट साधारण व सामान्य है और वो भी शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर नहीं है। यही नहीं, याचिकाकर्ताओं का मामला भी उन आरोपियों के समान है, जिन्हें अदालत द्वारा पहले ही नियमित जमानत दी जा चुकी है।

यहां आरोपी हैं- सिपाही सिंह उम्र 65 साल गोइयां, धर्मेंद्र सिंह उम्र 25 साल बर्डीहिया, पप्पू पासवान उम्र 23 साल झारपा, लल्लन सिंह खरवा, उम्र 45 साल बराप, कैलाश सिंह उम्र 62 साल बरडीहा, राम शकल सिंह खरवार, उम्र 52 वर्ष गोइयां और हरिचरण सिंह, 65 वर्ष सरायनार से, जिन्हें सीजेपी व ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल के साथ दिल्ली सॉलिडैरिटी ग्रुप की फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट के आधार पर, 16 अक्टूबर को नियमित जमानत दे दी गई थी। 

सीजेपी व ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल ने प्रकाशित की थी रिपोर्ट

सबरंग इंडिया के सह प्रकाशन सीजेपी ने इस घटना पर ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल और दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुप के साथ एक तथ्यात्मक रिपोर्ट का प्रकाशन किया था। इसके लिए AIUFWP और DSG की टीम ने 23 से 27 सितंबर, 2020 तक बिहार के कैमूर जिले के अधौरा ब्लॉक का दौरा भी किया था। फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए, उसके अनुसार उल्टे कार्यकर्ताओं पर हवाई फायरिंग और लाठीचार्ज किया गया, गोलियां चलाई गईं जिसमें न सिर्फ 7 कार्यकर्ता घायल हो गए, बल्कि पुलिस ने झूठे आरोप में उन्हें पकड़ भी लिया। 16 अक्टूबर को सभी सातों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। दो दिन बाद, कैमूर मुक्ति मोर्चा (केएमएम) द्वारा 'चुनावों के बहिष्कार को लेकर किए गए आह्वान' के जवाब में (कैमूर के लोगों के भूमि अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक रूप से संघर्ष करने के लिए 1990 के दशक में गठित एक संगठन) ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय सहित राजनीतिक दिग्गजों ने, प्रदर्शनकारियों से चुनाव बहिष्कार का आह्वान वापस लेने की अपील की।

खास है कि यह विरोध प्रदर्शन 10 सितंबर को शुरू हुआ था, जहां अधौरा ब्लॉक के 108 गांवों के महिलाओं, पुरुषों, युवाओं और बच्चों सहित हजारों आदिवासियों ने वन विभाग के कार्यालय अधौरा के सामने लामबंदी कर रखी थी और वह वन अधिकार अधिनियम 2006 और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 को लागू करने की मांग कर रहे थे। वे कैमूर को संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने, छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम को लागू करने की भी मांग कर रहे थे। इसके साथ ही प्रस्तावित कैमूर वन्यजीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व को समाप्त करने की भी मांग थी जिसका प्रशासन की ओर से कोई जवाब नहीं मिलने के चलते, उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहा। जब उनके प्रतिनिधि बातचीत करने के लिए वन विभाग के कार्यालय गए, तो आरोप है कि वहां अधिकारियों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उनके साथ हाथापाई की गई और बाद में, और अचानक, सीआरपीएफ कर्मियों के साथ और अधिक पुलिस आ गई, और उन पर एक क्रूर हमला किया गया। पुलिस ने फायरिंग कर प्रदर्शनकारियों पर ही लाठीचार्ज किया। 12 सितंबर को कैमूर मुक्ति मोर्चा के अधौरा स्थित कार्यालय में भी पुलिस ने तोड़फोड़ की थी। कैमूर मुक्ति मोर्चा से जुड़े दर्जनों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने झूठे आरोप में गिरफ्तार किया, लेकिन 16 अक्टूबर को उन्हें जमानत दे दी गई। 

सीजेपी-एआईयूएफडब्ल्यूपी की एनएचआरसी से शिकायत

30 सितंबर को सीजेपी और एआईयूएफडब्ल्यूपी ने इस क्रूर घटना के बारे में मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से शिकायत की थी। शिकायत में बताया था कि कैसे प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन के लिए पूर्व अनुमति मांगी थी। वहीं, जो आरोप राज्य द्वारा लगाए गए हैं, वैसा कुछ नहीं हुआ। एआईयूएफडब्ल्यूपी द्वारा 11 सितंबर, 2020 को कैमूर, बिहार में विरोध प्रदर्शन में आदिवासियों पर गोलीबारी के संबंध में राज्यसभा के सदस्य मनोज झा को 13 सितंबर, 2020 को एक पत्र संबोधित किया था। इस पत्र में उपरोक्त घटनाओं का उल्लेख है और यह भी कि कैमूर मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने 10 हजार पर्चे बांटकर ग्रामीणों, ग्राम सभा, पुलिस और वन विभाग को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक महीने पहले 10 और 11 सितंबर, 2020 के विरोध प्रदर्शन के बारे में सूचित किया था। इसी मुद्दे पर एआईयूएफडब्ल्यूपी द्वारा कैमूर कार्यकर्ताओं और वनवासियों पर गोलीबारी के संबंध में 15 सितंबर, 2020 को एक अन्य पत्र पटना बिहार के पुलिस महानिदेशक को संबोधित किया था। दोनों पत्रों ने उस पैम्फलेट की प्रति संलग्न की थी जिसे विरोध के बारे में लोगों को सूचित करने के लिए वितरित किया गया था। जिसमें जल, जंगल और जमीन पर अधिकारों की लड़ाई के लिए एकता का आह्वान किया गया था।

28 जुलाई का बेल ऑर्डर यहां पढ़ सकते हैं-

साभार : सबरंग 

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