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कन्हैया का रोड शो और नामांकन : बेगूसराय के जरिये देश को संदेश

रोड शो तो तमाम बड़े नेता निकाल ही रहे हैं और उनके साथ ‘स्टार’ प्रचारक भी होते हैं लेकिन कन्हैया के साथ शामिल हुए इन चेहरों का अपना अलग महत्व और अलग संदेश है। ये बेहद आम चेहरे हैं जो सत्ता की निरंकुशता से लड़ते-लड़ते ख़ास बन गए हैं।
कन्हैया के रोड शो के दौरान की तस्वीर।
साभार : एआईएसएफ

अम्मा फ़ातिमा नफ़ीस (नजीब की मां), मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, दलित नेता और गुजरात से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी, छात्र नेता रहीं शेहला रशीद, गुरमेहर कौर, कलाकार स्वरा भास्कर ये वो सबरंग हैं जो आज बेगूसराय में लाल रंग के साथ यकजां यानी एकमेव हो गए। जी हां, आज मंगलवार को बेगूसराय में सीपीआई के उम्मीदवार और पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार ने बड़ा रोड शो निकालकर 2019 आम चुनाव के लिए अपना नामांकन किया।

#जय_कन्हैया_तय_कन्हैया_विजय_कन्हैया #नेता_नहीं_बेटा जैसे नारों और लाल झंडों के साथ इस रोड शो में जहां आगे-पीछे पैदल और मोटरसाइकिलों पर बेगूसराय के युवा चल रहे थे तो कन्हैया की गाड़ी पर सीपीआई के वरिष्ठ नेताओं के अलावा बारी-बारी से ये सब चेहरे जो मोदी सरकार से लड़ाई के देश के चर्चित चेहरे बन गए हैं, वे दिखाई दे रहे थे।

रोड शो तो तमाम बड़े नेता निकाल ही रहे हैं और उनके साथ स्टार प्रचारक भी होते हैं लेकिन कन्हैया के साथ शामिल हुए इन चेहरों का अपना अलग महत्व और अलग संदेश है। ये बेहद आम चेहरे हैं जो सत्ता की निरंकुशता से लड़ते-लड़ते ख़ास बन गए हैं। कन्हैया खुद इन्हीं में से एक हैं, जो 2016 से देशद्रोह का आरोप झेल रहे हैं। हालांकि दिल्ली पुलिस आज तक कुछ साबित नहीं कर पाई है। शायद आज के रोड शो का भी बेगूसराय से ज़्यादा देश के लिए संदेश था कि तमाम दमन के बाद भी आम छात्र, युवा और अन्य लोग एकजुट खड़े हैं। ये एक तरह से सीधे नरेंद्र मोदी को चुनौती है।

नामांकन के लिए जाने से पहले कन्हैया ने अपने ट्विटर एकाउंट पर ट्वीट किया- 'अम्मा फ़ातिमा नफ़ीस, जिग्नेश, शेहला, गुरमेहर समेत उन तमाम साथियों का शुक्रिया जो संविधान और लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष को मज़बूत करने के लिए बेगूसराय आए हैं। जहां देखो वहां हमारे साथी लाल झंडों के साथ नज़र आ रहे हैं। एकजुटता का ऐसा भव्य नज़ारा सबमें जोश भर रहा है।'

आइए कन्हैया के साथ शामिल हुए इन एक-एक चेहरों को पढ़ते हैं और जानते हैं कि ये क्यों हैं ख़ास : 

फ़ातिमा नफ़ीस : कन्हैया के रोड शो में शामिल रहीं फ़ातिमा नफ़ीस। फ़ातिमा जेएनयू से लापता हुए छात्र नजीब की मां हैं। अब जेएनयू के तमाम छात्र उन्हें मां या अम्मा कहने लगे हैं। नजीब की मां ने अपने बेटे की तलाश के लिए लगातार संघर्ष किया है और तमाम मुसीबतें उठाईं। नजीब के गायब होने में सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का हाथ होने का आरोप है इसलिए फातिमा जी को पुलिस-प्रशासन का दमन भी सहना पड़ा। आपको मालूम है कि एबीवीपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का छात्र संगठन है और आरएसएस, बीजेपी का पितृ संगठन है।  

तीस्ता सीतलवाड़ : तीस्ता सीतलवाड़ को तो आप सब जानते ही होंगें। मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सन् 2002 के गुजरात दंगों के बाद से ही पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं। और इसी वजह से मोदी सरकार की आंखों का कांटा बनी हुई हैं।

शेहला रशीद :  शेहला रशीद छात्र संगठन आइसा की सदस्य रही हैं और कन्हैया के अध्यक्ष रहने समय में ही जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष रही हैं। 2016 का यह वही समय है जब कुछ तथाकथित देशविरोधी नारों की आड़ में कन्हैया समेत पूरे जेएनयू को टार्गेट किया जाता है। उस दौरान शेहला डट कर कन्हैया और जेएनयू के साथ खड़ी होती हैं और युवाओं की आवाज़ बनती हैं। शेहला ने अभी जम्मू-कश्मीर में शाह फैज़ल द्वारा बनाई गई नई पार्टी जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट ज्वाइन की है।

गुरमेहर कौर : आप जानते हैं जेएनयू के ख़िलाफ़ नफ़रतों के दौर में पाकिस्तान के खिलाफ भी युद्धोन्माद जगाया गया था। उस समय दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र गुरमेहर कौर जो खुद करगिल युद्ध में शहीद भारतीय सेना के कैप्टन मंदीप सिंह की बेटी हैं ने सोशल मीडिया पर अपने अनोखे अंदाज़ युद्ध के विरोध और शांति के हक में संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं मारा, बल्कि युद्ध ने मारा है। इसकी लेकर कथित राष्ट्रवादी तत्वों द्वारा उनकी तीखी आलोचना की गई थी और उन्हें सोशल मीडिया पर बुरी तरह ट्रोल किया गया था।

स्वरा भास्कर : स्वरा भास्कर एक मशहूर अभिनेत्री हैं और अपने विशिष्ट अभिनय के साथ देश-समाज के सभी ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने के लिए जानी जाती हैं। बिहार की पृष्ठभूमि से जुड़ी फिल्म आरा की अनारकली के जरिये स्वरा ने दर्शकों पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। आप भी ट्रोल आर्मी का अक्सर शिकार बनती हैं।

जिग्नेश मेवाणी : जिग्नेश मेवाणी भी मोदी विरोध का एक जाना पहचाना चेहरा हैं। जिग्नेश गुजरात के ऊना कांड के बाद सुर्खियों में आए। आपको याद होगा कि ऊना में मृत पशुओं का चमड़ा उतारने पर कई दलित युवकों को दबंग जातियों के लोगों ने गाड़ी से बांधकर बुरी तरह पीटा था। इसके खिलाफ जिग्नेश डटकर खड़े हुए और नारा दिया कि अपनी गाय की पूंछ तुम अपने पास रखो हमें हमारी ज़मीन दो। इसके बाद बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ उनका खुला संघर्ष शुरू होता है और वे गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर विधायक बनते हैं। उस दौरान भी उन्हें कांग्रेस और वाम समेत तमाम दलों और अन्य जनवादी ताकतों ने समर्थन दिया था।

तो ये वो आम चेहरे हैं जो अपने संघर्ष की वजह से आज बेहद ख़ास हैं। और उल्लेखनीय ये भी है कि इनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं जो आज यह कहते हुए भी नये सिरे से उट्ठी हैं कि औरतें उट्ठी नहीं तो ज़ुल्म बढ़ता जाएगा। 

कन्हैया कुमार ने इसी बात को अपने ट्वीट में साझा किया। उन्होंने नामांकन के लिए जाने से पहले अपनी मां और नजीब की मां का आशीर्वाद लिया और तस्वीरें साझा करते हुए लिखा- मांओं के आशीर्वाद और दुआओं के साथ नामांकन के लिए निकल रहा हूं। यह सीख उनसे ही मिली है कि लक्ष्य चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो अगर हम लगातार कोशिश करें तो जीत ज़रूर मिलती है। और यह भी कि पूरी दुनिया के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझना ही इंसान होने की पहली शर्त है।

 

इसके बाद कन्हैया राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की मूर्ति पर माल्यार्पण करने पहुंचे। बेगूसराय दिनकर की जन्मभूमि है। कन्हैया ने इसे भी अपने ट्विटर पर साझा किया और लिखा- 'राष्ट्रकवि दिनकर की धरती नफ़रत फैलाकर सियासत करने वालों को कभी पनपने नहीं देगी। उन्हीं के शब्दों में- "जब तक मनुज-मनुज का यह/सुख भाग नहीं सम होगा/ शमित न होगा कोलाहल/ संघर्ष नहीं कम होगा।"

 

कन्हैया जो भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के उम्मीदवार हैं उनके साथ वाम के अलावा जनता से जुड़ी हर वो ताकत जुड़ गई है जो सत्ता से संघर्ष की प्रतीक है।

आपको बता दें कि बिहार के बेगूसराय को वामपंथ का मजबूत गढ़ कहा जाता है एक समय तो इसे मिनी मास्को तक की संज्ञा दी जाती थी। और आज वहां एक बार फिर कन्हैया के तौर पर लाल झंडा लहरा रहा है।

छात्र संगठन एआईएसएफ (AISF) के पेज पर एक वीडियो साझा किया गया है जिसमें कन्हैया के समर्थन के लिए आईं फ़ातिमा नफ़ीस ने कहा, मुझे ख़ुशी है और यक़ीन हो गया है कि कन्हैया जरूर जीतेगा। मैं यहां के लोगों में काफी जोश देख रही हूं। इतना आशीर्वाद तो बहुत कम लोगों को मिलता है। कन्हैया सिर्फ बेगूसराय का नहीं, देश का हीरो है, वह हम सबका बेटा है, देश का बेटा। इसी वीडियो में शेहला रशीद ने कहा, हमें ऐसा लग रहा है कि आज सिर्फ बेगूसराय की लड़ाई नहीं है, पूरे मुल्क की लड़ाई है। पूरे मुल्क को एक नया नेता चाहिए, एक नया नेतृत्व चाहिए। तो हमारी यहां किसी से लड़ाई नहीं है। यहां जो कैंडिडेट हैं हम उनका भी आदर करते हैं, लेकिन देश की आज बिनती है बेगुसराय से कि देश को आज एक नया नेता दे, नया भविष्य दे। गुरमेहर कौर ने कहा, बहुत खुशी हो रही है। इतनी छोटी उम्र में स्टूडेंट लीडर उभर कर आ रहे हैं। इतनी बड़ी रैली मुझे नहीं याद है कि हमने कभी देखी होगी किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो किसी राजनीतिक परिवार से नहीं आता है। यह एक तरह से जीत है।'

रोड शो और नामांकन के बाद कन्हैया कुमार ने एक जनसभा भी की, जिसमें भी काफी जनसैलाब उमड़ा। सभा में कन्हैया ने बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह पर निशाना साधा और उन्हें अतिथि (बाहरी) उम्मीदवार कहा।

आपको बता दें कि बेगूसराय में चौथे चरण में 29 अप्रैल को चुनाव होना है। यहां से बीजेपी ने अपने केंद्रीय मंत्री और अपने मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजे जाने जैसे विवादित बयानों की वजह से मशहूर गिरिराज सिंह को प्रत्याशी बनाया है।  

वे पहले नवादा से सांसद थे। वहां से टिकट काटकर उन्हें बेगूसराय भेजा गया है। गिरिराज पहले तो इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन काफी ना-नकुर के बाद वे यहां से चुनाव लड़ने को तैयार हुए। इसके बाद उन्होंने कहा कि बेगूसराय तो उनका ननिहाल है। इस पर कन्हैया ने चुटकी ली कि हमने गिरिराज जी को नानी याद दिला दी है

मोदी सरकार के खिलाफ तमाम एकजुटता दिखाने के बाद भी बिहार के गठबंधन जिसमें राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस प्रमुख तौर पर शामिल हैं, उसने बेगूसराय की सीट वाम के लिए छोड़ने से इंकार कर दिया। इस गठबंधन की ओर से आरजेडी के तनवीर हसन यहां से उम्मीदवार हैं। गिरिराज सिंह और तनवीर हसन दोनों कन्हैया से पहले ही अपना नामांकन करा चुके हैं।

पूर्वी बिहार स्थित बेगूसराय में 17 लाख 78 हज़ार 759 मतदाता हैं। इनमें 949,825 पुरुष और 828,934 महिला मतदाता हैं। 2009 में अंतिम परिसीमन से पहले बेगूसराय ज़िले में दो संसदीय सीटें बेगूसराय और बलिया सीट थीं। तब उन दोनों को मिलाकर बेगूसराय कर दिया गया और बलिया सीट खत्म हो गई।

2014 के चुनाव में बेगूसराय से बीजेपी के डॉ. भोला सिंह यहां से विजयी हुए थे जिनका अक्टूबर, 2018 में निधन हो गया। उन्होंने यहां से आरजेडी के तनवीर हसन को ही हराया था। उस समय करीब 60 फीसद मतदान हुआ था और भोला सिंह को 4,28,227 और तनवीर हसन को 3,69,892 वोट हासिल हुए थे। उस समय सीपीआई प्रत्याशी राजेंद्र प्रसाद सिंह यहां तीसरे स्थान पर रहे थे। उन्हें 1,92,639 वोट मिले थे। 2009 में जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) के डॉ. मोनाजिर हसन यहां से जीते थे, लेकिन दूसरे स्थान पर सीपीआई के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह रहे थे। डॉ. हसन को कुल 2,05,680 वोट मिले थे जबकि शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को 1,64,843 वोट मिले।  

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