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कोयला क्षेत्र में एफडीआईः लाखों श्रमिक करेंगे हड़ताल

विदेशी कंपनियों के इस क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं।
coal strike

मंगलवार 24 सितंबर 2019 को भारत के 82 खनन क्षेत्रों में फैले लगभग 600 खनन केन्द्रो में पूरी तरह से शांति रहेगी क्योंकि अनुमानित पांच लाख कर्मचारी सरकार के हालिया फैसले के विरोध में हड़ताल करेंगे। जिसमे सरकार ने कोयला क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति ( एफडीआई) दी है।

सीटू से संबंधित अखिल भारतीय कोयला खनन श्रमिक यूनियन के महासचिव डीडी रामानंदन ने झारखंड के रामगढ़ ज़िले के भुरकुंडा खदान से फोन पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “हर जगह कोयला खनन श्रमिकों में काफी गुस्सा और असंतोष है और वे 24 तारीख को देश के सभी कोयला क्षेत्रों में हड़ताल करने के लिए दृढ़ हैं”। हड़ताल का आह्वान छह ट्रेड यूनियनों ने दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) इसमें शामिल नहीं हो रही है।

वे कहते है “हम पिछले दो हफ्तों में सभी प्रमुख खनन केंद्रों में गए हैं और हजारों श्रमिकों से बात की है; ये हड़ताल के लिए समर्थन अभूतपूर्व है। यह देश के राष्ट्रीय संसाधनों की रक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक हड़ताल होगी जिसे सरकार विदेशी कंपनियों को बेचना चाहती है"।

एक ऐतिहासिक विडंबना है: लगभग सौ साल पहले, ब्रिटिश शासन के तहत, 1920 में इंडियन कोलियरी वर्कर्स एसोसिएशन नामक कोयला श्रमिकों का पहला ट्रेड यूनियन का गठन किया गया था और 1921 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का दूसरा सम्मेलन आयोजित किया गया था झरिया कोयला बेल्ट में 50,000 से अधिक श्रमिकों ने भाग लिया। उन्होंने 'स्वराज' (स्व शासन) का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। अब एक सदी बाद कोयला श्रमिक फिर से विदेशी / निजी शोषण के खिलाफ भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं।

यूनियनों द्वारा हड़ताल की सूचना दिए जाने के बाद भी, सरकार ने और एक अधिसूचना जारी की है , जिसमें ऑटोमैटिक रास्ते से कोयले के खनन और बिक्री के लिए 100% एफडीआई की अनुमति मिलती है, जिसमें कोल वाशरी, क्रशिंग, कोल हैंडलिंग और चुंबकीय और गैर चुंबकीय को अलग करने जैसे अन्य संबद्ध प्रसंस्करण की प्रकियाएं संचालन शामिल हैं। हड़ताल से कुछ दिन पहले 19 सितंबर को केंद्रीय कोयला मंत्री और मंत्रालय में सचिवों ने यूनियनों से अपनी मांगों को लेकर चर्चा के लिए आने का अनुरोध किया था। लेकिन सभी यूनियनों ने यह कहते हुए अनुरोध ठुकरा दिया कि सरकार के साथ इस तरह की बैठकों से कुछ नहीं होगा।

विदेशी पूंजी और निजीकरण को रोकें

28 अगस्त को मोदी सरकार की घोषणा के बाद कोयला मज़दूरों की इस हड़ताल को पांच प्रमुख ट्रेड यूनियनों द्वारा आह्वान किया गया था। वर्तमान में, कोयला खनन का अधिकांश कार्य कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा किया जाता है और इसकी सहायक कंपनियां एक अन्य सार्वजनिक उपक्रम, सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड द्वारा किया जाता है।

भारत में कोयला खनन का राष्ट्रीयकरण 1973 में किया गया था। मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल से इस क्षेत्र का निजीकरण करने की कोशिश कर रही है। इसने कोल माइन्स (विशेष) प्रावधान अधिनियम, 2015 को लागू किया, जिससे निजी खिलाड़ी अपने प्रशासित मूल्य पर कोयले का उत्पादन और बिक्री कर सकें। इसने सरकार के लगभग 35% शेयरों का विनिवेश करके CIL में सार्वजनिक हिस्सेदारी को कमजोर किया। कोयला मजदूरों ने अतीत में इन कदमों के ख़िलाफ़ लगातार लड़ाई लड़ी है।

हालांकि, मोदी सरकार ने विदेशी नियंत्रण के लिए कोयला, बैंकिंग, मीडिया, खुदरा व्यापार आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों को खोलने के लिए देश में अधिक से अधिक विदेशी पूंजी को आमंत्रित करने की एक लापरवाह नीति अपनाई है। बिना वाजिब तर्क के कोयले के मामले में निर्णय लिया गया है क्योंकि CIL और SCCL बेहद सफल उद्यम हैं।

 2018-19 में , CIL ने 606.89 MT कोयले का उत्पादन किया, जबकि SCCL ने लगभग 64.4 MT उत्पादन किया, जिससे कुल कोयला उत्पादन 92% है। पिछले एक दशक में, इन सार्वजनिक उपक्रमों ने केंद्र सरकार को लाभांश और भंडार के रूप में लगभग 1.27 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया है, इसके अलावा विभिन्न करों और रॉयल्टी के अलावा पिछले साल ही .44,000 करोड़ की राशि दी है । इनमें लगभग 5.5 लाख कर्मचारी काम करते हैं। वास्तव में, CIL को दुनिया की शीर्ष 10 कोयला खनन कंपनियों में गिना जाता है।

इस रिकॉर्ड के बावजूद, मोदी सरकार CIL को इसलिए बेचना चाहती है कि उत्पादन और प्रौद्योगिकी के विस्तार के लिए नए निवेश की जरूरत है।

रामनंदन कहते हैं, '' यही निवेश हमारी सरकार क्यों नहीं कर सकती? ''

“और उस नुकसान का क्या जो सरकार को नुकसान होगा जब विदेशी स्वामित्व वाले खनिक सरकार को लाभांश नहीं देंगे? वास्तव में, यहां तक कि कर राजस्व में गिरावट आएगी क्योंकि ये विदेशी दिग्गज बहुत कम कर दरों पर काम करने के लिए जाने जाते हैं।”

नौकरी की सुरक्षा

नौकरी के बड़े नुकसान भी होंगे, क्योंकि यह सर्वविदित है कि विदेशी खनन कंपनियां श्रम बल में कटौती करने के लिए या तो मौजूदा नियमित श्रमिकों की जगह कम वेतन और बहुत कम सामाजिक सुरक्षा लाभ के साथ अनुबंधित और अस्थाई श्रमिकों का सहारा लेती हैं।

उदारीकरण के बाद, CIL कार्यकर्ताओं ने पिछले दशकों में इस तरह की नीतियों के प्रभावों को देखा है। 1990 के दशक की शुरुआत में, लगभग 7.5 लाख कर्मचारी थे जो वर्तमान में लगभग 5.5 लाख हो गए हैं। इनमें से लगभग 2.8 लाख श्रमिकों को रोज़गार का डर है। वे या तो संविदात्मक कार्य या फिर अस्थाई काम करते हैं।

तकनीकी रूप से, नियमित कर्मचारियों और संविदा कर्मचारियों के वेतन में बहुत अंतर नहीं है, लेकिन, रामनंदन के अनुसार, बाद में ठेकेदारों के गलत नीतियों के कारण कर्मचारियों का वेतन कम हो जाता है। इनमें चेक के माध्यम से अनिवार्य वेतन का भुगतान करना और फिर चेक वापस लेना और कम राशि नकद में वितरित किया जाना, या कार्यकर्ता द्वारा पूरे महीने काम करने के बावजूद केवल 15 दिन का काम दर्ज करना आदि शामिल हैं।

यह इन कारणों के लिए है कि हड़ताल पर जा रहे श्रमिकों की मांगों में से एक है सभी प्रकार के सभी श्रमिकों का नियमितीकरण और संविदात्मक कार्यों का अंत है।

श्रमिकों की एक और मांग यह है कि इसकी सभी आठ सहायक कंपनियों को मूल कंपनी (CIL) के साथ मिला दिया जाए। इसका कारण यह है कि श्रमिकों को डर है कि प्रत्येक सहायक कंपनी का अलग-अलग निजीकरण किया जाएगा। वास्तव में, श्रमिक यह तर्क दे रहे हैं कि विलय से सरकार के लिए अधिक पैसा और अधिक राजस्व पैदा होगा।

विरोध की लहर

जहां 24 सितंबर को विभिन्न यूनियनों और श्रमिकों के यूनियनों ने हड़ताल का समर्थन किया है, वहीं देश में इस साल जून में दूसरी बार मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ महीनों के भीतर विरोध की लहर देखी जा रही है। रक्षा कर्मचारियों, दूरसंचार कर्मचारियों, रेलवे कर्मचारियों (कॉरपोरेटाइजेशन के खिलाफ), बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों, इस्पात श्रमिकों और स्कीम कर्मचारियों द्वारा हड़ताल की गई है। वास्तव में, कई केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच वर्तमान में आने वाले महीनों में पीएसयू के थोक विनिवेश की मोदी सरकार की नीतियों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, निजीकरण, आर्थिक नुकसान के कारण नौकरी के नुकसान के विरोध में ट्रेड युनियनों कई दिनों की आम हड़ताल की योजनाओं को अंतिम रूप दे रहा है।

श्रम कानूनों में लगातर बदलाव करने के सरकार के निर्णयों के बाद से ही मज़दूरों में नारज़गी है. सरकार ने जो नए सुधार बताए है वो आवश्यकता और लागत-आधारित न्यूनतम वेतन के सिद्धांतों को खत्म कर रहा है और इसके साथ ही आठ घंटे के काम के अधिकार को भी कमज़ोर करता है।

कोयला मज़दूरों की ये हड़ताल अन्य कर्मचारी और श्रमिक द्वारा विरोध प्रदर्शन के इस व्यापक दायरे में एक अन्य कदम है जो आने वाले महीनों में श्रमिकों के अंदोलन को और अधिक ताक़त देगा।

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