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कर्नाटक : महामारी में सरकार की उपेक्षा झेलते आशा और सफ़ाईकर्मी

लगभग 42,000 आशा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल अपने 16वें दिन में प्रवेश कर गई है; जबकि इस दौरान सफाई कर्मियों ने राज्य की राजधानी में कई विरोध प्रदर्शन किए हैं।
 महामारी में सरकार की उपेक्षा झेलते आशा और सफ़ाईकर्मी

कोविड-19 महामारी ने फिर से उपेक्षा के इतिहास को मजदूरों/कर्मचारियों के बड़े तबकों के सामने लाकर खड़ा कर दिया है, ये वे लोग हैं जो इस घातक वायरस से जूझ रहे हैं। उनके साथ इस तरह का भेदभाव कई वर्षों से किया जा रहा है,यह आरोप कर्मचारियों/कर्मियों ने लगाया है जो कर्नाटक में कई तरह के विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं।

राज्य भर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे 42,000 मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) की हड़ताल आज, 25 जुलाई को 16वें दिन में प्रवेश कर गई। ये लोग एक निश्चित मासिक भुगतान की मांग कर रहे हैं। इसी तरह, राज्य की राजधानी बेंगलुरू में सफाई कर्मचारियों और अस्पताल के स्टाफ द्वारा कई विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं, जिनकी मुख्य मांगों में बेहतर सुरक्षा व्यवस्था शामिल है।

मजदूरों का यह आंदोलन ऐसे समय में हो रहा है जब राज्य में संक्रमण की संख्या बड़ी तेज़ी के साथ बढ़ रही है। पिछले हफ्ते से, पॉज़िटिव मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है और वायरस से संक्रमित मामलों के उदहारण में कर्नाटक देश का सबसे तेजी से बढ़ता राज्य है।

इस पृष्ठभूमि में, फ्रंटलाइन कर्मियों ने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार उचित काम के हालात और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्यों का पालन करने में पूरी तरह से विफल हो रही है- बावजूद इसके वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करने में प्रशासन की सहायता करने में इन श्रमिकों का निर्विवाद रूप से बहुत बड़ा महत्व है।

ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी) के हनुमेश जी ने कहा है कि, "राज्य में आशा कर्मी कई वर्षों से वेतन में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं," अपनी मांगों के लिए उन्हें कई बार काम का बहिष्कार करने पर मजबूर होना पड़ा है, लेकिन कर्नाटक सरकार को इनकी कोई चिंता ही नहीं है, और जब कभी आश्वासन देकर टाल दिया जाता है।”

शुक्रवार को काम की हड़ताल के तहत राज्य भर में तालुक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए गए। आशा कर्मी, जो बड़े पैमाने पर संपर्क ट्रेसिंग और डोर-टू-डोर बुखार को जाँचने में लगे हुए हैं,वे अपने लिए तय मासिक वेतन 12,000 रुपये साथ पीपीई किट और एक बीमा कवर की मांग कर रहे हैं। वर्तमान में, उन्हें केवल 6000 रुपये प्रोत्साहन के रूप में मिलते हैं, इसके अलावा कोई अन्य प्रोत्साहन नियमित नहीं हैं।

मई में, कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में मदद करने वालों को एक बार राहत देने के फैसले के तहत, मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने आशा कर्मियों को एकमुश्त 3,000 रुपये का प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी।

हनुमेश ने आरोप लगाया कि उस घोषित राशि को भी राज्य सरकार ने अभी तक आशा कर्मियों को हस्तांतरित नहीं किया है, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "श्रमिक एकमुश्त राहत को लेकर विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि मौजूदा काम के खराब हालात को सुधारने के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।"

इसी तरह, राष्ट्रीय स्तर पर आंगनवाड़ी और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) कर्मियों सहित अन्य स्कीम श्रमिकों के मुद्दे को उठाने के लिए, 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 7 अगस्त को दो-दिवसीय अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया है।

इसी तरह, ब्रुहाट बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) द्वारा नियोजित सफाई कर्मचारी, बिना किसी सुरक्षा उपकरण के वायरस के संपर्क में आने के खतरे की शिकायत कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी मांगों को सुना जाए, कर्मचारी अखिल भारतीय सेंट्रल ट्रेड यूनियन (AICCTU) के नेतृत्व में अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन पर चले गए हैं –जिसे बीबीएमपी की स्टाफ यूनियन का समर्थन हासिल है।

पोरुकरमा संघ के लेख अदावी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बेंगलुरु के नगर निकाय के अंतर्गत आने वाले लगभग 17,000 कर्मियों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया है, वे अपने काम के केंद्रों पर दिन में दो बार धरने पर बैठते हैं और काम करते वक़्त काली पट्टी बांधते हैं।

वे बताती हैं कि,"महीनों तक, बीबीएमपी यह सुनिश्चित नहीं कर पाई कि कचरे को अच्छी तरह से अलग कैसे किया जाए,"जो हॉटस्पाट और क्वारंटाइन इलाकों से निकाले गए खतरनाक जैव-चिकित्सा के कचरे का निपटान सही ढंग से नहीं कर पा रही है, जो संभावित रूप से वायरस के संक्रमण के खतरे को बढ़ाता है।

अदावी ने कहा कि सफाई कर्मी जिन्हें किसी प्रकार की सुरक्षात्मक किट नहीं दी जाती है, उन्हें ही उस कचरे को इकट्ठा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। संघ द्वारा 21 जुलाई को जारी किए गए एक बयान में कहा कि कोविड-19 से 5 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 50 से अधिक अन्य लोग पॉज़िटिव पाए गए हैं।

उन्होंने कहा, "यह निरंतर विरोध का ही नतीजा था कि अब कुछ पीपीई किट निगम कर्मियों को वितरित किए गए हैं, लेकिन सभी वार्डों में दिए गए हैं या नहीं यह अभी देखा जाना है। साथ ही, यह भी आश्वासन दिया गया है कि सभी केन्द्रों पर थर्मल जांच का इंतजाम किया जाएगा,” अदावी ने कहा।

बेंगलुरू में निगम कर्मियों के हालिया विरोध-प्रदर्शन में अच्छी-ख़ासी भागीदारी देखी गई –जिसमें  3,000 से अधिक ड्राईवरों और हेल्परों ने हिस्सा लिया जो भारत की सिलिकॉन घाटी में कचरा संग्रहण के काम में लगे हुए हैं। वे तीसरी पार्टी के ठेकेदारों के माध्यम से नौकरी पाते हैं, जो निगम कर्मियों की सहायता करते हैं।

अदावी ने ठेके पर काम कर रहे इन ड्राइवरों और सहायकों की स्थिति को बहुत खराब होने का आरोप लगाया, इन्हें पिछले तीन महीनों से वेतन नहीं मिला है। उन्होंने कहा, "विरोध प्रदर्शनों में उनकी भागीदारी के माध्यम से हम बीबीएमपी को उनके प्रमुख नियोक्ता होने की उनकी मुख्य जिम्मेदारियों से पीछे न हटने की मांग कर रहे हैं।"

बेंगलुरु में एआईसीसीटीयू के साथ काम कर रहे,पेशे से वकील मैत्रेयी कृष्णन जो ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता भी हैं, ने कोविड-19 के मद्देनजर हालिया विरोध प्रदर्शन को "श्रमिकों और उनके अधिकारों के प्रति राज्य सरकार की उपेक्षा के लंबे इतिहास" के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में संदर्भित किया है।

विरोध प्रदर्शनों की बात करते हुए उन्होने कहा, “जो मांगें की जा रही हैं या की जाती रही हैं, उन पर गौर करो, तो वे कुछ खास मांगे नहीं हैं, केवल मूल बातें हैं। ये आपके फ्रंटलाइन कर्मी हैं, फिर भी वे निराश हैं। राज्य सरकार श्रमिकों की जरूरतों और सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दे रही है। यह कई आधारों पर गलत है।”

कृष्णन ने कहा कि भविष्य में इन विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से राज्य सरकार पर दबाव बढ़ाना जारी रखना होगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-

Karnataka: ASHA, Sanitation Workers Battle Govt Neglect Amid Pandemic

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