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कश्मीरियों के बिना कश्मीर

तथागत रॉय द्वारा व्यक्त विचार संघ परिवार के वास्तविक विचार हैं।
kashmir
image courtesy- zubair sofi

किसी भी तरह की नैतिक, राजनीतिक या यहां तक कि राष्ट्रवादी जिम्मेदारी से मुक्त, मेघालय के राज्यपाल और भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के पूर्व अध्यक्ष तथागत रॉय ने आखिरकार बिल्ली को बैग से बाहर निकाल ही लिया। कल एक ट्वीट में, उन्होंने चौंकाने वाला बयान दिया कि वह एक अनाम सेना अधिकारी के दृष्टिकोण से सहमत हैं कि "कश्मीर का दौरा न करें, अगले 2 वर्षों के लिए अमरनाथ न जाएं। कश्मीर एम्पोरिया या कश्मीरी व्यापारी से सामान न खरीदें जो हर सर्दियों में बेचने के लिए आते हैं। कश्मीरी चीज़ का बहिष्कार करें ”। इसे सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर प्रचारित किया गया है और भाजपा को छोड़कर अधिकांश राजनीतिक दलों ने इसकी निंदा की है।

लेकिन वह जो कह रहे है, उसे देश के कई हिस्सों में वास्तविकता में किया जा रहा है। वीएचपी और बजरंग दल संगठन जो आरएसएस से जुड़े लोगों के नेतृत्व में चलते हैं, इन्हौने ने पटना, जयपुर, देहरादून, अंबाला और यहां तक कि दिल्ली में कश्मीरी छात्रों या व्यापारियों पर हमला किया है। जम्मू से श्रीनगर जा रहे CRPF के काफिले पर जैश ए मोहम्मद के आतंकि द्वारा किए गए 14 फरवरी के हमले पर यह एक प्रतिक्रिया थी। इस हमले ने देश को झकझोर दिया है, जिसमें कम से कम 40 सीआरपीएफ जवान मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।

क्या रॉय किसी तरह का बेकाबू रहने वाला फ्रिंज तत्व है? हम में से शायद  इस पर कोई  विश्वास न  करें। लेकिन अगर आप 2014 के बाद से कश्मीर पर आरएसएस की सोच, और मोदी सरकार द्वारा राज्य में किए गए भारी नुकसान को देखते हैं, तो रॉय का बयान असली चीज़ की तरह दिखता हैं, जिन्हे आरएसएस के नेतृत्व में हिंदुत्व ब्रिगेड के मूल विचार कहना बेहतर होगा।

वर्तमान में, कुछ ही हफ्तों के भीतर महत्वपूर्ण हो रहे आम चुनाव आने की वजह से  जिसमें  भाजपा / आरएसएस का एकमात्र उद्देश्य जीतना है। इस कठिन चुनाव को लड़ने के लिए उन्होंने जो विभिन्न हथकंडे अपनाए हैं, उनमें से कश्मीरियों का विद्रोह है, जो उन्हें राज्य में रक्तपात के लिए दोषी ठहरा रहा है। वह कश्मीर में अपनी खुद की अपमानजनक विफलता को छिपाने के लिए यह सब कर रहा है, जो उसे देश के लोगों को अति-राष्ट्रवादी तर्ज पर ध्रुवीकरण करने का भी काम कर रहा है, जो कि आरएसएस की सोच में धार्मिक विभाजन की रेखाओं के साथ मेल खाता है। दूसरे शब्दों में, चुनाव जीतने के लिए कश्मीर की बलि दी जा रही है।

कशमीर पर संघ के विचार 

भारतीय जनसंघ के जन्म से ही इसके नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी (जो हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे और जिन्हौने 1951 में जनसंघ की स्थापना की थी) ने अनुच्छेद 370 के खिलाफ जम्मू में सत्याग्रह का नेतृत्व किया था, लेकिन वास्तव में वे शेख अब्दुल्ला सरकार के भूमि सुधारों के खिलाफ थे, क्योंकि हिंदू दक्षिणपंथी मानते है कि कश्मीर की भूमि तो भारत की है, लेकिन मुस्लिम बासिंदों  को अपनी मातृभूमि छोड़ देनी चाहिए, और उन्हे शायद पाकिस्तान चले जाना चाहिए। इसीलिए, भाजपा हमेशा धारा 370 को निरस्त करने की मांग करती रही है, जिसे भारतीय संविधान में कश्मीरी लोगों को यह आश्वासन देने के लिए शामिल किया गया था कि उनके अधिकारों और स्वायत्तता की रक्षा की जाएगी जब वहां के राजा राजा हरि सिंह भारतीय संघ में शामिल होने के लिए 1948 की एक संधि पर हस्ताक्षर कर सहमत हुए थे।

विडंबना यह है कि अलगाववाद का समर्थन करने के लिए दोषी ठहराए जा रहे कश्मीरी लोगों ने पिछले साल अदालती मामलों के माध्यम से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के प्रयासों के खिलाफ हड़तालें और विरोध प्रदर्शन किए –जो कि  भारतीय संविधान की रक्षा करने का ही एक काम था!

इस शत्रुता के मूल में आरएसएस का विचार है कि भारत एक ऐसा देश है जो केवल हिंदुओं के लिए है, क्योंकि आरएसएस के विचारक एम एस गोलवलकर ने अपने लेखन में बार-बार इस पर जोर दिया था। यह विचार कश्मीर को स्वीकार करने में सबसे कठिन लगता है। लेकिन इसे भारत में आम तौर पर अधिक स्वीकृति नहीं मिली है, और निश्चित रूप में कश्मीर में तो बिल्कुल ही नहीं।

मोदी सरकार की तबाही करने वाली कश्मीर नीति 

मोदी ने मई 2014 में भाजपा का नेतृत्व किया था। उसी साल दिसंबर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव हुए और एक त्रिशंकु सदन उभरा था। अपनी विरोधी विचारधाराओं के बावजूद, मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में भाजपा और पीडीपी ने एक अवसरवादी गठबंधन सरकार बनाई। 2016 में, मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया, और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के समर्थन से असहज मुख्यमंत्री का पदभार संभाला।

भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में हिंदुत्व-उन्मुख राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए राज्य में अत्यधिक राजनीतिक सरगर्मी को बढ़ाया दिया और राज्य में पूरी तरह से सैन्य-आधारित, सख्त नीति पर अम्ल करना शुरु किया ताकि वह उस उग्रवाद जो 1989 से चल रहा था वह उग्रवाद पर काबू पा सके, जो ज्यादातर सीमा पार से इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा समर्थित था, और जिसने स्थानीय समर्थन को आकर्षित करने के लिए लोगों के अलगाव और आर्थिक पिछड़ेपन का शोषण किया था। इसने इस दौरान सत्ता में अवसरवादी गठजोड़ के जरीए  भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।2000 के दशक के मध्य से कई वर्षों तक लगातार गिरावट के बाद बने असहाय हालात की वजह से नागरिकों, सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के हताहतों की संख्या में उछाल आना शुरु हो गया।

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सुरक्षा को बढ़ा दिया गया, और सरकर के प्रत्येक नए उपाय का प्रतिरोध होना शुर हो गया - पथराव करने वाले प्रदर्शनकारियों पर क्रूर हमले और तलाशी अभियान, छर्रों से नागरिक हत्याओं के जरीए – इस तरह के सभी उपायों ने आम कश्मीरियों और राज्य के बीच विभाजन को बढ़ा दिया। जम्मू में, बीजेपी और उसके सहयोगी  ध्रुवीकरण के एजेंडे को लागु करते रहे, यह सब एक ही झटके में जम्मू के कठुआ में खानाबदोश बकरवाल समुदाय की आठ वर्षीय मुस्लिम लड़की के साथ हुए बलात्कार और हत्या करने वाले अपराधियों के बचाव खड़े पाए गए। राजनीतिक समाधान के संदर्भ में कोई वास्तविक प्रगति नहीं हुई क्योंकि भाजपा ने अपनी तथाकथित हार्ड लाइन को लागू किया। इसने राज्य को अलगाव, क्रोध और प्रतिरोध में धकेल दिया।अंततः, पीडीपी इस तनाव और दबाव को सहन करने में असमर्थ रही और जून 2018 में महबूबा मुफ़्ती ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद रश्त्रपति शासन के जरीए राज्यपाल सत्यपाल मलिक के माध्यम से राज्य भाजपा के सीधे शासन में आ गया। उन्होंने समान नीतियों को ज़ोर-शोर से जारी रखा और लोगों के अलगाव को ओर अधिक बढ़ा दिया।

मोदी सरकार ने कश्मीर को आपदा के क्षेत्र में बदल दिया गया। इन पांच वर्षों में के नतीज़े के तौर पर जो हुआ उसके तहत भाजपा न केवल अलगाववादी लपटों को नियंत्रित करने में शानदार ढंग से विफल रही, बल्कि इसने वास्तव में उन सभी मुद्दों को हवा दी जो देश के बाकी हिस्सों में कश्मीरी लोगों को परेशान कर रहे थे। इसने देश के बाकी लोगों को उस झूठे विचार को बेचना जारी रखा कि वह राज्य में एक राष्ट्रविरोधी उग्रवाद से प्रभावी ढंग से निपट रहा है, ओर उसे उम्मीद है कि उसके बैल को सींग से नियंत्रण करने की गालबजाही से सरकार की अपनी छवि को मजबूत करेगा।यह वे बीज हैं जो अब पक चुके हैं और एक कड़वी फसल तैयार है। भाजपा का यह सपना कि कश्मीर भारत में तब भी शामिल रहेगा, जब उनके कार्यकर्ता देश के बाकी हिस्सों में कश्मीरियों की पिटाई कर रहे हैं – यह फिलिस्तीन के लिए इजरायल के दृष्टिकोण मेंजैसा है जहां इज़राइल ने उन्हीं की धरती पर कब्ज़ा जमाया हुआ है। यह अपनी विफलता को मानने से इंकार करना है। इसने कश्मीर में विभिन्न दलों और समूहों के बीच एक वास्तविक राजनीतिक बातचीत शुरू करने से भी इनकार कर दिया है, इसने बर्बाद अर्थव्यवस्था को उपर उठाने के लिए आर्थिक नीतियों में वासतविक सुधार या सहायता की पेशकश नहीं की है, और यह लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए कभी तैयार नहीं रहे हैं।

लेकिन इस जद्दोजेहद में कश्मीर लहू-लुहान और घायल हो गया है। शायद एक नई सरकार के जरीए ही  केवल एक नया दृष्टिकोण तैयार किया जा सकता है जो इसके चिकित्सा प्रक्रिया को फिर से शुरू करेगा। इसका फैसला आगामी आम चुनावों में किया जाएगा।

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