क्या हमारी राजनीति और चुनावों में दख़ल दे रहा है सोशल मीडिया?
2004 में शुरू हुए फेसबुक का मिशन, आम लोगों को एक समुदाय के निर्माण और दुनिया को और करीब लाने की ताकत देना था।लेकिन ज़्यादा शक्तियों के साथ ज़्यादा ज़िम्मेदारी भी आती है।
क्या सोशल मीडिया ख़ासकर फेसबुक और व्हाट्सएप प्रोपेगेंडा का हथियार और फ़र्ज़ी सूचनाओं के प्रसार का माध्यम बन गए हैं? क्या फेसबुक भारत में लोगों को समुदाय बनने की शक्ति दे रहा है या केवल एक व्यक्ति की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं को पूरा करने की कोशिश कर रहा है?
इन्हीं सब सवालों के जवाब देती है किताब "The Real Face of Facebook in India"
यानी “फेसबुक का असली चेहरा”। इसे लिखा है वरिष्ठ पत्रकार सिरिल सैम और परंजॉय गुहा ठाकुरता ने। ये हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।
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