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क्या वसुंधरा राजे ने किया है छात्रों के साथ विश्वासघात ?

2013 में प्रकाशित अपने घोषणा पत्र में पार्टी बीजेपी ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए बड़े बड़े वादे किये थे।लेकिन पाँच सालों के बाद ऐसा लगता है कि इनमें से किसी को भी पूरा नहीं किया गया।
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राजस्थान सरकार के पाँच साल पूरे होने वाले हैं और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने कामों का बखान करने के लिए प्रदेश यात्रा पर निकलीं हैं। 2013 में प्रकाशित अपने घोषणा पत्र में  पार्टी बीजेपी ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए बड़े बड़े वादे किये थे।लेकिन पाँच सालों के बाद ऐसा लगता है कि इनमें से किसी को भी पूरा नहीं किया गया।
 
घोषणा पत्र में पहला वादा किया गया था कि शिक्षा के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन किये जाएंगे। सरकार ने यह वादा तो पूरा किया लेकिन खतरनाक तरीकों से। राजस्थान की पाठ्यपुस्तकों की ओर सिर्फ एक नज़र डालने से साम्प्रदायिकता की बू आने लगती है। 
 
पिछले साल जून में राजस्थान सरकार द्वारा छापी गयी 10 कक्षा की इतिहास की किताबों में हिंदुत्व के मुख्य विचारक वी डी सावरकर को नायक  की तरह पेश किया गया था। किताबों में लिखा गया कि वे "महान क्रांतिकारी"  थे , उन्होंने अपनी ज़िदगी देश के नाम कर दी थी और उनकी तारीफ शब्दों  में नहीं की जा सकती। जबकि ज़्यादातर इतिहासकारों का कहना  है कि सावरकर ने धर्म के आधार पर देश के  विभाजन  की बात सबसे पहले की थी, उन्होंने मुसलमानों को दोयम दरज़े का नागरिक बनाने की बात की थी और उनके द्वारा लिखी किताब में उन्होंने युद्ध की स्थिति में मुस्लिम महिलाओं  के साथ बलात्कार तक को सही ठहराया था। इसके अलावा  सावरकार की तथाकथित  "वीरता" इस बात से भी ज़ाहिर होती है कि कालापानी की सज़ा के दौरान जेल से छूटने के लिए  उन्होंने कई बार अंग्रेज़ी सरकार को चिट्ठी लिखकर माफ़ी माँगी थीI  
 
पिछले साल ही राजस्थान विश्वविद्यालय में इतिहास और कॉमर्स के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव किये गए। जहाँ कॉमर्स  के पाठ्यक्रम में भगवत गीता को शामिल किया गयाI वहीं इतिहास के पाठ्यक्रमों  में एक किताब जोड़ी गयी जिसमें बताया गया कि मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप अकबर से हल्दीघाटी में युद्ध जीते थे।यह बात ऐतिहासिक तथ्यों से बिलकुल उलट हैI दरअसल महाराणा  प्रताप को संघ और बीजेपी मुस्लिम शासकों से देश को बचाने वाले हिंदुत्व के महानायक की तरह पेश करते हैं। इतिहास को इस तरह दर्शाने की कोशिश आम लोगों को धर्म के नाम पर बाँटने  के लिए की जाती है और इससे संघ  और बीजेपी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने  के लिए इस्तेमाल करता रहा है। 
 
इसी कड़ी में पिछले साल नवम्बर में हिंदुत्व संगठनों ने जयपुर में "हिन्दू आध्यात्मिक मेला" आयोजित किया जिसमें स्कूली बच्चों का जाना अनिवार्य था।  इस मेले संघ से जुड़े संगठन में विश्व हिन्दू परिषद् के द्वारा एक पुस्तिका बाँटी गयी जिसमें मुसलमानों को 'आतंकी', 'देश द्रोही' और 'पाकिस्तान परस्त' बताया गया।  इसके अलावा पुस्तिका में कहा गया कि मुस्लिम लड़के हिन्दू लड़कियों  को मुस्लिम बनाने के लिए उनसे शादी करते हैं - जिसे ‘लव जिहाद’ की संज्ञा दी गयी I
 
राजस्थान सरकार ने शिक्षा के ज़रिये साम्प्रदायिकता फ़ैलाने और अवैज्ञानिकता फ़ैलाने के सारे हथकंडे अपनाये हैं। इसी तरह 2018 में प्रदेश सरकार द्वारा एक पंचांग जारी किया गया जिसमें कहा गया था कि महीने के हर तीसरे शविवार को आध्यात्मिक गुरु स्कूलों में प्रवचन देंगे। लेकिन भारी विरोध के चलते उन्हें इस फैसले से पीछे हटना पड़ा। 
 
अपने घोषणा पत्र में बीजेपी ने स्कूलों, कॉलेजों और विश्विद्यालयों में सुविधाओं को बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन सूत्र बताते हैं कि सरकार ने सुविधाएं बढ़ाने के बजाय उन्हें ख़तम करने का कार्य किया है। सूत्रों की मानें तो राजस्थान में कम से कम 30 से ज़्यादा ऐसे महाविद्यालय हैं जिनकी खुद की ईमारत हो और कोई भी ऐसा कॉलेज नहीं है जहाँ सभी मूलभूत सुविधाएं मौजूद हों। स्कूलों में शिक्षकों के करीब 50,000 पद खाली पड़े हैं और कॉलेजों में 5,000 शिक्षकों को के पद खाली पड़े हैं। जबकि इन्हे भरने की बात घोषण पत्र में की गयी थी। 
 
घोषणा पत्र यह वादा करता है कि शिक्षा मित्रों की समस्याओं को सुलझाया जायेगा, लेकिन सरकार ने सत्ता में आते ही उन्हें पदों से हटा दिया। दरअसल शिक्षा मित्र कांग्रेस के समय से यह माँग कर रहे थे कि उन्हें स्थायी किया जाए, उस समय बीजेपी ने उन्हें स्थायी करने की बात कही थी। लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी नौकरी छीन ली गयी और करीब 22,000 शिक्षा मित्र बेरोज़गार हो गए। 
 
महिला विश्विद्यालय, पर्यटन विश्वविद्यालय और शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय बनाने की घोषणा  की गयी थी। लेकिन दोनों ही वादे अब तक ज़मीन पर नहीं उतर पाए हैं। गैर सरकारी शिक्षा संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए एक संस्था बनाने का वादा किया गया था। लेकिन इस तरह का कोई संस्थान उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए नहीं बनाया गया। निजी स्कूलों के लिए एक कमेटी बनायी गयी लेकिन वह भी ठीक ढंग से काम नहीं कर रही है। इस कमेटी  का काम निजी स्कूलों की फीस तय करना था। 
 
घोषणा पत्र में स्कूलों को स्मार्ट बनाने और उनकी संख्या बढ़ाने की बात की गयी थी। लेकिन वसुंधरा सरकार अपने कार्यकाल में 30,000 सरकारी स्कूलों को एकीकरण के नाम पर बंद कर दिया। हालांकि बाद में जनता के विरोध के चलते इसमें से कुछ स्कूलों को वापस शुरू किया गया लेकिन अब भी आधे से ज़्यादा स्कूल बंद है। रिपोर्टों के मुताबिक इस कार्यवाही से 90,000 से ज़्यादा शिक्षकों और कर्मचारियों के खाली पड़े पद ही ख़तम हो गए हैं। 
 
इसके साथ ही वसुंधरा सरकार ने पिछले साल सितम्बर में  300 स्कूलों को पीपीपी यानी पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप के अन्तर्गत निजी कंपनियों को सौंपने का फैसला लिया था I इस प्रस्ताव के अंतर्गत सरकार हर स्कूल को सिर्फ 75 लाख की राशि में निजी हाथों को सौंपने वाली थी, साथ ही हर साल उन्हें सरकार 16 लाख रुपये देने वाली थी I यानी हर स्कूल पर सरकार निजी कंपनियों को 1.20 करोड़ रुपये देने वाली थी Iलेकिन राज्यभर में लगातार हो रहे ज़ोरदार प्रदर्शनों के चलते राजस्थान सरकार ने इसे ठन्डे बस्ते में डालने का निर्णय लेना पड़ा। 
 
घोषणा पत्र में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की बात की गयी थी और साथ ही कैंपस में wifi देने की बात की थी।  लेकिन बाकी वादों की तरह इन्हे भी पूरा नहीं किया गया। इसके साथ ही Self Financing course को राज्य में बढ़ाया जा रहा है। इसमें होता यह है कि जहाँ दूसरे कोर्सों में सरकार अनुदान देती है इनमें अनुदान नहीं दिया जाता। इससे होता यह है कि कोर्सों की फीस बहुत बढ़ जाती है। SFI के राज्य सचिव मंडल सदस्य पवन बेनीवाल के अनुसार इस वजह से वुमेंस स्टडीज़ में PG करने के लिए अब 21,000 रुपये की ज़रुरत पड़ती है। 
 
इन सब मुद्दों के अलावा Rajasthan Eligibility Exam for Teachers एक परीक्षा हुआ करती थी, जिसमें योग्यता साबित करने के बाद छात्रों को शिक्षक की नौकरियाँ  मिल जाती थीं। लेकिन पिछले 4 सालों से REET के तहत भर्तियां नहीं की जा रही हैं, क्योंकि परिणामों में गफलत के चलते मामला हाई कोर्ट में चला गया। लेकिन चुनाव पास आने की वजह अब सरकार ने इस परीक्षा के तहत 35,000 वेकेंसियां निकाली हैं। 

इन हालातों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वसुंधरा  सरकार ने विधार्थियों से धोखा किया है। उनकी सरकार के अनेक निर्णयों के द्वारा छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ककिया जा रहा है। अगर यह उनका 'गौरव पूर्ण' काम है तो छात्र चाहेंगे कि वसुंधरा जी उनके लिए काम करना ही बंद कर दें। 
 

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