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खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों को कितना फायदा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व में बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में खरीफ की 14 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ा दिया है, लेकिन बेहाल किसानों के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। 
फाइल फोटो
Image Courtesy: outlookindia

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व में बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में खरीफ की 14 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया। सरकार ने फसल वर्ष 2019-20 के लिए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 65 रुपये बढ़ाकर 1,815 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। 

इसके अलावा तिलहन, दाल-दलहन और अन्य अनाज के एमएसपी में भी बढ़ोतरी की गयी है। तुअर, उड़द और मूंग का समर्थन मूल्य क्रमश: 125 रुपये, 100 रुपये और 75 रुपये क्विंटल बढ़ाया गया है। 

आपको बता दें कि जून में बारिश 33 प्रतिशत कम रही है। हालांकि, मौसम विभाग ने जुलाई और अगस्त में अच्छी बारिश का अनुमान जताया है।    

सरकारी आंकड़े के अनुसार बारिश में देरी के कारण खरीफ फसलों के अंतर्गत कुल रकबा घटकर पिछले सप्ताह 146.61 लाख हेक्टेयर रहा जो इससे पिछले साल इसी दौरान 162.07 लाख हेक्टेयर रहा था।

क्या कह रही है सरकार?    

कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस साल के लिये खरीफ फसलों के एमएसपी की घोषणा करने के बाद कहा, ‘मानसून में थोड़ी देरी हुई है। यह सभी के लिये चिंता की बात है और सरकार इसको लेकर गंभीर है। केंद्र कम बारिश की स्थिति से निपटने के लिये राज्यों के निरंतर संपर्क में हैं। लेकिन मौसम विभाग का मौजूदा अनुमान बताता है कि बारिश सामान्य होगी।’

तोमर ने कहा कि खरीफ फसलों के लिये एमएसपी का निर्धारण किसानों की उपज लागत का डेढ़ गुना देने के निर्णय के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि सरकार ने फसल वर्ष (जुलाई-जून) 2019-20 के लिये सामान्य और ए ग्रेड के किस्म की धान के लिये एमएसपी पिछले साल के मुकाबले 65 रुपये प्रति किवंटल (3.7 प्रतिशत) बढ़ाया है। फसल वर्ष 2018-19 के लिये धान के एमएसपी में 200 रुपये क्विंटल की बढ़ोतरी की गयी थी।

कितना बढ़ा दाम 

इस बढ़ोतरी के बाद सामान्य स्तर के धान का एमएसपी 1,815 रुपये क्विंटल हो गया है जबकि ए ग्रेड धान के लिये यह 1,835 रुपये क्विंटल होगा। मंत्री जी ने कहा कि धान का एमएसपी उत्पादन लागत 1,205 रुपये क्विंटल की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है। अन्य अनाज में सरकार ने रागी का एमएसपी उल्लेखनीय रूप से 253 रुपये बढ़ाकर 3,150 रुपये क्विंटल किया है। 

ज्वार का एमएसपी 120 रुपये बढ़ाकर 2,550 रुपये क्विंटल (हाइब्रिड) तथा मलदांडी किस्म के लिये 2,570 रुपये क्विंटल किया गया है। मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 60 रुपये क्विंटल बढ़ाकर 1,760 रुपये जबकि बाजरा के मामले में यह 50 रुपये क्विंटल बढ़कर 2,000 रुपये क्विंटल किया गया है।    

तोमर ने कहा कि दाल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के इरादे से तुअर (अरहर) का एमएसपी 125 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 5,800 रुपये, उड़द का 100 रुपये बढ़ाकर 5,700 रुपये तथा मूंग का 75 रुपये बढ़ाकर 7,050 रुपये क्विंटल किया गया है।    खाद्य तेल आयात में कमी लाने के इरादे से सरकार ने इस साल तिलहन फसलों के एमएसपी में भी अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है। 

सोयाबीन (पीली) की दर 311 रुपये बढ़ाकर 3,710 रुपये क्विंटल की गई है। वहीं सूरजमुखी 262 रुपये बढ़ाकर 5,650 रुपये क्विंटल, तिल 236 रुपये बढ़ाकर 6,485 रुपये, मूंगफली 200 रुपये बढ़ाकर 5,090 रुपये तथा नाइजरसीड 63 रुपये बढ़ाकर 5,940 रुपये क्विंटल किया गया है।    

वाणिज्यिक फसलों में सरकार ने कपास के एमएसपी में इस साल 100-105 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी के बाद मध्यम रेशा कपास 5,255 रुपये तथा लंबे कपास का एमएसपी 5,550 रुपये क्विंटल हो गया है। सरकार ने कहा, ‘किसानों को उनकी उत्पादन लागत पर सर्वाधिक रिटर्न बाजरा (85 प्रतिशत) तथा उड़द (64 प्रतिशत) और तुअर पर (60 प्रतिशत) मिलेगा।’

न्यूनतम समर्थन मूल्य 

एमएसपी व्यवस्था किसानों को उनकी उपज के लिये न्यूनतम मूल्य की गारंटी उपलब्ध कराती है। इसे पूरे देश में लागू किया जाता है। 

सरकार ने कहा है कि भारतीय खाद्य निगम और राज्य की नामित एजेंसियां किसानों को अनाजों के मामले में समर्थन देती रहेंगी। नाफेड और एसएफएसी तथा अन्य प्राधिकृत एजेंसियों दालों और तिलहनों के मामले में एमएसपी पर खरीद करेंगी। 

कपास के मामले में मूल्य समर्थन के लिये भारतीय कपास निगम शीर्ष केंद्रीय एजेंसी होगी। इस काम में नफेड उसकी मदद करेगा।

कितने फायदे में किसान?

न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफे को ज्यादातर किसान नेताओं और विशेषज्ञों ने बहुत कम बताया है। उनका कहना है कि इससे किसानों का कुछ खास भला नहीं होने वाला है। इसके अलावा ज्यादातर किसान नेता न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की प्रक्रिया को सुधारने की बात कर रहे हैं। आपको बता दें कि लगातार ऐसी खबरें आती रही हैं कि ज्यादातर किसानों को अपनी उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बेचना पड़ता है। 

किसान नेता और पूर्व विधायक सुनीलम ने कहा,'न्यूनतम समर्थन मूल्य में यह बढ़ोतरी ऊंट के मुंह में जीरे के कहावत को चरितार्थ करती दिख रही है। इससे किसानों का कुछ खास भला नहीं होने वाला है। सरकार ने पिछले बजट में वायदा किया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत के डेढ़ गुना के बराबर होगा लेकिन सरकार अपने वायदे से भी पीछे हट गई है। इस मूल्य पर किसानों की आय दोगुनी करने का सरकार का दावा भी पूरा होता नहीं दिख रहा है।'

वहीं, जन किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक साहा कहते हैं,'न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी बहुत ही मामूली और स्टैंडर्ड के मुताबिक है। हर साल इतने का इजाफा होता है, इसमें कोई नहीं बात है। ये बढ़ोतरी सरकार महंगाई दर समेत दूसरे कारकों को ध्यान में रखकर करती है। इसका मतलब ये है कि किसान प्राइस के मसले पर जहां खड़ा था वहीं अब भी खड़ा है। लेकिन इससे भी बड़ी चिंता की बात ये है कि क्या एमएसपी में बढ़ोतरी की घोषणा करते हुए सरकार ने फसल के सही दाम की खरीद के लिए भी कोई व्यवस्था की है। अभी तक तो कोई व्यवस्था ऐसी की नहीं गई है।'

साहा आगे कहते हैं, 'पिछले साल सितंबर में पीएम किसान नाम की योजना घोषित की गई थी उसका जो फरवरी 2019 में बजट आन अकांउट हुआ था उसमें किसी तरह के फंड की व्यवस्था ही नहीं की गई थी। अब किसान को एमएसपी मिलेगी कैसी? सिर्फ घोषणा करने से तो एमएसपी मिल नहीं जाएगी। सरकार को उसके लिए फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी, योजना को जमीन पर उतारना होगा। नहीं तो सब कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएगी। और किसान हमेशा की तरह नुकसान में ही रहेगा।'

कुछ ऐसा ही मानना आल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) महासचिव हन्नान मोल्ला  का भी है।  मोल्ला कहते हैं, 'न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी बहुत ही कम की गई है। कुछ फसलों में तो पिछले साल से भी कम है। जैसे धान के सर्मथन मूल्य में पिछली बार 200 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया गया था। इस बार सिर्फ 65 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी है। किसानों की उम्मीद से यह काफी कम है। सरकार ने किसी भी फसल का दाम स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक नहीं दिया है। किसानों को उम्मीद थी कि इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा ज्यादा होगा क्योंकि आधा से ज्यादा देश भयंकर सूखे की चपेट में है, इससे उनकी लागत बढ़ी हुई है। लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।'

मोल्ला आगे कहते हैं,' इसके अलावा सरकार जिस तरह से लागत मूल्य का निर्धारित कर रही है उस पर भी सवाल है। उदाहरण के लिए पंजाब सरकार ने धान का खर्चा 2490 रुपये क्विंटल बताया लेकिन केंद्र की सीएसीटी ने इसे 1174 रुपये क्विंटल माना। ये बड़ी समस्या है। इस पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार निर्धारित कर देती है। इससे तो सरकार का दावा कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी, संभव होती नहीं दिखती है। दरअसल न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की परंपरागत प्रक्रिया में भी सरकार ने अपना किसान विरोधी चरित्र दिखा दिया है।'

समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ

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