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लेबर कोड के ख़िलाफ़ देश भर के मज़दूरों का 2 अगस्त को विरोध प्रदर्शन

मोदी सरकार ने मंगलवार 23 जुलाई को वेज कोड बिल, 2019 पर और ऑक्यूपेशनल, सेफ़्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2019, (ओएसएच कोड) दोनों ही कोड बिल लोकसभा में पेश किये। इसके ख़िलाफ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) को छोड़कर, सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियन इसका  विरोध कर रहे हैं। 
लेबर कोड के ख़िलाफ़

श्रम कानूनों को कोड में बदलने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ कड़ी आपत्ति जताते हुए, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 2 अगस्त को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया और देश के सभी मज़दूरों , यूनियनों और फेडरेशन को एकजुट होने के लिए कहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) को छोड़कर, सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों - सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (CITU), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेडयूनियन  (AICCTU ), इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC ), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (AIUTUC ), हिंद मजदूर सभा (HMS ), ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर (TUCC), सेल्फ़ एम्प्लॉइज़ वुमेन्स एसोसिएशन (SEWA), लेबर प्रोग्रेसिव फ्रंट (LPF) और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (UTUC)  ने इसका समर्थन किया है।

ट्रेड यूनियन का विरोध प्रदर्शन क्यों ?

मोदी सरकार ने मंगलवार 23 जुलाई को वेज कोड बिल, 2019 पर और ऑक्यूपेशनल, सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2019, (OSH Code) दोनों ही कोड बिल लोकसभा में पेश किया। दोनों बिलों में कुल 17 वर्तमान केंद्रीय श्रम कानून समाहित हो रही है।

वेज कोड बिल में जहाँ मज़दूरों के पारिश्रमिक से जुड़े कानून समाहित किये गए। वही OSH कोड बिल में मज़दूरों के  बेहतर काम करने की स्थति जैसे महत्वपूर्ण अधिकारों को शामिल करने की बात की गई।  

अगस्त 2017 में जब मोदी सरकार 1.0 ने पहली बार लोकसभा में वेज कोड बिल पेश किया था, तब से 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार श्रम कोडों में समाहित करने  की बात की जा रही थी। तब से ही ट्रेड यूनियनों द्वारा इसका विरोध हो रहा है। ट्रेड यूनियनों ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वास्तव में श्रम कानूनों को कमजोर कर रही है।

इस साल की शुरुआत में, 8 और 9 जनवरी को एक ऐतिहासिक दो दिन की आम हड़ताल की गई थी। जिसमें 12 सूत्री मांग पत्र था, जिनमें से एक थी कि सरकार श्रम कानूनों को कमजोर करना समाप्त करे।

न्यूज़क्लिक ने सत्तारूढ़ सरकार और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के बीच श्रम सुधारों को लेकर चल रहे मतभेद पर कई रिपोर्ट की हैं। सरकार जहां इस सुधार को मज़दूर के हित में बताती है, वहीं यूनियन के नेताओं के अनुसार  "यह सुधार श्रमिकों को भ्रमित करने और ट्रेड यूनियनों को वश में करना के लिए है।"

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, एआईटीयूसी की महासचिव अमरजीत कौर ने श्रम कानूनों को कोड में शामिल करने के खिलाफ एक मजबूत विरोध की आवश्यकता जताई है। उन्होंने कहा कि इन श्रम कोडों को, यदि लागू किया जाता है, तो केवल नियोक्ता को लाभ होगा, जो कि सत्तारूढ़ सरकार के फैसलों से लाभ उठाता है। इससे एक मज़दूर को इस आर्थिक व्यवस्था में रह पाना बहुत मुशिकल होगा, जो पहले से ही बहुत ही बहिष्कृत है।

ट्रेड यूनियनों की प्रमुख आपत्ति यह है कि कोड न्यूनतम मजदूरी की गणना यानी उसे तय करने के लिए तय सिद्धांतों को भी स्वीकार नहीं करता है। यह मानक एक मज़दूर के परिवार में तीन इकाइयों (2 वयस्क और 2 बच्चे) के लिए कम से कम 2,700 कैलोरी के प्रति व्यक्ति भोजन के मुताबिक होता है। जिसे 15 वें भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया और 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में इस उचित ठहराया था। 2015 में 46 वीं ILC जिसमें मोदी सरकार 1.0 भी शमिल थी, उसमें भी इन सिद्धांतों को फिर से सर्वसम्मति से  अपनाया गया था।

वास्तव में मज़दूरों को क्या मिला?

सिद्धांतों के अनुसार, जिसे सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के वेतन निर्धारण के लिए 7 वें वेतन आयोग द्वारा भी स्वीकार किया गया था, पूर्ण न्यूनतम वेतन प्रति माह कम से कम 18,000 होना चाहिए, प्रति दिन ₹ 692 होना चाहिए।ये ध्याना रखे की 18,000 जो वेतन था वो केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए है।

जबकि जनवरी 2018 में, अनूप सत्पथी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की सिफारिश की। हालांकि, समिति द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली वास्तव में ILC सिफारिशों को पूरी तरह से  उलंघन है, उदाहरण के लिए, 2,700 कैलोरी  को उन्होंने कम करके 2,400  कर दिया ।

10 जुलाई को, सरकार ने नए राष्ट्रिय स्तर न्यूनतम वेतन की घोषणा की जो 178 प्रति दिन का है जो पिछले दो वर्षों की तुलना में मात्र 2 रुपये अधिक है। जबकि सरकार की अपनी विशेषज्ञ समिति की सिफारिश प्रति दिन 375 रुपये की थी। सीटू ने एक प्रेस बयान में, नए राष्ट्रीय स्तर न्यूनतम वेतन की इस घोषणा की निंदा की है और इसे "बेशर्मी" कहा है। 

OSH कोड की बात करें, जिसे मोदी सरकार असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए कोड के कवरेज में शामिल करने की बात कर रही है, लेकिन मजदूर संगठन इसे मज़दूरों की सुरक्षा से समझौता बता रहे हैं।

पत्रकार भी इस कोड बिल के खिलाफ

श्रम कोड बिलों की कड़ी निंदा करते हुए  द इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने बुधवार को एक प्रेस बयान जारी किया जिसमें सभी काम करने वाले पत्रकारों, संपादकों को मोदी सरकार के तथाकथित श्रम सुधारों के ख़िलाफ़ बताया गया और दो विधायकों को निरस्त करने की मांग की गई। बयान में कहा गया है "काफी समय से लगातार वेज बोर्ड को खत्म करने और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। जो पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करता है।"

पत्रकार यूनियन ने भी सेंट्रल ट्रेड यूनियन के आह्वान पर हो रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की बात कही है। जो कि हालिया मीडिया रिपोर्टों में भाजपा के वर्तमान 44 मौजूदा श्रम कानूनों के प्रस्तावित संहिताकरण यानि कोड बनने के खिलाफ है।

न्यूज़क्लिक से बीएमएस के महासचिव बृजेश उपाध्याय ने कहा कि संघ वर्तमान में दोनों बिल के प्रावधानों का अध्ययन कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि 2 अगस्त के विरोध में बीएमएस भाग नहीं लेगा।

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