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बिहार : लगभग 4.5 लाख शिक्षक हड़ताल पर लेकिन सरकार को फर्क नहीं पड़ रहा!

बिहार के सरकारी स्कूलों के संविदा शिक्षक अपनी आठ सूत्री मांगों को लेकर पिछले पांच दिन से हड़ताल पर हैं। हालांकि करीब 4.5 लाख शिक्षकों के हड़ताल पर जाने के बावजूद नीतीश सरकार ने संविदा पर रखे गए शिक्षकों से बात करने की कोशिश नहीं की है।
Teacher's Strike

बिहार में पिछले पांच दिनों से संविदा या नियोजित शिक्षक हड़ताल पर हैं। आंदोलनकारी शिक्षक धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक विरोध मार्च निकाल रहे हैं।सरकारी स्कूलों के संविदा शिक्षक अपनी आठ सूत्री मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। इसमें 'समान काम के लिए समान वेतन' और पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने की प्रमुख है। हालांकि गत सोमवार से हड़ताल पर बैठे इन शिक्षकों से अभी तक बिहार सरकार की और कोई भी अधिकारी या मंत्री ने बात करने की कोशिश नहीं की हैं।

इस हड़ताल से राज्य भर के स्कूलों में पठन पाठन का काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।  साथ ही बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड की 10वीं की बोर्ड परीक्षा भी प्रभावित हो रही है। इन सबके बाद भी सरकार द्वारा शिक्षकों के साथ किसी भी तरह की कोई बातचीत नहीं की जा रही हैं। गौरतलब है कि सरकार पर इस हड़ताल को खत्म करने के जिम्मेदारी है लेकिन वो ऐसा करते हुए दिख नहीं रही है। उल्टे सरकार द्वारा हड़ताली शिक्षकों को डराया जा रहा है। उन्हें धमकी दी जा रही है कि अगर वो काम पर नहीं लौटे तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

इस दौरान सरकार की तरफ से कई शिक्षकों को बर्खास्त भी कर दिया गया है। साथ ही शिक्षक संघ के कई लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया गया है। इससे शिक्षकों का गुस्सा और भड़क गया है।

दूसरी ओर बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने कहा कि सरकार छात्रों को शिक्षा से वंचित करने के लिए "अनुशासनहीनता" बर्दाश्त नहीं करेगी और हड़ताली शिक्षकों के खिलाफ "उचित" कार्रवाई करेगी। हालांकि, उन्होंने इस बात से इनकार किया कि हड़ताल से कक्षा 10 वीं की बोर्ड परीक्षा प्रभावित हुई है। हड़ताली शिक्षकों पर दबाव बनाने के लिए शिक्षा विभाग ने हड़ताली शिक्षकों के जनवरी और फरवरी के वेतन जारी नहीं किया है। विभाग के एक शीर्ष अधिकारी संजय सिंह ने अपने आदेश में सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को केवल उन शिक्षकों को वेतन देने के लिए कहा जो हड़ताल में शामिल नहीं हुए थे।
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आपको बता दें कि हड़ताल का आह्वान बिहार राज्य शिक्षा संघर्ष समिति ने किया है। यह समिति राज्य के कई शिक्षक संघों का संयुक्त मंच है। समिति का दावा है कि बिहार में 17 फरवरी 2020 से आहूत हड़ताल के चौथे दिन राज्य के सभी 76,000 विद्यालयों में ताले लटके रहे हैं।
समिति के नेता मार्कंडेय पाठक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हमारे खिलाफ कार्रवाई करके सरकार हमें हड़ताल खत्म करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है। सभी संविदा शिक्षक हड़ताल पर हैं और मांगें पूरी होने तक जारी रखेंगे। हम इस तरह की धमकी और कार्रवाई से डरते नहीं हैं।

इसी बीच शिक्षा विभाग ने मंगलवार (18 फरवरी) को भी दो हड़ताली शिक्षकों को कक्षा 10वीं की परीक्षा के लिए पर्यवेक्षकों के रूप में ड्यूटी से अनुपस्थित रहने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया। गुरुवार को बेगूसराय जिले में सद्बुद्धि हवन करने वाले छह शिक्षकों पर जिला शिक्षा पदाधिकारी बेगूसराय द्वारा इसी तरह की दमनात्मक कार्रवाई की गई। उन्हें उनके सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। इतना ही नहीं मंगलवार को जिन दोनों शिक्षकों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। दोनों क्रमश: मालसकामी के मुरुडगंज के एक मध्य विद्यालय और पटना जिले के चकरम में एक प्राथमिक विद्यालय में संविदा शिक्षक हैं।उन्हें जिला शिक्षा अधिकारी ज्योति कुमार ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। सरकार द्वारा हड़ताली शिक्षकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का यह पहला मामला है।

समिति ने दो हड़ताली शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई को गलत बताया। उन्होंने कहा, 'सरकार हड़ताली नोटिस के बिना और उनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई किए बिना हड़ताली शिक्षकों को कैसे बर्खास्त कर सकती है? सरकार को दो हड़ताली शिक्षकों के बर्खास्तगी पत्र को तुरंत वापस लेना चाहिए।' बुधवार को पटना के सभी 23 ब्लॉकों में इन दोनों शिक्षकों की बर्खास्तगी के खिलाफ शिक्षक सड़कों पर उतर आए। ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि दर्जनों हड़ताली शिक्षकों के खिलाफ अन्य जिलों में अलग-अलग स्थानों पर एफआईआर दर्ज की गई है और कारण बताओ नोटिस भी जारी किए गए हैं।

इस पर शिक्षकों की समिति ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा अभी शिक्षकों से कोई वार्ता नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार शिक्षकों से कोई वार्ता ना करते हुए दमन कर आंदोलन को दबाना चाहती है। इसी के चलते राज्य के दर्जनों शिक्षकों को बर्खास्त किया गया है। सैकड़ों शिक्षकों से स्पष्टीकरण मांगा गया है लेकिन राज्य के शिक्षक सरकार के इस गीदड़ भभकी से डरने वाले नहीं हैं

दूसरी ओर राज्य का शिक्षा विभाग कड़ा रुख बनाया हुआ है। उसने शिक्षकों को वेतन कटौती की चेतावनी दी है। यहां तक कि "वैकल्पिक उपायों" की भी घोषणा की है। बिहार राज्य शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर ने कहा कि बोर्ड ने सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों और जिला स्तर पर अन्य कर्मचारियों को कक्षा 10वीं की परीक्षा के लिए पर्यवेक्षकों के रूप में रखा है।

अधिकारियों के अनुसार, बोर्ड को 15 लाख से अधिक छात्रों द्वारा ली जाने वाली परीक्षा में कम से कम 65,000 शिक्षकों की आवश्यकता होती है। राज्य में 36,000 नियमित स्थायी स्कूली शिक्षक हैं। समिति के एक नेता प्रेमचंद ने कहा, "हम कई वर्षों से समान काम के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार हमारी आवाज दबाने के लिए विभिन्न उपायों का इस्तेमाल कर रही है।"

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क्या है शिक्षकों की मांग?

नियोजित शिक्षकों की प्रमुख मांग पुराने वेतनमान वाले शिक्षकों की भांति वेतनमान, सरकारी कर्मी का दर्जा, शिक्षकों के सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करने, सभी प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के पद का सृजन कर अविलंब उस पर पदस्थापन करने, शिक्षकों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने, नियोजित शिक्षकों को भविष्य निधि एवं ग्रुप बीमा का लाभ देने, टीईटी उत्तीर्ण शिक्षकों के वेतन निर्धारण में विसंगति को दूर करना है।

इसे लेकर बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि जब तक शिक्षकों की मांगें पूरी नहीं हो जाती तब तक अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगा।

क्या है पूरा मामला ?

बिहार में नौकरी को स्थायी करने और उचित वेतनमान की मांग को लेकर नियोजित शिक्षक आंदोलन करते रहते हैं। इन शिक्षकों को पिछले साल 11 मई को उस समय झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सेवाएं नियमित करने से इनकार कर दिया। साथ ही शीर्ष अदालत ने पटना उच्च न्यायालय के उस फैसले को भी दरकिनार कर दिया जिसमें कहा गया था कि ये शिक्षक समान कार्य के लिए समान वेतन पाने के पात्र हैं।

न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने 31 अक्टूबर, 2017 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली बिहार सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए नियोजित शिक्षकों के साथ नियमित शिक्षकों जैसा व्यवहार करने से इनकार कर दिया।

हालांकि, अदालत ने नियोजित शिक्षकों को प्रारंभिक स्तर पर दिये जा रहे वेतनमान को लेकर चिंता जताई और सुझाव दिया कि राज्य ऐसे शिक्षकों के वेतनमान को कम से कम उस स्तर पर बढ़ाने पर विचार कर सकती है जिसका सुझाव तीन सदस्यीय समिति ने दिया है।

शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद थी कि वो शिक्षकों के पक्ष में निर्णय देगी जैसा कि उसने अपने पुराने आदेश में कई बार समान कार्य समान वेतन को लागू करने की बात कही थी।शिक्षकों ने उच्चतम न्यायालय के इस पहल को लेकर अपनी निराशा व्यक्त की और कहा कि न्यायालय ने यह निर्णय सरकार को ध्यान में रखकर दिया है, सरकार नियोजित शिक्षकों के साथ घोर अन्याय कर रही है।
 
इसी को आड़ बनाते हुए शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आरके महाजन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सरकार की प्राथमिकता बच्चों को शिक्षा देना है। समान काम समान वेतन मामले पर शिक्षक संघों की तो सुप्रीम कोर्ट में भी हार हो चुकी है। सरकार की आर्थिक स्थिति नहीं है कि पुराने शिक्षकों के समान वेतन दिया जा सके। पौने चार लाख शिक्षकों को इतना वेतन देने में 28 से 30 हजार करोड़ की राशि अधिक खर्च करनी होगी। इतनी राशि में सरकार की कई योजनाओं को बंद करना होगा।

गौरतलब है कि इस साल के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव होना है। इससे पहले शिक्षकों की नाराजगी किसी सत्ताधारी दल के लिए खतरनाक हो सकती है। 

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