NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
लंका का सपना : भारत की ‘अनुभवहीनता’ भविष्य में महँगी पड़ने वाली है
हिन्द महासागर में इस शानदार खेल की तो यह शुरुआत भर है।
एम. के. भद्रकुमार
03 Nov 2020
28 अक्टूबर, 2020 को कोलंबो में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे (दायें) अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ (बाएँ) की अगवानी करते हुए।
28 अक्टूबर, 2020 को कोलंबो में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे (दायें) अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ (बाएँ) की अगवानी करते हुए।

किसी तीसरे-देश के सहयोग की पहल एक अत्यंत जटिल एवं अप्रत्याशित परिघटना है। घनिष्टतम सहयोगी देश तक इसके अपवाद नहीं रह पाते। ब्रिटिश विदेश मंत्री, लार्ड कर्ज़न ने इस तथ्य से इंकार किया था कि इराक में तेल हितों ने उनकी नीतियों को प्रभावित करने का काम किया था, लेकिन अभिलेख इस बात की गवाही देते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने 1918 में मोसुल में उत्तरी तेल के क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के मकसद से तुरत फुरत सैन्य टुकड़ी भेजी थी, जिसे 1916 की शुरुआत में ही एक गुप्त साइकेस-पिकोट समझौते के तहत फ़्रांस के हवाले कर दिया गया था। 

द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने से पहले ही वाशिंगटन को इस बात की फ़िक्र होने लगी थी कि ब्रिटेन कैसे एक ऐसी दुनिया में खुद को समायोजित कर पाने में सक्षम हो सकेगा, जिसमें अमेरिका की तुलना में इसकी ताकत और प्रभुत्व कमतर हो चुका होगा। अमेरिकी विदेश मंत्री एडवर्ड स्टेटीनिउस ने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को इस बारे में लिखा था “हमें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि किसी अंग्रेज को अपनी दोयम दर्जे की भूमिका में खुद को समायोजित कर पाने में कैसी मुश्किलें आ सकती हैं।”

यह मामला तब सिरे चढ़ा जब 1956 के स्वेज संकट के दौरान ब्रिटेन और फ़्रांस ने स्वेज नहर पर कब्जा करने के इरादे से अपनी सेनायें रवाना कर दीं, और अमेरिका को इस अभियान के बारे में सूचित ही नहीं किया था। राष्ट्रपति आइजनहावर ने जवाबी हमला करते हुए जाहिर कर दिया था कि किस प्रकार से विश्व युद्ध के बाद से शक्ति संतुलन में बदलाव आ चुका है। उनके द्वारा ब्रिटेन को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त होने वाले आपातकालीन ऋण को तब तक के लिए रुकवा दिया गया, जब तक वह अपने आक्रमण को बंद नहीं करता। इसके बाद से ब्रिटेन ने सैन्य स्तर पर बिना वाशिंगटन की खुली रजामंदी के कभी भी कार्यवाही नहीं की है।

इतिहास के ऐसे सबकों को विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए, खासतौर पर तब जब भारत अमेरिका का सहयोगी बन चुका है। भारत की “अवरुद्ध मानसिकता” के शुरूआती लक्षण सबसे पहले मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता ग्रहण के कुछ ही महीनों के भीतर ही दिखने शुरू हो गए थे जब इसने वाशिंगटन के साथ श्रीलंका के निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की जनवरी 2015 तक अपदस्थ किये जाने के बारे में चर्चा करनी शुरू कर दी थी। बाद में जाकर राजपक्षे ने बेहद कडुवाहट के साथ वर्णन किया था कि किस प्रकार उस अभियान में उच्च स्तरीय अमेरिकी-भारतीय राजनीतिक, राजनयिक एवं गुप्तचर संयोजन के जरिये उन्हें अपदस्थ किया गया था।

इस जटिल योजना के तहत स्पष्टतया इरादा सिंहली बौद्ध प्रतिष्ठान में प्रभाव क्षेत्र को विकसित कर श्रीलंका की सत्ताधारी पार्टी में विभाजन पैदा करने का था ताकि राजपक्षे के राजनीतिक आधार को कमजोर किया जा सके और असहाय जाफना तमिल को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करने के लिए आगे किया जाए। राजपक्षे जो कि खुद भी एक अड़ियल राजनीतिज्ञ हैं, बुरी तरह से गच्चा खा गये।

श्रीलंका में खेला गया इस प्रकार का सत्ता परिवर्तन का खेल दक्षिण एशिया में अपनी तरह का पहला प्रयोग था जोकि लैटिन अमेरिका में अमेरिका की प्लेबुक में खेले जाने वाले खेल से इसकी साम्यता काफी कुछ मिलती-जुलती है। इसमें विदेशों के लिए एजेंट के तौर पर काम करने वाले तत्वों का इस्तेमाल करके वैध सरकारों कमजोर करने का काम और “हमारे एस.ओ.बी.” (जैसा कि एफ़डीआर ने एक बार व्यंग्यपूर्ण लहजे में तानाशाह सोमोज़ा के बारे में कहा था) को सत्ता में बिठाने का था।

मई 2014 में सत्ता में आने से काफी पहले से ही चीन के खिलाफ लंबे समय से भारत के सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग के दिलोदिमाग में घोर विद्वेष की भावना अवश्य ही आकार ले रही होगी।

वास्तव में देखें तो भारत की विदेश नीति में यह एक मूलभूत बदलाव था, जिसने अमेरिका के साथ अपनी “भारत-प्रशांत” रणनीति के मद्देनजर एक छोटे से पडोसी देश को इसके मंच के तौर पर घसीटने का काम किया था। अपने आप में यह एक दुस्साहसिक कदम भी था, यह देखते हुए कि गुटनिरपेक्षता को लेकर श्रीलंका का एक सुद्रढ़ इतिहास रहा है।

कोलंबो में मौजूदा सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग के बीच में अमेरिकी एवं भारतीय पहल को लेकर अत्यधिक सशंकित बने रहने की उम्मीद है। पड़ोस में मालदीव में जो कुछ घटा है उसके चलते पहले से ही खतरे की घंटी अवश्य ही बज चुकी होगी, कि आजादी की कीमत के लिए शाश्वत सतर्कता जरुरी है। साफ़ शब्दों में कहें तो भारत या अमेरिका के साथ रणनीतिक तौर पर किसी भी रूप में फँसने का का मतलब किसी अभिशाप से कम नहीं है।

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ की 28 अक्टूबर को कोलंबो की यात्रा से निकलकर आने वाला यह कड़वा संदेश है। पोम्पेओ के समकक्ष दिनेश गुणावर्धने ने संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा “एक संप्रभु, आजाद, स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर श्रीलंका की विदेश नीति तटस्थता वाली बनी रहेगी। जो कि गुट-निरपेक्ष और मैत्रीपूर्ण है।”

गुणावर्धने ने यह बात पोम्पेओ के प्रस्तावों के प्रतिउत्तर में कही थी। महत्वपूर्ण तौर पर, राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे की पोम्पेओ के साथ हुई मुलाकात के बारे में लिखा गया है कि “श्रीलंका की विदेश नीति पर खुलासा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा है कि यह तटस्थता पर आधारित है। श्रीलंका और अन्य राष्ट्रों के बीच के रिश्ते कई परिस्थितियों के आधार पर तय होते हैं। इसमें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के साथ-साथ विकास आधारित सहयोग जैसे कुछ पहलुओं को प्राथमिकता दी गई हैं।”

“राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि वे राष्ट्र की स्वाधीनता, संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता की कीमत पर विदेश नीति को बनाये रखने के लिए तैयार नहीं हैं, भले ही परिस्थितियां कैसी भी क्यों न हों। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि चीन ने अलगाववादी युद्ध की समाप्ति के बाद से देश के बुनियादी ढाँचे में मदद पहुंचाई है, राष्ट्रपति ने दोहराया कि इसकी बदौलत श्रीलंका कर्ज के जाल में नहीं फँसा है।”

सीधे शब्दों में कहें तो “भारत-प्रशांत” रणनीति के पर्ल ऑफ़ ओरिएंट में यह सबसे बुरे क्षण में पहुँच चुका है। कोलंबो के समरवीरा, विक्रमासिंधे और कुमारतुंगा शाहबलूत में लगी आग को बुझाने के लिए क्या कर सकते हैं?

इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस सबसे अमेरिकी-भारतीय स्वप्नलोक की दुनिया को बेहद अपमानजनक ठेस पहुँची है जिसमें हिन्द महासागर क्षेत्र में इनके तथाकथित दूसरे द्वीप श्रृंखला वाली रणनीति में श्रीलंका को मेढ़की-चाल के लिए तैयार किया जा सकता है। जैसा कि सितम्बर में मालदीव ने चाँदी के कुछ टुकड़ों के लिए पेंटागन के साथ वहाँ पर अमेरिकी सैन्य ठिकानों के निर्माण को लेकर स्टेटस ऑफ़ फोर्सेज अग्रीमेंट [एसओऍफ़ए] पर दस्तखत कर दिए हैं।

2013 में भारत ने मालदीव के साथ एसओऍफ़ए पर हस्ताक्षर करने को लेकर अमेरिकी कोशिशों पर एतराज जताया था, लेकिन सितम्बर में जब अमेरिकी कोशिशें फलीभूत हो गईं तो दिल्ली की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। कूटनीतिक इतिहास में यह पहला उदाहरण होगा जब किसी क्षेत्रीय शक्ति ने अपने छोटे से पडोसी देश को इस गृह के किसी दूसरे छोर पर स्थित महाशक्ति को जो कि वहां से 16,000 किलोमीटर की दूरी पर हो, को सैन्य ठिकाना बनाने की अनुमति देने पर बधाई दी हो।

यह एक तरह से मालदीव के बादलों को दिल्ली के फैसले से बाँधने का जूनून जैसा है। सत्ताधारी अभिजात वर्ग ने बड़े मजे के साथ इस बात का अनुमान लगा लिया है कि 26 प्रवाल द्वीपों की दोहरी श्रृंखला में समूहीकृत तकरीबन 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इन 1,190 कोरल द्वीप समूहों में अमेरिकी सैन्य ठिकानों के बन जाने से भारत के दीर्घकालीन हित सध जायेंगे।

वे असल में दिमागी उन्मतता से ग्रस्त हैं। वे डियागो गार्सिया की दुखद कहानी को मानो भुला चुके हैं, जो कि 1965 तक मारीशस का हिस्सा हुआ करता था। लेकिन जिसे ब्रिटिश इंडियन ओसियन टेरिटरी के तौर पर नाम दिया गया था उसे लंदन ने अमेरिकी सैन्य ठिकाने विकसित करने के उद्देश्य से अमेरिका को [1967] में पट्टे पर सुपुर्द कर दिया था।

भारत सहित हिन्द महासागर क्षेत्र के तटीय राष्ट्रों की ओर से इसका कड़ा विरोध किया गया था, जो इस क्षेत्र को गैर-सैन्य वाली स्थिति में बनाए रखने के पक्षधर थे। हालाँकि अमेरिका ने वहाँ के जनजातीय आबादी को इकट्ठा कर उन्हें ठसाठस भरे नावों में डाला और मारीशस एवं सेशेल्स के समुद्री तटों पर पटक दिया था।

संयुक्त राष्ट्र लगातार अमेरिका से डियागो गार्सिया को उसके असली मालिकों को वापस कर देने का आग्रह करता रह गया, लेकिन वाशिंगटन जो कि “कानून—सम्मत अंतर्राष्ट्रीय आदेश” की दुहाई देता रहता है, ने इस पर सिर्फ अपना अंगूठा दिखा दिया था।

इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा ही कुछ किसी बिंदु पर पाँच लाख मालदीव निवासियों के भाग्य में भी बदा हो। हिन्द महासागर में इस शानदार खेल की तो यह महज एक शुरुआत भर है।

यह भौगोलिक क्षेत्र अपने भीतर दुनियाभर का तकरीबन 62% तेल का भंडार, 35% गैस, 40% स्वर्ण भण्डार, 60% से अधिक यूरेनियम और 80% हीरे के भंडार को रखे हुए है। क्या इस बात को लेकर किसी को शंका है कि इस शानदार खजाने पर कौन अपना एकाधिकार ज़माने को लेकर मचल रहा है?

ज्यादा से ज्यादा अमरीकी, हीरों से भरी एक बोरी को पॉलिश करने और उसके बाद मिडटाउन मेनहट्टन के डायमंड डिस्ट्रिक्ट में बेचे जाने के लिए सूरत में भेज सकते हैं।

किसी गलतफहमी में न रहें, मालदीव में सैन्य ठिकाने बन जाने पर अमेरिका के लिए भारतीयों को अपनी निगरानी में रखना बेहद अहम साबित होने जा रहा है। उन्होंने पहले से ही इस बारे में अनुमान लगा रखा होगा कि एक न एक दिन दिल्ली के सत्ता के गलियारों में प्रमाणिक राष्ट्रवादी सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग की वापसी हो सकती है जो बहानेबाजों को कुहनी मार सकते हैं और भारत को एक बार फिर से स्वतंत्र विदेश नीति की राह पर वापस ला सकते हैं।

भू-राजनीति का रहस्यमयी स्वरूप कुछ ऐसा है कि आप कभी भी इस बारे में अनुमान नहीं लगा सकते कि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है। आइये शीत युद्ध के अंतिम क्षणों को एक पल के लिए याद कर लेते हैं।

मार्गरेट थैचर और फ्रेंकोइस मितरां उस दौरान मिखाइल गोर्बाचेव के वारसा संधि को भंग करने की उनकी योजना को लेकर उनकी बुद्धिमत्ता पर इतने अधिक सशंकित थे कि वे मास्को में आ धमके ताकि जर्मनी के एकीकरण के लिए चलाए जा रहे उनके प्रयासों की रफ़्तार को धीमा किया जा सके। जबकि दूसरी तरफ वाशिंगटन उन्हें ऐसा करने के लिए पूरे जोशो-खरोश के साथ उत्साहवर्धन में लगा था।

जबकि मात्र तीस साल पहले लार्ड इस्मे ने नाटो की स्थापना के बारे में सोच रखा था कि इसके जरिये “रूसियों को बाहर रखा जायेगा, अमेरिकियों को अन्दर और जर्मन को दबाकर रखा जायेगा।” लेकिन 1980 के दशक तक आते-आते ही सारे जोड़-गणित में अभूतपूर्व बदलाव आ चुका था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Lankan Dreams: India's 'Naivete' May Cost in the Long Run

Maldives
Sri Lanka
India
US
BJP
Mahinda Rajapaksa
Gotabaya Rajapaksa
UK
NATO
Diego Garcia
Narendra modi
Indian Ocean

Trending

किसानों का दिल्ली में प्रवेश
शाहजहांपुर: अनगिनत ट्रैक्टरों में सवार लोगों ने लिया परेड में हिस्सा
किसान परेड : ज़्यादातर तय रास्तों पर शांति से निकली ट्रैक्टर परेड, कुछ जगह पुलिस और किसानों के बीच टकराव
71 साल के गणतंत्र में मैला ढोते लोग  : आख़िर कब तक?
26 जनवरी किसानों और जवानों के नाम
एमएसपी व्यवस्था को मज़बूत बनाने की ज़रूरत

Related Stories

 मैला ढोते लोग
राज वाल्मीकि
71 साल के गणतंत्र में मैला ढोते लोग  : आख़िर कब तक?
26 January 2021
जिस देश में संविधान को लागू हुए 71 वर्ष हो गए हों और फिर भी उस देश के नागरिक मैला ढोने जैसे अमानवीय कार्य में लगे हों तो उस देश के विकास का अनुमान
cartoon click
उर्मिलेश
गणतंत्र पर काबिज़ होता सर्वसत्तावाद बनाम जन-गण का गणतंत्र
26 January 2021
भारतीय गणराज्य के इतिहास में इस गणतंत्र दिवस को कई कारणों से उल्लेखनीय और अपूर्व माना जा रहा है। इसका एक बड़ा कारण है कि हर बार जन-गण की तरफ से तंत
कटाक्ष: न्यू इंडिया का न्यू-न्यू ‘गनतंत्र’ मुबारक
राजेंद्र शर्मा
कटाक्ष: न्यू इंडिया का न्यू-न्यू ‘गनतंत्र’ मुबारक
26 January 2021
गनतंत्र, मुबारक! दूसरा है कि सातवां, इसकी गिनती छोड़ो, आप तो बस गनतंत्र की मुबारकबाद लो। और हां!

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • किसानों का दिल्ली में प्रवेश
    न्यूज़क्लिक टीम
    किसानों का दिल्ली में प्रवेश
    26 Jan 2021
    कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ सिंघू बॉर्डर पर किसानों ने सुबह-सुबह ट्रेक्टर परेड की शुरुआत की। इनमें से किसानों का एक जत्था बैरिकेड हटाकर आगे बढ़ गया। वे पुलिस द्वारा दिए गए रुट पर न चलकर सीधे दिल्ली में…
  • शाहजहांपुर: अनगिनत ट्रैक्टरों में सवार लोगों ने लिया परेड में हिस्सा
    न्यूज़क्लिक टीम
    शाहजहांपुर: अनगिनत ट्रैक्टरों में सवार लोगों ने लिया परेड में हिस्सा
    26 Jan 2021
    शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसानो ने ट्रैक्टर - ट्राली परेड कर के मनाया गणतंत्र दिवस। आज के दिन किसानों ने परेड करके लोकतंत्र को दी अहमियत। किसानों ने कृषि कानूनों को वापस करने की मांग उठाई।
  •  मैला ढोते लोग
    राज वाल्मीकि
    71 साल के गणतंत्र में मैला ढोते लोग  : आख़िर कब तक?
    26 Jan 2021
    देश की आबादी का एक तबका अभी भी शुष्क शौचालयों से मानव मल साफ़ करके अपनी जीविका चला रहा है। आख़िरकार कब तक कुछ लोगों को ऐसी अमानवीय जिंदगी जीनी पड़ेगी?
  • कोरोना वायरस
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: दुनिया भर में संक्रमित लोगों की संख्या 10 करोड़ के क़रीब पहुंची
    26 Jan 2021
    दुनिया में 24 घंटों में कोरोना के 5,05,144 नए मामले सामने आए है। दुनिया भर में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़कर 9 करोड़ 97 लाख 18 हज़ार 414 हो गयी है।
  • कोरोना
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में साढ़े सात महीने बाद 10 हज़ार से नीचे आए नए केस
    26 Jan 2021
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 9,102 नए मामले सामने आए हैं। देश में अब एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 1.66 फ़ीसदी यानी 1 लाख 77 हज़ार 266 रह गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें