NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
मैला प्रथा : यथास्थिति के विरूद्ध कब टूटेगी चुप्पी?
हमारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसी सफाई व्यवस्था में लगी है। पर सफाई के बदले में हमें मिलता क्या है – जाति के नाम पर छुआछूत, भेदभाव, असमानता, अपमान और गाली-गलौज!
राज वाल्मीकि
22 Jun 2019
सांकेतिक तस्वीर

हाल में गुजरात के वड़ोदरा जिले एक होटल में सीवर सफाई के दौरान दम घुटने से चार सफाई कर्मचारियों सहित सात लोगों की मौत हो गई। यह घटना वड़ोदरा शहर से 30 किमी दूर दभोई तहसील के फार्तिकुई गाँव के दर्शन होटल में हुई। इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि सफाई कर्मचारियों की व्यवस्था के तहत मौतें जारी हैं। ये मौतें नहीं बल्कि हत्याएं हैं और ये घटना अन्तिम नहीं है। इस तरह का सिलसिला जारी है।

ये मौतें तो खुद नरेन्द्र मोदी जी के राज्य में हुईं हैं। भले ही प्रधानमंत्री बड़े गर्व के साथ दावा करते हैं कि आज उनके स्वच्छ भारत अभियान के कारण देश के 90 प्रतिशत लोग शौचालयों का उपयोग करते हैं। वे आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 में 38.70% शौचालयों का निर्माण हुआ था जो अब बढ़कर 99.21% हो गया है। नरेन्द्र मोदी जी ये नहीं बताते कि इन शौचालयों के भरने पर इनकी सफाई कौन करता है? कस्बों और शहरों में जो सेप्टिक टैंक और सीवर हैं उनकी सफाई कौन करता है? इनकी सफाई के दौरान मरने वाले लोग कौन हैं?

इसे भी पढ़ें : वड़ोदरा : होटल में सीवर साफ करने के दौरान 4 सफाईकर्मियों समेत 7 की मौत

सफाई कर्मचारी आंदोलन के अनुसार अब तक 1790 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान हो चुकी है। और मौतों का ये सिलसिला लगातार जारी है।

सरकार ने वर्ष 2013 में मैला ढोने के निषेध के लिए एक अधिनियम बनाया, जिसका नाम है – हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013। इस अधिनियम के तहत मैलाप्रथा का निषेध तो है ही साथ ही सफाईकर्मियों के गैर-सफाई इज्जतदार पेशे में पुनर्वास का प्रावधान है, पर सरकार हाथ से मैला उठाने वाले (मैनुअल स्केवेंजरो) के पुनर्वास करने की इच्छुक नहीं दिखती। इसके समर्थन में दो-एक उदहारण लिए जा सकते हैं :

Poonam Devi. (1).jpg

पूनम देवी

बिहार के पूर्णिया जिले के लाइन बाजार, पंचमुख मंदिर के पास रहने वाली 35 वर्षीया पूनम देवी कहती हैं, “मैं पिछले 10 सालों से मैला ढोने का काम कर रही हूँ, पर कोई सरकार मेरी नहीं सुनती। पूनम देवी की 10 साल पहले शादी हुई थी। उनके तीन बच्चे हैं – दो लड़के और एक लडकी। पूनम सड़क के किनारे घर बना कर रहती हैं। नगर निगम वाले आते हैं उनका घर तोड़ कर चले जाते हैं। उनके पास अपनी जमीन नहीं है। पति बेरोजगार है।”

उनसे पूछने पर कि क्या सरकारी योजनाओं का उन्हें कोई लाभ मिला है? वे कहती हैं – “मुझे किसी सरकार से कोई लाभ नहीं मिला। न हमारा राशन कार्ड बना है। रोज दूसरों के घर का मैला साफ़ करके जीवन निर्वाह करती हूँ। जीवन बहुत कष्ट में गुजर रहा है।”

Shivnaath (1).jpg

शिवनाथ

इसी प्रकार झारखण्ड के धनबाद में रहने वाले 45 वर्षीय शिवनाथ कहते हैं, “मैं और मेरी पत्नी करीब 20 साल तक मैला ढोने का काम करते रहे पर किसी सरकार ने हमरी सुध नहीं ली। बाद में हमने ही यह निर्णय लिया कि ये गन्दा काम नही करेंगे और मैंने होटल में झाड़ू लगाने का काम शुरू किया। मेरी पत्नी भी घरों में झाड़ू-पोछा का काम करती है। अपनी पहल पर हम मानव मल ढोने से मुक्त हो चुके हैं।”

हम सफाई कर्मचारी हैं। हमारी संख्या लाखों में है – करोड़ों में भी। हम में से कुछ प्रतिशत बहुत संघर्षों से गुजरते हुए पढ़ लिख गए हैं। हमने जब संविधान पढ़ा तो पाया कि संविधान ने देश के हर नागरिक को समान अधिकार दिए हैं। सबको सम्मान से जीने का हक दिया है। पर जब हमने अपने हालात देखे और संविधान से मैच किया तो पता चला कि संविधान जो कहता है और हमारे जो हालात हैं उनमे तो बहुत ज्यादा अंतर है! जब हम अपने संविधान को पढना शुरू करते हैं, “हम भारत के लोग...” तो गर्वानुभूति होती है कि हम भी इस देश के इज़्ज़तदार नागरिक हैं! 

पर हकीकत में तो हम ज़िल्लत और जहालत की जिंदगी जी रहे हैं। छूआछूत की जिंदगी जी रहे हैं। भेदभाव की जिंदगी जी रहे हैं। अमानवीय जिंदगी जी रहे हैं। उससे तो प्रश्नवाचक चिह्न लग जाता है कि – क्या वास्तव में हम भी इसी देश के नागरिक हैं?

पिछले पांच हजार साल से हम भारतीय समाज के सफाई-कार्य में लिप्त हैं। हमारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसी सफाई व्यवस्था में लगी है। पर सफाई के बदले में हमें मिलता क्या है – जाति के नाम पर छुआछूत, भेदभाव, असमानता, अपमान और गाली-गलौज! सदियों से हमारी माँ-बहनों, पिता-पुत्रों, भाईयों का शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण जारी है।

सवाल हमारे मन में आता है कि जो समाज स्वयं को सभ्य कहता है. शिक्षित कहता है. मानवीय मूल्यों में विश्वास करता है – क्या उसे हमारा शोषण-उत्पीडन नजर नहीं आता? हमारे द्वारा मानव मल ढोना नहीं दीखता? हमारे साथ जातिगत और  पितृसत्तात्मक भेदभाव नजर नहीं आता? यदि ये सब दीखता है तो फिर वह मौन क्यों साध लेता है? सदियों से चली आ रही यथास्तिथि से टकराता क्यों नहीं? संघर्ष क्यों नहीं करता? इसे बदलता क्यों नहीं? क्या सभ्य कहे जाने वाले समाज का यह दायित्व नहीं? क्या समता, समानता, बंधुत्व और न्याय चाहने वालों की यह जिम्मेदारी नहीं? पर इसके लिए सबसे पहले जरूरत है अपने चश्मे को बदलने की। यदि हम जातिवादी और पितृसत्तात्मक चश्मे से देखेंगे तो कहीं कुछ गलत नहीं दिखेगा। इसलिए जरूरत है संवैधानिक चश्मे से समाज को देखने की।

सरकार हमारे लिए क़ानून बना कर अपनी खानापूर्ति कर देती है, जबकि सरकार भी जानती है कि हमारे यहाँ कानून कितने अमल में लाए जाते हैं! फिर सरकार कानूनों का इतना प्रचार-प्रसार नहीं करती कि ये क़ानून जन-जन तक पहुंचें। सरकार ये भी जानती है कि हम सफाई कर्मचारी 95 प्रतिशत से अधिक अनपढ़ होते हैं। सरकार के ढुल-मुल रवैये से साफ़ जाहिर होता है कि सरकार की मंशा देश से मैला प्रथा मिटाने की नहीं है। यही कारण है कि देश में मैला ढोने की प्रथा यथावत चल रही है. अगर प्रधानमंत्री नोटबंदी की तरह मैलाप्रथा उन्मूलन के लिए डेडलाइन और एक्शन प्लान के साथ सख्त कदम उठाएं तो यह कार्य असंभव नहीं है। अगर वह दिन आ जाए जब इस देश में एक भी मैला ढोने वाला नहीं हो तो इतिहास रच जाएगा। बस जरूरत है साफ़ नीयत की और दृढ़ निश्चय की। संवैधानिक और लोकतान्त्रिक मूल्यों की. पर वही यक्ष प्रश्न कि ऐसा करेगा कौन? प्रधानमंत्री? मुख्यमंत्री?? या कोई और???

हमें सीवरों की सफाई करने के लिए गहरे सीवरों में घुसा दिया जाता है – वहां जहरीली गैसों के कारण दम घुटने से हमारी मौत हो जाती है। पर हमारी मौतों से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है – जैसे हम इस देश के नागरिक ही नहीं हैं! सीमा पर जब हमारे जवान शहीद हो जाते हैं तो प्रधानमंत्री से लेकर पूरा सरकारी महकमा और सभ्य समाज उत्तेजित हो जाता है। संवेदनशील हो जाता है – पर इन सीवरों के शहीदों के लिए चुप्पी क्यों साध ली जाती है? इस चुप्पी के पीछे की मानसिकता क्या है! आखिर हम सफाई कर्मचारियों की कितनी और मौतों के बाद तोड़ोगे अपनी चुप्पी? कब बोलेंगे प्रधानमंत्री? मुख्यमंत्री? सभ्यसमाज? कि बस्स बहुत हो चुका, अब करेंगे मैला प्रथा का खात्मा। दिलाएंगे सफाई कर्मचारियों को इस ज़िल्लत की जिंदगी से मुक्ति। अब नहीं जायेगी किसी सफाई कर्मचारी की जान सीवर में। या हमारी मौतों का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा? 

{लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) से जुड़े हैं।}

इसे भी पढ़ें : निर्मम समाज में स्वच्छता सेनानियों की गुमनाम शहादत

SEWER DEATH
safai karmachari
safai karmachari andolan
CONTRACT SAFAIKARAMCHARIS
Vadodara
manual scavenging
Modi Govt Failure

Trending

क्या है बाबरी विध्वंस केस की मौज़ूदा स्थिति
प्याज़ रुलाए, अच्छे दिन भुलाए
झारखंड : पत्थलगड़ी आंदोलन से चुनाव कितना प्रभावित होगा?
"प्रदर्शन नहीं ठोस कदम उठाने होंगे"
झारखंड : स्टील उद्योग में बेरोज़गारी का गंभीर संकट 
हैदराबाद एनकाउंटरः #हमारेनामपरहत्यानहीं

Related Stories

swachchta abhiyan
सुबोध वर्मा
स्वच्छ भारत: 9.8 करोड़ सेप्टिक टैंक या गड्ढों की सफाई कौन करेगा?
28 November 2019
हाल ही में जारी किए गए एक सर्वेक्षण रिपोर्ट क
swachchta abhiyan
सुबोध वर्मा
स्वच्छ भारत अभियान: एक ख़्याली  क्रांति
03 October 2019
25 सितंबर के दिन, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भारत में स्वच्छ भारत अभियान को लागू करने के लिए न्यूयॉर्क में गेट्स फाउंडेशन द्वारा 'ग्लोबल गोलकीपर
सुनील कुमार
‘पापा कया ऐतै (पापा कब आएंगे)?’
28 August 2019
22 अगस्त, 2019 को गाजियाबाद सिहानी गेट थाने के सिहानी गांव के पास सद्दीक नगर में सीवर पाइप लाइन डालते हुए विजय राय, शिवकुमार राय, दामोदर सदा, संदीप

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • babri
    न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन
    क्या है बाबरी विध्वंस केस की मौज़ूदा स्थिति
    06 Dec 2019
    बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन अब तक ये मामला ट्रायल कोर्ट में ही है। इस मामले में दो महत्वपूर्ण मुकदमें सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत में चल रहे हैं।
  • ambedkar
    अजय कुमार
    अंबेडकर को अपनाना आज भी क्यों आसान नहीं है
    06 Dec 2019
    अंबेडकर का मानस बुद्धिवाद और धर्मनिरपेक्षता के घटकों से मिलकर बना था। परम्परा की उनकी समझ शास्त्रों की जाँच पड़ताल से बनी थी। जिसका आधार वैज्ञानिक नजरिया था।
  • telangana case
    मुकुल सरल
    एक अन्याय से दूसरा अन्याय दूर नहीं किया जा सकता
    06 Dec 2019
    जो लोग इस कथित त्वरित 'न्याय' पर खुश हो रहे हैं क्या वे अपने आरोपी विधायक, सांसद और कथित संतों के लिए भी इसी इंसाफ़ की मांग करेंगे। क्या वे अपने लिए भी ऐसे ही मानदंड स्थापित करना चाहेंगे कि आरोप लगते…
  • stop rape
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    महिलाओं के खिलाफ हिंसा जारी, राजस्थान से उन्नाव तक हालात गंभीर
    06 Dec 2019
    गुजरात में राजस्थान की 14 साल की आदिवासी लड़की के साथ अपहरण और बालात्कार की खबर है तो वहीं उन्नाव में बलात्कार के बाद आग के हवाले की गई पीड़िता की हालत बहुत नाजुक है फिलहाल उसे वेंटिलेटर पर रखा गया…
  • Daily Round-up Newsclick
    न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन
    बाबरी विध्वंस, प्याज़ के दाम, ट्रम्प का महाभियोग और अन्य
    06 Dec 2019
    न्यूज़क्लिक के डेली राउंड अप में हम लेकर आए हैं देश और दुनिया की अहम ख़बरें। आज के एपिसोड में हम बात करेंगे बाबरी विध्वंस, प्याज के बढ़ते दाम और हैदराबाद रेप केस की। अंतर्राष्ट्रीय ख़बरों में हमारी…
  • Load More
सदस्यता लें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें