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मध्यप्रदेश : आदिवासियों को मिलेगी साहूकार के क़र्ज़ से मुक्ति

मध्यप्रदेश में साहूकारों से आदिवासियों द्वारा लिए गए क़र्ज़ से मुक्ति दिलाने के ले सरकार अध्यादेश ला रही है। इसके तहत मध्यप्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों के आदिवासी परिवारों द्वारा 15 अगस्त 2019 तक साहूकारों लिए गए क़र्ज़ शून्य हो जाएंगे।
प्रतीकात्मक तस्वीर

मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बार फिर आदिवासियों की चर्चा है। सरकार ने आदिवासियों को साहूकारी क़र्ज़ से मुक्ति दिलाने के लिए अध्यादेश लाने का निर्णय लिया है। यह एक ऐसा मसला है, जिसे लेकर विपक्ष सरकार की आलोचना नहीं कर पा रहा है। प्रदेश के आदिवासियों के लिए साहूकारी क़र्ज़ एक बड़ी समस्या है। आकस्मिक जरूरत के समय वे साहूकारों के पास जाते हैं और फिर उस क़र्ज़ से उबरना उनके लिए संभव नहीं हो पाता। यदि साहूकारी क़र्ज़ से वास्तव में उन्हें मुक्ति मिल जाए, तो आजादी का एक छोटा अनुभव उनके जीवन के हिस्से में आ सकता है।

पूरे देश की तुलना में मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा  आदिवासी रहते हैं। जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 8.6 फीसदी आबादी (लगभग 11 करोड़ लोग) आदिवासियों की है। देश के कुल आदिवासियों में 153.16 लाख यानी 14.7 फीसदी आदिवासी मध्यप्रदेश में रहते हैं। मध्यप्रदेश की कुल जनसंख्या में आदिवासियों की हिस्सेदारी 21.10 फीसदी हैं। जनगणना एवं अन्य कई सरकारी व गैर सरकारी रिपोर्ट्स को देखा जाए, तो इन आदिवासी परिवारों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति बहुत ही कमजोर है। विस्थापन, जंगलों से बेदखली, मजबूरी का पलायन, बेहतर शिक्षा व बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का अभाव, कुपोषण, क़र्ज़ सहित कई समस्याओं से जूझते इन समुदायों के लिए जीवन पर संकट है।

एक दशक पहले 1 जनवरी 2008 को कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार ने देश में अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 को लागू किया था। अधिनियम की प्रस्तावना में कहा गया कि आदिवासियों एवं जंगलवासियों के साथ हुए ‘‘ऐतिहासिक अन्याय’’ से उन्हें मुक्ति दिलाने और जंगल पर उनके अधिकारों को मान्यता देने के लिए यह कानून है। आदिवासियों के साथ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया में अन्याय होता आया है। लेकिन संघर्षों एवं आंदोलनों की बदौलत सरकारों से कुछ अधिकार लेने में ये कामयाब रहे।

राष्ट्रीय स्तर पर बनाए गए वन अधिकार कानून के बाद मध्यप्रदेश सरकार द्वारा साहूकारी क़र्ज़ से मुक्ति के लिए लाए जा रहे अध्यादेश को आदिवासी हित में एक बड़ा कदम माना जा सकता है। सरकार का अनुमान है कि इससे प्रदेश के डेढ़ करोड़ आदिवासी साहूकारों के क़र्ज़ से मुक्त होंगे। यदि इस अध्यादेश की बदौलत मध्यप्रदेश में आदिवासियों की क़र्ज़ मुक्ति संभव हो गई, तो पूरे देश में इसे लागू करने के लिए अन्य राज्य सरकारों पर दबाव बढ़ेगा। साहूकारी क़र्ज़ के चुंगल से आदिवासियों को बचाने के लिए कानून बनाने की घोषणा 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने की थी। इसे अध्यादेश के जरिए प्रदेश में लागू किया जा रहा है, जिसके तहत मध्यप्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों के आदिवासी परिवारों द्वारा 15 अगस्त 2019 तक साहूकारों लिए गए क़र्ज़ शून्य हो जाएंगे। कानून के तहत यदि किसी आदिवासी ने क़र्ज़ लेने के लिए अपने जेवर या अपनी जमीन गिरवी रखी हो, तो भी उसे साहूकारों द्वारा आदिवासियों को वापस करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि भविष्य में कोई साहूकार अनुसूचित क्षेत्र में यदि साहूकारी करेगा, तो उसे लाइसेंस लेकर नियमानुसार व्यापार करना होगा। सरकार के इस फैसले का जो मजबूत पक्ष है, वह यह है कि बैंकों द्वारा आदिवासियों को रूपे डेबिट कार्ड दिए जाएंगे और जिनके खाते नहीं है, उनके खाते खोले जाएंगे। इस काम में सरकार उनकी मदद करेगी। इस कार्ड का व्यापक महत्व होगा। जरूरत के वक्त इस कार्ड के जरिए आदिवासी बैंकों से 10 हजार रुपए तक की क्रेडिट निकासी कर सकेंगे, जिसे उन्हें बाद में लौटाना होगा। इसकी वजह से आकस्मिक जरूरत के समय आदिवासियों को साहूकार से क़र्ज़ नहीं लेना पड़ेगा। 

आदिवासियों को आगे क़र्ज़ नहीं लेना पड़े, इसके लिए आदिवासी परिवार के यहां बच्चे के जन्म पर भोज के लिए राशन दुकान से 50 किलो चावल या गेहूं निःशुल्क देने एवं आदिवासी परिवार में मृत्यु होने पर मृत्यु भोज के लिए 100 किलो चावल या गेहूं राशन दुकान से निःशुल्क देने की योजना भी सरकार ने बनाई है। सामुदायिक भोज के लिए हर आदिवासी गांव में बर्तन खरीदने के लिए 25 हजार रुपए दिए जाएंगे। आदिवासी लोगों के क़र्ज़ का सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्या या किसी आयोजन में दिए जाने वाला भोज ही होता है। इसके लिए उन्हें साहूकारों से क़र्ज़ लेना पड़ता है, जिसके दुश्चक्र से निकलना उनके लिए संभव नहीं होता। ऐसे में सरकार का यह कदम उनके लिए बहुत राहत भरा हो सकता है। यद्यपि इसमें यह देखना जरूरी है कि क्या मृत्युभोज जैसे आयोजनों के लिए सरकार द्वारा मदद की जानी चाहिए, या फिर इसे खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।

इस कानून और इसके नियमों को बनाने में सरकार को व्यापक नज़रिया रखने की जरूरत होगी। यदि कोई आदिवासी गैर अनुसूचित क्षेत्र में रहता है, तो उसके क़र्ज़ को भी इसके दायरे में लाने की जरूरत है, लेकिन अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। इसके साथ ही साहूकार आदिवासियों पर परोक्ष दबाव न बना पाए, इसके पुख्ता इंतजाम करने होंगे। 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दलित एजेंडा के तहत प्रदेश में अनुसूचित जाति के परिवारों को चरनोई भूमि बांटी थी और हाथ में पट्टे का कागज रखने के बावजूद, जमीन पर कब्जा लेना उनके लिए संभव नहीं हो पाया था। साहूकारी क़र्ज़ से मुक्ति में भी ऐसी ही समस्या सामने आ सकती है, जिसमें आदिवासियों को प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल पाए। यद्यपि सरकार ने सभी कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने जिलों में क़र्ज़ लिए हुए जनजातीय परिवारों एवं क़र्ज़ देने वाले साहूकारों पर नजर रखें, ताकि कोई साहूकार जबर्दस्ती क़र्ज़ वसूली नहीं कर पाए।

 

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