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मध्यप्रदेश : कौन जीता, कौन हारा...खिड़की से देखो ज़रा

सिंधिया की राजहठ ने कांग्रेस सरकार को संकट में डाला लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बाद भी अभी यह कहना मुश्किल है कि कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। कांग्रेस और कांग्रेस समर्थकों को अब उम्मीद कमलनाथ के ‘‘मास्टर स्ट्रोक’’ पर है।
मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में चल रही सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा, जब उसके दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा का दामन थामने की ओर बढ़ चले। सिंधिया के इस्तीफे के बाद 20 से ज्यादा कांग्रेसी विधायकों ने भी विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा भेज दिया है।

पिछले एक हफ्ते से सरकार गिराने की भाजपा की कोशिशें रंग लाती दिख रही हैं। संख्या बल में कम रहने के बाद भी सत्ता पर काबिज होने की चाह और सरकार बनाने में भाजपा माहिर हो चुकी है। कर्नाटक इसका हालिया उदाहरण है। सत्ताधारी दल के सहयोगी दलों, वरिष्ठ नेताओं, मंत्रियों और विधायकों को तोड़कर भाजपा द्वारा सरकार बनाने का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में भाजपा ने अगला निशाना मध्यप्रदेश पर लगाया है। अब मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार पर संकट है और भाजपा सत्ता पर काबिज होने की तैयारी कर रही है।

एक ओर सिंधिया के इस कदम की आलोचना पूरे देश के कांग्रेसी कर रहे हैं, तो दूसरी ओर भाजपा द्वारा की जा रही इस कोशिश की भी आलोचना हो रही है। कई बुद्धिजीवियों एवं नेताओं ने तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि जब इस तरह से ही सरकार गिरानी और बनानी है, तो फिर चुनाव कराने की जरूरत क्या है?

मध्यप्रदेश में छाये सियासी संकट का बीजरोपण नवंबर 2018 के विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद ही हो गया था। पूरे देश से कांग्रेस को सफाया करने के अभियान पर निकली भाजपा को सबसे बड़ा झटका नवंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में लगा था, जब छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भाजपा 15 सालों से सत्ता में थी। इन तीनों राज्यों में से मध्यप्रदेश की स्थिति ऐसी थी, जहां भाजपा को चुनाव परिणामों के बाद से ही लग रहा था, कि साम, दाम, दंड, भेद यानी जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त के माध्यम से सरकार बनाई जा सकती है।

चुनाव परिणामों सें स्पष्ट हार के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस्तीफा दिए जाने में की जा रही देरी को इसी नजरिए से देखा जा रहा था, लेकिन कई मौकों पर चूक जाने वाली कांग्रेस ने यहां कोई गलती नहीं की और भाजपा, सपा और निर्दलीयों से पहले संपर्क साधकर सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली।

सरकार बना लेने के बाद भी कांग्रेस पिछले 15 महीनों में मुश्किल से 4-5 महीने ही सहज तरीके से सरकार चला पाई है, बाकी समय में भाजपा नेताओं द्वारा सरकार गिराने की धमकियों के बीच अपने असंतुष्टों को साधने में लगी रही। लेकिन कांग्रेस को इस बार बड़ा झटका लगा, जब उसके दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपने समर्थक विधायकों को इस्तीफा देने के लिए विवश कर दिया। सिंधिया के इस कदम से कांग्रेस सरकार पर संकट का कोहरा छा गया है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का कहना है कि सैद्वांतिक प्रतिबद्वता को तिलांजलि देकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न केवल जनादेश का अपमान किया है, बल्कि अपने पिता माधवराव सिंधिया की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के साथ भी विश्वासघात किया है। उन्होंने यह सब सत्ता की लोलुपता के लिए किया है। उन्होंने कहा कि व्यापमं से लेकर हनीट्रैप सीडी और ई टेंडरिंग तक घोटालों में फंसा भाजपा नेतृत्व अपने अपराधों को छिपाने के लगातार जनादेश को पलटने की फिराक में था। ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के इस कृत्य में मोहरा साबित हुए है। कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में हुआ तख्ता पलट साबित करता है कि भाजपा को जनादेश की कोई चिंता नहीं है, वह सिर्फ कालेधन की बदौलत सत्ता हथियाना चाहती है। पिछले छः साल में भाजपा ने कई बार लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं को कलंकित किया है।

मध्यप्रदेश में सरकार गिराने को लेकर भाजपा नेता लगातार बयानबाजी कर रहे थे। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ही प्रदेश के कई वरिष्ठ नेता कुछ महीने की मेहमान सरकार, लंगड़ी सरकार जैसी उपमाओं के साथ बयान देते रहे। इसके साथ ही वे यह भी कहते रहे कि यदि ऊपर से इशारा हो जाए, तो एक दिन में सरकार गिरा देंगे। राजनीतिक गलियारों एवं प्रशासनिक महकमों में भी सरकार के स्थायित्व पर संदेह किया जाता रहा। भाजपा ने सरकार गिराने की बयानबाजी करते हुए कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं और विधायकों को शांत नहीं होने दिया। असंतुष्ट नेता और विधायक सरकार को हमेंशा परेशान करते रहे। पहले भाजपा ने असंतुष्ट कांग्रेसी विधायकों, निर्दलीय व सपा, बसपा के विधायकों पर डोरे डाले, लेकिन इनकी संख्या उतनी नहीं हो पाई, जिससे कि सरकार गिराई जा सके।

लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की बुरी हार के बाद भाजपा फिर से कांग्रेस पर हमलावार हुई। लगातार सरकार गिराने की धमकियां सुनने के बाद कांग्रेस ने विपक्ष द्वारा बिना मांगे ही सदन में बहुमत साबित किया और इस दरम्यान भाजपा के दो विधायकों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान कर दिया। इस प्रकरण के कारण भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने प्रदेश भाजपा से नाख़ुशी जाहिर की, जिसके बाद भाजपा द्वारा सरकार गिराने का अभियान ठंडा पड़ गया। फिर यह लगने लगा कि कांग्रेस सरकार को भविष्य में अब संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।

एक ओर कांग्रेस यह समझती रही कि भाजपा द्वारा सरकार को अस्थिर करने का अभियान अब खत्म हो गया है, तो दूसरी ओर भाजपा अंदर ही अंदर दो स्तरों पर काम करने लगी। एक स्तर पर वह कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाने का प्रयास करने लगी, तो दूसरे स्तर पर असंतुष्ट विधायकों को साधने की कोशिश करने लगी।

भाजपा की पहली कोशिश कर्नाटक की तर्ज पर कुछ कांग्रेसी, निर्दलीय एवं सपा व बसपा विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर सरकार पलटने की थी। भाजपा की इस कोशिश की भनक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को लग गई और उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर इसका भंडाफोड़ कर दिया। यदि भाजपा की यह कोशिश कामयाब हो जाती, तो उसे आयातित नेताओं के साथ बड़े समझौते नहीं करने पड़ते। दिग्विजय सिंह के आरोपों के अनुसार हर विधायकों को भाजपा ने 100 करोड़ रुपए की ऑफर दिया था।

भाजपा ने फिर प्लान बी पर काम करते हुए कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सिंधिया से डील करना शुरू कर दिया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाने में सिंधिया की अहम भूमिका रही है। चुनाव परिणाम से पहले यह उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस की जीत होने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। पूर्ण बहुमत से कुछ सीटें कम रह जाने और भाजपा द्वारा दूसरे राज्यों में सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ में आगे रहने के अनुभवों को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने अनुभवी नेता कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाना मुनासिब समझा। लेकिन हालात की गंभीरता को समझने के बजाय सिंधिया ने भी इस पर नाख़ुशी जाहिर की और उनके समर्थकों ने इसे सिंधिया का अपमान तक बताया। सरकार बनने के बाद सिंधिया समर्थक मंत्री अपनी बयानबाजी से अक्सर सरकार को असहज करते रहे। लोकसभा चुनाव में हार जाने के बाद हाशिये पर होते जाने का डर सिंधिया में बढ़ता गया। भाजपा ने उनके डर को भांप लिया और उन पर डोरे डालना शुरू कर दिया था। सिंधिया की बड़ी मांग और भाजपा में उनकी स्वीकार्यता के खतरे को देखते हुए भाजपा इस दिशा में आगे नहीं बढ़ना चाहती थी, लेकिन इसके दरवाजे भी बंद नहीं किए।

राज्य सभा चुनावों की घोषणा के बाद मध्यप्रदेश की तीन सीटों में से दो सीटों पर जीत की चाह से बिसात बिछा रही भाजपा को सरकार पलटने की संभावना भी दिखने लगी। यहां से कांग्रेस को राज्य सभा की दो सीटें मिलने की पूरी संभावना रही है। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस की ओर दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य सभा भेजा जाएगा। इस बीच कांग्रेस आलाकमान ने सिंधिया तक यह संदेश भी पहुंचवाया कि उन्हें राज्य सभा सदय और प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन तबतक सिंधिया कांग्रेस को अलविदा कहने का मन बना चुके थे। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के इस प्रस्ताव पर उन्होंने राजहठ कर लिया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, तभी वे कांग्रेस से इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में आलाकमान ने इस पर निर्णय लेने का अधिकार मुख्यमंत्री कमलनाथ के ऊपर छोड़ दिया। बदली हुई परिस्थितियों में सिंधिया की जिद को पूरा करना कांग्रेस के लिए संभव नहीं रह गया और इस तरह मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार संकट में फंस गई।

यद्यपि इस पूरे घटनाक्रम के बाद भी अभी यह कहना मुश्किल है कि कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। जबतक असंतुष्ट विधायक प्रत्यक्ष रूप से इस्तीफा नहीं दे देते और उसे स्वीकार नहीं कर लिया जाता, तब तक कांग्रेस की सरकार बची रहेगी। इस बीच कांग्रेस ने अपने असंतुष्ट विधायकों को मनाने की कोशिशें तेज कर दी है। यह बताया जा रहा है कि कई विधायक भाजपा में जाने के पक्ष में नहीं है। ऐसे में इन विधायकों को मनाने के साथ-साथ भाजपा के अंसतुष्ट विधायकों को अपने पाले में करने का प्रयास कांग्रेस द्वारा जारी है। कांग्रेस और कांग्रेस समर्थकों को अब उम्मीद कमलनाथ के ‘‘मास्टर स्ट्रोक’’ पर है।

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