मन नहीं चंगा तो कैसे साफ होगी गंगा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 26 मई 2014 को जब शपथ ले रहे थे तो गंगा की ‘निर्मल और अविरल धारा’ को पुनः स्थापित करना उन्होंने प्राथमिकता में रखा था। लेकिन ऐसा हो न सका।
अब जब गंगा के लिए लड़ते हुए अनशनरत प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की मौत हो गई, जिसे उनसे जुड़े मातृ सदन वाले हत्या करार दे रहे हैं, तब इस सवाल का जवाब जानना बेहद प्रासंगिक हो जाता है कि नारों और वादों के अलावा मोदी सरकार ने आखिरकार गंगा के लिए वास्तव में किया क्या?
देश में अलग से जल संसाधन मंत्रालय की स्थापना सन् 1985 में होती है। मई 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनती है और जुलाई 2014 में इस मंत्रालय का नाम बदलकर जल संसाधन, नदी विकास गंगा संरक्षण मंत्रालय रखा गया। इस मंत्रालय की स्थापना गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण और उसके संरक्षण के लिए की गयी थी। इस मंत्रालय की जिम्मेदारी उमा भारती को दी गयी। उमा भारती मंत्री बनने के बाद इस प्रोजेक्ट के लिए 20,000 करोड़ रुपये की घोषणा करती हैं। जुलाई 2017 में राज्यसभा में बोलते हुए उमा भारती ने कहा कि गंगा को लेकर जो नयी शुरुआत की गयी है उसके परिणाम 2018 तक दिखने लगेंगे। लेकिन सितम्बर 2017 में उमा भारती को इस मंत्रालय से हटाकर नितिन गडकरी को इस मंत्रालय की जिम्मेदारी दे दी जाती है। इस अवसर पर उमा भारती ऐलान करती है कि गंगा की सफाई का काम अगर अक्टूबर 2018 तक नहीं पूरा हुआ तो मैं मरते दम तक अनशन पर बैठूँगी। मई 2018 में नितिन गडकरी बोलते है कि गंगा की सफाई का 70 से 80 प्रतिशत काम अगले मार्च तक पूरा हो जायेगा।
लेकिन अभी तक केवल 10 प्रतिशत ही काम पूरा हुई, लेकिन उमा जी अनशन पर नहीं बैठीं। मगर जो अनशन पर बैठे उन्हें जान गंवानी पड़ी। ये थे प्रो. जीडी अग्रवाल। गंगा नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए 111 दिन से अनशन पर बैठे प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद का कार्डियक अरेस्ट के कारण 11 अक्टूबर को निधन हो गया। प्रोफेसर अग्रवाल IIT कानपुर में प्रोफेसर रह चुके थे और जाने माने पर्यावरणविद थे। प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा को लेकर UPA शासन में पहले 2008 , 2009 ,2010 , 2012 और 2013 में कुल पांच बार अनशन कर चुके थे। प्रोफेसर के अनशन के चलते UPA सरकार ने कई सारे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट रद्द करने को तैयार हुई थी जिसमें भागीरथी नदी का प्रोजेक्ट भी शामिल था और लगभग 135 के रिवर फ्रंट जो गोमुख से उत्तरकाशी को जाता है को पर्यावरण संवेदनशील जोन में डालने को तैयार हुई थी। 23 अगस्त 2010 को उस समय के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रोफेसर अग्रवाल को पत्र लिखते हुए इन सभी मुद्दों पर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया था।
जीडी अग्रवाल ने गंगा के बारे में चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री मोदी को भी 3 बार पत्र लिखा पर मोदी ने एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया।
जनसत्ता अखबार के ऑनलाइन संस्करण (12 अक्टूबर 2018 ) के अनुसार प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने अपने तीसरे पत्र में चार मांगे रखी थी। उन्होंने वर्ष 2012 में गंगा महासभा द्वारा तैयार प्रारूप पर संसद में विधेयक लाकर कानून बनाने की मांग की थी। संसद में विधेयक को जल्द से जल्द से जल्द पारित न करा पाने की स्थिति में गंगा के संरक्षण और प्रबंधन पर अध्यादेश लाने का सुझाव दिया था। जीडी अग्रवाल ने दूसरी मांग के तहत अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी नदियों पर बन रही जलविद्युत परियोजना को अविलम्ब बंद करने का आदेश देने को कहा था। तीसरी मांग के तहत हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में पेड़ो की कटाई, खनन, और चमड़ा उद्योग-बूचड़खानों को बंद करने की बात कही थी। चौथी मांग के तहत जीडी अग्रवाल ने जून 2019 तक गंगा भक्त परिषद को गठन करने की मांग की थी ।
मोदी सरकार ने जिस ‘नमामि गंगे’ नाम की परियोजना के जरिये गंगा को साफ करने की योजना बनाई थी। उसकी वेबसाइट के अनुसार योजना 8 प्रमुख बिंदुओ के इर्द-गिर्द घूमती है। इनमें प्रमुख हैं- गंगा किनारे सीवर उपचार सयंत्र का ढांचा खड़ा करना। योजना के तहत 63 सीवेज मैनेजमेंट प्रोजेक्ट उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश ,बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में लगाये जायेंगे। अब तक इनमे से 12 पर काम चल रहा है। इसके अलावा हरिद्वार और वाराणसी में दो पीपीपी मॉडल यानी निजी सहभागिता पर भी शुरू करने की कोशिश है। वही नदी मुहानों के विकास (रिवर फ्रंट डेवलपमेंट) के तहत 182 घाटों और 118 शमशानों का आधुनिकीकरण किया जायेगा।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कई मौकों पर यह दावा कर चुके हैं कि 2020 तक गंगा की सफाई का 70-80% काम पूरा हो जाएगा, पर नमामि गंगे प्रोजेक्ट का केवल 10% काम अभी तक पूरा हुआ है।
डाउन टू अर्थ की 21 दिसम्बर 2017 की खबर के अनुसार वर्ष 2017 ‘’Performance Audit of Rejuvenation of River Ganga’’ नाम से आई एक रिपोर्ट ने मोदी सरकार की इस योजना की सफलता पर कई सारे सवाल खड़े किये। कैग (Comptroller and Auditor General of India ) ने भी मोदी सरकार को इस प्रोजेक्ट पर सही से काम न करने पर डांट लगायी थी। रिपोर्ट ने पाया 2500 करोड़ जो सरकारी संस्थानों और पब्लिक सेक्टर के लिए मंजूर किये गए था उनका उपयोग नहीं हुआ। रिपोर्ट दर्शाती है कि गंगा की सफाई, सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट्स का स्थापना और घरों में शौचलायो का निर्माण आदि प्रोजेक्ट के कार्यो में देरी है और इन पर सही से काम नहीं हो रहा है। लगभग 198.14 करोड़ रुपये (31 मार्च 2017 तक ) गंगा सफाई फण्ड में है जो कोई एक्शन प्लान न होने की वजह से उपयोग नहीं हो पाए हैं।
भास्कर न्यूज़ की एक खबर के अनुसार- नए घाटों और श्मशानों के लिए योजना में 37 प्रोजेक्ट जोड़े गए हैं। इसके लिए 722.18 करोड़ रुपये मंजूर किये गए है। सिर्फ 261.44 करोड़ ही खर्च हुए हैं। 37 में से 3 प्रोजेक्ट ही पूरे हुए हैं। 151 नए घाट बनने है इनमें से अभी तक 36 घाट ही बने हैं। घाटों की सफाई को लेकर तीन प्रोजेक्ट शुरू किये गए है। 43.87 करोड़ का बजट है इनमें से 8 करोड़ खर्च हुए हैं।
घाटों की सफाई का बजट का 4% ही खर्च हुआ है- गंगा की सतह से कचरा निकालने के लिए 55 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट पास किया गया था। अब तक इस काम के लिए सिर्फ 2.05 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। यानी सिर्फ 4 फ़ीसदी रकम ही खर्च हो पायी है। सरकार की योजना 2039.75 किमी लम्बा सीवेज नेटवर्क बनाने की है। अभी तक सिर्फ 53.94 यानी 2.64% नेटवर्क बिछ पाया है।
7304 करोड़ रुपये बहाए पर कोई सुधार नहीं- एनजीटी ने 543 पेज के अपने आदेश में कहा कि मार्च 2017 तक 7304.64 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद केंद्र, राज्य सरकारें और उत्तर प्रदेश राज्य के स्थानीय प्राधिकरण गंगा की सेहत सुधारने में असफल रहे। सरकार ने तय किया था कि 1,178.78 मिलियन लीटर गंदे पानी को रोजाना साफ़ करेंगे पर अब तक वह क्षमता 0.06 मिलियन लीटर पहुंची है।
उपरोक्त आंकड़ों से साफ़ जाहिर होता है कि मोदी सरकार ‘नमामि गंगे’ योजना पर अभी तक काम करने में विफल रही है।
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