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सीवर में मौतों (हत्याओं) का अंतहीन सिलसिला

क्यों कोई नहीं ठहराया जाता इन हत्याओं का जिम्मेदार? दोषियों के खिलाफ दर्ज होना चाहिए आपराधिक मामला, लेकिन...
sewer death
दिल्ली में संजय गाँधी ट्रांसपोर्ट नगर में सीवर में फंसकर 4 व्यक्तियों की मौत हो गई। फोटो साभार: Citizens for Justice and Peace

हाल ही में दिल्ली में दो दिनों में 6 लोगों की जान सीवर में चली गई। और पूरे देश की बात करें तो पांच दिनों में 16 लोग सीवर में घुसने से या कहिये घुसा कर मारे गए।

पांच दिनों में देश भर में 16 लोगों की सीवर में मौत हुई। इनका विवरण निम्न है

1.       लखनऊ में      2  (29 मार्च 2022)

2.       रायबरेली        2  (29 मार्च 2022)

3.       बीकानेर         4  (27 मार्च 2022)

4.       हरियाणा (नूंह) 2  (26 मार्च 2022)

5.       दिल्ली            6  (29-30 मार्च 2022) 

 

दिल्ली में 2 लोगों की मौत दिल्ली जल बोर्ड सीवर प्लांट कोंडली में हुई। इनके नाम नीतेश (25) और यश देव (26) हैं। ये लोग मोटर ठीक करने के लिए सीवर प्लांट में बिना सुरक्षा उपकरण के उतरे थे। सीवर में जहरीली गैस होती है। अधिक सम्भावना यही है कि गैस की चपेट में आकर ये लोग अचेत होकर नीचे गंदे पानी में गिर गए और दम घुटने से इनकी मौत हो गई। यह घटना 30 मार्च 2022 की है। दूसरी घटना भी 29 मार्च 2022 की दिल्ली की ही है जहां संजय गाँधी ट्रांसपोर्ट नगर में सीवर में फंसे 4 व्यक्तियों की मौत हो गई।

रोहिणी के ई-ब्लाक में एमटीएनएल के केवल की मरम्मत चल रही थी। सीवर में टेलीफोन और बिजली के तार थे। मरम्मत कार्य के लिए 15 फीट गहरे सीवर में पहले बच्चू सिंह और पिंटू गए। फिर जब बहुत देर तक कोई हलचल नही हुई तो ठेकेदार सूरज साहनी भी सीवर में उतर गया लेकिन वह भी बाहर नहीं आया। इसी दौरान वहां से गुजर रहे ई-रिक्शा चालक सतीश फंसे लोगों को निकालने के लिए सीवर में उतरा पर वह भी बाहर नहीं आया। सीवर की जहरीले गैस ने चारों को अपनी चपेट में ले लिया था।

डीसीपी बीके यादव ने घटना की पुष्टि की है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि सीवर में घुसने के दौरान इन लोगों के पास जरूरी सुरक्षा उपकरण नहीं थे। इनके पास ऑक्सीजन सीलेंडर और बॉडी प्रोटेक्टर होने चाहिए थे। बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर में उतरना मौत को बुलावा देना है। और जो व्यक्ति इन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के उतारता है वह इनकी मौत (हत्या) का जिम्मेदार होता है।

एम.एस. एक्ट 2013 के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी को सीवर में घुसने के लिए बाध्य करता है तो उसके लिए जेल और जुर्माने दोनों का प्रावधान है। पर दुखद है कि प्रशासन के ढुल-मुल रवैये के कारण इन हत्याओं के जिम्मेदार व्यक्ति को सजा नहीं मिलती। पुलिस भी लापरवाही की धारा 304ए के तहत केस दर्ज करती है। और बाद में मामला रफा-दफा कर दिया जाता है।

इस तरह की मौतों के प्रति सरकार खुद लापरवाह है। सरकार को पता है कि एमएस एक्ट 2013 और सुप्रीम कोर्ट के 27 मार्च 2014 के आदेश के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में नहीं उतारा जा सकता। इमरजेंसी के हालात में भी बिना सुरक्षा उपकरण के किसी को सीवर में उतारना दंडनीय अपराध है। जहां तक संभव हो सीवर के अन्दर के किसी भी प्रकार के कार्य के लिए मशीनों की सहायता ली जानी चाहिए।

जब तक प्रशासन इन मौतों को गंभीरता से नहीं लेगा, दोषी लोगों को कड़ी सजा नहीं देगा तब तक भविष्य में भी इस तरह की वारदात होती रहेंगी। अतीत में भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं। 26 मार्च 2021 को पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में सीवर की सफाई के दौरान दो लोगों की मौत हो गई थी। 10 सितम्बर 2018 को मोती नगर स्थित सोसाइटी के सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान पांच लोगों की जान गई थी। 12 अगस्त 2017 को शाहदरा में सीवर सफाई के दौरान दो भाइयों की मौत हो गई थी। 6 अगस्त 2017 को सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस की वजह से राजधानी दिल्ली के लाजपत नगर में तीन सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई थी। इस तरह सीवर के अंदर मौतों का अंतहीन सिलसिला चल रहा है।

दिल्ली प्रशासन है ज़िम्मेदार

जब देश की राजधानी दिल्ली में ऐसी वारदातें हो रही हैं तो देश के अन्य भागों की क्या बात करें। एम.एस.एक्ट 2013 का राजधानी में ही कार्यान्वयन नहीं हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की जा रही है। इसके कार्यान्वयन के लिए राज्य के जिले का जिला अधिकारी जिम्मेदार होता है। सीवर के अन्दर किसी को घुसाने से पहले स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेनी होती है। फिर ये लोग प्रशासन की अनुमति क्यों नहीं लेते। नियम तो यह भी है कि जब भी किसी को इमरजेंसी स्थिति में सीवर में घुसाया जा रहा हो तो वहां कार्यस्थल पर सरकार का सम्बंधित विभाग का अधिकारी मौजूद हो। उसका कार्य होता है कि वह बिना सुरक्षा उपकरणों के किसी भी व्यक्ति को सीवर के अन्दर घुसने न दे। सीवर के अन्दर का कोई भी कार्य उसकी निगरानी में हो। लेकिन लोग सरकार को सूचित नहीं कर रहे हैं तो यह भी कानून का उल्लंघन है। इसके लिए उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। दूसरी बात यह भी है कि हो सकता है लोगों को इसकी जानकारी ही न  हो तो इसके लिए सरकार को विज्ञापन के माध्यम से लोगों को जागरूक करे। सरकार इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में विज्ञापन दे। होर्डिंग लगाए । दीवारों पर लिखवाए। इस तरह सरकार इतना प्रचार-प्रसार करे कि उसकी बात जन-जन तक पहुंचे। इससे लोग जागरूक होंगे।

परिवार के एकमात्र कमाऊ व्यक्ति के जाने का दुख-दर्द

जिस पर बीतती है वही जानता है। जब परिवार से एक मात्र कमाऊ व्यक्ति चला जाता है तो सिर्फ वह व्यक्ति ही अपनी जान से नहीं जाता है बल्कि उसके परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ता है। अब रोहिणी वाले घटना का ही उदाहरण लीजिए। सतीश ई-रिक्शा चला कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसके परिवार में पत्नी नेहा और तीन छोटी-छोटी बेटियां हैं। बुजुर्ग मां है। पत्नी के विधवा होने के साथ ही बच्चियां अनाथ हो गईं। अब कैसे चलेगा उस परिवार का जीवन।

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सीवर में मरने वाले के आश्रितों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान किया है। हालांकि यह मुआवजा किसी  इन्सान की कमी तो दूर नहीं कर सकता लेकिन परिवार को थोड़ा सहारा देता है। पर यह सबको कहां मिल पाता है। अक्सर तो मृतक के आश्रितों को इसकी जानकारी नहीं होती। दूसरी बात प्रशासन इतना संवेनशील नहीं होता कि खुद ही पहल करे। 

परिवार के एक मात्र कमाऊ व्यक्ति के जाने से न केवल उसका परिवार उसके खोने का दुख और सदमा झेल रहा होता है बल्कि परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरे परिवार को अस्त-व्यस्त कर देती हैं।

केंद्र और राज्य सरकार के चिंता की  विषय क्यों नहीं होतीं सीवर में मौतें

सफाई कर्मचारी आंदोलन के एक आंकड़े के अनुसार अब तक दो हजार से अधिक लोग सीवर-सेप्टिक टैंको में अपनी जान गवां चुके हैं। पर देश के प्रधानमंत्री इस पर कुछ नहीं बोलते। संसद और विधान सभाओं में इन पर चर्चा नहीं होती। क्या हमारी सरकारें इतनी असंवेदनशील हो गई हैं। क्या ये जान-बूझकर लोगों की हत्या करना नहीं है। क्या युद्धस्तर पर इन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। क्या सीवर-सेप्टिक टैंको में इंसान की बजाय मशीनों से काम करवाना सरकार की जिम्मेदारी नही है। क्या सरकार चाहे तो इस तरह होने वाली मौतों को रोका नहीं जा सकता है। होने को तो सब कुछ हो सकता है पर सरकार में राजनैतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए। इस मुद्दे के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए। पर वास्तव में ऐसा कुछ है नहीं। इस तरह का अपराध करने वालों को सजा नहीं मिलती। कारण यही  कि सरकार इन्हें गंभीरता से नहीं लेती। कारण यह भी कि इनमे जान गंवाने वाले आम आदमी होते हैं। रसूख वाले बड़े लोग नहीं। या फिर सीवर में शहीद होने वाले देश की सीमा पर शहीद होने वाले लोग नहीं होते। पर संविधान की दुहाई देने वाली सरकारे ये क्यों भूल जाती हैं कि संविधान ने हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के बराबरी का अधिकार दिया है। और ये आम नागरिक ही आपकी सरकार बनाते हैं।

इन आम नागरिकों की सुरक्षा क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी देखें—नये भारत के नये विकास का मॉडल; तीन दिन में 14 सीवर मौतें, नफ़रत को खुला छोड़ा

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