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केन्द्रीय बजट 2021-22: हाशिये पर मौजूद समुदायों के लिए कुछ भी नहीं !

विभिन्न मंत्रालयों द्वारा एससी एवं एसटी वर्ग के लिए आवंटनों को लेकर की गई घोषणाएं दर्शाती हैं कि इन मंत्रालयों द्वारा घोषित आवंटनों में पिछले वर्षों  मुकाबले शायद ही कोई सुधार किया जा सका है। 
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हमारे समाज में आज भी असमानता विद्यमान है। भारतीय समाज में भारी आर्थिक असमानता के साथ-साथ तीव्र समाजिक गैर-बराबरी भी अपने वजूद में बनी हुई है। इसे देखते हुए भारतीय संविधान में सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान बनाये गए हैं। अनुसूचित जातियां एवं अनुसूचित जनजातियों के तौर पर दो स्पष्ट रूप से हाशिये पर मौजूद समूह हैं। हमारे यहाँ गैर-अधिसूचित एवं घुमंतू जनजातियों (डीएनटी) एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों का भी एक समूह है, जो विकास में पिछड़ रहे हैं और जिनके पास विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों तक समान स्तर तक पहुँच नहीं बन पाई है। इसके साथ ही फिर उच्च-स्तरीय पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण लैंगिक विभाजन भी मौजूद है। ऐसे में आर्थिक नीतियां और सरकार के बजट किस प्रकार से लोगों के बीच के अंतर को कम कर सकते हैं?

आदवासियों एवं अल्पसंख्यकों के विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए अलग-अलग मंत्रालय मौजूद हैं। सामाजिक न्याय मंत्रालय, दलितों एवं अन्य के बीच में मौजूद डीएनटी आबादी के सशक्तीकरण के लिए काम करता है। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय को निर्दिष्ट किया गया है।

हाशिये पर खड़े इन वर्गों की निगाह से बजट को देखने का एक तरीका यह है कि इन मंत्रालयों को बजट में क्या आवंटित किया गया है, को देखा जाए। लेकिन हाशिये के लोगों के नजरिये से भी समूचे मंत्रालयों के बजट पर भी एक निगाह डालने की जरूरत है। पूर्व में एससी एवं एसटी वर्ग के लिए पंचवर्षीय योजना और वार्षिक योजनाओं के हिस्से के तौर पर उप-योजना भी हुआ करती थी। योजना प्रक्रिया के खात्मे के साथ इसे भी अब चलन से बाहर कर दिया गया है।

अब केन्द्रीय बजट में एससी एवं एसटी वर्गों के कल्याण के लिए सभी मंत्रालयों की योजनाओं और कार्यक्रमों को सूचीबद्ध करते हुए विभिन्न वक्तव्यों को जारी किया जाता है। बजट के साथ एक जेंडर बजट स्टेटमेंट (कथन 13) भी उपलब्ध कराया गया है जिसमें विभिन्न मंत्रालयों द्वारा महिला सशक्तीकरण एवं महिला उत्थान पर होने वाले खर्चों को दर्शाया गया है।

भले ही अल्पसंख्यकों के लिए प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रमों का मकसद विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के 15 चयनित सरकारी कार्यक्रमों में अल्पसंख्यक समुदायों की भागीदारी को बेहतर बनाने के लिए किया गया हो, लेकिन अल्पसंख्यक वर्ग के लिए इस प्रकार का कोई बयान जारी नहीं किया गया है। डीएनटी समुदायों को संविधान में एक समूह के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया गया है लेकिन हाल ही में सरकार ने उनके विकास के लिए एक डीएनटी बोर्ड का गठन किया है। आइये अब देखते हैं कि 2021-22 के केन्द्रीय बजट ने इन हाशिये के समूहों के विकास के लिए क्या पेशकश की है।

संबंधित मंत्रालयों के लिए बजट में प्रावधान 

इससे पहले कि हम इन बयानों का विश्लेषण करें, आइये सबसे पहले हाशिये पर पड़े लोगों को राहत पहुँचाने के लिए अलग-अलग मंत्रालयों को हासिल होने वाले बजट पर एक नजर डालते हैं। नीचे दी गई तालिका में चार मंत्रालयों को किये गए आवंटन को दर्शाया गया है।

तालिका 1: सीमान्त समूहों से सम्बद्ध मंत्रालयों के लिए बजटीय प्रावधान (करोड़ रूपये में)

स्रोत: 2021-22 के केंद्रीय बजट के लिए यहाँ पर क्लिक करें: https://www.indiabudget.gov.in/

[एई- वास्तविक खर्च, बीई- बजट अनुमान, आरई-संशोधित अनुमान]

कुलमिलाकर देखें तो इन मंत्रालयों को पहले से कम आवंटन हासिल हुआ है और जैसा कि हम उपर की तालिकाओं से देख सकते हैं, इन मंत्रालयों के लिए बजट में शायद ही कोई उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। जहाँ तक महिला एवं बाल कल्याण और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का सवाल है, तो इनके बजट में स्पष्ट गिरावट को देखा जा सकता है। जबकि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभागों में (दोनों ही विभाग सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का हिस्सा हैं) न्यूनतम बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। इसी प्रकार जनजातीय मामलों के मंत्रालय में भी मामूली वृध्दि की गई है।

एससी एवं एसटी वर्ग के कल्याण हेतु बजट आवंटन 

यह बताता है कि अब जबकि विकास को लेकर चला डिस्कोर्स अब कल्याण से विकास के क्रम में सशक्तीकरण तक पहुँच चुका है, ऐसे में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए योजना एवं उप-योजना प्रक्रिया को जारी रखने वाली प्रक्रिया को समाप्त कर इन योजनाओं और कार्यक्रमों को अपने वक्तव्यों में “एससी वर्ग के कल्याण के लिए आवंटन” और “एसटी वर्ग के कल्याण के लिए आवंटन” का नाम दे डाला है।

विभिन्न मंत्रालयों द्वारा एससी एवं एसटी वर्ग के लिए आवंटन पर दिए गए वक्तव्यों से पता चलता है कि इन मंत्रालयों द्वारा किये गए आवंटन में शायद ही कोई सुधार किया गया है। नीचे दी गई तालिका में केन्द्रीय बजट में एससी एवं एसटी वर्ग के लिए आवंटित की गई राशि को दर्शाया गया है।

तालिका 2: एससी एवं एसटी वर्गों के ‘कल्याण’ के लिए आवंटित धनराशि (करोड़ रुपयों में)

स्रोत: केन्द्रीय बजट, 2020-21 एवं 2021-22 

जैसा कि उपर दी गई तालिका से पता चलता है कि इन दोनों समुदायों के लिए पिछले दो वर्षों (2019-20 बीई और 2020-21 बीई) में मामूली वृद्धि की गई है। इसके अलावा 2019-20 में होने वाला वास्तविक व्यय (एई) जो कोविड-19 जैसी किसी भी भारी आपदा से प्रभावित नहीं था, में कुल आवंटित धनराशि से कम खर्च किया गया था। अनुसूचित जातियों के मामले में इस मद में आवंटित धनराशि जहाँ 20% तक कम खर्च की गई थी, वहीँ अनुसूचित जनजातियों के मामले में इसके 11% हिस्से को इस्तेमाल में नहीं लाया जा सका था। 

इस वर्ष इन दोनों ही श्रेणियों के लिए आवंटन में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। अनुसूचित जातियों के सन्दर्भ में जो योजनायें निर्दिष्ट हैं उनमे आवंटन को 83.25 हजार करोड़ रूपये से बढ़ाकर 1.26 लाख करोड़ रूपये तक कर दिया गया है, वहीँ अनुसूचित जनजातियों के लिए योजनाओं को 53.65 हजार करोड़ रुपयों से बढाकर 79.94 हजार करोड़ रुपयों तक का दर्शाया जा रहा है। आवंटन में यह वृद्धि इसलिए नहीं हुई है कि इस बार किसी विशेष मंत्रालय में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए योजनाओं में भारी बढ़ोत्तरी की गई है, बल्कि इसलिए क्योंकि कुछ नए मंत्रालयों ने इस साल से अपने एससी, एसटी वर्ग के लिए आवंटन की रिपोर्टिंग करनी शुरू कर दी है।

उदहारण के लिए उर्वरक मंत्रालय ने सूचित किया है कि उसके द्वारा अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए 6.9 हजार करोड़ रूपये और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय द्वारा 20.9 हजार करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। लेकिन इन व्यक्तिगत मंत्रालयों द्वारा अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए किया गया आवंटन पिछले वर्षों की तुलना में नहीं बढ़ा है। उदाहरण के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा 2020-21 में जहाँ 22.21 हजार करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था, उसकी तुलना में 2021-22 के वित्त वर्ष में इसे घटाकर आवंटन 20.32 हजार करोड़ रुपयों का कर दिया गया है।

इसी प्रकार शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले स्कूली शिक्षा विभाग में आवंटन को 12.27 हजार करोड़ रूपये से घटाकर 9.42 हजार करोड़ रूपये कर दिया गया है, जबकि उच्च शिक्षा विभाग के आवंटन में करीब 600 करोड़ रुपयों की मामूली बढ़ोत्तरी की गई है।

डीएनटी समुदायों के लिए बजट में क्या है 

जैसा कि उपर उल्लेख किया गया है कि गैर-अधिसूचित, घुमंतू एवं अर्ध-घुमंतू समुदायों के लोगों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत विकास एवं कल्याणकारी बोर्ड को स्थापित किया गया है। इस बोर्ड की स्थापना बजट के तौर पर इस वर्ष के लिए 2020-21 के वित्त वर्ष के 1.24 करोड़ रुपयों की तुलना में इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये मुहैय्या कराया गया है। गैर-अधिसूचित घुमंतू जनजातियों के विकास के कार्यक्रम के लिए जहाँ चालू वित्त-वर्ष में 10 करोड़ रुपयों का आवंटन किया गया था, किन्तु 2021-22 वर्ष के लिए मंत्रालय का विस्तृत बजट इस योजना के लिए कोई जानकारी नहीं दर्शाता है।

लैंगिक आधार पर बजट में आवंटन  

केंद्र सरकार द्वारा जीबी आवंटन को लेकर जो आंकड़े मुहैय्या किये गये हैं उनमें तमाम मंत्रालयों द्वारा महिला सशक्तीकरण/विकास के लिए आवंटित आंकड़ों को दर्शाया गया है। इस वक्तव्य को दो हिस्सों में पेश किया गया है। भाग ए में उन योजनाओं और कार्यक्रमों को सूचीबद्ध किया गया है, जिसके 100% बजट को महिलाओं और बालिकाओं पर खर्च किया जाना है। भाग बी में उन योजनाओं और कार्यक्रमों को शामिल किया गया है, जिनमें से 30% से लेकर 99% हिस्से को महिलाओं एवं बालिकाओं के मद में खर्च किया जाना है। पिछले कई वर्षो से लैंगिक बजट, कुल बजट के 5% के आस-पास बना हुआ है और उसमें से कुल आवंटित राशि का 80% पार्ट-बी के हिस्से से आता है। यहाँ पर यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि जबसे लैंगिक बजट की शुरुआत हुई है, तभी से यह 5% के आस-पास बना हुआ है और इसे बढ़ाने को लेकर कोई भी सचेत प्रयास नहीं किया गया लगता है।

तालिका 3: कुल बजट में लैंगिक बजट का हिस्सा 

स्रोत: विभिन्न वर्षों के केन्द्रीय बजट से 

कुल बजट में से लैंगिक बजट की हिस्सेदारी महज 4.45% ही है, जो कि पिछले वर्ष के बजट से 0.3% कम है। 2017-18 के वित्त वर्ष में यह 5% से कुछ अधिक था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बजट में भी 5,000 करोड़ रूपये से अधिक की कटौती की गई है। इसी प्रकार से प्रधानमंत्री मात्री वंदना योजना और एकीकृत बाल विकास सेवा योजना जैसे मंत्रालय की योजनाओं में भी बजट में कटौती की गई है। जीबी का हिस्सा दर्शाता है कि चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों में तीव्र बढ़ोत्तरी देखने को मिली है, जो कि कोविड-19 लॉकडाउन के कारण महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम (मनरेगा) जैसी योजनाओं में बढ़ाये गए आवंटनों के परिणामस्वरूप देखने को मिली है। मनरेगा में जीबी 20,500 करोड़ रूपये से बढ़कर 37,166.67 करोड़ रूपये की हो गई थी।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए आवंटित राशि  

जैसा कि उपर उल्लेख किया गया है, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए की गई आवंटित राशि को 5000 करोड़ रुपयों से घटाकर 4,800 करोड़ रूपये कर दिया गया है। अल्पसंख्यक वर्ग के लिए बजट में शिक्षण योजनाओं के साथ-साथ कौशल विकास योजना, इन दोनों ही योजनाओं कटौती कर दी गई है। अल्पसंख्यकों के दृष्टिकोण से प्रधानमंत्री द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए निर्दिष्ट 15 सूत्रीय कार्यक्रमों की निगरानी का महत्व बढ़ जाता है। किन्तु इस बार का बजट इस पर कोई अंतर्दृष्टि प्रदान नहीं कराता है।

कुल मिलाकर कहें तो हाशिये पर मौजूद समूहों की दृष्टि से यदि 2021-22 के केन्द्रीय बजट का विश्लेषण करें तो यह दर्शाता है कि देश में करोड़ों की संख्या में हाशिये पर खड़े लोगों के लिए इस बजट में कुछ भी खास नहीं है। जिस प्रकार से विभिन्न वक्तव्यों में हाशिये के समूहों के लिए आवंटन किये जाने की बात रिपोर्ट की गई है, उसमें पहले की तुलना में कुछ भी खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। इन समूहों में से किसी के लिए भी किसी भी प्रकार की उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की गई है, और न ही बजट भाषण में उनके लिए कोई बड़ी घोषणा ही की गई है।

(लेखक बजट विश्लेषण एवं शोध केंद्र ट्रस्ट के संस्थापक निदेशक हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

https://www.newsclick.in/union-budget-2021-22-nothing-offer-mrginalised-communities

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