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यूपी: साढ़े चार सालों में मात्र 35 रुपए की बढ़ोत्तरी गन्ना किसानों के साथ 'धोखा' है!

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने गन्ना का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 370 रुपये करने का वादा किया था। लेकिन अब योगी आदित्यनाथ ने जो 350 के रेट की घोषणा की है, वो बीजेपी के चुनावी वादे से काफी कम है।
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किसान आंदोलन के बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार गन्ना किसानों के 'भले की बात’ का दावा रही है। सरकार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गन्ने के समर्थन मूल्य यानी एसएपी में मात्र 25 रुपए की बढ़ोत्तरी कर किसानों को लुभाने की कोशिश में जुट गई है। सरकार का कहना है कि इससे किसानों की आय में लगभग 8 फीसदी की वृद्धि होगी। लेकिन डीजल-उर्वरक और बिजली की महंगाई को देखते हुए किसान नेता इसे नाकाफी बता रहे हैं। तो वहीं विपक्ष इसे किसानों के साथ धोखा करार दे रहा है।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश देशभर में सबसे ज्यादा लगभग 38 फीसदी गन्ना पैदा करता है। ऐसे में पिछले 3 सालों में चीनी के दाम तो लगभग 50 फीसदी बढ़ गए, लेकिन चीनी को बनाने में इस्तेमाल होने वाले गन्ने के मूल्य में कोई फर्क नहीं आया। यूपी में गन्ने का रेट पिछले 3 साल से एक ही जगह पर बना हुआ था। अब चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार गन्ने का मामूली समर्थन मूल्य बढ़ाकर किसानों को लुभाने की कोशिश कर रही है।

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योगी सरकार ने साढ़े चार साल में केवल 35 रुपए बढ़ाए

इससे पहले 25 अगस्त को केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (CCEA) ने कृषि एवं लागत मूल्य आयोग की सिफारिश के बाद गन्ने की एफआरपी यानी उचित एवं लाभकारी मूल्य 5 रुपए कुंटल बढ़ाई थी। इसके बाद पंजाब सरकार ने 50 रूपए और हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने 12 रूपए की बढ़ोत्तरी करते हुए गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य यानी एसएपी 362 रुपए प्रति कुंटल किया। अब यूपी में योगी सरकार ने 25 रुपए बढ़ाकर इसे 350 रुपए प्रति कुंटल किया है, जो अभी भी पंजाब और हरियाणा से काफी कम है।

मालूम हो कि एफआरपी और एसएपी सरकारों की तरफ से किसानों के हक में बनाई गईं व्यवस्थाएं हैं। केंद्र और राज्य सरकारें गन्ने की फसल का एक न्यूनतम मूल्य तय करती हैं। इस मूल्य या इससे ऊपर ही चीनी मिलें गन्ने की खरीद करने को बाध्य होती हैं। जब केंद्र सरकार बढ़ती महंगाई और जरूरतों को देख कर शुगरकेन कंट्रोल ऑर्डर 1966 के तहत एक मिनिमम प्राइस तय करती है, तो उसे एफआरपी यानी Fair and Remunerative Price कहते हैं। साल 1970 से कुछ राज्यों की सरकारें भी अपने हिसाब से गन्ने का न्यूनतम मूल्य तय करती हैं। इसे स्टेट एडवाइजरी प्राइस या एसएपी कहा जाता है। इसका उद्देश्य गन्ना पैदावार करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करना और सही कीमत उपलब्ध करना है।

सरकार का क्या कहना है?

26 सितंबर, रविवार के दिन राजधानी लखनऊ में आयोजित एक किसान सम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने की घोषणा की। सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया कि प्रदेश सरकार गन्ना किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है। गन्ना मूल्य भुगतान में वृद्धि के निर्णय से किसानों की आय में लगभग 8 फीसदी की वृद्धि होगी।

सीएम योगी ने खुद कहा कि सरकार ने गन्ना मूल्य बढ़ाने का फैसला किया है। जिस गन्ने का रेट अभी तक 325 रुपए कुंटल मिल रहा था उसका अब 350 रुपए प्रति कुंटल की दर से भुगतान होगा। इसके अलावा सरकार ने तय किया है जो सामान्य गन्ने का जो 315 रुपए का भाव था उसमें भी 25 रुपए कुंटल की बढ़ोतरी होगी और 340 का रेट मिलेगा। इसके अलावा जो अनुपयुक्त गन्ना गन्ना है, जो मुश्किल से 1 फीसदी बचा है उसके रेट भी 25 रुपए कुंटल की बढ़ोतरी होगी। हमारी कोशिश है कि किसानों को उन्नत गन्ना बीज और तकनीकी मिले।

मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में गन्ने के राज्य समर्थित परामर्श मूल्य (एसएपी) को लेकर लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थीं। प्रदेशभर से आए किसानों को संबोधित करते हुए सीएम योगी ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील में चीनी उद्योग ठप हो गया था। महाराष्ट्र में आधे से ज्यादा चीनी मिलें बंद थीं, कर्नाटक में भी कुछ मिलें बंद हो गई थीं लेकिन यूपी सरकार ने अपनी सभी 119 मिलें चालू रखी थीं।

विपक्ष पर हमला और मुज़फ़्फ़रनगर दंगों का ज़िक्र

इस दौरान उन्होंने अपनी पूर्ववर्ती सरकारों पर भी हमला बोला और गन्ना किसानों की अनदेखी का आरोप लगाया। सीएम ने कहा कि बसपा के शासनकाल में 21 चीनी मिलें बंद की गईं और समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान 11 चीनी मिलें बंद कर दी गईं। जब हम सत्ता में आए, हमने बंद मिल को फिर से शुरू किया और गन्ना किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।

इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने मुजफ्फरनगर दंगों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों में जो लोग भी मारे गए, वो किसानों के बेटे थे। उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार में एक भी दंगा नहीं हुआ और अगर किसी ने दंगा करने की कोशिश की तो उसकी सात पीढ़ियां भरते-भरते खप जाएंगी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार के आने से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के गाय-भैंस चोरी हो जाते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है, प्रदेश में अवैध कसाईखानों को बंद कर दिया गया है।

ध्यान रहे कि केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके निशाने पर राज्य की योगी सरकार भी है। ऐसे में चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ की तरफ से की गई इस घोषणा को किसानों की नाराजगी दूर करने के कदम के तौर पर देखी जा रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को ध्यान में रखते हुए ही योगी आदित्यानाथ ने पराली जलाने के मामले में किसानों के ऊपर लगे मुकदमे वापस लेने की भी बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों के बकाया बिजली बिल पर कोई ब्याज नहीं लगेगा। 

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विपक्ष और किसान नेताओं ने क्या कहा?

गन्ना रेट बढ़ोतरी को विपक्ष और किसान नेताओं ने नाकाफी बताते हुए इसे किसानों के साथ मज़ाक करार दिया। समाजवादी पार्टी से लेकर कांग्रेस तक सबने योगी सरकार की इस घोषणा को चुनावी हथकंडा कहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्विट कर कहा, “ पहले किसानों के मान को गिराना… फिर नाम भर को दाम को बढ़ाना… भाजपा का ये चुनावी हथकंडा अब उप्र में नहीं चलनेवाला। भाजपा जाते-जाते गन्ना किसानों के बकाये का ब्याज न सही, मूल ही चुका दे। 2022 में सपा सरकार किसानों का सच्चा मान भी बढ़ाएगी व गन्ने की मिठास और दाम भी।"

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा, "भाजपा ने उप्र के गन्ना किसानों के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। 4.5 सालों में 35 रू की मामूली बढ़ोत्तरी के बाद अब गन्ना किसानों को मात्र 350 रू/क्विंटल देने की घोषणा हुई है, जबकि किसानों की लागत बहुत बढ़ चुकी है। उप्र के गन्ना किसानों को 400रू/क्विंटल से एक रुपया भी कम नहीं चाहिए।"

बसपा अध्यक्ष और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने गन्ना रेट बढ़ोत्तरी को बीजेपी की फेस सेविंग स्किम बताते हुए लिखा, “यूपी भाजपा सरकार पूरे साढ़े चार वर्षों तक यहाँ के किसानों की घोर अनदेखी करती रही व गन्ना का समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाया जिस उपेक्षा की ओर 7 सितम्बर को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में मेरे द्वारा इंगित करने पर अब चुनाव से पहले इनको गन्ना किसान की याद आई है जो इनके स्वार्थ को दर्शाता है।"

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, “केन्द्र व यूपी सरकार की किसान-विरोधी नीतियों से पूरा किसान समाज काफी दुःखी व त्रस्त है, लेकिन अब चुनाव से पहले अपनी फेस सेविंग के लिए गन्ना का समर्थन मूल्य थोड़ा बढ़ाना खेती-किसानी की मूल समस्या का सही समाधान नहीं। ऐसे में किसान इनके किसी भी बहकावे में आने वाला नहीं है।"

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गन्ना मूल्य में की गई 25 रुपए कुंटल की घोषणा नाकाफी ही नहीं किसानों के साथ मजाक भी है। तीन सरकारों के कार्यकाल की यह यह सबसे कम वृद्धि है। किसान इस मजाक को भूलेगा नहीं। राकेश टिकैत ने एक दिन पहले 400 रुपए प्रति कुंटल की मांग करते हुए कहा था अगर सरकार ऐसा नहीं करेगी तो किसान विरोध करेगा।

टिकैत ने अपने बयान में कहा, "उत्तर प्रदेश के बराबर के राज्य (हरियाणा) में गन्ना 362 रुपए है। बिजली दरें भी कम हैं। उत्तर प्रदेश की गन्ना मूल्य परामर्शदात्री समिति द्वारा उत्तर प्रदेश में गन्ने पैदा करने की उत्पादन लागत 350 रुपए बतायी थी। भाजपा के सांसद वरुण गांधी ने भी गन्ना मूल्य 400 रुपए कुंतल किये जाने की मांग करते हुए सरकार को पत्र लिखा था।"

उन्होंने आगे कहा, "किसान पहले से ही कह रहे है कि बीजेपी कॉरपोरेट की सरकार है किसान हितों से इसका कोई वास्ता नही है। साढ़े चार साल पहले अपने चुनावी घोषणा पत्र में गन्ने का रेट 370 और 14 दिन में गन्ने का भुगतान कराने का वादा करने वाली यूपी सरकार केवल जुमलेबाज सरकार ही साबित हुई और बरगलाकर किसानों का वोट लेकर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया। देश में किसान आंदोलन की भी परवाह न कर बीजेपी सरकार ने किसानों के पेट पर लात मारी है इसका जवाब किसान और मजदूर बिरादरी चुनाव में जरूर देगी।"

समर्थन मूल्य के साथ-साथ भुगतान भी बड़ी समस्या

वैसे गन्ना किसानों के लिए समर्थन मूल्य के साथ-साथ भुगतान की समस्या भी है, जिसेे सरकार देख कर भी अनदेखा कर देती है। मिलें गन्ना तो खरीद लेती हैं, लेकिन उसके भुगतान सालों-साल अटके पड़े रहते हैं। इसी साल 9 फरवरी को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता, मामले खाद्य एवं सार्वजानिक वितरण मंत्रालय ने बताया था कि 31 जनवरी 2021 तक देशभर की चीनी मिलों पर किसानों का 16 हजार 883 करोड़ रुपए बकाया है। अकेले चालू सीजन 2020-21 में सबसे ज्यादा यूपी की चीनी मिलों पर 7 हजार 555.9 करोड़ रुपए बाकी है।

यूपी समेत पूरे देश में गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के लिए एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी को यूपी और महाराष्ट्र समेत 15 गन्ना उत्पादक राज्यों को नोटिस जारी किया था। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के सामने दायर याचिका के मुताबिक 10 सितंबर 2020 तक देशभर के गन्ना किसानों का करीब 15,683 करोड़ रुपए बकाया है। इसमे सबसे अधिक 10,174 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश के किसानों का है। याचिका में कहा गया है कि गन्ने का भुगतान न होने से किसान आत्महत्या को मजबूर हो जाते हैं। बकाए का भुगतान न करने वाली चीनी मिलों को डिफाल्टर घोषित कर एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है।

बीजेपी राज में सबसे कम हुई गन्ना मूल्य में बढ़ोत्तरी

गौरतलब है कि साल 1999 के बाद की बाद करें तो अब तक यूपी में बीजेपी की सरकार तकरीबन 6 साल रही है। इन 6 सालों में एसएपी सिर्फ 20 रुपए ही बढ़ा है। एक साल में गन्ने की एसएपी में सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी साल 2012-13 में देखी गई थी। उस साल गन्ने की कीमत 40 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ी थी. यह समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार के दौरान हुआ था।

बीजेपी की सरकार ने 1999 से 2001 के बीच भी सत्ता में रहने के दौरान गन्ने की एसएपी में मात्र 10 रुपए का इजाफा किया था। समाजवादी पार्टी के 8 साल के शासनकाल में गन्ने पर एसएपी कुल 95 रुपए बढ़ी है। हालांकि गन्ने की सबसे ज्यादा कीमत बढ़ाने वाली सरकार की बात की जाए तो बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे है। बसपा के 7 साल के कार्यकाल में एसएपी 120 रुपए बढ़ा।

बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता में एंट्री के साथ ही 2017 में गन्ने की एसएपी में 10 रुपए प्रति कुंटल की बढ़ोतरी की थी, जिसके बाद से अब करीब 3 वर्ष बाद चुनाव से ठीक पहले सरकार ने 25 रुपए बढ़ाकर ये साबित कर दिया है सरकार को वोट के समय ही गन्ना किसानों की याद आती है। हालांकि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने गन्ना का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 370 रुपये करने का वादा किया था। अब योगी आदित्यनाथ ने जो घोषणा की है, वो बीजेपी के चुनावी वादे से कम है।

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