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पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा

ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
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राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वोत्तर के स्कूलों में डिजिटल शिक्षा की एक निराशाजनक तस्वीर सामने आई है जहां 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान अपनी पढ़ाई के लिए कोई डिजिटल उपकरण उपलब्ध नहीं था।

ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है जहां 48 फीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।

अरुणाचल प्रदेश में 43% छात्रों के पास घर में डिजिटल डिवाइस नहीं थी। इसी तरह के आंकड़े मिजोरम और नागालैंड से रहे जहां क्रमशः 39 और 37% के पास डिजिटल डिवाइस नहीं थे। त्रिपुरा में 46% छात्रों के पास कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था।

असम में सर्वेक्षण की गई सभी कक्षाओं के 58% छात्रों ने महामारी के दौरान चिंता और भय की बात बताई जबकि अरुणाचल में 61% ने इसी तरह की मनोदशा को व्यक्त किया। मणिपुर और मेघालय में 59 फीसदी छात्र भी इसी तरह के अनुभव से गुजरे। अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो मिजोरम (54%), नागालैंड (62%) और त्रिपुरा (59%) में भी छात्रों ने चिंता और भय की बात बताई।

संयोग से असम में केवल 16% शिक्षकों के पास पर्याप्त शिक्षण सामग्री और आपूर्ति है और इतना ही प्रतिशत स्कूलों के पास पर्याप्त ऑडियो-विजुअल संसाधन हैं। दोनों श्रेणियों के लिए मणिपुर के भी इसी तरह आंकड़े 16% हैं। अन्य राज्यों की बात करें तो मेघालय में क्रमशः सबसे कम 10 और 12%, मिजोरम में 14 और 11%, नागालैंड में 13 और 15% और त्रिपुरा में 19 और 28% हैं। अरुणाचल में केवल 17% शिक्षकों के पास पर्याप्त शिक्षण सामग्री और आपूर्ति है और 23% स्कूलों में पर्याप्त ऑडियो-विजुअल संसाधन हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में असम के लगभग 6,000 स्कूलों ने इस सर्वे में भाग लिया जिसमें राज्य के 1.7 लाख छात्र और लगभग 27,000 शिक्षक शामिल थे।

कक्षा तीन और पांच के छात्रों के प्रदर्शन में एनएएस 2017 की तुलना में असम में भाषा, गणित और पर्यावरण अध्ययन में गिरावट आई है। हालांकि प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से बेहतर था।

कक्षा तीन के भाषा मूल्यांकन में आंकड़े 350 से गिरकर 326 पर पहुंच गया जबकि गणित की बात करें तो इसमें भी अंक 337 से घटकर 314 हो गया। पर्यावरण अध्ययन में भी अंक 331 से गिरकर 313 हो गया।

कक्षा पांच के भाषा के प्रदर्शन में 322 से गिरकर 312, गणित में 333 से 291 और पर्यावरण अध्ययन में 327 से 291 पर आ गया।

निचले स्तर की प्राथमिक कक्षाएं (पांचवीं कक्षा तक) महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुई थीं क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के सीमित पहुंच के चलते शिक्षकों को छात्रों से जुड़ने के लिए संघर्ष करना पड़ा था।

वहीं राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2021 के अनुसार देश भर के शैक्षनिक प्रदर्शन की बात करें तो पंजाब और राजस्थान को छोड़कर देश भर के स्कूलों में शैक्षणिक प्रदर्शन वर्ष 2017 में दर्ज किए गए स्तरों से खिसक कर नीचे चला गया है। एनएएस ने पाया कि महामारी के चलते पैदा हुए व्यवधानों के कारण पढ़ाई-लिखाई में गैप और बढ़ा है। ज्ञात हो कि देश भर में 720 जिलों के 1.18 लाख स्कूलों में ये सर्वेक्षण किए गए।

तीसरी कक्षा के गणितीय व भाषा कौशल और पर्यावरण विज्ञान की वैचारिक समझ का परीक्षण किया गया। प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश द्वारा इन विषयों में हासिल किए गए अंकों का कुल योग प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया गया जो पंजाब और राजस्थान को छोड़कर एनएएस के 2017 के सर्वे में दर्ज राष्ट्रीय औसत से कम था। केरल जैसे कुछ राज्यों ने 2017 की तुलना में गणित के स्कोर में सुधार किया लेकिन कुल स्कोर कम रहा। केरल, राजस्थान और पंजाब सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले प्रदेश के रूप में उभरे जबकि तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ निचले पायदान पर रहे

कक्षा पांचवीं के स्तर पर भी गणितीय व भाषा कौशल और पर्यावरण विज्ञान की अवधारणात्मक समझ का परीक्षण किया गया। इसके परिणाम बहुत अलग नहीं थे। पंजाब और राजस्थान ने 2017 के राष्ट्रीय औसत से ऊपर स्कोर किया है। अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जिनमें जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल है जिसने बेहतर प्रदर्शन किया वह भी 2017 के राष्ट्रीय स्कोर से नीचे है। इस श्रेणी में तेलंगाना, मेघालय और छत्तीसगढ़ ने खराब प्रदर्शन किया।

कक्षा आठवीं के लिए भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की समझ का परीक्षण किया गया। पंजाब, राजस्थान, चंडीगढ़ और हरियाणा ने 2017 के राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया। मेघालय, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश निचले पायदान पर रहे।

छात्रों के सीखने के स्तर का मूल्यांकन विभिन्न संकेतकों पर किया गया जो अलग-अलग ग्रेड में अलग-अलग थे।

उदाहरण के लिए कक्षा तीन के छात्रों को कम्प्रिहेंशन के साथ छोटे पाठ पढ़ने और तीन अंकों की संख्याओं के जोड़ और घटाव करके दैनिक जीवन की सरल संख्यात्मक समस्याओं को हल करने के लिए कहा गया था।

आठवीं कक्षा के छात्रों को कई गणितीय अनुप्रयोगों के बीच वर्ग, घन, वर्गमूल और संख्याओं के घनमूल के मानों की गणना करने के लिए कहा गया था। संविधान के तहत मौलिक अधिकारों के उनके ज्ञान और विशिष्ट परिस्थितियों में संरक्षण और पदोन्नति का भी जांच की गई।

ये निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं क्योंकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शिक्षा मंत्रालय द्वारा निर्देशित किया गया जिसने नवंबर में तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं कक्षा के 34 लाख छात्रों के बीच सर्वेक्षण किया ताकि प्रदर्शन के आधार पर जिला-स्तरीय रणनीति तैयार की जा सके।

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