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नकदी बादशाह है, लेकिन भाजपा को यह समझ नहीं आता

क्या मौजूदा नकदी की कमी लोगों को इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की ओर धकेलने के लिए चली गयी चाल है?
cash crunch

जबकि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक नकदी की कमी के सबंध में जवाब देते हुए खुद को गांठों में बाँध रहा है और कोई संतोषजनक जवाब नहीं डे पा रहा है कि भारत भर में नकदी का  संकट क्यों है, उभरते तथ्यों से पता चलता है कि मोदी सरकार, अभी भी पहले से परेशान लोगों को नकद रहित लेनदेन को बढाने की कोशिश कर रहा है। नकदी की कमी के वर्तमान संकट के लिए यह एकमात्र स्पष्टीकरण हो सकता है – यह ऐसी घटना है जो दुनिया के किसी भी देश में नहीं सुनी गयी है।

ये कुछ तथ्य हैं। एटीएम उद्योग परिसंघ के अनुसार) - सभी निजी कंपनियों को मिलाकर बना एक निकाय जो बैंकों से नकदी लेते हैं और एटीएम में डालते हैं - पिछले कुछ हफ्तों में बैंकों द्वारा द्वारा दिए गए नकद में अचानक और अस्पष्टीकृत कमी आई है।

 "मार्च के अंत तक, बैंक हमें उस इंडेंट का 90 प्रतिशत हिस्सा देते थे जो हम उठाते थे। इस महीने की शुरुआत के बाद से इसमें 30 प्रतिशत तक की गिरावट है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में भारी कमी आई है। इकोनॉमिक टाइम्स के हवाले से भुगतान कंपनी एफएसएस के प्रबंध निदेशक वी बालासुब्रमण्यम ने कहा, "हमें अभी संकट की वजहों का पता लगाना बाकी है, लेकिन ऐसा लगता है कि बैंकों को आरबीआई से पर्याप्त नकदी नहीं मिल रही है।"

तथ्य#1 : सरकार ने नकद आपूर्ति में कटौती की।

इस बीच, एनसीआर निगम के प्रबंध निदेशक नवराज दस्तुर के अनुसार, एटीएम से नकदी निकासी बढ़ी है, जो भारत में लगभग 50 प्रतिशत एटीएम संचालित करती है। उन्होंने कहा, "लोग एटीएम से अधिक नकद निकाल रहे हैं। अब, यह लेनदेन के करीब 3,500-4,000 रुपये प्रति ट्रांजेक्शन है, जोकि नोटबंदी से पहले 2,500-3,000 होता था और यह भारी वृद्धि है।"

याद रखें: यह फसल बौने और फसल काटने के बाद का मौसम है जिसमें धन का लेनदेन बढ़ता  हैं, मजदूरी का भुगतान किया जाता है, उपज को बेचा जाता है, आदि। यह तथ्य सभी जानते हैं, और यह समय हमेशा से ऐसा ही रहा है, फिर भी सरकार जानकारी के बावजूद इस समय एटीएम को नकद आपूर्ति कम करने का फैसला किया गया था।

तथ्य #2 : फसल के मौसम की वजह से नकद की मांग बढ़ रही थी।

अब ई-भुगतान परिदृश्य पर एक नज़र डालें। आरबीआई भुगतान प्रणाली संकेतक डेटा (फरवरी 2018 तक उपलब्ध) स्पष्ट रूप से दिखाता है कि प्रधानमंत्री मोदी के दोहराए गए उपदेशों के बावजूद भारत में विभिन्न प्रकार के ई-भुगतान नहीं किए गए हैं। मार्च 2017 के बीच (नवंबर 2016 के विनाशकारी नोटबंदी के पांच महीने बाद) और फरवरी 2018 के दौरान, इलेक्ट्रॉनिक भुगतान में 17 प्रतिशत से अधिक की कमी आई। सभी वृद्धि - कुछ 38 प्रतिशत - नवंबर 2016 से मार्च 2017 के नोटबंदी के महीनों के दौरान हुई थी। उसके बाद लोग वापस नकद का उपयोग करने लगे।

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तथ्य # 3 : लोग नकद पसंद करते हैं ई-भुगतान प्रणाली नहीं।

तो इन तीनों तथ्यों को एक साथ रखें और एक सरकार के प्रमुख घटक को जोड़ें तो पायेंगे सरकार लोगों के जीवन के बारे में कोई चिंता नहीं है - और हमारे पास क्या है? ई-भुगतान स्थिर हो रहे हैं, लोग तेजी से नकदी का इस्तेमाल कर रहे हैं - और सरकार, ठीक है जब अधिक नकद की जरूरत है अचानक अचानक एटीएम की आपूर्ति में कमी आ जाती है। इसका केवल एक ही स्पष्टीकरण हो सकता है: यह लोगों को नकद रहित लेनदेन को बढ़ाने और उसे लोगों द्वारा गले लगाने के लिए मजबूर करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था। कोई वास्तव में नहीं जानता है, लेकिन कई लोग अनुमान लगा रहे हैं कि ऐसे ई-भुगतान निजी ऑपरेटरों जैसे पीईटीएम और यहां तक कि रिलायंस के बीच गठबंधन है जिन्हें सरकार दिलों जान से चाहती हैं। अपने व्यापार को बढ़ाने में मदद करें। वे नोटबंदी के बाद “मुक्ति दिवस” के उत्साह को याद करते हैं!

वित्त मंत्री जेटली (मांग में अचानक और असामान्य वृद्धि) को जिम्मेदार बताया जो सभी अन्य आधे पके छद्म स्पष्टीकरण से ज्यादा कुछ नहीं है, आरबीआई (मुद्रा नोटों का असमान वितरण को) और अन्य इसे एक सामान्य मसला समझकर लोगों को समझाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। यह अक्षमता निश्चित रूप से नोटबंदी के भयानक सप्ताहों की याद दिलाती है जब मोदी सरकार ने अपने मूर्खतापूर्ण कदम को बड़ी उपलब्धि बताया और इसे देश में बड़ी बढोतरी के पैगाम का रास्ता बताया था. आज नकदी की कमी से हालत और ज्यादा खराब हो गए हैं और इसके तार #नोटबंदी से जुड़े हैं I

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