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नवउदारवाद के “फायदे”: बढती आर्थिक असमानता

वैश्विक आर्थिक असमानता पर ऑक्सफेम द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार 2016 तक वैश्विक जनसँख्या के 1 प्रतिशत व्यक्तियों के पास दुनिया में मौजूद संपत्ति का 50 प्रतिशत हिस्सा होगा।  ऑक्सफेम इंटरनेशनल की कार्यकारी निर्देशक विनी ब्यान्यिमा ने कहा कि, “ क्या हम वाकई उस दुनिया में जीना चाहते हैं जहाँ 1 प्रतिशत जनसँख्या के पास बाकी बचे लोगो के बराबर धन हो?”

यह आर्थिक असमानता चौका देने वाली है। अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही  है।

क्रेडिट सुइस्से डाटा, जिनपर ऑक्सफेम की रिपोर्ट आधारित है, के अनुसार 2009 के बाद से उस 1 प्रतिशत जनसँख्या की संपत्ति में लगातार इज़ाफा हुआ है।  2009 से 2014 के बीच इनकी संपत्ति विश्व की संपत्ति के कुल 44 प्रतिशत से बढ़कर 48.2 प्रतिशत हो गई है। इसी के अनुसार 2016 तक इनके पास उतना धन होगा जितना बाकी 99 प्रतिशत के पास यानी वैश्विक संपत्ति का 50 प्रतिशत।

2008 की आर्थिक मंदी के बाद से इनके धन में लगातार इज़ाफा हो रहा है जबकि इसके विपरीत मंदी से पहले इनके धन में गिरावट देखने को मिली थी। 2000 से 2009 के बीच में इस 1 प्रतिशत के पास मौजूद संपत्ति 48.7 प्रतिशत से गिरकर 44 प्रतिशत पर आ गई थी पर उसके बाद इसमें लगातार वृद्धि हुई  है।

ऑक्सफेम रिपोर्ट ,फोर्ब्स द्वारा प्रकाशित विश्व के सबसे अमीर वर्ग की संपत्ति के तुलना निचले 50 प्रतिशत जनसँख्या के धन से करती है।  2004 से 2009 के बीच विश्व के सबसे अमीर 80 लोगो की संपत्ति दुगनी हो गई है जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगो की संपत्ति इस समय में कम हुई है। रिपोर्ट के अनुसार 2014 में इन 80 लोगो की कुल संपत्ति 1.9 ट्रिलियन डॉलर थी जो निचले वर्ग की कुल जनसँख्या (3.5 बिलियन) की संपत्ति के बराबर है। 2008 में यही धन 388 सबसे अमीर लोगो के पास था जो अब 80 लोगो के हाथ में है। इससे साफ उभर के आता है कि किस प्रकार धन एक उच्च तबके के हाथ में सिमटता जा रहा है।

स्त्रोत: Oxfam

भारत की स्थिति में

भारत में आर्थिक असमानता पिछले 15 सालों में लगातार बढती रही है। क्रेडिट सुइस्से के अनुसार भारत के उच्च 1 प्रतिशत जनसँख्या के पास देश का 49 प्रतिशत धन है। 2000 से 2014 के बीच इनकी कुल संपत्ति 36.8 प्रतिशत से बढ़कर 49 प्रतिशत हो गई है। यह किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक है।

क्रेडिट सुइस्से रिपोर्ट के अनुसार विश्व के अगर सभी भोगौलिक क्षेत्रो पर नज़र डाली जाए तो उच्च 1 प्रतिशत की आर्थिक असमानता के मामले में भारत अव्वल स्थान पर है।  भारत के उच्च 1 प्रतिशत के पास 49 प्रतिशत धन है जबकि अफ्रीका के मामले में यह 46 %, एशिया पैसिफिक में 40.4%, चीन में 37.2 प्रतिशत , यूरोप में 31.1 %, लातिन अमरीका में 40.5 % और उत्तरी अमरीका में 37.5 प्रतिशत है।

आकड़ें और चौका देते हैं जब हम नजर डालें कि भारत के 15 सबसे अमीर व्यक्तियों के पास उतना धन है जितना 62.5 करोड़ जनता के पास है।

स्त्रोत: Credit Suisse Wealth Data Book

आर्थिक विकास पर किसका?

पिछले 10 सालों में भारत की निजी संपत्ति 1.6 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक बढ़ी है। इस 1.6 ट्रिलियन का 1 ट्रिलियन, जनसँख्या के उच्च 1 प्रतिशत लोगो के पास गया है। अगले 9 प्रतिशत जनसँख्या के पास 350 बिलियन डॉलर(22 %) की संपत्ति है जबकि बची 90 प्रतिशत जनसँख्या के पास 320 बिलियन डॉलर( 20 %) है।

स्त्रोत: Credit Suisse Wealth Data Book

परिणाम अनुसार उच्च 1 प्रतिशत लोगो की संपत्ति में लगातार इज़ाफा हुआ है। 2000 से 2014 के बीच उच्च 1 प्रतिशत की संपत्ति 12.2 प्रतिशत बढ़ी है जबकि अगले 9 प्रतिशत जनसँख्या की संपत्ति में 4.1 % की और बाकी 90 प्रतिशत की संपत्ति में 8.1 % की गिरावट आई है। एक तरफ जब वे 1 प्रतिशत लोग धन इकठ्ठा कर रहे थे तभी दुसरे तरफ भारत में भूखे व्यक्तियों की संख्या 186 मिलियन से बढ़ कर 191 मिलियन पहुँच गई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत की जनसँख्या विश्व की जनसँख्या का 17 प्रतिशत है पर यहाँ विश्व में कुल भूखे लोगो का 25 % हिस्सा रहता है।

ये आकड़ें साफ़ दिखाते हैं कि पिछले 15 साल में नवउदारवादी नीतियों से फायदा किसे मिला है। 

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