तेलंगाना: वित्तीय स्थिति की उदासीन तस्वीर
तारीख 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश के आधिकारिक विभाजन के बाद, तेलंगाना ने के. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार के तहत वर्ष 2014-15 में 7,500 करोड़ रुपये के अतिरिक्त राजस्व के साथ शुरू की थी। चार साल बाद कई रिपोर्ट बताती हैं कि धोखाधड़ी और गबन ने राज्य की वित्तीय प्रणाली के लिए खतरे खड़े कर दिए हैं।
न्यूज़क्लिक पहले बता चुका है कि टीआरएस शासन के तहत पिछले चार वर्षों में शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र पर राज्य ने कैसे काम किया है। जब राज्य में वित्त के प्रबंधन की बात आती है तो राज्य सरकार में अनियमितताओं के रिकॉर्ड टूट जाते हैं। शायद बढ़ते राजस्व की भूलभुलैया को पेश करने के चक्कर में, सरकार ने राजस्व अतिरिक्त/अधिशेष को 2016-17 में 6,778 करोड़ रुपये बताया था, जबकि वास्तविक राजस्व अधिशेष केवल 1,386 करोड़ रुपये था, इस साल की शुरुआत में जारी एक सीएजी (भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया है।
इसी तरह, लेखा परीक्षकों ने पाया कि 2016-17 के दौरान राज्य के राजकोषीय घाटे को 2,500 करोड़ कम करके दिखाया गया है, यह लेखांकन का बहुत ही गंभीर उल्लंघन।
राज्य ने बजट अनुमानों और वास्तविक व्यय के बीच असमान अंतर को बनाए रखा है। 2016-17 के दौरान, पूँजीगत व्यय का अनुमान लगाया गया 29,313 करोड़ रुपये, जो वास्तव में 33,371 करोड़ रुपये हो गया - लगभग 4,000 करोड़ अतिरिक्त रुपयेI इसी तरह 2014 से 2016 के बीच भी राज्य ने अपने आबंटित 6,184 करोड़ रुपये से ज़्यादा व्यय कियाI इस पर सवाल उठता है कि यह भारी व्यय कहां गया?
सीएजी ने इंगित किया है कि खराब परियोजना कार्यान्वयन और धन के उपयोग न किये जाने के कारण, सरकार की कई नीतिगत पहल या तो पूरी नहीं की गयी हैं, या फिर उन्हे आंशिक रूप से निष्पादित किया गया है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति उप-योजनाओं के तहत आवंटित धन पर विचार करें। टीआरएस सरकार इन महत्वपूर्ण योजनाओं के तहत आवंटित धन के बड़े हिस्से का उपयोग करने में असफल रही है। 2016-17 के दौरान, अनुसूचित जाति उप-योजना की लगभग 60 प्रतिशत निधि और एसटी उप-योजना की 57 प्रतिशत निधि को बिना इस्तेमाल किए छोड़ दिया गया। यह कहानी सभी राज्यों में उप-योजनाओं के मामले में एक जैसी है।
बजट और खर्च
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 के दौरान तेलंगाना के विकास सम्बन्धी व्यय, कुल व्यय का 72.8 प्रतिशत था। 2016-17 में यह थोड़ा बढ़कर 75.4 प्रतिशत हो गया। 2017-18 के बजट अनुमानों के मुताबिक यह 74.9 प्रतिशत हो गया है।
स्रोत: रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया
जैसा कि उपरोक्त तालिका बताती है, राज्य ने महत्वपूर्ण शिक्षा क्षेत्र पर अपने व्यय को कम कर दिया है, जबकि चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के कुल खर्च में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है, हालांकि इसका हिस्सा लगभग 4 प्रतिशत रहा है। 2017-18 के दौरान सरकार ने सामाजिक क्षेत्र के व्यय पर कुल व्यय का 45.7 प्रतिशत खर्च किया था, लेकिन 2018-19 के बजट अनुमानों में इसमें 42.6 प्रतिशत तक की गिरावत आई है।
कर्ज़ और ब्याज़ का भुगतान
तेलंगाना को कुल ऋण का 49 प्रतिशत चुकाना होगा, जो करीब अगले 7 वर्षों में 56,388 करोड़ रुपये बैठती है, सीएजी ने इसका खुलासा किया है। राज्य सरकार का कर्ज वर्षों से काफी हद तक बढ़ गया है। जबकि ऋण रुपये था। जबकि 2015 में 72,660 करोड़ रुपये था, यह अब 2018 में बढ़कर 1,53,200 करोड़ रुपये हो गया है। राज्य सरकार ने 2016-17 में 21,860 करोड़ रुपये और 2017-18 में 24,600 करोड़ रुपये बाजार से उधार उठाने के माध्यम से कर्ज़ की राशि बढ़ा दी है। ऋण अदा करने में वृद्धि ने ब्याज़ भुगतान पर राज्य के व्यय में वृद्धि कर दी है। राज्य सरकार ने 2015-16 में ब्याज़ भुगतान पर 7,557.5 करोड़ रुपये और 2016-17 में 7,706.4 करोड़ रुपये खर्च किए और 2017-18 के लिए बजट अनुमानों के अनुसार, कुल ब्याज़ भुगतान 11,138.6 करोड़ रुपये हो जाएगा।
टीआरएस शासन ने गैर-निष्पादित निवेश पर सार्वजनिक धन कओ निवेश करने की प्रवृत्ति भी शुरू कर दी है। 2016-17 के दौरान, राज्य सरकार ने वैधानिक निगमों, सरकारी कंपनियों, संयुक्त स्टॉक कंपनियों और सहकारी समितियों में अपने निवेश पर 0.54 प्रतिशत की कम वापसी हुयी। इन निवेशों को मुख्य रूप से 7.4 प्रतिशत की ब्याज़ पर उधार के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था, जो अब बढ़कर 2016-17 में 13,075 करोड़ रुपये हो गया है।
चूंकि प्रमुख संकेतक ऊपर दर्शाए गए हैं, टीआरएस शासन के तहत सबसे कम उम्र वाले राज्य को पहले से ही अपने अस्तित्व के पहले चार वर्षों में वित्तीय चूक की जटिलताओं में उलझा दिया है।
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