चुनाव आचार संहिता : आपके अधिकार और ‘उनकी’ ज़िम्मेदारी
किसी भी तरह के चुनाव कुछ नियमों में बंधकर लड़े जाते हैं। कहने वाले कहते हैं कि अगर नियम के भीतर रहते हुए चुनाव लड़ा जाए तो चुनाव का असल मकसद पूरा होता है। हमारा लोकतंत्र मजबूत होता है। चुनाव के बहुत सारे नियम हैं, जिसमें सबसे अहम है मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी आदर्श आचार संहिता। ये क्या है, क्यों है, आइए हम समझने की कोशिश करते हैं।
मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट क्या है?
मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट एक तरह का ऐसा दस्तावेज है, जिसपर सभी राजनीतिक दलों की सहमति होती है। सामान्य भाषा में समझें तो पॉलिटिकल पार्टी अपने बरताव पर खुद ही नियंत्रण करने की प्रतिबद्धता जाहिर करती है। समय-समय खुद ही इसमें सुधार करते रहते हैं। भारत की पोलिटिकल पार्टी द्वारा जनतंत्र बचाये रखने के लिए किया गया यह सबसे बड़ा योगदान है। इस योगदान की अहमियत को समझने के लिए जरा इसे ऐसे सोचिये कि तब क्या होता, जब सरकार की कुर्सी संभालने वाली पार्टी चुनाव के दौरान ही सारी योजनाओं को घोषित करने लगती।और यह कहती कि सबका जन धन अकाउंट खुलेगा और आकउंट में पैसे भेजे जायेंगे। तब क्या होता? इन्हीं हथकंडो से बचने के लिए मॉडल कॉड ऑफ़ कंडक्ट लागू होता है। यानी राजनीतिक दल चुनावों के दौरान इस तरह से बरताव करें कि लेवल प्लेइंग फील्ड बना रहे। यही मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट क गहरा अर्थ होता है कि सभी राजनीतिक दल रचनात्मक तरीके से चुनाव प्रचार करे लेकिन ऐसे बर्ताव न करें और न ही ऐसा हथकंडा अपनाएं जिससे एक बराबर जमीन पर चुनाव लड़ने की सम्भावना ही खत्म हो जाए।
इस समय सरकार के अधिकार सीमित हो जाते हैं और नौकरशाहों का प्रशासन सक्रिय हो जाता है। यानी जिलाधिकारी जिला निर्वाचन अधिकारी बनकर प्रशासन को नियंत्रित करने की भूमिका में आ जाता है और सरकार की सारी भूमिकाएं शांत हो जाती है। लोगों को यह लगता है कि मॉडल कॉड ऑफ़ कंडक्ट केवल कैंडिडेट और पोलिटिकल पार्टी पर लागू होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। लोकसभा चुनावों के दौरान सभी तरह की संस्थाएं, कमेटी, केंद्र सरकार के पैसे पर पूरी या आधी तरह से चल रहे किसी भी तरह के कमीशन या कॉर्पोरेशन पर लागू होता है। यानी जल बोर्ड, ट्रांसपोर्ट, इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन या किसी भी तरह के डेवलपमेंट ऑथोरिटी पर लागू होता है। केवल यहीं तक नहीं पोलिटिकल पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थकों पर भी मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होता है। कहने का मतलब यह है कि ऐसा नहीं हो सकता कि नेता जी पैदल-पैदल चलें और पीछे से उनके समर्थक वोट बटोरने के लिए पैसा बांटते चलें। यानी न ही किसी तरह के ओर्गनइजेशन और न ही किसी तरह के समर्थक ऐसा काम कर सकते हैं, जिससे चुनावों के दौरान बराबरी के अधिकार यानी लेवल प्लेइंग फील्ड को किसी तरह का नुकसान पहुंचे। मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट उस दिन से लागू हो जाता है, जिस दिन चुनावों की तारीख़ों की घोषणा हो जाती है। अगर आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव हैं तो पूरे भारत में कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होता है और अगर राज्य का चुनाव है तो पूरे राज्य में कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होता है।
इस दैरान राजनीतिक दल या कैंडिडेट क्या कर सकते हैं और क्या नहीं?
1.इस दौरान जनता को प्रभावित करने वाली कोई नई नीति या योजना नहीं लागू की जा सकती है। लेकिन बहुत अधिक जरूरी हो तो ऐसा कुछ चुनाव आयोग की इजाजत के बाद ही किया जा सकता है। जैसे कोई आपदा यानी भयंकर बाढ़ या और कोई मुश्किल हो गई हो तो पैसे की मदद तभी की जाएगी जब चुनाव आयोग इजाजत देगा।
2. जाति और समुदाय के भावनाओं को आधार बनाकर कोई भी अपील नहीं की जा सकती है।
3. ऐसी कोई बयानबाजी नहीं की जायेगी जिसका जुड़ाव पब्लिक लाइफ से न हो। यानी प्राइवेट लाइफ से जुडी बातें कहना भी एक तरह से मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन करना है।
4.किसी भी तरह के धार्मिक स्थल यानी मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा का इस्तेमाल पोलिटिकल पार्टी द्वारा नहीं किया जाएगा। यानी ऐसा नहीं हो सकता है इन धार्मिक स्थलों पर जमा होने वाली भीड़ के सामने जाकर चुनाव प्रचार किया जाए।
5.चुनाव में पारदर्शिता बनी रहे इसलिए पोलिटिकल पार्टी और इनके दफ्तरों को संभालने वाले लोगों को बड़े अमाउंट वाले नकदी लेन-देन करने की इजाजत नहीं होती है। केवल 20 हज़ार से कम राशि का ही नकदी में लेन-देन किया जा सकता है। लेकिन ऐसा होता है क्या? हमने तो पैसों से भरी गाड़ियों के जरिये चुनावों में पैसा पानी की तरह बहते देखा है।
6.चुनाव के दौरान शराब बांटने की इजाजत नहीं होती। लेकिन भारत का शायद ही ऐसा कोई चुनाव हो जो बिना शराब बांटे पूरा होता हो। चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर पकड़ी जाने वाली शराब इसका सुबूत है।
7. लाउडस्पीकर लगाकर चुनाव प्रचार करने की इजाज़त इलाके से जुड़े इस काम के लिए निर्धारित सरकारी अफसर से लेनी पड़ती है। और लाउडस्पीकर लगाकर चुनाव प्रचार करने की इजाज़त अब केवल सुबह छह बजे से लेकर रात दस बजे तक होती है।
8.इसकी भी इजाज़त नहीं होती कि किसी पार्टी की सभा चल रही हो और दूसरी पार्टी उसे अपनी सभा बनाकर भाषण करने लग जाए। या किसी दीवार पर किसी पार्टी या कैंडिडेट का पोस्टर या झंडा लगा हो, उसे फाड़कर अपना पोस्टर या झंडा लगा दिया जाए।
आचार संहिता के तहत क्या-क्या किया जा सकता है?
1.लेवल प्लेइंग फिल्ड बना रहे, इसलिए जरूरी है कि मैदान और हैलीपेड बिना किसी पक्षपात के सबको मिल सके। ऐसा न हो कि कोई एक राज्य सरकार विपक्षी दलों अपने यहां घुसने से ही मना कर दे।
2.जमकर चुनाव प्रचार किया जा सकता है लेकिन पार्टी की नीतियों, कामों और उसके पिछले कामों पर। न कि चुनावी प्रचार में यह कहा जाए कि हमने पाकिस्तान में घुसकर 400 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
3.चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा न हो कि किसी का जीना ही हराम कर दिया जाए। यानी ऐसा न हो कि किसी सोसाइटी में बिना किसी अथॉरिटी के इजाजत के लाउडस्पीकर लगाकर बोलना शुरू कर दिया जाए। इसलिए लोकल पुलिस के इजाजत के बिना न भाषण देने की जगह तय की जा सकती है और न ही किसी जगह पर लाउडस्पीकर लगाकर भाषण दिया जा सकता है।
4.कैम्पेन पीरियड के खत्म होने पर वोटर, कैंडिडेट और चुनाव एजेंट के अलावा अन्य बाहरी लोगों को वह चुनावी क्षेत्र छोड़ना होता है। यानी अगर आप किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र के वोटर या प्रत्याशी या उसके एजेंट नहीं है तो आपत्ति होने पर आप पर कार्रवाई भी की जा सकती है।
विज्ञापनों या एडवर्टिजमेंट या इश्तिहारों के बारें में मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट क्या कहता है?
यहीं पर भयंकर पैसा बहाया जाता है। सरकारी विज्ञापन इस मकसद से जारी किये जाने चाहिए कि जनता को सरकार की पॉलिसी,प्रोग्राम और कामों का पता चले। और उसे यह बात समझ में आये कि वह सरकारी पहलों का फायदा कैसे उठाएगी। लेकिन होता बिल्कुल उल्टा है। जनता का पैसा यानी सरकारी पैसे पर सत्ता सँभालने वाली पार्टी अपनी जमकर मार्केटिंग करती है। कभी-कभार तो अख़बार के आधे से अधिक पन्ने सरकार का भोंपू बनने में बर्बाद किये जाते हैं। दीवारों पर कैंडिटेट के फोटो के साथ लगे होर्डिंग पर'ईमानदार और कर्मठ प्रत्याशी' का चलताऊ लाइन लगाकर करोड़ों खर्च किया जाता है। इलेक्शन कमीशन का इस पर सख्त दिशानिर्देश हैं कि सरकारी पैसे से अपना विज्ञापन करना कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन है।
इस बार लोकसभा चुनावों के मद्देनजर निर्वाचन आयोग ने चुनावी पोस्टरों में सेना के सियासी इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है। लेकिन लगता है कि सांसद रामचरण बोहरा जी को अपना काम गिनाने को कुछ मिल नहीं रहा है तो सेना के शौर्य को ही भुनाने में जुट गए हैं। जयपुर शहर के हर गली नुक्कड़ पर सेना और लड़ाकू जहाजों के साथ खुद का और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगा दी। हालांकि सवाल किए जाने पर सांसद सफाई देते रहे। रामचरण बोहरा ने कहा कि ये पोस्टर उन्होंने चुनाव के लिए नहीं लगाया है। चुनाव आयोग का निर्देश है तो हटा लेंगे।
क्या सोशल मीडिया आचार संहिता में शामिल है?
इलेक्शन कमीशन ने राजनीतिक दलों और कैंडिडेट द्वारा इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लिखे कंटेंट को भी मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट में शामिल कर लिया है। कैंडिडेट को सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म यानी फेसबुक, ट्विटर, जीमेल का अकाउंट इलेक्शन कमीशन को देना होगा। साथ में सोशल मीडिया पर किये जाने वाले विज्ञापन के खर्चे जो चुनाव आयोग में जमा करना होगा। अभी हाल में चुनाव आयोग ने आदेश दिया कि सत्ताधारी दाल के लोग अपने सोशल मीडिया के पोस्ट से विंग कमांडर अभिनंदन की तस्वीर हटा लें।
शराब की बिक्री पर आचार संहिता क्या कहती है ?
भारत के चुनावों में पैसा और शारब पानी की तरह बहाया जाता है। भारत की गरीबी को मदहोश करके लूटने का यह सबसे आजमाया हुआ नुस्खा है। इलेक्शन कमीशन यह नियम जारी करता है कि चुनाव घोषणा के दिन से चुनाव खत्म होने तक जिला प्रशासन का एक्साइज डिपार्टमेंट जिले की हर शराब की दुकान निगरानी रखेगा। यह रिकॉर्ड हासिल करेगा कि किसी शराब की दुकान पर शराब की कितना स्टॉक है और दिन भर में वह कितने की बिक्री करता है। चुनाव में कम्पैन का दौर खत्म होने के बाद यानी वोटिंग के दिन से 48 घण्टे पहले जिले की सारे शराब के दुकान बंद रहेंगी। इनमें से किसी भी नियम का पालन न होना कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन है।
आचार संहिता उल्लंघन होने पर क्या होता है?
मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी आदर्श आचार संहिता की कोई वैधानिक हैसियत नहीं हैं। इसलिए इससे जुड़े ज्यादतर मामलें में इलेक्शन कमीशन केवल डांट-फटकार कर छोड़ देता है। किसी तरह का दण्ड देने वाला एक्शन नहीं लेता है। ''लेवल प्लेइंग फिल्ड''को बनाये रखना ही मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट का असल मकसद होता है। इस मकसद की व्याख्या इतनी बड़ी है कि इसमें बहुत कुछ आ जाता है। फिर भी कुछ मामलें ऐसे हैं जिसमें इंडियन पीनल कोड के तहत दंड दिया जा सकता है। जैसे :-
- नफरत भरा भाषण देना या चुनाव प्रचार करना जिससे जाति, धर्मों और समुदायों के बीच दरार पैदा हो।
- पैसा और शराब बांटना ताकि वोट हासिल किया जा सके।
- किसी को धमकाना ताकि वह किसी के लिए वोट दे सके।
- वोटिंग के दिन से 48 घण्टे पहले तक चुनाव प्रचार किया जा सकता है। इसके बाद का चुनाव प्रचार दंड देने कैटेगरी में शामिल होता है।
इन सारी बातों को अपनी दिमाग के किसी कोने में रख लीजिये। अबकी बार तो इलेक्शन कमीशन ने यहां तक कह दिया है कि आप मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट के उललंघन से जुड़े किसी मामलें पर वीडियों बनाकर भेजेंगे तो उसपर कार्रवाई होगी। हर राज्य में इन मामलों की छानबीन करने के लिए एक स्क्रीनंग कमिटी होती है। इस स्क्रीनिंग कमेटी से मामला पास होने के बाद इलेक्शन कमीशन के पहुँचता है। और इलेक्शन कमीशन इस पर अपना फैसला सुनाता है। प्रक्रिया थोड़ी सी ढीली है। लेकिन अगर मामलों की बाढ़ आए तो इलेक्शन कमीशन की मजबूरी होगी कि वह मजबूत और सॉलिड प्रक्रिया बनाए। आप केवल एक नागरिक की भूमिका निभाइये इसी से लोकतंत्र मजबूत होगा। इसी के लिए चुनाव आयोग ने एक समाधान पोर्टल बनाया है, जिसपर आप अपनी शिकायतें, सूचना और सलाह भेज सकते हैं। इसके अलावा cVIGIL app पर आप चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन होने पर भी वीडियो या तस्वीर भेज सकते हैं। इसके लिए एक हेल्पलाइन नंबर 1950 जारी किया गया है।
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