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“झारखंड में फेंके गए बाउंसर पर बिहार ने छक्का लगा दिया”

कुछ जानकारों के अनुसार बिहार में बदले हुए राजनीतिक हालात ने देश की सभी गैर-भाजपा सरकारों को एक ऐसा नैतिक संबल दिया है जिससे केंद्र संचालित ‘सरकार गिराने-बनाने’ के चालू सियासी कुचक्रों को लेकर उसे भी अब रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा।
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ये सही है कि महज चंद दिनों पूर्व हुए सियासी घटनाक्रमों के लिहाज से झारखंड में “ऑपरेशन लोटस” के असरदार होने की चर्चा ज़ोरों पर थी। चहुँ ओर अटकल और अफवाहों का बाज़ार इस क़दर सरगर्म किया जा चुका था मानो हेमंत सोरेन सरकार को लेकर “कुछ भी हो सकता है“। लेकिन बिहार में हुए अप्रत्याशित सियासी भूचाल ने झारखंड में भी ऐसा सियासी माहौल बना दिया है जिसमें पहली बार प्रदेश गोदी मीडिया समेत पूरा भाजपा खेमा बैकफुट पर खड़ा दिख रहा है। इतना ही नहीं यह भी साफ़ देखने को मिल रहा है कि सत्ता पक्ष के तीखे-चुभते बयानों पर भी इधर से पूरी खामोशी बरती जा रही है। 

झारखंड मामलों के विशेष जानकार और जेपी-आन्दोलन के तेज़-तर्रार कार्यकर्ता रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रश्मि कात्यायन का मानना है कि दोनों ही प्रदेशों की सत्ता सियासत में धर्म-निरपेक्ष-लोकतान्त्रिक ताक़तों का हमेशा से भाजपा व संघ परिवार की राजनीतिक धारा से ही आमना-सामना रहा है। दोनों ही प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों का मजबूत सामाजिक प्रभाव हर स्तर पर सक्रिय रहा है। इसलिए झारखंड व बिहार की राजनीति में कुछेक बिन्दुओं पर टकराव रहने के बावजूद भी यहाँ दूसरे प्रदेशों की भांति बहुत भिन्नता नहीं रही है। झारखंड में तो यहाँ की जनता ने पहले ही अपना पूर्ण जनादेश देकर भाजपा-एनडीए को प्रदेश की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखला दिया था, बिहार में अब जाकर हुआ है। दूसरा, “ओपरेशन लोटस” झारखंड की मिट्टी में इतनी आसानी से नहीं फल-फूल पायेगा। 

चर्चा यह भी है कि झारखंड सरकार द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित दो दिवसीय ‘जनजातीय महोत्सव’ का समापन समारोह कार्यक्रम एक प्रकार से “ऑपरेशन लोटस” के ही ऑपरेशन का एक मंच बन गया। जिसे शब्दों में बयान करते हुए झारखंड पहुंचे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी अपनी प्रतिक्रिया में साफ़ कह ही डाला कि- कुछ लोग जो हेमंत सोरेन सरकार को गिराने के लिए दिन-रात एक किये हुए थे। क्रिकेट की भाषा में कहें तो विकेट गिराने के लिए “बाउंसर” फेंका गया था। लेकिन बिहार में नितीश कुमार ने “छक्का” लगा दिया है।     

मौका था झारखंड सरकार द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित दो दिवसीय जनजातीय महोत्सव के समापन समारोह का। जिसमें झारखंड सरकार ने उन्हें बतौर मुख्य अतिथि के बतौर विशेष रूप से आमंत्रित किया था। आदिवासी अस्मिता व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ऐसे भव्य आयोजन के लिए हेमंत सोरेन को बधाई देते हुए अपने संबोधन के दौरान उन्होंने बिना किसी का नाम लिए उक्त टिप्पणी की। राज्यों की गैर भाजपा सरकारों को गिराने के लिए “ईडी के राजनीतिक इस्तेमाल” पर भी तीखा व्यंग्य करते हुए कहा कि- अब ईडी का काम बिहार में भी बढ़ जाएगा। पहले तो झारखण्ड-छत्तीसगढ़ में ही लगातार मूवमेंट हो रहा था, अब बिहार में भी जायेगी ईडी-सीबीआइ की टीमें।       

बिहार में हुए राजनितिक समीकरण में नए बदलाव को लेकर हेमंत सोरेन भी उत्साहित नज़र आये और जनजातीय महोत्सव कार्यक्रम में कलाकरों का साथ देने खुद भी उतर गए ढोल लेकर। अपने संबोधन में संयम दिखाते हुए सिर्फ यही कहा कि- हम आदिवासियों के वजूद को बचाने और बढ़ाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। अभी आदिवासी समाज को और भी जंग लड़ने हैं।           

जनजातीय महोत्सव के उद्घाटन के बहाने उन्होंने एक बार फिर से अपना पुराना तेवर भरा अंदाज़ दिखाते हुए कह डाला कि- जानवर बचाओ, जंगल बचाओ सब बोलते हैं पर आदिवासी बचाओ कोई नहीं बोलता। आदिवासी बचाओ, तो जंगल जानवर सब बच जाएगा। सभी की नज़र हमारी ज़मीन पर है। हमारी ज़मीन पर ही जंगल, लोहा, कोयला है।       

 बाद में जन्मदिन के अवसर पर उन्हें सम्मानित करने पहुंचे मीडिया कर्मियों द्वारा यह पूछे जाने पर कि- बिहार के घटनाक्रम का यहाँ क्या असर पड़ेगा और अब झारखंड कितना स्थिर हो पायेगा? जवाब में हेमंत सोरेन ने शालीनता से अपना पूरा क्षोभ व्यक्त कर ही दिया कि- देखो, आज मेरा जन्मदिन है और मैं बहुत ज़्यादा कुछ नहीं बोलना चाहता हूँ। अभी राज्य में और देश में  व्याप्तभुखमरी, बेरोज़गारी, महंगाई, सूखा-बाढ़ के साथ साथ कोरोना जैसी आपदाएं आ रहीं हैं। लेकिन देश के अन्दर जो राजनीति हो रही है उसमें ऐसे ढंग से ससकारें बनायी और गिराने की कोशिशें हो रहीं हैं, मानो ‘पेड़ों से फल गिर रहा हो’। बड़े विचित्र हालात हो गए हैं। मैं समझता हूँ कि देश के सवा सौ करोड़ लोगों को अब पूरी राजनीतिक परिपक्वता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन चाहिए और देश हित में, राज हित में व समाज हित में अपना निर्णय लेना चाहिए। 

इधर बुधवार को ही अपना इलाज कराकर झारखंड लौटे हेमंत सोरेन सरकार के शिक्षा मंत्री ने भी पूरे आत्मविश्वास के साथ मीडिया संबोधन में ये दावा किया है कि- उनकी सरकार पूरी तरह से स्थिर है। सरकार गिरने जैसी स्थिति नहीं रह गयी है। सरकार गिराने की कोशिश में आगे-पीछे करने वालों का जनता चुनाव में पर्दाफाश कर देगी। जब से राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार बनी है, तभी से इस सरकार को गिराने की साजिश चल रही है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही कुछ लोग सरकार को असमंजस में करने के लिए बहुत लोग लगे हुए थे। अब सारा कुछ सामने आ गया है। राज्य सरकार की स्वतंत्र जांच एजेंसी जांच कर रही है। आगे अभी बहुत कुछ सामने आ सकता है। लेकिन एक बात साफ़ हो गयी है कि भाजपा ने ही पैसा दिया और भाजपा ने ही उन तीनों विधायकों को पकड़वा दिया।       

सनद रहे कि पिछले ही महीने “ऑपरेशन ईडी” ने अचानक से झारखंड में ताबड़ तोड़ सक्रियता दिखाकर सनसनी फैला दी थी। जिसे लेकर सबसे अधिक यही चर्चा रही कि यह सब केंद्र सरकार की ‘दबाव राजनीति’ की कवायद है। जिसकी एक परिणति झारखंड विधान सभा चुनाव के मॉनसून सत्र में भी देखने को मिली। जब झारखंड के तीन विधायकों को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में 46 लाख कैश के साथ पकड़े जाने की खबर फैली तो उसी समय मानसून सूत्र के दौरान भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष इस संगीन मामले पर विशेष चर्चा कराने की मांग की थी। लेकिन सत्र के पहले ही दिन से भाजपा विधायकों ने विभिन्न मुद्दों के बहाने हंगामा खड़ा कर सदन में कोई भी विमर्श सत्र नहीं चलने देने पार आमादा रहे। जिससे सत्ता पक्ष के विधायकों की ‘हार्स ट्रेडिंग’ और इसमें भाजपा की संलिप्तता के संदेह का मामला पूरी तरह से दबा दिया गया। 

कुछ जानकारों के अनुसार बिहार में बदले हुए राजनीतिक हालात ने देश की सभी गैर-भाजपा सरकारों को एक ऐसा नैतिक संबल दिया है जिससे केंद्र संचालित ‘सरकार गिराने-बनाने’ के चालू सियासी कुचक्रों को लेकर उसे भी अब रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। 

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