Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

चीन-भारत जैसे बड़े मुल्कों को तकनीकी पहुंच से रोकना मुमकिन नहीं!

चीन और भारत जैसे बड़े देशों पर पश्चिमी पाबंदियां काम नहीं करतीं, भारत ने 1974 में पोखरण परीक्षण के ज़रिए ये साबित किया है। ये सोचना, कि इन देशों को प्रौद्योगिकी की पहुंच से दूर किया जा सकता है, बिल्कुल बेमानी है।
chip war
फ़ोटो साभार : iStock

अमेरिका और चीन के बीच चिप-वॉर थमने का नाम ही नहीं ले रही है क्योंकि अमेरिका, एडवांस चिप्स - Sub 7 nm चिप्स, ग्राफिकल प्रोसेसर यूनिट्स (GPU), 5G चिपसेट्स - और इस तरह की चिप बनाने वाली लिथोग्राफिक मशीनों का प्रवाह रोकने की कोशिशों में लगा हुआ है।

अमेरिका ने ऐसी पाबंदियों से शुरूआत की थी, जिसके ज़रिए हुवाई (Huawei) के लिए अपने अपडेटेड प्रोसेसर बनाना असंभव हो गया था, जो 5G मोबाइल फोनों की रीढ़ थे। उसके बाद से अमेरिका उत्तरोत्तर अपनी पाबंदियों का दायरा बढ़ाता गया है और उसने एनविडिया की एडवांस चिप निर्माण लिथोग्राफिक मशीनों और हाई एंड कंप्यूटिंग प्रोसेसरों, GPU को भी इसके दायरे में शामिल कर लिया है। ये GPU ही नये जेनरेटिव आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) आवेग को और चैटजीपीटी जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडलों को संचालित करते हैं। एनविडिया अपने GPU के साथ, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक अग्रणी कंपनी बनकर सामने आयी है। इसका बाज़ार नकदीकरण 12 खरब डॉलर का है और यह बाज़ार नकदीकरण के हिसाब से दुनिया की छठी सबसे बड़ी कंपनी हो गयी है।

हाल ही में खबर आयी कि हुवाई (Huawei) ने अपना 'मेट 60प्रो' मोबाइल फोन लॉन्च किया है, जो ‘सेटेलाइट कम्पेटिबिल’ होने का दावा करता है। इस खबर से अमेरिकी औद्योगिक हलके दंग रह गए। ब्लूमबर्ग समेत, विभिन्न तकनीकी विशेषज्ञों ने इस फोन की जांच-पड़ताल की है और उनका कहना है कि, ‘हुवाई टेक्नोलॉजी कंपनी तथा चीन के शीर्ष चिप निर्माता ने अपने ताज़ातरीन स्मार्टफोन को संचालित करने के लिए एक एडवांस 7-नेनोमीटर प्रोसेसर का निर्माण किया है। यह इसका इशारा है कि पीकिंग, अपने उदय को रोकने की अमेरिका की कोशिशों को धता बताकर आगे बढ़ने के एक देशव्यापी आवेग में शुरूआती प्रगति कर रहा है।

चाइना ग्लोबल टेलीविज़न नैटवर्क (CGTN) द्वारा एक्स (पहले ट्विटर) पर डाली गयी एक पोस्ट में कहा गया है कि यह चिपसैट, हुवाई का ‘पहला हाई एंड प्रोसेसर’ है, जो अमेरिकी पाबंदियां लगाए जाने के बाद आया है और इस फोन में जो चिपसैट लगा है, उसे शंघाई की कंपनी, सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉर्प (SMIC) ने बनाया है।

अब ब्लूमबर्ग और अन्य स्वतंत्र विश्लेषणकर्ताओं ने इन दावों की सत्यता के पर्याप्त साक्ष्य पेश कर दिए हैं। अगर ये दावे सच हैं तो ये एक बार फिर यही दिखाते हैं कि प्रौद्योगिकी तक पहुंच से रोकने की व्यवस्थाएं कारगर नहीं होती हैं। सेमीकंडक्टर उद्योग एसोसिएशन तथा बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ने 2021 की अपनी रिपोर्ट में यही दलील दी थी। रिपोर्ट का शीर्षक था: ‘एक अनिश्चित युग में वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला को पुख्ता करना।’ उन्होंने कहा था कि चीनी बाज़ार से नाता तोड़ने या डी-लिंकिंग का नतीजा यह होगा कि चीन अपना ही स्वदेशी विनिर्माण आधार विकसित कर लेगा और अमेरिकी कंपनियों को, चीनी बाज़ार से वे जो विशाल अधिशेष बटोरती हैं, उससे वंचित कर देगा। एनविडिया के प्रमुख ने भी चंद महीने पहले ऐसी ही चेतावनी दी थी, ‘अगर (चीन) खरीद नहीं सकता है...अमेरिका से, तो वह इसे खुद ही बना लेगा।’

बड़े देशों के ख़िलाफ़ पाबंदियां काम नहीं करतीं

विशाल देशों के ख़िलाफ़ प्रौद्योगिकी से रोकने की व्यवस्था काम नहीं करती है, यही सबक भारत ने 1974 में पोखरण नाभिकीय परीक्षण के ज़रिए अमेरिका तथा पश्चिमी देशों को दिया था, जिन्होंने भारत के ख़िलाफ़ कड़ी पाबंदियां लगा रखी थीं। उन्होंने भारत को अनेकानेक प्रकार की प्रौद्योगिकियों तक पहुंच से दूर रखा था, जिनमें नाभिकीय, इलेक्ट्रॉनिक्स, रॉकेट तथा एडवांस्ड मैटलर्जी शामिल हैं। लेकिन, ये पाबंदियां भारत के स्वदेशी प्रौद्योगिकीय विकास को रोकने में विफल रहीं। एकलौता क्षेत्र जिसमें हम पश्चिमी प्रौद्योगिकियों को प्रतिस्थापित करने में नाकाम रहे, चिप निर्माण का क्षेत्र था और यह खुद ही अपने पाले में गोल करने जैसा मामला रहा था। मोहाली का हमारा अग्रणी स्वदेशी चिप निर्माण संयंत्र, सेमीकंडक्टर कॉम्पलेक्स लिमिटेड, 1989 में आगजनी की एक ‘रहस्यमय’ घटना में, जो संभवत: भीतरघात की घटना थी, जलकर नष्ट हो गया था। उसके बाद हम हम इस संयंत्र को दोबारा खड़ा करने में ही विफल रहे। इसके पीछे यह भ्रांतिपूर्ण धारणा थी कि सॉफ्टवेयर ही है जिसकी चिंता करने की ज़रूरत है, हार्डवेयर चिपों को तो आसानी से कभी भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में खरीदा जा सकता है।

चीन की महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकीय प्रगति

पिछले साल से ही यह बात जानकारी में थी कि SMIC ने एक बिटकॉइन निर्माता के लिए, 7 नेनोमीटर (nm) की चिपें सफलता के साथ बनायी थीं। इनके निर्माण के लिए पहले से ही मौजूद 28 nm की ASML लिथोग्राफिक मशीनों का इस्तेमाल किया गया था। ये मशीनें अपेक्षाकृत पुराने डीयूवी प्रोसेस का इस्तेमाल करती हैं, जिस पर अब तक पाबंदी नहीं लगी है और ये उस अपडेटेड एक्स्ट्रीम अल्ट्रा वाइलेट (EUV) लिथोग्राफी प्रोसेस का इस्तेमाल नहीं करती हैं, जिस पर पाबंदी लगी हुई है। EUV मशीनों के बिना 7nm से आगे का कोई भी चिपसैट बड़े पैमाने पर बनाना, चाहे असंभव नहीं हो, मुश्किल ज़रूर होगा। लेकिन, 7nm की प्रौद्योगिकी के साथ, हुवाई के ताजातरीन किरीन प्रोसेसरों ने, अपडेटेड आइफोन की गति का मुकाबला कर लिया लगता है। ब्लूमबर्ग और अन्य अमेरिकी प्रौद्योगिकी वैबसाइटों का तो यही कहना है।

पर यह किस्सा इतने पर ही खत्म नहीं होता है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस कंपनी, एचकेयूएसटी जुनफेई के संस्थापक, लियू क्विंगफेंग ने चाइनीज़ एंटरप्रेनुअर्स फोरम, 2023 में कहा था कि हुवाई ने एक आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, GPU विकसित किया है, जो एनविडिया के A-100 GPU की क्षमताओं से टक्कर लेता है। अमेरिकी प्रौद्योगिकी प्रतिबंध व्यवस्था के तहत चीन के लिए A-100 के अपडेटेड रूप और इससे भी ज़्यादा शक्तिशाली, H-100 GPU चिपों के निर्यात पर पाबंदी लगी रही है। यहां तक कि कुछ पश्चिम एशियाई देशों (बताया जाता है कि सऊदी अरब तथा यूएई) को, इस शक की बिनाह पर इन पाबंदियों के दायरे में घसीट लिया गया है कि चीन, उनके रास्ते से GPU पर अमेरिका की इन पाबंदियों को विफल कर सकता है। एचकेयूएसटी जुनफेई और हुवाई ने संयुक्त रूप से इसका ऐलान किया है कि वे हुवाई प्रोसेसरों से संचालित आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस प्लेटफार्मों का निर्माण करेंगे और A-100 या H-100 GPU प्रोसेसरों के आयात पर लगी रोक, अब चीनी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस कंपनियों की राह नहीं रोक पाएगी।

लियू क्विनफेंग ने संबंधित GPU के संबंध में विशेष विवरण नहीं दिए हैं, इसलिए जो दावा किया गया है उसके सत्यापन की ज़रूरत होगी। हुवाई के 5G मोबाइल के दावे के विपरीत, जिसकी परीक्षा स्वतंत्र प्रेक्षकों द्वारा की जा चुकी है, यह अब तक तो हुवाई से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए एक व्यक्ति के दावे का ही मामला है। फिर भी, 5G मोबाइल फोन के मामले में हुवाई के रिकार्ड को देखते हुए, GPU की डिजाइनिंग के मामले में भी उसके नई ज़मीन तोड़ने की ऐसी ही संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।

पश्चिमी चिप निर्माताओं की चिंता सच साबित हुई

चिप निर्माता कंपनियों की पिछले काफी समय से यही चिंता रही है कि चीन उनके उत्पादों का सबसे बड़ा बाज़ार है। चाहे एनविडिया हो, एप्पल हो, इंटेल हो, क्वालकॉम हो या कोई और, सभी को चिंता रही है कि अगर चीन का बाज़ार उनके लिए बंद कर दिया जाता है, तो उनका भारी नुकसान हो जाएगा। दूसरी ओर, अमेरिकी प्रशासन को यह लगता रहा है कि चीन, चिप आयातों पर प्रतिबंध से उबरने का रास्ता निकाल ही नहीं पाएगा और या तो अमेरिका के सामने झुक जाएगा तथा उससे रहम की याचना करने लगेगा या फिर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में समकक्ष प्रतिद्वंद्वी के दर्जे से पीछे खिसकता जाएगा। अमेरिका ने इसी विश्वास के आधार पर अपनी पाबंदियों की व्यवस्था निर्मित की है। और फौरी तौर पर तो इन पाबंदियों की, हुवाई जैसी चीनी कंपनियों पर तगड़ी चोट भी पड़ी थी और चीन के समूचे उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर ही खतरा मंडराता नज़र आने लगा था।

पाबंदियों के जवाब में चीन द्वारा स्वत्रंत्र रूप से संबंधित प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास का पूर्वानुमान, सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ने अपनी 2021 की रिपोर्ट, ‘अनिश्चित दौर में वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं को पुख्ता करना’ में पहले ही पेश कर दिया था। उनकी दलील यह थी कि चीनी बाज़ार, अमेरिकी कंपनियों को इसके लिए एक पर्याप्त बड़ा बाज़ार मुहैया कराता है कि एक ‘शुभ चक्र’ या वर्चुअस साइकिल को फंड कर सकें। कहने का अर्थ यह कि चीन से, जोकि उनके चिपों तथा हार्डवेयर का सबसे बड़ा बाज़ार है, तो अधिशेष अर्जित किया जाता है, वह अमेरिका को नई खोजों के लिए संसाधन मुहैया कराता है। अगर अमेरिका और चीन का यह लेन-देन टूट जाएगा, तो अमेरिका का सबसे बड़ा बाज़ार जाता रहेगा और इसलिए, चीन से व्यापार की कमाई के बल पर, अमेरिका को अब तक जो नवोन्मेषी धार हासिल रही है, उसे भी अमेरिका गंवा देगा।

दूसरी ओर, पाबंदियों के ज़रिए चीन को नई खोजों के रास्ते पर धकेलना, उसके लिए अस्थायी धक्का तो हो सकता है, लेकिन दीर्घावधि में उसके लिए फायदे का ही साबित होगा क्योंकि वह दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। याद रहे कि यह दलील कोई अमेरिका में मौजूदा किन्हीं चीन-समर्थकों की नहीं थी बल्कि अमेरिकी पंजीपूतियों--सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन--की थी, जो अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग का संचालन करते हैं! इस समय दुनिया की सबसे बहुमूल्य सेमीकंडक्टर कंपनी, एनविडिया के चीफ एक्जिक्यूटिव, ताईवानी-अमेरिकी जेन्सेन हुआंग ने 2023 के मई के महीने में, फाइनेंशियल टाइम्स से बात करते हुए, इस धारणा को और पुख्ता किया था कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच चिप-वॉर में, अमेरिकी उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग को ‘बहुत भारी नुकसान’ होने का खतरा था। उन्होंने कहा था कि बाइडेन प्रशासन ने चीनी सेमीकंडक्टर उद्योग के ख़िलाफ़ जो निर्यात नियंत्रण लागू किए थे, उन्होंने एनविडिया को ‘हाथ पीठ के पीछे बांधकर’ छोड़ दिया था और वे अपनी कंपनी के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक में, अपने एडवांस चिप बेच ही नहीं सकते थे। उन्होंने आगाह किया था कि चीन में विनिर्माताओं को प्रतिस्थापित करने का सामर्थ्य है। लगता है कि उनकी चेतावनी चंद महीनों में ही सच भी साबित हो गयी और वही हुआ जिसके बारे में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन ने अमेरिकी प्रशासन को दो साल पहले ही आगाह कर दिया था।

रस्साकशी अब भी जारी

बहरहाल, अमेरिका तथा उसके सहयोगियों के पास, ASML के रूप में अब भी तुरुप का एक पत्ता है। ASML ही वह कंपनी है जो दुनिया की सबसे जटिल तथा हाई-टेक मशीन बनाती है--लिथोग्राफिक मशीन। ये ऐसी मशीनें हैं जो एक्स्ट्रीम अल्ट्रा वॉइलेट (EUV) प्रकाश का उपयोग कर, सिलिकॉन पर सबसे बारीक पैटर्न बनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि 7nm से आगे की या ज़्यादा सघनता की किसी भी चिप के लिए, EUV के ज़रिए लिथोग्राफी अपरिहार्य होती है। ऐसी स्थिति में क्या ASML की EUV मशीनें, एक ओर अमेरिका तथा उसके सहयोगियों और दूसरी ओर चीन के बीच, हार-जीत का फैसला कर सकती हैं?

अब तक तो चीन की लिथोग्राफिक मशीनें बनाने वाली कंपनी, शंघाई माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स ईक्विपमेंट ने अपनी 28nm चिप बनाने की मशीन बाज़ार में नहीं उतारी है। खबरों के अनुसार, उसकी योजना इस साल के अखिर तक ये मशीनें बाज़ार में उतारने की है। अगर यह चीनी कंपनी वाकई इसमें कामयाब हो जाती है--जिस पर अब भी सवालिया निशान है-- SMIC जो इस समय ASML की अपेक्षाकृत पुरानी, 28nm की लिथोग्राफिक मशीनों का इस्तेमाल कर रही है, चीन के लिए इन मशीनों की भी बिक्री पर प्रस्ताविक रोक का, कोई असर नहीं पड़ेगा।

ज़्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि 28 nm की लिथोग्राफिक मशीनों के सहारे, 7 nm से आगे की चिप बनाना शायद संभव नहीं होगा। लेकिन, यह सवाल अपनी जगह बना ही हुआ है कि 7 nm से आगे के चिप कितने ज़रूरी हैं? क्या ऐसी अति-सघन चिपों के बजाए, चिपों के योग-चिपसैट्स का सहारा लेकर, कहीं एडवांस पैकेजिंग के ज़रिए चीन, अपना एक वैकल्पिक रास्ता नहीं बना सकता है? बहरहाल, इन सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में छुपे हुए हैं। लेकिन, एक बार जब चीन या भारत जैसा कोई बड़ा देश, अपने बल पर किसी प्रौद्योगिकी का विकास करने का मन बना लेता है, तो उसके लिए ऐसा करने के लिए मानव संसाधन और वित्तीय संसाधन, दोनों जुटाना बहुत मुश्किल नहीं होता है। रोक लगाना (डी-लिंकिंग) या अब अमेरिका की शब्दावली में डी-रिस्किंग या जोखिम-मुक्त होना, जो कि वास्तव में डी-लिंकिंग का ही दूसरा नाम है--काम नहीं करता है, कम से कम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ और ज़्यादा समय तक तो काम नहीं ही करता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Tech Denial Regimes Won’t Work Against India or China

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest