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जाने-माने पर्यावरणविद् की चार धाम परियोजना को लेकर ख़तरे की चेतावनी

रवि चोपड़ा के मुताबिक़, अस्थिर ढलान, मिट्टी के कटाव और अनुक्रमित कार्बन(sequestered carbon) में हो रहे नुक़सान में बढ़ोत्तरी हुई है।
Chamba Tunnel
चार धाम रोड परियोजना का अहम हिस्सा-चंबा सुरंग

देहरादून में रह रहे जाने-माने पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने हाल ही में उत्तराखंड में नरेंद्र मोदी सरकार की 12,000 करोड़ रुपये की 889 किलोमीटर लंबी चार धाम राजमार्ग चौड़ीकरण परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव की देखरेख करने वाली सुप्रीम कोर्ट (SC) की ओर से नियुक्त हाई पावर्ड कमिटी (HPC) के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।

चार धाम परियोजना हिमालय क्षेत्र में सबसे बड़ी सड़क चौड़ीकरण परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना का मक़सद गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे चार हिंदू तीर्थस्थानों को आपस में जोड़ना है।

सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को सौंपे गये अपने त्याग पत्र में चोपड़ा ने अदालत के 14 दिसंबर, 2021 के फ़ैसले पर चिंता जतायी है। इस फ़ैसले के तहत डबल लेन-पेव्ड शोल्डर (DL-PS) संरचना के आधार पर भारत-चीन सीमा तक जाने वाली 674 किमी सड़कों को 10 मीटर तक चौड़ा करने की इजाज़त दे दी गयी थी। इस फ़ैसले में अदालत के 8 सितंबर, 2020 को राजमार्ग पर सड़क की चौड़ाई को 5.5 मीटर तक सीमित करने के अपने आदेश को संशोधित कर दिया था।

चोपड़ा लगातार यही कहते रहे हैं कि 10 मीटर की पक्की सड़क को 12 मीटर तक चौड़ा करने और 24 मीटर तक पहाड़ों को काटने की ज़रूरत होती है। इससे जंगल और पर्यावरण को ज़्यादा नुक़सान होता है। इसके अलावा, सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) भी डबल लेन-पेव्ड शोल्डर (DL-PS) मानकों के मुताबिक़ 151 किलोमीटर ग़ैर-रक्षा सड़कों को चौड़ा करने को लेकर क़ानूनी राहत मांग सकता है।

चोपड़ा की लिखी उस चिट्ठी में कहा गया है, “एचपीसी की कड़ी मेहनत को स्वीकार करते हुए 14.12.2021 के फ़ैसले से माननीय न्यायालय ने दिनांक 08.09.2020 के आदेश की परिकल्पना के बजाय व्यापक डीएल-पीएस कॉन्फ़िगरेशन को स्वीकार कर लिया है। इस फ़ैसले ने एचपीसी की भूमिका को महज़ दो ग़ैर-रक्षा सड़कों को लेकर चल रही परियोजना के सिलसिले में की गयी अपनी सिफ़ारिशों के लागू होने की देखरेख तक सीमित कर दिया है। इन हालात में मुझे एचपीसी का अध्यक्ष बने रहने या वास्तव में इसका हिस्सा बने रहने का कोई मक़सद नज़र नहीं आता।”

ये दो ग़ैर-रक्षा सड़कें रुद्रप्रयाग को केदारनाथ (70 किमी) और धरासू से जानकी चटी (70k किमी) को जोड़ती हैं। कोर्ट ने अब 70% काम की देखरेख का जिम्मा सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली नवनियुक्त निगरानी समिति को सौंप दिया है।

अपनी इस चिठ्ठी में चोपड़ा ने जिस तरह सड़कों को बनाया जा रहा है(नाज़ुक हिमालय के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दिखती),उस पर पर अपनी पीड़ा ज़ाहिर करते हुए लिखा है, " राजमार्गों को चौड़ा करने के लिए आधुनिक तकनीकी से लैस उपकरणों ने पुराने जंगलों को चीरते हुए कमज़ोर हिमालयी ढलानों को क्षत-विक्षत कर दिया है। इसके अलावे, जिस तरह पर्यटकों की तादाद लगातार बढ़ती जा  रही,उससे ज़हरीली गैस निकल रही है, जिससे ऊंची चोटियां इन ज़हरीली गैसों से ढक गयी हैं। उन्होंने आग़ाह किया कि "हालांकि, प्रकृति अपने ख़ज़ाने पर इस तरह के जानबूझकर किये जाने वाले अपराधों को न तो भूलती है और न ही माफ़ करती है। पहले ही हम देख चुके हैं कि बनायी गयी सड़कों के हिस्से किस तरह तबाह हुए हैं, जिन्हें बाद में मरम्मत में महीनों लग गये हैं।

तथाकथित 'विकास बनाम पर्यावरण' की बहस में आमतौर पर प्रकृति की ही जीत होती है। चोपड़ा इसका उल्लेख करते हुए कहते हैं, "स्थायी विकास के लिए उस तरह के नज़रियों की ज़रूरत होती है, जो भूगर्भीय और पारिस्थितिक,दोनों ही रूप से सशक्त हों। इस तरह का विकास आपदा के अनुकूल होता हो और इसलिए, इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मज़बूती मिलती है, ख़ासकर उस स्थिति में जब ढलान की स्थिरता के लिहाज़ से जलवायु से जुड़ी चुनौतियां कहीं ज़्यादा अप्रत्याशित होती जा रही हैं। ”

इस रिपोर्टर के साथ एक विशेष साक्षात्कार में चोपड़ा ने इन विवादास्पद मुद्दों को लेकर बातें कीं। प्रस्तुत है उनसे की गयी उस बातचीत का अंश:

क्या आपको लगता है कि चार धाम परियोजना से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी प्रभावित हुई है और इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या हो सकता है?

कुल मिलाकर, पारिस्थितिकी को गंभीर रूप से नुक़सान पहुंचा है। पिछले कुछ सालों में ढलान की अस्थिरता, मिट्टी के कटाव और अनुक्रमित कार्बन की हानि में बढ़ोत्तरी हुई है। आधिकारिक तौर पर, 690 हेक्टेयर वनभूमि को वनों से रहित कर दिया गया है, जिससे एचपीसी के अनुमान के मुताबिक़, 84,000 टन अनुक्रमित कार्बन का नुक़सान हुआ है। अप्रत्याशित या जंगलों के बेहिसाब नुक़सान पहुंचने के चलते बहुत ज़्यादा अनुक्रमित कार्बन का नुक़सान हुआ है। आख़िरी रिपोर्ट के मुताबिक़, वन को हुए बेहिसाब नुकसान सहित प्रति किमी एक हेक्टेयर के हिसाब से 900 हेक्टेयर वन भूमि को वनों से वंचित कर दिया गया है।

इससे कार्बनडायऑक्साइड के अवशोषण की क्षमता कम हो जायेगी, मनुष्य और-वन्यजीवों के बीच के संघर्ष बढ़ जायेंगे और इसके इसका नतीजा यह होगा कि इस सूबे के कुछ बेहतरीन देवदार और ओक के जंगलों को नुक़सान होगा। कई झरने तबाह हो चुके हैं। पैदा हो रहे कूड़ा-कर्कट की मात्रा अनुमानित मात्रा से कहीं ज़्यादा है। बहुत सारे कूड़ा-कर्कट अवैध रूप से वनभूमि, नदियों और कभी-कभी तो मानव बस्तियों में भी फेंक दिये जाते हैं।

अनुमान के मुताबिक़, तक़रीबन 32 मिलियन क्यूबिक मीटर मिट्टी नष्ट हो गयी होगी। आख़िरकार वाहनों से निकलने वाले  प्रदूषण में हो रही वृद्धि चार धाम राजमार्गों के संकरी घाटियों के लिए ख़ास तौर पर नुक़सानदेह होगी। इससे ग्लेशियरों पर कार्बन की काली कालिख जमा हो जायेगी और फिर ग्लेशियरों के पिघल जाने की संभावना बढ़ जायेगी।

दीर्घकालिक प्रभाव के लिहाज़ से हमें ज़्यादा से ज़्यादा कार्बन अनुक्रमण प्रभाव और कार्बनडायऑक्साइड के निकलने, झरनों के नष्ट होने और पुराने भूस्खलन क्षेत्रों और मिट्टी और पानी के अपवाह में बढ़ोत्तरी दिखायी देगी।

क्या आपको लगता है कि रक्षा मंत्रालय को जिस तरह से व्यापक स्तर पर सड़कों की ज़रूरत है, उसे बीच की उन जगहों से पूरा किया जा सकता है, जहां पर्यावरण पर हानिकारक प्रभावों को कम से कम किया जा सकता है?

समिति (एचपीसी) का सर्वसम्मत निष्कर्ष यही था कि सड़कों के चौड़ीकरण और पहाड़ियों को काटने से पर्यावरणीय क्षति में काफ़ी इज़ाफ़ा हो जायेगा। रक्षा मंत्रालय ने 10 मीटर राल वाली सतह या 12-14 मीटर की कुल चौड़ाई को लेकर कभी कुछ नहीं कहा था। मंत्रालय ने 30.11.20 को अपने हलफ़नामे में सिर्फ़ 7 मीटर की राल वाली सतह के लिए कहा था। सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्रालय (MoRTH) ने 10 मीटर की राल वाली सतह की मांगी की थी।

नियमों के मुताबिक़, जिन राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल वसूला जाता है, उनकी सतह राल से बनी हुई सड़क 10 मीटर चौड़ी होनी चाहिए। सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्रालय (MoRTH) के इंजीनियरों ने 2018 में यह निष्कर्ष निकाला था कि इन पहाड़ी इलाक़ों में राष्ट्रीय राजमार्ग मध्यवर्ती चौड़ाई (5.5 मीटर) के होने चाहिए, ताकि पहले की पर्यावरणीय चुनौतियों को कम किया जा सके। 5.5-मीटर राल वाली सतह की इस मध्यवर्ती चौड़ाई से दो-तरफ़ा यातायात सुचारू रूप से चल जाती है।

आपको क्या लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने डीएल-पीएस मानकों के मुताबिक़ सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्रालय को 151 किलोमीटर की ग़ैर-रक्षा सड़कों को चौड़ा करने के लिए क़ानूनी राहत लेने का सुझाव क्यों दिया है?

मैं सुप्रीम कोर्ट के दिमाग़ को तो पढ़ नहीं सकता। लेकिन,सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्रालय इंजीनियरों के साथ बातचीत करने के बाद मुझे यह बात पता है कि वे इस तरह की रियायत का स्वागत करेंगे।

क्या आपको लगता है कि यह परियोजना स्थानीय लोगों के हित में है या उनके लिए फ़ायदेमंद है?

बेशक यह स्थानीय ठेकेदारों के लिए तो फ़ायदेमंद साबित हुआ ही है। होटल व्यवसाय में ऐसे लोग हैं, जिन्हें उम्मीद है कि इससे पर्यटकों की तादाद में इज़ाफ़ा होगा। यही वजह है कि हाईवे पर नये-नये होटल बन रहे हैं। लेकिन, स्थानीय लोग, ख़ासकर जिनके इलाक़ों से यह परियोजना नहीं गुज़रती है, वे बहुत दुखी हैं और उन्हें भविष्य में पर्यटन से होने वाली आय में गिरावट होने का डर है। इस परियोजना के कारण चमोली ज़िले के ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित गडोरा गांव और पिथौरागढ़-टनकपुर मार्ग पर स्थित सिरमुना गांव के कुछ हिस्सों में ढलान अस्थिरता की समस्या गंभीर हो गयी है। मिट्टी दरक रही है और दरारें चौड़ी हो रही हैं।

बतौर एचपीसी अध्यक्ष आपका कार्यकाल कैसा रहा? इस तजुर्बे से क्या कोई सबक़ मिला?

मुझे लगता है कि इस तरह की समितियों की नुमाइंदगी करने वाले लोगों के लिए इस समिति की राजनीति और परियोजना के प्रति सतर्क रहना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Noted Environmentalist Red Flags Char Dham Project Dangers

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