NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी-हसीना वार्ता में छाया रहा एनआरसी का मुद्दा
भारत की स्थिति में बदलाव ऐसे भविष्य का संकेत देते हैं जिसमें निर्वासन एक सच्चाई के रूप में सामने आ जाये।
सीमा गुहा  
07 Oct 2019
modi haseena talk

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा पूरी तरह सफल रही है। इस वार्ता के दौरान कुल सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए और साझा बयान में कहा गया है कि हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'साझे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भाषाई, धर्मनिपेक्षता और अन्य विशिष्ट समानताओं को याद किया, जिसमें दोनों देशों की साझेदारी परिलक्षित होती है।'

जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं उनमें बांग्लादेश की समुद्री निगरानी प्रणाली को भारतीय समुद्री सुरक्षा के रूप में प्रदान किया जायेया। दोनों नेताओं ने वीडियो लिंक के जरिये तीन परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया। उसमें बांग्लादेश से एलपीजी के थोक आयात, ढाका में रामकृष्ण मिशन के छात्रों के लिए विवेकानंद भवन के निर्माण और खुलना में एक व्यावसायिक कौशल विकास परियोजना शामिल है।

इसके अलावा अब भारतीय जहाज बांग्लादेश के चट्टोग्राम और मोंगला नामक दोनों बंदरगाहों का उपयोग करने में सक्षम होंगे, जिससे व्यस्तम चिटगांव बंदरगाह की भीड़भाड़ को कम करने में सफलता मिलेगी।

इस कदम से निश्चित रूप से भारत और बांग्लादेश के बीच मालवाहक जहाजों के तेजी से ढुलाई होना संभव हो सकेगा और परिवहन लागत में भी कमी आएगी।

लेकिन बैठक में असम का राष्ट्रीय नागरिक गणना (एनआरसी) वह असल मुद्दा था जो भविष्य में  दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों के लिए सबसे अहम साबित होगा। दोनों पड़ोसी देशों के बीच आधिकारिक बयानों में खुशमिजाजी और गर्माहट की झलक के साथ ढाका में इस बात को लेकर बढती हुई चिंता देखी जा सकती है जिसमें उन लोगों को वापस लेना होगा, जिन्हें भारत विदेशी घोषित कर सकता है।

ढाका पहले से ही 7,50,000 रोहिंग्या शरणार्थियों को, जो दो साल पहले दंगों के कारण म्यांमार से भागकर बांग्लादेश में शरणागत हैं, के बोझ से उबर नहीं पाया है। पहले से ही अत्यधिक जनसंख्या के बोझ का सामना कर रहा देश भारत से और संख्या में लोगों की वापसी का बोझ उठाने की हालत में नहीं है।

भारत सरकार ने बांग्लादेश को आश्वस्त किया है कि एनआरसी उसका आंतरिक मुद्दा है। यह तय है कि सरकार ने स्पष्ट करने की कोशिश की है कि यह मामला सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को ऐसा करने का निर्देश दिया था। लेकिन सर्वोच्च अदालत सरकार को अधिक से अधिक को यह पता लगाने के लिए निर्देशित कर सकती है कि नागरिकता के लिए कौन कौन लोग योग्य हैं। एक बार जब यह प्रक्रिया खत्म हो जायेगी तब यह सरकार पर निर्भर है कि वह उन्हें निर्वासित करे या नहीं। यह 1985 में हस्ताक्षरित असम समझौते का हिस्सा है। निश्चित रूप से इसमें बांग्लादेश की भूमिका बनती है।

जो वैधानिक रूप से नागरिक नहीं पाए जायेंगे उन विदेशियों को आखिर कहां भेजा जाएगा? या फिर वे हमेशा के लिए रोहिंग्याओं की तरह ‘कहीं के नहीं’ वे लोग साबित होंगे, जिनकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं है?

सरकारी सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश ने एनआरसी और इससे उठने वाले सवालों पर भारत के समक्ष मुद्दा उठाया है। भारत ने कहा है, 'इस प्रक्रिया को पूरा होने दें।' यह एक उल्लेखनीय बदलाव है, जब दोनों नेता न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की मीटिंग के अवसर पर मिले थे और शेख हसीना को कहा गया था कि 'चिंता न करें'। स्थिति में यह बारीक बदलाव भविष्य की ओर इशारा करता है जिसमें निर्वासन संभव है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि शनिवार को होने वाली भारतीय प्रधानमंत्री के साथ बैठक में एक बार फिर दौरे पर आई नेता इस मुद्दे को उठाएं। क्योंकि किसी के पास यह सुराग नहीं है कि दिल्ली उन असहाय लोगों के साथ क्या करेगी जिन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल की पूरी प्रक्रिया संपन्न होने के बाद बाद गैर-नागरिक घोषित किया जायेगा।

अब, पूरे देश में NRC को लागू करने की बात हो रही है। आगामी विधानसभा चुनाव प्रक्रिया में शामिल राज्य, हरियाणा और महाराष्ट्र इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तृणमूल कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लक्ष्य के साथ काम कर रही है, वहां एनआरसी का मुद्दा जोर शोर से बहस में है।

दिल्ली में भाजपा नेतृत्व सार्वजनिक रूप से राजधानी में अवैध घुसपैठियों के बारे में चिंता जताकर मुद्दे को तूल दे रहा है।

भारत के लिए बांग्लादेश से अवैध घुसपैठियों का मुद्दा हमेशा से गरमागरम बहस का मुद्दा रहा है। ‘बांग्लादेशियों’ के अवैध घुसपैठ के खिलाफ आन्दोलन खड़ा करने के जरिये ही असम गण परिषद ने असम में सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की थी।

असम आंदोलन के शुरुआती दिनों से ही, छात्रों को बीजेपी का समर्थन प्राप्त था। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवाणी और जसवंत सिंह जैसे नेता 80 के दशक के शुरुआती दिनों में अक्सर इस आंदोलन के समर्थन में असम का दौरा करते थे।

2014 और 2019 के राष्ट्रीय चुनावों के दौरान, भाजपा-एजीपी गठबंधन ने सार्वजनिक रूप से राज्य से अवैध बांग्लादेशियों को निकाल बाहर करने की घोषणा की थी। यह वह वादा था जिसने बीजेपी को सत्ता प्राप्त करने में मदद दी।

विधानसभा चुनावों में भी, भाजपा-अगप ने चुनावों में उलटफेर कर पूर्वोत्तर के अन्य प्रदेशों में पार्टी के लिए सत्ता प्राप्ति के दरवाजे खोल दिए। इन सभी चुनाव अभियानों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ जोर शोर से आवाज उठाई गई।

फिर भी, ढाका ने इसे बहस से बाहर रखा और विरोध नहीं किया। बांग्लादेश ने हमेशा इस बात को कहा है कि वह उन सभी को वापस लेने को तैयार है जो यह साबित कर सकें कि वे बंगलादेशी नागरिक हैं। इसे मानने में कोई हर्ज नहीं कि अधिकांश लोग गरीब, अनपढ़ किसान हैं और उनके पास खुद को भारतीय या बांग्लादेशी नागरिकता को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं मिल सकते। इसी आधार पर बांग्लादेश में आने वाली सभी सरकारों ने लगातार यह दावा किया है कि भारत में कोई अवैध बांग्लादेशी नहीं है।

हसीना को भारत का दोस्त माना जाता है। वे बांग्लादेश में सबसे लम्बे समय तक प्रधान मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे चुकी नेता हैं, जिन्होंने 2008 के बाद से लगातार तीन कार्यकाल पूरे किए हैं।

उस वर्ष भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने जो पहला काम यह किया था उसमें एक अलगाववादी ग्रुप यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के नेताओं को भारत को सौंपने का काम शामिल था, जिसका संचालन पहले बांग्लादेश से होता था। तब से, अवामी लीग सरकार के साथ पहले से ही मौजूद दोस्ताना संबंध एक अच्छे पड़ोसी संबंधों का एक उदाहरण बन गए। मोदी की भाजपा सरकार ने इन संबंधों को बढ़ावा देने और पोषित करने की नीतियों को जारी रखा। वास्तव में, भूटान को छोड़कर, पडोसी देशों में बांग्लादेश, भारत के सबसे करीबी दोस्तों में से एक है।

लेकिन अब, एनआरसी एक प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है और भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। मोदी सरकार के पास यह चुनौती है और वह इस बात का कोई संकेत नहीं दे रही है कि वह मुस्लिम बांग्ला भाषी आप्रवासियों के मुद्दे से किस प्रकार निपटने की तैयारी कर रही है, जिन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा जल्द ही विदेशी घोषित कर दिया जाएगा।

यह एक दुःखद सच्चाई है कि सिर्फ यही लोग इस मुद्दे से प्रभावित होने जा रहे हैं। विदेशी अधिनियम में संशोधन, जिसे भाजपा सरकार संसद में पास कराने के लिए कृत संकल्प है के जरिये यह सुनिश्चित करेगी कि बंगाली हिंदू शरणार्थी, अफगानिस्तानी सिख, पाकिस्तानी हिंदू, के साथ ही साथ सताए गए ईसाई और पारसी सभी लोग भारतीय नागरिकता के हक़दार होंगे। सिर्फ मुसलमानों को इससे वंचित रखा जा रहा है।

असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्य नागरिकता संशोधन विधेयक से खुश नहीं हैं और हिंदू शरणार्थियों को भी इस क्षेत्र से बाहर करना चाहते हैं। हालांकि, भाजपा इस बात पर अड़ी हुई है कि हिंदू शरणार्थी, वे चाहे कभी भी देश की सीमा में प्रवेश किये हों, उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। जबकि अन्य लोग धार्मिक आधार पर भारत में नागरिकता देने के लिए संशोधन का विरोध कर रहे हैं।

हालांकि, इस बात की संभावना अधिक है कि भाजपा जल्द ही संशोधन विधेयक के जरिये अपना एजेंडा आगे बढाने में सफल रहेगी। भाजपा चाहती है कि यह विधेयक पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले पारित हो जाए, जहां वह हिंदू कार्ड खेल रही है और प्रचारित कर रही है कि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी न केवल मुसलमानों के हितों का पक्षपोषण कर रही हैं, बल्कि बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ को उकसा रही हैं।

फिलहाल, बांग्लादेश भारत में खुलकर निर्वासन का मुद्दा नहीं उठा रहा है। हसीना संभवतः भारत को अपने अनिश्चय को दूर करने का समय दे रही हैं और इस बात का इंतजार कर रही हैं कि आखिर में भारत क्या फैसला लेता है। दिल्ली का लोगों को बांग्लादेश विस्थापित करने वाला कोई भी प्रस्ताव, जिसे एक या दो साल के अंदर लेना होगा, भारत-बांग्लादेश दोस्ती के लिए किसी कयामत से कम नहीं साबित होगा।

अवामी लीग पर हमेशा से विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी और जमात ने भारत समर्थक होने का आरोप लगाया है। अगर अंत में यह तय हुआ कि ढाका को भारत से निर्वासितों को स्वीकार करना होगा, तो यह अवामी लीग के लिए राजनीतिक रूप से विनाशकारी साबित होगा। शेख हसीना को पहले ही तीस्ता जल समझौते पर भारत के इंकार के रूप में झटका लग चुका है, मुख्य रूप से ममता बनर्जी द्वारा उस समझौते से पीछे हटने के चलते।

इस साल मोदी सरकार की शानदार चुनावी जीत के बाद, ऐसा लगता है कि सरकार बीजेपी के लम्बे समय से चले आ रहे वैचारिक मान्यताओं को अमली जामा पहनाने के लिए आमादा है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करना, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के नाम पर ट्रिपल तलाक विधेयक, साथ ही नागरिकता कानूनों में संशोधन करने का कदम, सभी एक के बाद एक लागू किये जा रहे हैं।

विदेशी नागरिकों को देश से बाहर करने का मुद्दा भी राष्ट्रवादी नैरेटिव का ही एक हिस्सा है। बांग्लादेश को दिए गए सभी आश्वासनों के बावजूद क्या वह इसे कर पायेगी यह देखा जाना अभी शेष है। संक्षेप में कहें तो, दुनिया में भारत की तस्वीर बेहद बदली हुई नजर आएगी, और भारत के सन्दर्भ में पश्चिमी देशों के लिए मानव अधिकारों का मुद्दा सबसे प्रमुख होगा। क्या भारतीय कूटनीति इस गिरावट को संभालने में खुद को सक्षम पायेगी?
 
सीमा गुहा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो कई दशकों से विदेश नीति और उत्तर पूर्व को कवर कर रही हैं। लेख में प्रस्तुत विचार लेखिका के व्यक्तिगत हैं।

Bangladesh illegal immigrants
Sheikh Hasina-Modi talks
NRC Assam
NRC Bangladesh fallout
Mamata Bannerjee
Jamaat Bangladesh

Trending

बंगाल ब्रिगेड रैली, रसोई गैस के बढ़ते दाम और अन्य
ख़ास मुलाक़ात: बिना लड़े हमें कुछ नहीं मिल सकता - नौदीप कौर
छत्तीसगढ़: माकपा ने कहा यह ज़मीन पर उतारने वाला बजट नहीं
मांगने आए रोज़गार, मिली पुलिस की लाठी–पानी की बौछार
बंगाल: वाम फ्रंट ने ब्रिगेड रैली से किया शक्ति प्रदर्शन, "सांप्रदायिक तृणमूल और भाजपा को हराने’’ का किया आह्वान
रसोई गैस के फिर बढ़े दाम, ‘उज्ज्वला’ से मिले महिलाओं के सम्मान का अब क्या होगा?

Related Stories

कोलकाता
रबींद्र नाथ सिन्हा
कोलकाता सिटी लेदर कॉम्प्लेक्स में काम फिर से शुरू
08 October 2020
कोलकाता: पिछले दो महीनों में प्रवासी मज़दूरों के गांवों से वापस लौट आने से कलकत्ता लेदर कॉम्प्लेक्स (CLC) में काम की गति बढ़ गई है
Assam
आईसीएफ़
असम और CAA : 1947 से लेकर असम समझौते तक
13 March 2020
1948- पूर्वोत्तर में RSS ने एकनाथ रानाडे को प्रांत प्रचारक बनाया। उन्होंने ''सांस्कृतिक विस्तार'' के लिए इलाके में विवेकानंद केंद्
Assam and the CAA
आईसीएफ़
असम और CAA : आज़ादी से पहले की टाइमलाइन
12 March 2020
इस सीरीज़ में 19वीं सदी से लेकर आज तक असम के भाषायी, धार्मिक, जातीय-राष्ट्रवाद और नागरिकता इतिहास का ज़िक्र है। यह तीन हिस्सों वाली सीरीज़ का पहला हिस

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • Daily roundup
    न्यूज़क्लिक टीम
    बंगाल ब्रिगेड रैली, रसोई गैस के बढ़ते दाम और अन्य
    01 Mar 2021
    आज के डेली राउंड-अप में शुरुआत करेंगे कोलकाता में हुई वाम सेक्युलर मोर्चा रैली से, साथ ही सुनेंगे क्या कहना है 23 वर्षीय दलित अधिकार एक्टिविस्ट, नौदीप कौर का। अंत में नज़र डालेंगे बढ़ते रसोई गैस के…
  • नौदीप कौर
    न्यूज़क्लिक टीम
    ख़ास मुलाक़ात: बिना लड़े हमें कुछ नहीं मिल सकता - नौदीप कौर
    01 Mar 2021
    वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बातचीत की भारत की बहादुर बेटी, दलित लेबर एक्टिविस्ट नौदीप कौर से, जिन्हें बहुत गंभीर आरोपों में हरियाणा पुलिस ने 12 जनवरी 2021 को कुंडली से गिरफ्तार किया था। वह…
  • भूपेश बघेल
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़: माकपा ने कहा यह ज़मीन पर उतारने वाला बजट नहीं
    01 Mar 2021
    “पिछले वर्ष मनरेगा में 2600 करोड़ रुपयों का भुगतान किया गया था, लेकिन इस वर्ष के बजट में मात्र 1600 करोड़ रुपये ही आवंटित किये गए हैं। यह कटौती 38% से अधिक है।”
  • भारतीय आर्किटेक्चर के लिए अलग-अलग विषयों के समायोजन का वक़्त?
    सुदेश प्रभाकर
    भारतीय आर्किटेक्चर के लिए अलग-अलग विषयों के समायोजन का वक़्त?
    01 Mar 2021
    यहां राष्ट्रीय महत्व की चार प्रस्तावित परियोजनाओं की स्थापत्य शैली का विश्लेषण किया गया है।
  • मांगने आए रोज़गार, मिली पुलिस की लाठी–पानी की बौछार
    अनिल अंशुमन
    मांगने आए रोज़गार, मिली पुलिस की लाठी–पानी की बौछार
    01 Mar 2021
    पुलिस ने माले विधायक मनोज मंजिल और संदीप सौरभ से भी मार-पीट की, यहां तक कि विधायक अजित कुशवाहा जी के कपड़े भी फाड़ दिए गए। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें