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पांच महीनों में प्याज की कीमतों में आया 253 फ़ीसदी का उछाल

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा प्याज की कीमतों के नियंत्रण के लिए बाज़ार विश्लेषण पर बीजेपी सरकार ने नहीं दिया ध्यान
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प्याज के ऊंचे दामों की समस्या एक बार फिर लोगों के सामने खड़ी हो गई है। लेकिन इस बार तीन महीने से प्याज आम लोगों की जेब काट रही है। इस साल अगस्त और दिसंबर के बीच, देश में औसतन प्याज के दामों में 253 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। बाजारों में औसतन प्याज का दाम 100 रुपये किलो है। वहीं कुछ बड़े शहरों में दिसंबर के पहले हफ्ते में प्याज 200 रुपये किलो की दर बिकी है।

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने से पहले, यूपीए सरकार की एक बड़ी असफलता प्याज जैसे रेशेदार खाद्यों के दाम पर काबू करने में असफलता थी। इस मुद्दे पर उस वक्त विपक्ष में मौजूद एनडीए ने यूपीए पर खूब हमले भी किए थे। लेकिन तबसे स्थिति और बदतर होती चली गई।

इस बीच किसान संगठनों का अंदाजा है कि अगले सीजन में प्याज का अतिउत्पादन होगा, क्योंकि किसानों ने कभी प्याज के दामों में इतनी बढ़ोत्तरी नहीं देखी। एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी, लासलगांव के निदेशक जयदत्त होलकर ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया,'' रबी की फसलों के क्षेत्र में अब उछाल आएगा, क्योंकि किसानों ने कभी इतने ऊंचे प्याज के दाम नहीं देखे।'' 

विश्लेषकों का मानना है कि बढ़े हुए दामों की वजह कर्नाटक औऱ महाराष्ट्र में आई भयंकर बाढ़ है। दोनों प्रदेश सब्जियों के सबसे बड़े उत्पादक हैं। लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक़, कृषि सत्र के अंत में जून 2019 तक 23.28 मिलियन टन प्याज का उत्पादन हो चुका था। यह आंकड़ा पिछले साल की पैदावार के काफ़ी करीब है।

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने प्याज बाज़ार का दो बार विश्लेषण किया है। 2012 और 2015 में किए गए इन विश्लेषणों में समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की गई थी। इन दो अध्ययनों से पता चला कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के चुनिंदा बाजारों में व्यापारियों के बीच गठजोड़ से प्याज की कीमतों में उछाल आया था। इसके अलावा मार्केटिंग पर लगने वाला पैसा, खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, प्याज की ऊंची कीमतों पर कुछ व्यापारियों का अधिकार, नए व्यापारियों की आवक पर प्रतिबंध, बाज़ार प्रशासकों की अकसर होने वाली हड़तालें भी प्याज के दामों में उछाल लाने में योगदान देती हैं। लेकिन समस्या के समाधान के बजाए सरकार ने दूसरे देशों से प्याज के आयात में ढील दे दी। इस कदम की कृषक संगठनों ने कड़ी आलोचना की है।   

पूर्व सांसद और स्वाभिमान शेतकारी संगठन नाम के कृषक संगठन के स्थापक राजू शेट्टी ने इकनॉमिक टाइम्स से कहा,''हम आयात के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन इसका मौका खराब है। सरकार जो आयात करवा रही है, वह तब भारत पहुंचेगा जब स्थानीय उत्पादन अपने चरम पर होगा। प्याज उत्पादन करने वाले किसानों को पिछले दो सालों में बड़ा नुकसान हुआ है। सही होता कि उन्हें अपने नुकसान की भरपाई करने दी जाती।''

रिपोर्टों के मुताबिक़ 2010 से 2014 के बीच प्याज की कीमतों में पांच बार उछाल आया है।

o.JPGSource: Annual Price and Arrival Report, National Horticulture Board

बीजेपी जब सत्ता में आई तो पहली बड़ी बाधा प्याज की बढ़ी हुई कीमतें ही थीं। 2014 में मई और जुलाई के बीच प्याज की कीमतों में 62 फ़ीसदी उछाल आया था। अगले साल, 2015 में जून और सितंबर के बीच कीमतों में 125 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई और कीमतें 60 रुपये किलो तक पहुंच गईं। 2017 में कीमतों में दो बार वृद्धि दर्ज की गई। प्याज की कीमतों में जुलाई से अगस्त के बीच 106 फ़ीसदी और सितंबर से नवंबर में और 60 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी हुई। 

2019 के अगस्त में प्याज का खुदरा मूल्य 27 रुपये प्रति किलो था, इस साल दिसंबर तक प्याज 100 रुपये प्रति किलो की भारी-भरकम कीमत पर बिक रही है। अगस्त से अभी तक इन कीमतों में 253 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी हो चुकी है।

डेटा एनालिसिस पीयूष शर्मा ने किया है।

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