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भारतीय रेल में पैंट्री कार को डी-लिंक करने के प्रस्ताव से 10,000 से अधिक रोज़गार प्रभावित होने की संभावना

चूँकि प्रत्येक पैंट्री कार में कार्यरत रसोइयों एवं वेटर सहित 20 से लेकर 30 कर्मचारियों का कार्यदल इस काम में शामिल रहता है, ऐसे में इस फैसले से कुछ नहीं तो कम से कम 10,000 से अधिक लोगों की नौकरियों के छिन जाने की आशंका बनी हुई है।
भारतीय रेल में पैंट्री कार

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी पर काबू पा लेने के बाद भी सफर के दौरान यात्रियों को अपने खुद के भोजन एवं बिस्तर का इंतजाम करना पड़ रहा है, जिसे शायद अब एक नए सामान्य नियम के तौर पर स्वीकार कर लेना होगा। भारतीय रेलवे 300 से अधिक ट्रेनों में पैंट्री कार को खत्म करने के प्रस्ताव को अमल में लाने जा रही है, और उसके स्थान पर एक और एसी 3-टीयर कोच को चलाया जा सकता है। इसके साथ ही राजस्व बढ़ाने के उपायों के तौर पर ट्रेन में ओढ़ने-बिछाने के लिए मुहैया कराये जाने वाले लिनेन सेवा को भी बंद किया जा रहा है।

इसके बजाय रेलवे की योजना प्रमुख स्टेशनों पर बेस किचन बनाने की है, जिससे कि यात्रियों के लिए डिब्बाबंद भोजन मुहैया कराया जायेगा। इसके अतिरिक्त ई-कैटरिंग भी एक विकल्प के तौर पर मौजूद है।

यह सब इस तथ्य को जानने के बावजूद किया जा रहा है कि पैंट्री कार की व्यवस्था खत्म कर देने से उन लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने जा रहा है जो वर्षों से कैटरिंग व्यवसाय में लगे हुए थे। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि यह प्रस्ताव असल में दो प्रमुख रेलवे यूनियनों की ओर से राजस्व बढ़ाने के उपायों के तौर पर सुझाया गया था, जिसे राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर ने तत्काल हाथों-हाथ स्वीकारने में कोई देर नहीं लगाई है। 

इस संबंध में देखें तो मेल/एक्सप्रेस, सुपरफ़ास्ट एवं प्रीमियर सेवाओं सहित तकरीबन 350 जोड़ी ट्रेनें हैं, जिनमें पैंट्री कार की सुविधा मौजूद है।

चूँकि प्रत्येक पैंट्री कार में रसोइयों और वेटरों सहित 20 से लेकर 30 लोगों का स्टाफ इस काम में शामिल रहता है, इसलिए अनुमान है कि इस फैसले से एक ही झटके में कम से कम 10,000 से अधिक नौकरियों पर असर पड़ने जा रहा है।

हालाँकि दोनों ही यूनियनों ने अपने सुझावों के बचाव में जो तर्क पेश किये हैं उसमें इनका मानना है कि पैंट्री कारों में जो काम करने वाले लोग रेलवे के कर्मचारी नहीं हैं, क्योंकि रेलवे में कैटरिंग का काम निजी ठेकेदारों द्वारा किया जाता है।

नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेलवेमेन के जनरल सेक्रेटरी एम राघवैया का कहना है “इन पैंट्री कारों की खान-पान की सेवाओं से रेलवे को किसी भी प्रकार का यात्री राजस्व अर्जित नहीं होता है, उल्टा एक यात्री कोच की जगह ही इसकी वजह से कम हो जाती है। ई-कैटरिंग, बेस किचन, रेल के साथ बिक्री के जरिये पैंट्री कार से किये जाने वाली खानपान सेवाओं को स्थानापन्न किया जा सकता है। रेलवे चाहे तो पैंट्री कार की जगह पर हर ट्रेन में एक एसी 3-टीयर कोच जोड़ सकती है।”

उनके अनुसार पैंट्री कार को खत्म करके यदि एसी 3-टीयर कोच जोड़ दिया जाए तो सालाना 1,400 करोड़ रुपयों के अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति संभव है।

इसी प्रकार आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी शिव गोपाल मिश्र का कहना है कि “देश भर के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों में बेस किचन के जरिये भोजन को मुहैया कराया जा सकता है। ऐसे में मुसाफिरों को कैटरिंग सेवाओं को लेकर कोई परेशानी नहीं होने जा रही है।”

वे आगे कहते हैं “रेलवे कर्मचारियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा है क्योंकि पैंट्री कार के संचालन के काम में रेलवे कर्मचारी शामिल नहीं हैं। इन सेवाओं को निजी ठेकेदारों को आउटसोर्स किया जाता रहा है। वैसे भी रेलवे को किचन सर्विस या पैंट्री सर्विस से कोई राजस्व की प्राप्ति नहीं होती थी।”

इससे पूर्व रेलवे ने खर्चों में कटौती और कोरोनावायरस से बचाव के मद्देनजर लांड्री सेवाओं को पहले से ही बंद किया हुआ था।

यात्री सुविधाओं की देखरेख का जिम्मा संभाल रहे रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार “कोरोनावायरस महामारी के चलते ऑनलाइन कैटरिंग और लिनेन सेवाएं पहले से ही बंद थीं और कई रेल सुविधाओं में कटौती कर दी गई थी। हालाँकि महामारी के बाद भी पैंट्री कार के बिना ट्रेन सेवाओं को जारी रखना अब एक नई सामान्य बात होने जा रही है, जबकि यात्रियों के लिए स्टेशनों से डिस्पोजेबल लिनेन को खरीदने के विकल्प को मुहैया कराया जा सकता है।”

लिनेन सेवा में अभी तक एसी कोच के यात्रियों के लिए तकिये, बेडशीट, हाथ साफ़ करने के लिए तौलिया और कंबल मुहैया किया जाता था।

अधिकारी ने आगे कहा कि जहाँ सभी बेस किचन अपना काम करते रहेंगे, वहीँ ट्रेन के भीतर कैटरिंग सेवाएं को पहुँचाने के काम को स्टेशनों पर मौजूद ट्रेन के साथ चलने वाले विक्रेताओं, स्थाई कैटरिंग यूनिटों एवं ई-कैटरिंग सेवाओं के जरिये मुहैया कराया जा सकता है।

गंभीर वित्तीय दबाव से जूझ रही रेलवे ने इस बीच अपने खर्चों में कटौती करने के साथ-साथ कमाई बढ़ाने को लेकर कई नए-नए उपायों को तलाशने को लेकर विचार करना शुरू कर दिया है।

जून में रेलवे के वित्त आयुक्त ने सभी जोन को नई भर्तियों पर रोक लगाने, सेवानिवृत्त एवं दोबारा काम पर लिए गये कर्मचारियों को पद मुक्त करने, आउटसोर्स गतिविधियों को कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी फण्ड में डालने, विभिन्न औपचारिक कार्यक्रमों को डिजिटल मंचों के जरिये संपन्न करने के अलावा आर्थिक तौर पर गैर फायदेमंद लाइनों पर तत्काल विचार कर उनकी बंदी की संभावनाओं जैसे अन्य उपायों की बाबत लिखा था। 

कोविड-19 के दुष्प्रभाव के परिणामस्वरूप भारतीय रेलवे की रेल यातायात से होने वाली आय भी इस साल पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम हो चुकी है। पिछले वर्ष मार्च से लेकर अगस्त माह में हुई आय की तुलना में इस वर्ष इसमें 42.3% तक की गिरावट दर्ज हुई है।

इतना ही नहीं रेलवे यूनियनों ने कार्यालयों की सजावट इत्यादि में होने खर्चों के साथ-साथ कार्यालय भवनों के रंग-रोगन इत्यादि पर होने वाले बेकार के खर्चों पर भी कम से कम दो साल तक रोक लगाये जाने को लेकर सुझाव दिया है।

इसके अतिरिक्त विभिन्न गतिविधियों जैसे कि खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधि, स्काउटिंग, कमेटियों, सेमिनारों, वार्षिक सम्मेलन जैसे विभिन्न विभागीय सालाना निर्धारित बैठकों पर होने वाले खर्चों पर रोकथाम को लरक भी समीक्षा की जा रही है।

यूनियनों का कहना है कि “जो परियोजनाएं वित्तीय तौर पर व्यवहार्य नहीं हैं, उन्हें कम से कम अभी के लिए ठन्डे बस्ते में डालना ही उचित रहेगा।”

इसलिए यदि रेलवे वास्तव में ट्रेनों से पैंट्री कार को खत्म करने को लेकर कदम उठाती है तो न सिर्फ लंबे सफर के दौरान मिलने वाले गर्मागर्म मनपसन्द भोज्य पदार्थ एक गुजरे जमाने की बात साबित होने जा रही है, बल्कि यह कदम रेलवे के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों पर भी प्रतिकूल असर डालने वाला साबित होगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Over 10,000 Jobs to Be Affected in Rail Sector with Proposal to Delink Pantry Cars

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