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पेप्सीको और मोनसेंटो का फ़र्जी केस भारतीय किसानों पर हमला है

मोनसेंटो और पेप्सीको के संघर्ष का मुख्य लक्ष्य एकाधिकार के साथ धन कमाने का प्रयास करना है जिस पर वास्तव में उनका कोई अधिकार नहीं है।
पेप्सीको और मोनसेंटो का फ़र्जी केस भारतीय किसानों पर हमला है

प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लांट वेराइटी एंड फ़ार्मर्स प्रोटेक्शन राइट्स (पीपीवी एंड एफ़आर) के तहत अपने बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन को लेकर गुजरात में आलू उत्पादन करने वाले नौ किसानों के ख़िलाफ़ पेप्सिकों मामले ने भारतीय किसानों के सामने ख़तरा पैदा कर दिया है। पेप्सीको यूएस की बहुराष्ट्रीय कंपनी है। पेप्सीको प्रत्येक किसान से 1.05 करोड़ रुपये के नुकसान की मांग कर रही है। यह पिछले साल मई महीने में दिल्ली उच्च न्यायालय में पहले के एक मामले में आया है जहाँ मोनसेंटो ने अपने बीटी कॉटन बीज पर पेटेंट अधिकार का दावा किया है और तेलंगाना की बीज कंपनी पर मुक़दमा दायर किया है। इसके अलावा हमें चीन के साथ भारत के ख़तरे को जोड़ना चाहिए जो कि अमेरिका के तथाकथित बौद्धिक संपदा अधिकारों के लिए सबसे बड़े ख़तरे का हवाला देते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधियों (यूएसटीआर) द्वारा प्रस्तुत किया गया।

बीटी पेटेंट मामले की सुनवाई अब केंद्रीय मुद्दे पर होगी कि क्या मोनसेंटो का इन बीजों पर पेटेंट का दावा भारतीय पेटेंट कानून के तहत वैध है। लोगों के काफ़ी विरोध के बाद पेप्सीको ने गुरुवार 1 मई को किसानों के ख़िलाफ़ मामला वापस ले लिया है।

मोनसेंटो और पेप्सीको के संघर्ष का मुख्य लक्ष्य एकाधिकार के साथ धन कमाने का प्रयास करना है जिस पर वास्तव में उनका कोई अधिकार नहीं है। यह उस पूंजी का उपयोग है जिसे "बौद्धिक संपदा" कहा जाता है और जो वास्तव में सदियों और हज़ारों वर्षों में मानव ज्ञान तथा रचनात्मकता संचित किया है। ज्ञान या रचनात्मकता में एक छोटा सा मोड़ कुछ ऐसी चीज़ पैदा करता है जिसे हम नए या अभिनव के रूप में पहचानते हैं। इसे हम पहले की घटनाओं से अलग कैसे करते हैं? ऐसा क्यों है कि केवल अंतिम मील यानी नवीनतम मोड़ एकाधिकार होना चाहिए और ये नहीं जो किसानों ने हज़ारों वर्षों में उत्पादन किया है?

जब हम लाइफ़ फ़ॉर्म (पौधों के प्रकार) पर प्लांट ब्रीडर्स के अधिकारों या पेटेंट अधिकारों की बात करते हैं तो हम इस बारे में बात कर रहे हैं कि प्रकृति ने लाखों वर्षों के विकास में क्या कुछ पैदा किया है और किसानों ने नवपाषाण से लेकर अब तक हज़ारों वर्षों में चुनिंदा प्रजनन के माध्यम से कौन सी खेती की है और क्या सुधार किया है। अब हमारे पास बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हैं जिन्होंने मौजूदा कृषि-रासायनिक बाज़ारों से अपनी क्षमता समाप्त कर ली है, वे अब बीज के बाज़ार में स्थानांतरित होना चाहती हैं और बीज पर एकाधिकार करना चाहती हैं। इनमें पेप्सीको जैसी खाद्य कंपनियाँ हैं जो अपने स्रोत, उदाहरण स्वरूप आलू को सीमित करके अपने मुनाफ़े को बढ़ाना चाहती हैं ताकि किसान कुछ और उत्पादन न कर सकें। पौधे के प्रजनक अधिकार या पेटेंट अधिकार दोनों बौद्धिक संपदा अधिकारों के अलग-अलग रूप हैं। भले ही जिस क़ानून के तहत अधिकारों का दावा किया जा रहा है वह अलग-अलग हैं। मोनसेंटो पेटेंट अधिनियम का उपयोग करना चाहता है जबकि पेप्सीको पौधे की क़िस्मों के अधिनियम का उपयोग करना चाहता है।

हम में से ज़्यादातर लोगों ने सोचा कि विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने के चलते 2004 में भारतीय पेटेंट अधिनियम में संशोधन और 2001 में प्रोटेक्शन ऑफ़ प्लांड वराइटीज एंड फ़ार्मर राइट्स (पीपीवी एंड एफ़आर) के साथ हमने ट्रेड-रिलेटेड अस्पेक्ट्स ऑफ़ इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी राइट्स (टीआरआईपीएस) पर समझौते के तहत अनुमति दिए गए उदारता का उपयोग किया और बौद्धिक संपदा व्यवस्था का निर्माण किया जो ज़्यादातर देशों में मौजूद व्यवस्था की तुलना में टीआरआईपीएस के तहत काफ़ी अनुकूल था। वामपंथ के दबाव में बड़े संशोधनों को शामिल करने के बाद इसे पारित किया गया था, इस प्रकार सस्ती दवा, बीज, और मुफ़्त तथा खुले स्रोत सॉफ़्टवेयर के लिए लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है। मनमोहन सिंह सरकार को ये अधिनियम पारित करने के लिए वामपंथ के समर्थन की आवश्यकता थी और इसलिए इन संशोधनों को स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबकि इस पेटेंट अधिनियम में धारा 3 (डी) जो नवीन के रूप में साधारण संशोधनों की अनुमति नहीं देता है वह प्रसिद्ध है। इसी तरह लाइफ़ फ़ॉर्म (पौधों के प्राकर) तथा सॉफ़्टवेयर पेटेंट के अलावा अन्य प्रमुख खंड हैं। धारा 3 (जे) के तहत बीज सहित कोई भी लाइफ़ फ़ॉर्म पेटेंट योग्य नहीं है; और बीज स्पष्ट रूप से धारा 3 (जे) में उल्लिखित हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय में मोनसेंटो का मामला पूरी तरह से कल्पित है।

इसी तरह पीपीवी एंड एफ़आर किसानों के साथ साथ पौधे का प्रजनन करने वालों की रक्षा करने का एक प्रयास था। यह पौधों की क़िस्मों की विशेष रक्षा करने वाला एक अनूठा उदाहरण है। टीआरआईपीएस के अधीन भारत को नए पौधों की क़िस्मों को या तो पेटेंट या विशेष (सुई जेनरिस-अपनी तरह का) संरक्षण प्रदान करना था। अमेरिका ने पेटेंट संरक्षण के लिए तर्क दिया था लेकिन लाइफ़ फ़ॉर्म (पौधों के प्रकार) पेटेंटिंग के ख़िलाफ़ उस समय यूरोपीय संघ के साथ भारत ख़ुद के लिए कुछ स्थान पाने में सक्षम था और विशेष संरक्षण के रूप में लाइफ़ फ़ॉर्म के लिए पेटेंट संरक्षण का एक विकल्प प्राप्त कर लिया। भारत के अलावा पौधों की क़िस्मों का एकमात्र अन्य विशेष संरक्षण प्रोटेक्शन ऑफ़ न्यू वेरिएंट्स ऑफ़ प्लांट्स (यूपीओवी) के लिए इंटरनेशनल यूनियन से होता है जो पौधों के प्रजनन करने वालों की सुरक्षा करता है न कि किसानों की। भारतीय अधिनियम विशिष्ट था क्योंकि इसने दोनों अधिकारों की रक्षा की मांग की थी लेकिन खंड 39 (1) (iv) के प्रति सचेत था कि किसानों के अधिकार पौधे के प्रजनकों के अधिकारों को प्रभावित करेंगे। इसमें कहा गया है कि इस अधिनियम में और कुछ होने के बावजूद किसान संरक्षित क़िस्म के बीज सहित अपने खेत की उपज को संरक्षित कर सकते हैं, इस्तेमाल कर सकते हैं, बुआई सकते हैं, दोबारा बुआई सकते हैं, अदला बदली कर सकते हैं, साझा कर सकते हैं या बेच सकते हैं। यह एक व्यापक और अति महत्वपूर्ण प्रावधान है। किसान के बीजों का वर्गीकरण करना एकमात्र बाधा था जैसे कि एफ़सी 5 जिस पर पेप्सिको प्रजननकर्ता के अधिकार का दावा कर रहा है और इसे बाज़ार में बेच रहा है।

जबकि क़ानून स्पष्ट है जो इस लड़ाई को असमान बनाता है, वह है बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शक्ति। पेप्सी, कोक, और मोनसेंटो मान रहे हैं कि उनके पहले के एकाधिकार पर्याप्त नहीं हैं, उन्हें और भी अधिक मुनाफ़े की आवश्यकता है। दोनों अब इस पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि कृषि को अपने नियंत्रण में कैसे लाया जाए। मोनसेंटो के साथ रासायनिक तथा फ़ार्मा का दिग्गज बेयर विलय कर रहा है ताकि दोनों एक साथ मिलकर बीज, कृषि-रसायन और उर्वरक बाजारों को नियंत्रित कर सकें। पेप्सीको को पूर्ववर्ती एकीकरण (बाज़ार से एक विशिष्ट प्रकार के टमाटर और आलू प्राप्त करना) में दिलचस्पी रही है ताकि इसके प्लांट को चालू रखा जा सके और इसके उत्पादों को आगे भी मानकीकृत किया जा सके। इस तरह वे उत्पादन के दोनों हिस्सों को हासिल कर सकते हैं। अपने उपभोक्ताओं के लिए एक एकाधिकार विक्रेता बन कर जो पहले से ही है और अपने आपूर्तिकर्ताओं के कच्चे माल का एकाधिकार बन कर हासिल कर सकते हैं। भारत में बड़ी संख्या में कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता किसान हैं। आख़िरकार आलू को छोड़कर आलू के चिप्स के पैकेट में जो जाता है वह है हवा या ज़्यादा सही तरीक़े से कहें तो नाइट्रोज़न।

समस्या यह नहीं है कि यह मामला एक कल्पित है लेकिन यह क़ानून का इस्तेमाल किसानों को महंगी क़ानूनी लड़ाई में घसीटने के लिए कर सकता है। कंपनी के पास काफ़ी पैसे हैं लेकिन किसानों के पास बहुत कम हैं। अमेरिकी सरकार भारत पर कार्रवाई करने सहित विशेष 301 प्रावधानों का उपयोग करते हुए अपनी कंपनी पेप्सीको को कई तरीक़ों से सहायता करेगी। ट्रम्प प्रशासन ने अंतरराष्ट्रीय क़ानून के प्रति अपनी उपेक्षा को स्पष्ट कर दिया है: इसके संदेश को नकार दिया जाता है या और कुछ। क्या भारत अमेरिका के विरोधियों के साथ खड़ा होगा? क्या यह अपने पेटेंट क़ानूनों और पौधा संरक्षण क़ानूनों के लिए लड़ेगा? या फिर यह बड़े टेबल (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट) पर एक सीट के वादों के लिए इसका विनिमय करेगा? किसी को "आतंकवादी" घोषित करना? और इसलिए भारत अपने किसानों के अधिकारों का समर्पण करता है?

ज़ाहिर है गुजरात के नौ किसान अपने दम पर पेप्सीको से नहीं लड़ सकते हैं। न ही तेलंगाना की बीज कंपनी नुजिवीडू सीड्स इस केस को अकेले लड़ सकती है। यदि यह मोनसेंटो के साथ समझौता करता है तो हमें बड़ा नुक़सान उठाना पड़ेगा। इन मामलों से लड़ने और सरकार पर दबाव बनाने के लिए नागरिक समाज और किसानों तथा किसानों के संगठनों को एक साथ आने का समय है।

यह हमारे लिए चुनौती है कि हम विभिन्न प्रकार के बौद्धिक संपदा अधिकारों का उपयोग करते हुए इस नए मामलों से कैसे लड़ें। देश अपनी खाद्य संप्रभुता को नहीं छोड़ सकता है और इसके किसानों की आजीविका वस्तु बन जाती है। गुजरात में सिर्फ़ 9 किसान या तेलंगाना की एक बीज कंपनी ही केवल नहीं हैं। कृषि में पूंजीवाद भूमि के घेराव से बढ़ा। आज का पूंजीवाद कहीं अधिक उग्र है। इसके उपकरण कानून हैं, इसके लक्ष्य: ज्ञान; किसानों के ज्ञान और इनके हज़ारों वर्षों से नई क़िस्मों के पोषण; प्रयोगशालाओं और विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिकों का ज्ञान हैं। यह हमारे भविष्य की लड़ाई है: हमारी कृषि, हमारे भोजन, हमारे कपास और कपड़ों की लड़ाई है। यह नया उपनिवेशवाद है जिससे हमें लड़ना होगा।

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