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पिछले 25 सालों में मोदी काल में हुई कामगारों की संख्या में भारी गिरावट

देश में कुल कामगारों की संख्या में भारी गिरावट हुई है, देश में महिला कामगारों की संख्या में गिरावट तो लगातार जारी थी परन्तु पिछले 25 सालों में पुरुष कामगारों की संख्या में भी भारी गिरावट हुई है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के 2017-18 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट में बताया है कि देश में 2011-12 में पुरुष कामगारों की संख्या 30.4 करोड़ थी जो 2017-18 में घटकर 28.6 करोड़ हो गयी है।
beriojgaari

वर्तमान में गहराते कृषि संकट और अर्थव्यवस्था की वजह से देश में बेरोज़गारी उफ़ान पर है। 2014 से पहले भाजपा ने हर साल युवाओं को दो करोड़ रोज़गार देने का वायदा किया था यानी इन पांच वर्षो में मोदी सरकार को 10 करोड़ रोज़गार मुहैया करवाने थे परन्तु सत्ता में आने के बाद से सरकार अपना वादा पूरा करने में नाकाम रही है। 

पुरुष कामगारों  की संख्या में गिरावट 

देश में कुल कामगारों  की संख्या में भारी गिरावट हुई है, देश में महिला कामगरों की संख्या में गिरावट तो लगातार जारी थी परन्तु पिछले 25 सालों में पुरुष  की संख्या में भी भारी गिरावट हुई है।  द इंडियन एक्सप्रेस ने नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के 2017-18 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट पर आधारित अपने लेख में बताया है कि देश में 2011-12 में पुरुष कामगारों  की संख्या 30.4 करोड़ थी जो 2017-18 में घटकर 28.6 करोड़ हो गयी है। 

अभी हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड ने NSSO की इसी रिपोर्ट से बेरोज़गारी दर से जुड़े आंकड़े जारी किये थे जिनमें बताया गया था कि बेरोज़गारी 2017-18 में 45 साल के उच्च स्तर 6.1 प्रतिशत पर पहुँच गयी थी। इस रिपोर्ट को सरकार द्वारा अधिकारिक तौर पर जारी नहीं किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार 1993-94 से 2017-18 तक यानी 25 सालों में पहली बार पुरुष कामगारों  की संख्या में गिरावट हुई है। 2011-12 की तुलना में ग्रामीण व शहरी दोनों में पुरुष कामगारों की संख्या में क्रमश: 6.4 और 4.7 प्रतिशत की कमी आई है।

आंकड़े साफ़तौर पर बताते हैं कि पिछले वर्षों के दौरान देश में रोज़गार के बेहद ही कम मौक़े पैदा हुए हैं जिसके कारण नौकरियाँ घटी हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी उच्चतम स्तर पर 

रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि 2011-12 और 2017-18 के बीच देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 4.3 करोड़ तथा शहरी इलाक़ों में 40 लाख नौकरियाँ कम हुई हैं। यानी इस अवधि में देश में कुल 4.7 करोड़ नौकरियों में कमी आई है। इसके साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिला के कामगारों रोज़गार में 68 प्रतिशत व शहरों में पुरुष कामगारों के रोजगार में 96 प्रतिशत की कमी आई है।

रिपोर्ट के अनुसार, 15-59 आयुवर्ग में वोकेशनल/तकनीकी शिक्षा पाने वाले कामगारों  के प्रतिशत में कमी आई है, यह संख्या 2011-12 में 2.2 प्रतिशत थी जो 2017-18 में घटकर 2 प्रतिशत हो गयी है। जिसका सीधा असर रोज़गार पर पड़ता है। इसके साथ ही 15-29 आयुवर्ग में 0.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है। यह आंकड़े मोदी सरकार के स्किल इंडिया के दावों की हक़ीक़त बयां करते हैं और धरातल की वास्तविक सच्चाई पेश करते हैं कि स्किल इण्डिया ने रोज़गार में कोई योगदान नही दिया है। 

इसके अलावा सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार, 11 मार्च तक बेरोज़गारी 6.9 प्रतिशत थी। मानसून के अंत तक यह इसी रेंज में रही, और 10 फ़रवरी को समाप्त हुए सप्ताह में उच्च दर 8.6 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। रबी की फसल ने इसे थोड़ा कम कर दिया है, लेकिन इस पैमाने पर बेरोज़गारी बरक़रार है और यह 1970 के दशक की शुरुआत में पनपे आर्थिक संकट की याद दिलाती है।

लोकसभा चुनाव सामने हैं, और सरकार नहीं चाहती है कि उनके झूठे दावों की पोल खुले इसलिए NSSO की बेरोज़गारी से जुड़ी रिपोर्ट सरकार जारी नहीं कर रही है। मोदी सरकार का रोज़गार देने का वायदा जुमला ही साबित हुआ है क्योंकि बेरोज़गारी लगातार बढ़ी है। रोज़गार के लिए माहौल बनाना मोदी सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहा है। 

देश 7 फ़ीसदी की विकास दर से वृधि कर रहा है परन्तु इसके बावजूद देश में शिक्षित युवाओं के लिए रोज़गार के पर्याप्त अवसर नही हैं। लोकसभा चुनाव में बेरोज़गारी का मुद्दा हावी है जिसके कारण आने वाले महीनों में निश्चित तौर पर राजनितिक बदलाव संभव है लेकिन यह बात ज़रूरी है कि बेरोज़गारी के मसले से निपटा जाए।

इन्फोग्राफिक्स - ग्लेनिसा परेरा  
 

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