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पीएम मोदी का 'मन की बात’ फ़्लॉप कार्यक्रम साबित हुआः आरटीआई से खुलासा

ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) पर पेश किए जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के बहुप्रचारित इस कार्यक्रम को बीजेपी शासित राज्यों में ही नहीं सुना गया। ये खुलासा आरटीआई के तहत एआईआर से मांगी गई जानकारी से हुआ है।
पीएम मोदी का 'मन की बात’ फ़्लॉप कार्यक्रम साबित हुआः आरटीआई से खुलासा
चित्र को केवल प्रतिनिधित्वीय उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। सौजन्य : द इंडियन एक्सप्रेस

नई दिल्ली: ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित किया जाने वाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम "मन की बात" पिछले पांच वर्षों में एक फ़्लॉप शो साबित हुआ है। ये जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) 2005 के तहत दिए गए अखिल भारतीय आंकड़ों से सामने आई है।
दिल्ली स्थित एक्टिविस्ट यूसुफ़ नाकी ने ये आरटीआई दाख़िल किया था। इस आरटीआई में उन्होंने राष्ट्र को संबोधित किए जाने वाले प्रधानमंत्री के मासिक कार्यक्रम के श्रोताओं का आंकड़ा मांगा था। आरटीआई के सवालों के जवाब में ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) ने बताया कि इस कार्यक्रम का हिंदी में अखिल भारतीय औसत श्रोता वर्ग और ग्रामीण तथा शहरी भारत में क्षेत्रीय भाषाओं के औसत में लगातार गिरावट देखी गई।

20 मिनट का ये कार्यक्रम क्षेत्रीय बोलियों में भी उपलब्ध कराया गया जिसकी शरूआत 2 जून 2017 से छत्तीसगढ़, हरियाणा और झारखंड से हुई थी। जहाँ तक संभव हो इस कार्यक्रम की पहुँच का विस्तार करना इसका उद्देश्य था। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ये उद्देश्य असफ़ल हो गया।

वर्ष 2015 में श्रोताओं की संख्या 30.82% दर्ज की गई थी जबकि अगले ही साल यानी वर्ष 2016 में ये घटकर 25.82% पर आ गया। वर्ष 2017 में ये आंकड़ा और घट कर 22.67% तक पहुँच गया।

शहरों की बात करें तो पटना के नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र में प्रधानमंत्री के हिंदी में प्रसारण को सबसे ज़्यादा सुना गया जबकि तिरुवनंतपुरम के ग्रामीण इलाक़े में इस कार्यक्रम को किसी ने नहीं सुना।

ऑल इंडिया रेडियो ने कोई पूर्ण संख्या नहीं दी फिर भी प्रतिशत के आंकड़े (एआईआर द्वारा दिए गए जवाब संलग्न हैं, कृपया उसे देखें) बताते हैं कि ये कार्यक्रम अहमदाबाद (गुजरात), नागपुर (महाराष्ट्र), जयपुर (राजस्थान), रोहतक (हरियाणा), शिमला (हिमाचल प्रदेश), भोपाल (मध्य प्रदेश) और जम्मू (जम्मू और कश्मीर) जैसे कई स्थानों पर श्रोताओं को आकर्षित करने में बुरी तरह से विफ़ल रहा है। ज्ञात हो कि उपरोक्त सभी राज्यों में उक्त समय में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार थी।

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आर टी आई रिपोर्टhttps://www.scribd.com/document/401779468/RTI-Response-From-AIR#from_embed

श्रोताओं के प्रति महीने औसत आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि प्रधानमंत्री का बहुप्रचारित ये रेडियो प्रसारण देश भर में केवल 20-30% रेडियो या एफ़एम श्रोताओं को आकर्षित कर पाया।

वास्तव में देश के कई स्थानों पर ये आंकड़ा दो अंकों को भी छू नहीं सका।

ये आंकड़े बताते हैं कि देश भर में किसी-किसी स्थान पर हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषा के प्रसारण के श्रोताओं को 0.0% से अधिकतम 25% के बीच दर्ज किया गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने 25 फ़रवरी को अपने इस मासिक कार्यक्रम को यह कहते हुए मार्च और अप्रैल महीने के लिए रोक दिया कि वे मई महीने के आख़िरी रविवार को इस कार्यक्रम को लेकर फिर आएंगे। जब तक लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित किए जा चुके होंगे।

3 अक्टूबर 2014 को आधिकारिक तौर पर शुरू होने के बाद 'मन की बात' ने भारत के आम लोगों तक प्रधानमंत्री की आवाज़ पहुँचाने का लक्ष्य बनाया। इस कार्यक्रम में कैशलेस इंडिया, डिजिटल पेमेंट, गुड्स एंड सर्विस टैक्स, परीक्षाओं, शौचालय जैसे विषयों से लेकर अन्य विषयों को शामिल किया गया।

चूंकि भारत में हर जगह पर टेलीविज़न का कनेक्शन अभी भी उपलब्ध नहीं है। टेलिविज़न कनेक्शन विशेष रूप से दूर दराज़, ग्रामीण तथा कम विकसित क्षेत्रों में मौजूद नहीं है इसलिए रेडियो को इस कार्यक्रम के माध्यम के तौर पर चुना गया जिसकी पहुँच व्यापक है। अनुमान के मुताबिक़ भारत की 90% आबादी तक इस माध्यम की पहुँच है। वर्ष 2017 तक देश भर में 422 स्टेशनों वाले एआईआर को सबसे बड़े रेडियो नेटवर्कों में से एक कहा जाता है। इसके अलावा भारत के महानगरों में विभिन्न निजी एफ़एम रेडियो स्टेशनों को भी इस शो की रिकॉर्डिंग प्रसारित करने की अनुमति दी गई थी।

लेकिन मन की बात का लक्ष्य असफ़ल हो गया और रेडियो के श्रोताओं की कुल संख्या का 50% भी पार नहीं कर सका।

जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है प्रारंभ में इस कार्यक्रम का टार्गेट आडियन्स यानी लक्षित श्रोताओं ने काफ़ी स्वागत किया। विशेष रूप से देश भर के महानगरों में रहने वाले लोगों ने इसका स्वागत किया लेकिन बाद में इसने अपनी चमक खो दी और ये आंकड़ा 10% से 20% और 25% तक पहुँच गया। कुछ मामलों में तो यह 0.0% तक पहुँच गया।

नवंबर 2014 में नगरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाक़ों में इस कार्यक्रम के श्रोताओं का अखिल भारतीय औसत आकाशवाणी द्वारा 29% दर्ज किया गया जो दिसंबर में थोड़ा कम होकर 28.5% तक पहुँच गया।

अगले साल इस कार्यक्रम ने ग्रामीण तथा शहरी इलाक़ों के 31.9% श्रोताओं को आकर्षित करके थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया। फ़रवरी से दिसंबर तक ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के संयुक्त श्रोताओं का प्रतिशत क्रमशः 30.5%, 31.8%, 28.5%, 30.4%, 31.9%, 32%, 32.5%, 33.2%, 30.9%, 27.9% और 28.4% रहा। इससे स्पष्ट होता है कि इस कार्यक्रम के प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई।

वर्ष 2016 में भी देश भर में श्रोताओं की संख्या में लगातार गिरावट देखी गई। संयुक्त (शहरी तथा ग्रामीण) औसत श्रोता का आंकड़ा जनवरी में 30.3%, फ़रवरी में 29.3%, मार्च में 27.7%, अप्रैल में 29.4%, मई में 27.8%, जून में 28.2%, जुलाई में 24.5%, अगस्त में 27.6%, सितंबर में 29.4%, अक्टूबर में 23.8%, नवंबर में 27.5% और दिसंबर में 17.9% दर्ज किया गया।

वर्ष 2017 में ग्रामीण के साथ-साथ शहरी क्षेत्र में इस रेडियो कार्यक्रम के श्रोताओं के राष्ट्रीय औसत का प्रतिशत जनवरी में 27.9%, फ़रवरी में 27.5%, मार्च में 24.8%, अप्रैल में 28.8%, मई में 27.9%, जून में 26.6%, जुलाई में 29.4%, अगस्त में 29.1%, सितंबर में 27.9%, अक्टूबर में 25.6%, नवंबर में 27.8% और दिसंबर में 25.5% रहा।

इस कार्यक्रम ने जनवरी में 27.5%, फ़रवरी में 29.6%, मार्च में 28.8% और अप्रैल में 30.8% ग्रामीण तथा शहरी श्रोताओं को आकर्षित किया।

व्यय का आंकड़ा? कोई जानकारी नहीं…

आरटीआई के जवाब में इस कार्यक्रम पर व्यय किए गए धन के विवरण को बताने से इनकार कर दिया गया है। इसने उस आय का भी खुलासा नहीं किया गया जो इस रेडियो सेवा ने इस कार्यक्रम के दौरान व्यावसायिक रूप से अर्जित किया।

लेकिन ग़ैर-आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 'मन की बात' ऑल इंडिया रेडियो के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत बन गया। एआईआर पर सामान्य विज्ञापन स्लॉट प्रति 10 सेकंड के लिए 500 – 1,500 रुपये का होता था लेकिन प्रधानमंत्री के रेडियो संबोधन के दौरान प्रति 10 सेकंड का विज्ञापन स्लॉट 2 लाख रुपये होता था।
 

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