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पाकिस्तान: छात्रों ने शिक्षा के निजीकरण के लिए आईएमएफ को ठहराया दोषी

छात्रों ने छात्र संघ चुनावों पर 1984 से लगे राष्ट्रीय प्रतिबंध को समाप्त करने तथा विश्वविद्यालय परिसरों को सैन्य हस्तक्षेप से मुक्त करने की मांग की है।
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इस्लामाबाद में स्टूडेंट एक्शन कॉन्फ्रेंस के दौरान पैनल चर्चा। फोटो: PrSF

पाकिस्तान में प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन (PrSF) ने रविवार, 22 दिसंबर को इस्लामाबाद में स्टूडेंट एक्शन कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इस कॉन्फ्रेंस में राजधानी और आस-पास के इलाकों से सैकड़ों छात्र पैनल चर्चा, राजनीतिक थिएटर प्रस्तुतियों और क्रांतिकारी संगीत कार्यक्रमों को लेकर इकट्ठा हुए।

खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे प्रांतों के कई छात्र नेताओं ने सभा को संबोधित किया और शाहवाज शरीफ के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार के तहत अपने इलाकों में हो रहे शोषण और उत्पीड़न के बारे में विस्तार से बताया। सम्मेलन में, देश में छात्रों के बुनियादी अधिकारों, और छात्र संघों की बहाली, सभी के लिए शिक्षा, शिक्षा के निजीकरण को समाप्त करने, शिक्षा बजट में वृद्धि और विश्वविद्यालय परिसरों के विसैन्यीकरण जैसे मुद्दों पर लड़ने के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने का संकल्प लिया गया।

“पाकिस्तान में युवाओं और छात्रों के लिए शिक्षा का संकट” पैनल का नेतृत्व आसिम सज्जाद अख्तर, एएच नैयर और मोहसिन मुदस्सर ने किया। चर्चा में, उन्होंने पाकिस्तान के शिक्षा क्षेत्र में आईएमएफ द्वारा थोपे जा रहे निजीकरण के प्रभाव के बारे में बताया और तर्क दिया कि ऐसी नीतियों ने 2 करोड़ 20 लाख से अधिक बच्चों को स्कूल से बाहर कर दिया है, शिक्षा बजट में वार्षिक कटौती की है और फीस में ऐतिहासिक वृद्धि की है।

देश में आईएमएफ द्वारा घोषित सार्वजनिक खर्च में कटौती करने की नीतियों के कारण बुनियादी सेवाओं पर राज्य के खर्च में महत्वपूर्ण कटौती हुई है, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के अधिकांश कामकाजी वर्गों के लिए सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आवास की स्थिति खराब हुई है। वक्ताओं ने निंदा करते हुए कहा कि सभी सरकारें देश में युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में विफल रही हैं, जिसके कारण देश में अभूतपूर्व बेरोजगारी संकट पैदा हो गया है। इस बीच, पाकिस्तान के राष्ट्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा सैन्यीकरण और कर्ज़ चुकाने में खर्च किया जाता है। वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नव-औपनिवेशिक सुरक्षा राज्य ने विकास, पुनर्वितरण और लोकतंत्र के किसी भी जन-हितैषी रूप को पूरी तरह से बाधित कर दिया है।

दूसरे पैनल की चर्चा में "वर्तमान राजनीतिक आर्थिक संकट के बीच छात्र राजनीति की भूमिका" विषय था। इसमें फातिमा शहजाद, हुसैन पटमन, वाजिद बलूच और आफताब जटोई जैसे छात्र नेता शामिल थे। छात्र नेताओं ने देश में छात्र आंदोलन के इतिहास और सैन्य शासन के खिलाफ इसकी भूमिका पर चर्चा की, जैसे कि 1968 का अयूब खान विरोधी आंदोलन, जिसके कारण अंततः सैन्य तानाशाही को उखाड़ फेंका गया था। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (DSF), जो कि पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी (CPP) की छात्र शाखा थी, को पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंधों के प्रभाव से बचने के लिए खुद का नाम नेशनल स्टूडेंट्स फेडरेशन (NSF) रखना पड़ा था। दमन के बावजूद, छात्र आंदोलन ने 1947 में देश के गठन के बाद से 1970 में पाकिस्तान के पहले लोकप्रिय चुनावों को कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

विश्वविद्यालय परिसरों में लोकतंत्र की बहाली की मांग

1970 के चुनावों के बाद, देश में लोकतंत्र की प्रगति साम्राज्यवादी हस्तक्षेपों से प्रभावित हुई है, जिसने तख्तापलट और दमन का समर्थन किया था। वक्ताओं ने याद दिलाया कि यह एनएसएफ जैसे संगठनों के “डर” के कारण ऐसा था, जिसने दमन के बावजूद कई परिसरों में भारी जीत हासिल की, जिसके कारण 1984 में यूनियनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन और अन्य ऐसे ही छात्र समूहों के प्रयासों और काम को पाकिस्तान की क्रांतिकारी परंपरा को पुनर्जीवित करने और पूंजीवादी साम्राज्यवाद की चुनौतियों का सामना करने के लिए छात्र राजनीति को फिर से जीवित करने के लिए युवाओं को शामिल करने को एक आवश्यक कदम के रूप में देखा गया है। उन्होंने देश में लोकतंत्र को पोषित करने में परिसर लोकतंत्र की आवश्यक भूमिका पर जोर दिया और परिसर के तत्काल विसैन्यीकरण का आह्वान किया।

सम्मेलन में विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ हुईं, जैसे कि रेड इंक ग्रुप ने एक नाटक का मंचन किया, जिसमें छात्रों द्वारा सामना की जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के पीछे ढांचागत कारकों की खोज की गई थी, जिसकी वजह से कुछ मामलों में आत्महत्याएं भी हुई थी। पाकिस्तान में, विभिन्न कारणों से छात्रों द्वारा आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं, जिनमें से कोई भी मामला हल नहीं हो पाया है।

सुर्ख सवेरा द्वारा एक पोस्टर और साहित्य स्टाल का आयोजन किया गया, जिसमें क्रांतिकारी और राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों पर क्रांतिकारी कलाकारों के काम के साथ-साथ नेकेड पंच और रोशनी प्रकाशन जैसे प्रकाशनों से स्थानीय भाषाओं में कम्युनिस्ट और साम्राज्यवाद विरोधी लेखकों की किताबें भी शामिल थीं।

आमना मावाज़ खान ने महमूद दरवेश की प्रतिरोधी कविता पर आधारित शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किया, जो इजरायल द्वारा किए जा रहे पश्चिमी साम्राज्यवादी समर्थित नरसंहार के बीच फिलिस्तीनी लोगों के संघर्ष के साथ एकजुटता दर्शाता है।

प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन पाकिस्तान के सबसे बड़े वामपंथी छात्र संगठनों में से एक है, जिसकी पूरे देश में 35 से ज़्यादा ज़िला इकाइयाँ हैं। प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन की आधिकारिक स्थापना 2017 में हुई थी और 2019-2021 तक छात्र एकजुटता मार्च जिसमें छात्र यूनियन की बहाली और छात्र अधिकारों की रक्षा की मांग को लेकर चले जन आंदोलन का हिस्सा रही है।

सौजन्य: पीपुल्स डिस्पैच

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