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पोलियो टीकाकरण : IPV के इंतज़ार में पोलियो ड्रॉप को छोड़ना होगा ख़तरनाक़
“म्यूटेशन की खतरे की वजह से भारत में ओरली पोलियो वायरस (OPV) का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा और इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस (IPV) का इंतज़ार किया जाएगा तब तक बहुत देर हो सकती है। और पूरा माहौल पोलियमय हो सकता है।”
अजय कुमार
30 Jan 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Patrika

इस साल 18 जनवरी को स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने पोलियो के सम्बन्ध में बिहार, केरल और मध्यप्रदेश के अलावा सभी राज्यों को एक इमरजेंसी पत्र लिखा। पत्र की विषयवस्तु थी कि राष्ट्रीय टीकाकरण के लिए निर्धारित 3 फरवरी, 2018 के दिन को सभी राज्य जल्द से जल्द स्थगित करें। इसके बाद भारत में  पोलियो के टीके के कमी से जुड़ी बहुत सारी रिपोर्ट कई मीडिया साइटों पर छपीं।

इन रिपोर्टों को ख़ारिज करते हुए 24 जनवरी को मंत्रालय ने प्रेस रिलीज जारी की। प्रेस रिलीज में कहा गया कि ऐसी कोई बात नहीं है। भारत में पोलियो टीके की कमी नहीं है। हमने पहले से बिवलेंट ओरल वैक्सीन (OPV) जरूरी मात्रा में रख लिया है। लेकिन इन टीकों की कठोर जांच होना बाकी है। नेशनल टेस्टिंग लेब्रोटरी में इनकी जांच होने के बाद इन्हें सभी राज्यों को सौंप  दिया जाएगा। इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (IPV ) भी जरूरी मात्रा में मौजूद है।''

अब यहां समझने वाली बात यह है कि भारत सरकार की तरफ से ऐसे बयान क्यों आ रहा है? जब पोलियो की वैक्सीन मौजूद है, तब पोलियो राष्ट्रीय अभियान का दिन बदलने की जरूरत क्यों पड़ी? इसे समझने के लिए कुछ कदम पीछे चलते हैं।

पोलियो से निजात दिलाने में भारत ने अपनी भूमिका अभी तक ठीक ठाक निभाई है। भारत जैसे बड़े देश में कई तरह की परेशानियां है। जागरूकता की घनघोर कमी है। इसलिए भारत सरकार साल में दो बार राष्ट्रीय स्तर पोलियो टीकाकरण का अभियान चलाती है ताकि उन बच्चों तक भी पहुंचा जा सके जिनके अभिभावक जागरूक नहीं है। इस तरह से साल भर में तकरीबन 17 करोड़ बच्चों तक पोलियों टीका पहुंच जाता हैं। ऐसा होने  के बावजूद बिहार और  उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की स्थिति बहुत नाज़ुक है। साल 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के वातावरण को पोलियो वायरस से पूरी तरह से संक्रमित घोषित कर दिया था। भारत ने इस पर ध्यान दिया और साल 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ही भारत को पोलियो से मुक्त  देश घोषित कर दिया। उसके बाद भी पोलियो के बहुत सारे मामले भारत में मिलते रहे हैं। इसी से छुटकारा  पाने के लिए भारत सहित दुनिया के कई देश ओरल पोलियो वायरस (OPV) को छोड़कर इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस (IPV) को अपनाने का फैसला किया।

पोलियो से निजात के लिए लिए यह आईपीवी वैक्सीन अभी हाल में ही जारी किया गया है। भारत और कम आमदनी वाले देशों में पोलियो का टीका सप्लाई करने वाली संस्था ग्लोबल अलायन्स फॉर वैक्सीन (GAVI) ने भी माना है कि बहुत सारे देशों में आईपीवी वैक्सीन का बहुत धीमी गति से उपयोग किये जाने जाने की वजह से इसकी मांग में बहुत कम इजाफा हो रहा है। इसलिए इसे बनाने वाली कंपनियां भी इसे उस तेजी से नहीं बना रही हैं, जिस दर से इसका उत्पादन होना चाहिए। इसलिए पूरी दुनिया में आईपीवी अभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है।

यहीं पर इस सवाल का जवाब मिलता है कि भारत ने पोलियो अभियान का दिन क्यों बदला? हालिया स्थिति यह है कि भारत में पोलियो का ओरली पोलियो वैक्सीन (OPV) दवा तो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस की उपलब्धता में कमी है।

अब यहां समझने वाली बात यह है कि पोलियो क्या है? इसके फैलने का मैकेनिज्म क्या है? आईपीवी और ओपीवी क्या है? पूरी दुनिया OPV को छोड़कर IPV अपनाने की तरफ क्यों बढ़ रही है? और IPV वैक्सीन का कम उत्पादन  होने पर भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? 

पोलियो क्या है?

संक्षेप में पोलियो के बारे में जान लेते हैं। यह एक संक्रामक रोग है, जिसे पोलियोमेलाइटिस के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से इसका वायरस मुंह के जरिये हमारे शरीर में घुसता है। इसके बाद यह वायरस रक्त कोशिकाओं के माध्यम से केंद्रीय स्नायुतंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) पर आघात करता है। इसके चलते हड्डियों का विकास रुक जाता है और बच्चा अपंग हो जाता है। इसका सबसे अधिक प्रभाव पांच साल तक के बच्चों पर होता है इसलिए इसे शिशु अंगघात भी कहा जाता है। विज्ञान अभी तक इसका इलाज नहीं तलाश पाया है, लेकिन पोलियो के टीके या ड्रॉप के जरिए किसी बच्चे को इसका शिकार होने से पहले बचाया जरूर जा सकता है। आज से करीब 63 साल पहले 1955 में इस घातक बीमारी से रक्षा के लिए एक वैक्सीन (टीके) की खोज हुई थी। इसकी बदौलत दुनियाभर में करोड़ों बच्चों को पोलियो का शिकार होने से बचाया जा सका।

पोलियो का मैकेनिज्म और OPV व IPV 

डॉक्टरों के मुताबिक पोलियो वायरस तीन तरह के होते हैं। पोलियो टाइप -1, 2 और 3. यह सब मूलतः खुले तौर पर प्रकृति में मौजूद रहते हैं और खुद ही बनते रहते हैं। इससे निजात पाने के लिए पहले ओरली पोलियो वायरस (OPV) का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन इसकी वजह से आयी  परेशानी को खत्म करने के लिए  इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस (IPV) को अपनाने का फैसला लिया गया है। ओरली पोलियो वायरस (OPV)  का मतलब है कि मुँह के जरिये पोलियो ड्राप देना। इस प्रक्रिया में जिन्दा लेकिन कमजोर पोलियो वायरस को शरीर में प्रवेश कराया जाता है, वहीं पर इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस (IPV) की प्रक्रिया में मरे हुए पोलियो वायरस को इंजेक्शन के जरिये शरीर में प्रवेश कराया जाता है। इन दोनों का मकसद आम वैक्सीन की तरह ही होता है कि शरीर में वायरस प्रवेश करवाकर अमुक वायरस के प्रति शरीर में  प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाए। अब यहाँ पर इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस और ओरली पोलियो वायरस में अंतर समझना जरूरी हो जाता है। चूँकि इनएक्टिवेटेड वायरस में मरे हुए वायरस शरीर में प्रवेश करवाए जाते हैं इसलिए इससे किसी व्यक्ति में पोलियो के संक्रमण को तो रोका जा सकता है लेकिन एक-दूसरे में होने वाले पोलियो संक्रमण को नहीं रोका जा सकता। वहीं पर ओरली पोलियो वैक्सीन में जिन्दा वायरस शरीर में प्रवेश करवाए जाते हैं। इसलिए इसके जरिये किसी व्यक्ति में पोलियो के संक्रमण को रोका जा सकता है साथ में जिन्दा वायरस होने की वजह से व्यक्ति के साथ सम्पर्क में आने वाले दूसरे व्यक्तियों में भी बिना पोलियो ड्राप के पोलियो के प्रति प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है। साथ में OPV वाले व्यक्तियों के शरीर से निकले बेकार पदर्थों की वजह से प्रकृति में भी पोलियो वायरस के प्रति स्वतः प्रतिरक्षा तंत्र बनने लगता है।

लेकिन ओरली पोलियो वैक्सीन की परेशानी भी बिल्कुल वैसी ही है जैसी जिन्दा वायरस के जरिये प्रतिरक्षा तंत्र विकसित करने वाले वैक्सीन से होती है। जिन्दा वायरस लम्बे समय तक शरीर में रहने की वजह से शरीर के साथ अनुकूलित हो जाता हैं। यानी जो शरीर जिन्दा वायरस से वायरस के प्रति प्रतिरक्षा तंत्र बना लेता था, वही शरीर जिन्दा वायरस के साथ लम्बे समय तक रहने की वजह से वायरस के लिए किसी अनुकूलित  घर की तरह काम करने लगता है। इसे विज्ञान की भाषा में शरीर की म्यूटेशन प्रक्रिया में बदलाव कहा जाता है।  इसलिए ओरली पोलियो वायरस की सबसे बड़ी कमी यही है कि इसकी वजह से पोलियो के वायरस प्रकृति में मरते भी हैं और ज़िंदा भी होते रहते हैं। शरीर के साथ जिन्दा वायरस के  म्यूटेशन की वजह से प्रकृति में पोलियो वायरस मरने की बजाए जिन्दा होने लगते हैं। इसलिए ओरल पोलियो वैक्सीन की प्रक्रिया से पोलियो से निजात पाने की कोशिश में यह कहना हमेशा गलत है कि कोई देश पोलियो मुक्त हो गया। यही वजह है कि साल 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित करने के बाद भी पोलियो के बहुत सारे मामले फिर से सामने आने लगे हैं। OPV से जन्मी इसी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए सभी देशों ने  IPV का इस्तेमाल शुरू करने का फैसला लिया है। यानी मरे हुए वायरस के जरिये शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय किया जाए जिससे शरीर में म्यूटेशन न हो और पोलियो को जड़ से खत्म किया जाए। 

इसलिए अप्रैल 2016 में दुनिया के सारे स्वास्थ्य प्राधिकरण ने यह फैसला लिया कि टाइप-2 पोलियो के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले ओरली पोलियो वैक्सीन को नष्ट कर दिया जाए। तब से केवल पोलियो टाइप-1 और 3 के लिए ही ओरली पोलियो वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इन वैक्सीन का कम उत्पादन होने पर भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है ? 

अब जबकि GAVI ने यह माना है कि इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस की सप्लाई सभी देशों में उतनी नहीं हो पा रही है जितनी की जरूरत है और यह परेशानी तकरीबन साल 2020 तक रह सकती है।

डॉक्टर ए.सी धारीवाल कहते है कि अगर म्यूटेशन की खतरे की वजह से भारत में ओरली पोलियो वायरस का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा और इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस का इंतज़ार किया जाएगा तब तक बहुत देर हो सकती है। और पूरा माहौल पोलियमय हो सकता है और लाखों बच्चे पोलियो के चपेट में आ सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि भारत तब तक ओरली पोलियो वाइरस का इस्तेमाल करे। और सरकार की तरफ से पोलियो अभियान की तिथि बदलने का भी यही कारण है कि IPV का पूरा इंतज़ाम हो नहीं पाया है. जब तक IPV का पूरा इंतज़ाम नहीं हो पाता है तब तक OPV का ही इस्तेमाल किया जाए।

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