पराली, प्रदूषण और सरकार : पहली बार खड़ी फसल देखकर किसान चिंतित!
चंदौली : दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पराली जलाने के खिलाफ बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है। बीते महीने सीएम योगी के निर्देश के बाद प्रमुख सचिव शशि प्रकाश गोयल ने सभी जिलाधिकारियों के अलावा पुलिस अधीक्षक को भी पराली जलाने पर रोक के बाद भी अंकुश न लगने पर सख्ती बरतने को कहा है। सीएम योगी ने सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि पराली जलाने की घटनाओं को हर स्थिति में रोका जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहीं भी किसानों के प्रति सख्ती को इस समस्या का हल नहीं बताया है।
पराली जलाने पर शासन की ओर से की जाने वाली सख्ती अब किसानों के लिए एक नयी समस्या बन गई है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसान खेतों में तैयार खड़ी फसल को देखकर चिंतित हैं। क्योंकि उन्हें फसल काटने के लिए मजदूर मिल नहीं रहे हैं, अगर मजदूर मिल भी रहे हैं तो किसान उनका मेहनताना देने में सक्षम नहीं है। वहीं दूसरी तरफ हार्वेस्टर से कटाई कराने पर भी शासन द्वारा रोक लगा दी गयी है। हार्वेस्टर द्वारा कटाई होने पर खेतों मे लगभग छह से आठ इंच लम्बी पराली खड़ी रह जाती है, जिसे साफ कराना किसानों के लिए बड़ी समस्या होती है और यदि बड़ा काश्तकार है तो यह समस्या और भी बड़ी हो जाती है। क्योंकि ऐसे में पहले किसान पराली को जला देते थे, जिससे इसके नष्ट होने के साथ ही खेत अगली फसल के लिए जल्दी तैयार भी हो जाता था। लेकिन शासन के आदेश के बाद किसान परेशान हैं।
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पराली जलाने वाले किसानों को लेकर शासन सख्त है। किसानों पर कार्रवाई की जा रही है। शासन की लगातार कार्रवाही से किसान इस पेशोपश मे उलझे हुए हैं कि मजदूरों के अभाव में न कट पाने के कारण खेतों मे ही नष्ट हो रही फसल को कैसे कटवाया जाए? चोरी-छिपे हार्वेस्टर से कटवा भी लिया तो पराली साफ कराने के लिए मजदूर कहां से आएंगे। मजदूरों के अभाव में पराली जलाने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं। "धान के कटोरे" के रूप में जाने जाने वाले चंदौली के किसान शासन की प्रणाली से बेहद परेशान हैं और सवाल भी खड़े कर रहे हैं।
जिले के बबुरी क्षेत्र के उतरौत गांव के किसान मोहन प्रसाद कहते है कि, 'शासन की सख्ती से पराली न जलाने पर पर्यावरण का प्रदूषण हो सकता है रूक जाए, लेकिन जाड़े में वही पुआल अलाव में जलाने से शासन किस-किस को रोकेगी।' अपनी फसल की तरफ देखते हुए उदास किसान मोहन प्रसाद कहते हैं कि, 'ठंडी के मौसम में सरकार खुद अलाव जलवाती है, उससे उठने वाला धुआं क्या पर्यावरण को प्रभावित नहीं करता है। सरकार किसानों पर तो कार्रवाई कर रही है, उन मीलों और भट्टों के मालिकों पर कार्रवाई क्यों नही करती जिसकी चिमनियों से दिन रात पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला धुआं निकलता है।'
एक अन्य किसान किसान त्रिभुवन नारायण कहते हैं कि, 'मेरे पास बावन बीघा की खेती है। पूरे खेत में धान की फसल तैयार है। किसी तरह से मजदूरों से बात करके कुछ धान की कटाई हुई है, अब मजदूर नहीं मिल रहे हैं। खेतों मे पराली पड़ी हुई है ज्यादा मजदूरी देकर लाए गये मजदूर पराली की सफाई कर रहे हैं। त्रिभुवन नारायण कहते हैं कि किसान तो खुद पर्यावरण का पोषण करने वाला होता है। पूरे वर्ष में केवल एक बार पराली जला कर वह अपने खेतों की सफाई करता है। बाकी साल भर वह पर्यावरण की रक्षा करता है। क्योंकि उसकी (किसान की) आजीविका इसी पर्यावरण से चलती है। सरकार पर गुस्सा दिखाते हुए त्रिभुवन नारायण कहते हैं कि किसानों के लिए उदार कहीं जाने वाली सरकार किसानों के प्रति इतनी सख्त क्यों है, ये तो हमें समझ ही नहीं है।
उतरौत निवासी महेंद्र मौर्य का कहना है कि, 'सरकार किसानों की समस्या लगातार बढ़ा रही है। सरकार को क्यों किसानों की समस्या दिखाई नहीं दे रही है। महेंद्र मौर्य पूर्व ग्राम प्रधान भी हैं।
किसान राणा प्रताप सिंह कांटा का कहना है कि, 'किसान कितनी मुश्किल से अपनी आजीविका चलाते हैं ये किसी को मालूम है? अब पराली की वजह से एक और समस्या आ गई है। पहले ही कम समस्या है क्या किसानों के लिए।
किसान मनोज कुमार का कहना है कि, "क्या सरकार को हमारे पराली जलाने से सारी समस्या दिखायी दे रही है। बाकी चीजों से नहीं।
किसानों की इस समस्या के बारे में जब जिला कृषि अधिकारी राजीव भारती से बात की गई तो उन्होने कहा कि जनपद के किसानों में पराली को काट कर भूसा बनाने वाले यंत्र के अलावा कई प्रकार के यंत्र वितरित किए गये हैं, जिससे पराली को समाप्त किया जा सकता है। किसान पराली को नष्ट करने के लिए इन यंत्रों का प्रयोग करें लेकिन किसी भी दशा में न जलाए। जब अधिकारी से यह पूछा गया कि, जिले भर में कितने यंत्र बांटे गए हैं तो जिला कृषि अधिकारी कुछ भी नहीं बता पाए। आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस बारे मे उप कृषि निदेशक साहब से बात कर लें। उप कृषि निदेशक विजय सिंह ने बताया कि, 'किसानों के पच्चीस ग्रुप को कस्टम हायरिंग यंत्र अस्सी प्रतिशत अनुदान पर दिए गए हैं। जिसकी सहायता से पराली को बिना जलाए नष्ट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जिले के अस्सी प्रतिशत किसानो ने अपनी फसल काट ली है। वे इन यंत्रों के प्रयोग से पराली का सुरक्षित निस्तारण भी कर रहे हैं। खेतों में पराली न छूटे इसलिए हार्वेस्टर के प्रयोग पर भी अंकुश लगाया गया है।
आश्चर्य की बात तो ये है कि जिले के कृषि अधिकारियों के बयान के विपरीत कस्टम हायरिग मशीन के प्रयोग तो दूर, अधिकतर किसान इन यंत्रों के बारे मे जानकारी तक नहीं रखते। इन मशीनों के बारे पूछे जाने पर अनभिज्ञता जताते हुए जरखोर गांव के किसान रविन्द्र प्रताप सिंह बताते हैं कि, 'हमें इन यंत्रों के बारे मे कोई जानकारी नहीं है। इस यंत्र के बारे में बताने पर उन्होंने कहा कि, 'अगर हम इसे इस्तेमाल भी करें तो हमारा काम बहुत ज्यादा जटिल हो जाएगा।' पहले मजदूरों पर खर्च कर धान की कटाई कराएं, फिर पराली काटने के लिए इस मशीन पर खर्च करें तो हमे कितना फायदा होगा? सरकार हमारे अनाज की कितनी कीमत और कैसे देती है ये किसी से तो छिपा नहीं है।
बुधवार को एक और दिलचस्प घटना हुई। सैयदराजा (चंदौली) के पूर्व विधायक मनोज सिंह डब्लू और किसान ट्रैक्टर पर पराली लाद कर जिलाधिकारी दफ्तर भी पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस पराली का मैं क्या करूं।
जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल ने भी किसानों से सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने की बात कहते हुए किसानों का सहयोग करने की अपील की और कहा कि पराली नहीं जलाकर अपना काम कर लें। उसके लिए शासन- प्रशासन आपके सहयोग में है।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकारों से किसानों के प्रति नरम रुख अपनाने को कहा है न कि बेवजह की सख़्ती। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मसले पर सुनवाई करते हुए नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की सरकार को निर्देश दिया था कि पराली के समाधान के लिए छोटे एवं मध्यम किसानों को सात दिन के भीतर प्रति कुंतल पर 100 रुपये की सहायता दी जाए, ताकि वे पराली न जलाएं। कोर्ट ने कहा था कि राज्यों द्वारा किसानों को भाड़े पर मशीन मुहैया कराया जाए और ये निर्देश भी दिया कि इसके लिए जो भी राशि आएगा, उसका वहन राज्य सरकारें करें।
देश की शीर्ष अदालत ने सरकारों से कहा, ‘किसानों को सज़ा देना कोई समाधान नहीं है। उन्हें मूलभूत सुविधाएं दी जाए। किसानों को मशीनें दी जानी चाहिए, न कि सज़ा।’
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