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प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता के लिए ओएमआर में करना होगा बदलाव

परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं का परीक्षा आयोजित करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहे परीक्षार्थियों के मन में परीक्षा संस्था के प्रति विश्वास बना रहे इसकी भी लगातार कोशिश करते रहना ज़रूरी है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : India Today

मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला तो याद  होगा ही जिसमें जालसाजों ने ओ.एम.आर. (ऑप्टिकल मार्क रीडर) आंसरशीट की एक खामी का अपने हित के लिए इस्तेमाल किया। अभ्यर्थियों ने ओ.एम.आर. आंसरशीट में प्रश्न हल करने के बजाय रिक्त छोड़ दि थे और बाद में सांठगांठ कर गोले काले कर अयोग्य अभ्यर्थियों को भी मेरिट लिस्ट में जगह दिला दी गई थी। देशभर में नियुक्तियों के लिए बनाए गए विभिन्न आयोगों और भर्ती बोर्डों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए थे। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए थी कि कोई भी चाहकर भी ओ. एम.आर.आंसरशीट में परीक्षा के दौरान या बाद में कोई गड़बड़ी न कर सके। तभी प्रतियोगी परीक्षाएं पूरी तरह से प्रामाणिक, पारदर्शी, भ्रष्टाचार रहित और निष्पक्ष हो सकेंगी।

परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं का परीक्षा आयोजित करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहे परीक्षार्थियों के मन में परीक्षा संस्था के प्रति विश्वास बना रहे इसकी भी लगातार कोशिश करते रहना ज़रूरी है।

बात उत्तर प्रदेश की करें तो जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़े राज्य के लोक सेवा आयोग के सामने लगातार हो रहे धरने-प्रदर्शन, पिछली भर्तियों की बेनतीजा सीबीआई जांच, परीक्षा से जुड़े अधिकारी और उससे संबंधित लोगों की गिरफ्तारियां, एसटीएफ की जांच  और न जाने ऐसे कितने प्रकरण हैं जिन्होंने प्रतियोगी परीक्षा दे रहे विद्यार्थियों के मन में संशय को ही जन्म दिया है।

प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलताओं और  असफलताओं के बीच संघर्ष कर रहे परीक्षार्थियों के मानसिक पीड़ा की चीख को परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं में लापरवाही और भ्रष्टाचार की खबरों ने और बढ़ा दिया है।

देशभर में स्थित विभिन्न भर्ती आयोगों और संस्थाओं द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में बहुविकल्पीय प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बनाई गई ओ.एम.आर. को अभ्यर्थियों द्वारा खाली छोड़ने और बाद में परीक्षा एजेंसियों मैं बैठे लोगों के माध्यम से  सांठगांठ करके उसे भरने की घटनाएं लगातार प्रकाश में आ रही हैं। मध्य प्रदेश में ओ.एम.आर. रिक्त छोड़ने से संबंधित व्यापमं घोटाले की जांच में यह प्रकाश में आ चुका है कि एक परीक्षार्थी ने तो 200 में से केवल 7 प्रश्न का ही उत्तर परीक्षा भवन में दिया था। बाद में  ओ.एम.आर. में छेड़छाड़ और सांठगांठ द्वारा उसे एमबीबीएस परीक्षा में चयनित घोषित कर इंदौर स्थित प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज आवंटित कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में भी  लोक सेवा आयोग द्वारा  आयोजित शिक्षकों के भर्ती की एलटी ग्रेड परीक्षा में  भी ओ.एम.आर. खाली छोड़ने की घटना सुर्खियां बन चुकी है तथा एलटी ग्रेड परीक्षा की जांच  उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ शाखा कर रही है।

बहुविकल्पीय प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ऑप्टिकल मार्क रीडर प्रणाली का प्रयोग किया जाता है, जिसमें भरे गए गोलों को इमेज रिकॉग्निशन टेक्निक द्वारा पढ़ा जाता है। वर्तमान में चल रही ओ.एम.आर. प्रणाली में केवल चार बहुविकल्पीय प्रश्नों में से एक सही उत्तर को चुनना होता है, परीक्षार्थी के पास यह भी अधिकार होता है कि वह यदि किसी प्रश्न को नहीं करना चाहता है तो वह उसे छोड़ भी सकता है। आज जब ज्यादातर परीक्षाओं में  नेगेटिव मार्किंग प्रणाली लागू है, उस परिस्थिति में परीक्षार्थी द्वारा प्रश्न का उत्तर नहीं देने का उसका अधिकार और अधिक मजबूत हो जाता है। ज्यादातर विशेषज्ञों से बात करने पर उन्होंने ओ.एम.आर. खाली छोड़ने पर रोक लगाने का विकल्प केवल ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली को ही बताया है। यहां प्रश्न यह है कि क्या ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली ओ.एम.आर. खाली छोड़े जाने का विकल्प हो सकता है? मेरे आकलन के अनुसार नहीं, क्योंकि वर्तमान में लागू ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली में भी परीक्षार्थी के पास चारों विकल्पों में से किसी भी एक विकल्प को नहीं चुनने का अधिकार सुरक्षित है। उस स्थिति में जब आरोप परीक्षार्थी और परीक्षा लेने वाली संस्था दोनों पर हो तब हम केवल ऑनलाइन प्रणाली पर कैसे विश्वास कर सकते हैं।

अभी हाल ही में एक प्रतिष्ठित  ऑनलाइन परीक्षा  कराने के दौरान कंप्यूटर हैक करके सिस्टम से छेड़छाड़ की घटना प्रकाश में आ चुकी है, भविष्य में ऐसी घटनाएं बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

ऑनलाइन प्रणाली की एक कमी यह भी है कि यदि सांठगांठ से कुछ लोग परीक्षा प्रणाली को भेदने में कामयाब हो जाते हैं तो घोटाला ऑफलाइन के मुकाबले बड़ा हो सकता है जिसके सबूत तलाशना भी एक दुष्कर कार्य होगा। हम सभी को बहुविकल्पी प्रश्नों पर आधारित ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही परीक्षाओं में और अधिक पारदर्शिता के लिए कुछ नए उपाय तलाशने ही होंगे।

वर्तमान में लागू ओ.एम.आर. प्रणाली में कुछ संशोधन अब अपरिहार्य हो गए हैं, जिनका किया जाना परीक्षार्थियों और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं दोनों के लिए आवश्यक हो गया है।     

इस संदर्भ में मेरा पहला सुझाव यह है कि ओ.एम.आर. शीट में वर्तमान में लागू प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प के स्थान पर पांच विकल्प क्रमश: (ए), (बी), (सी), (डी) और (ई ) दिया जाना चाहिए। परीक्षार्थी द्वारा विकल्प (ई) तब भरा जाएगा जब कोई परीक्षार्थी किसी प्रश्न/ प्रश्नों को हल करने का इच्छुक नहीं होगा। परीक्षार्थी द्वारा विकल्प (ई) भरे जाने पर नेगेटिव मार्किंग का कोई असर नहीं होगा। प्रश्न पुस्तिका और ओ.एम.आर. में  इस बात का स्पष्ट दिशा-निर्देश होना चाहिए कि कोई भी परीक्षार्थी प्रत्येक प्रश्न के लिए उपलब्ध पांचों विकल्पों में से किसी एक विकल्प को अनिवार्य रूप से चुनेगा। यदि परीक्षार्थी किसी प्रश्न को हल करने का इच्छुक नहीं है तो उस परिस्थिति में भी उसे उस प्रश्न हेतु विकल्प (ई) को  भरना ही होगा। यदि स्पष्ट दिशा-निर्देश होने के बावजूद कोई परीक्षार्थी ओ.एम.आर. में कोई प्रश्न खाली छोड़ देता है तो उसकी ओ.एम.आर. को  कक्ष निरीक्षक द्वारा अलग कर लिया जायेगा तथा इस प्रकार के सभी परीक्षार्थियों के  नाम  की सूची एक निश्चित प्रोफार्मा पर बना कर आयोग/ भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष,  सचिव और परीक्षा नियंत्रक के संज्ञान में लाएगा। इस प्रकार अलग किये गये ओ.एम.आर. के संबंध में यदि आयोग/भर्ती बोर्ड को लगता है कि परीक्षार्थी ने एक सीमा से अधिक  प्रश्न  छोड़ दिए हैं  तथा उसने ऐसा जानबूझ कर किया है, तो ऐसी ओ.एम.आर.को नहीं जांचने का निर्णय भी आयोग की पूर्ण बैठक में लिया जा सकता है। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कक्ष निरीक्षक को 15 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जा सकता है।                    

परीक्षा समाप्त होने के बाद सुधार का अगला कदम प्रारंभ होता है जिसमें महत्वपूर्ण बिंदु यह होगा की ओ.एम.आर. शीट की स्कैनिंग परीक्षा समाप्त होने के बाद अविलंब करवा कर भारत सरकार के  डिजिटल लॉकर में सॉफ्ट कॉपी के रूप में सुरक्षित रखी जा  सकती है। डिजिटल लॉकर गूगल ड्राइव की ही तरह डिजिटल डाटा को सुरक्षित रखने का प्रधानमंत्री जी के डिजिटल इंडिया की एक सार्थक पहल और एक अहम उपक्रम है, जिसमें यदि भर्ती आयोग चाहेंगे तो उन्हें भी निश्चित रूप से डाटा को सुरक्षित रखने के लिए जगह मिल सकती है। किसी भी विवाद की स्थिति में डिजिटल लॉकर से डाटा को प्राप्त करना  बहुत ही आसान होगा।

यदि परीक्षा लोक सेवा आयोग या किसी सरकारी संस्थान द्वारा आयोजित की जा रही है तो उस परिस्थिति में डिजिटल लॉकर में  ओ.एम.आर. संबंधी डाटा सुरक्षित रखने के अतिरिक्त प्रत्येक ओ.एम.आर.  शीट की कार्बन कॉपी की तीसरी प्रति को सरकारी कोषागार में भी रखा जाना चाहिए। जिससे बाद में किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में न्यायालय या आयोग द्वारा उसका प्रयोग विश्वसनीय तरीके से किया जा सकता है। यह भी अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है कि ओ.एम.आर. शीट की कार्बन कॉपी प्रत्येक अभ्यर्थी को अवश्य प्रदान की जाए। अतिरिक्त सावधानी के लिए ओ.एम.आर. शीट में छोड़े गए और हल किए गए प्रश्नों की संख्या को दर्ज करने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जा सकती है, तथा इसे कक्ष निरीक्षक द्वारा अंत में सत्यापित करने के लिये एक अतिरिक्त कालम भी बनाया जा सकता है। ऑनलाइन प्रणाली में तो यह ऑटोमेटिक हो सकता है ।

मेरा यह पूर्ण विश्वास है यदि जवाब के पांचवें विकल्प और डिजिटल लॉकर प्रणाली को अपनाया जाता है तो आयोगों और भर्ती बोर्डों द्वारा आयोजित ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों  ही प्रकार की परीक्षाओं की शुचिता, गरिमा, गुणवत्ता और पारदर्शिता में निश्चित रूप से वृद्धि होगी। यदि व्यापमं जैसे घोटालों की पुनरावृति से बचना है तो निश्चित रूप से प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली में  सुधार  को आगे बढ़ना ही होगा। राज्य स्तरीय परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं की स्थिति ज्यादा खराब है अत: राज्यों में लोक सेवा आयोग के अतिरिक्त सभी प्रकार की अन्य परीक्षाओं  और प्रवेश परीक्षा  के लिए  नेशनल टेस्टिंग एजेंसी जैसी सशक्त एकीकृत परीक्षा आयोजित करने वाली विशेषज्ञ  संस्था का विकास करना अपरिहार्य हो गया है।

अंत में मैं परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं और उसमें बैठे हुए अधिकारियों से प्रतियोगी परीक्षार्थियों की मानसिक पीड़ा को देखते हुए यह कहना चाहता हूँ कि किसी भी परीक्षा संस्था या उसमें बैठे हुए  अधिकारियों का केवल ईमानदार होना ही पर्याप्त नहीं है परंतु उन्हें पूरी प्रमाणिकता के साथ मानदारी करते हुए दिखना भी होगा और परीक्षार्थियों के आशा और विश्वास पर खरा भी उतरना होगा अन्यथा परीक्षार्थियों की चीखें नए विकसित और सशक्त भारत के निर्माण के सपने में  में एक धब्बे की तरह ही दिखाई  देगी।

(लेखक बरेली कॉलेज, बरेली में विधि विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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