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पश्चिम ने सीरिया को तबाह कर दिया!

अगर पश्चिमी और खाड़ी देश धन, हथियार और इसी तरह की अन्य सहायता सामग्री अपने कथित जिहादी नुमाइंदे को नहीं दिए होते तो वर्ष 2011 में शुरू हुआ ये संघर्ष एक साल के भीतर समाप्त हो जाता।
सीरिया
अपने नष्ट हुए बेडरुम में बैठे 70 वर्षीय अबू उमर अपने ग्रामोफोन पर गीत सुनते हुए।

सीरियाई युद्ध 15 मार्च को नौवें वर्ष में प्रवेश कर गया ऐसे में कई सवाल खड़े होते हैं। ये युद्ध कैसे शुरू हुआ और यह किस रूप में बदल गया लेकिन सबसे ज़्यादा आवश्यक है 'बैलेंस शीट’। उदाहरण स्वरूप, कहें तो यह एक भू-राजनीतिक तबाही है। लेखक अभी भी लिख रहे हैं और उन्हें लिखना अभी बाकी है।

1,12,000 नागरिकों सहित मौत की संख्या 3,70,000 तक पहुंच गई। लंदन स्थित सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक़ मरने वालों में 21,000 से ज्यादा बच्चे और 13,000 महिलाएं थीं। 1,25,000 से अधिक सीरियाई सरकारी सैनिक और सरकार समर्थित लड़ाके जान गंवा चुके हैं और 67,000 मरने वाले अन्य लड़ाकों में विद्रोही और कुर्द शामिल हैं। लगभग 66,000 जिहादी थे जो मुख्य रूप से सीरिया में इस्लामिक स्टेट समूह और अल-कायदा के सहयोगी थे। लगभग 13 मिलियन सीरिया के नागरिक विस्थापित हुए या निर्वासन को मजबूर हुए।

ईरान, हिजबुल्लाह और ईरान समर्थित पॉपुलर मिलिशिया के सशक्त समर्थन के साथ सीरियाई सरकारी बलों ने विद्रोही लाभ को नाटकीय रूप से पलटते हुए राजनीतिक रूप से बचे रहने के लिए युद्ध जीत लिया, 2015 में बड़े पैमाने पर रूसी हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद। राष्ट्रपति बशर अल-असद ने सीरिया के क्षेत्र के लगभग दो तिहाई भाग पर अब नियंत्रण कर लिया हैं। लेकिन तेल समृद्ध पूर्वोत्तर और विशाल जल संसाधनों वाला क्षेत्र जो देश का लगभग एक तिहाई है वह अभी भी सरकार के नियंत्रण से बाहर है। ये क्षेत्र वाशिंगटन द्वारा समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस के नेतृत्व के अधीन कुर्द-नेतृत्व वाले लड़ाकों के कब्जे में है।

इदलिब का उत्तर-पश्चिमी प्रांत अल-कायदा से जुड़े संगठनों के कब्जे में है जहां अंकारा और मॉस्को के बीच पिछले सितंबर में युद्ध विराम को लेकर समझौता हुआ था। अब संयुक्त रूप से और अलग-अलग क्षेत्र में तैनात दोनों देशों के सैनिकों की परिकल्पना की गई है।

असद ने हाल ही में कहा कि “हमे कभी-कभी यह कल्पना होती है कि हम विजयी हैं। नहीं। युद्ध खत्म नहीं हुआ है।” उन्होंने कहा कि और भी लड़ाईयां होनी थीं और अन्य राष्ट्रों द्वारा लगाई गई “घेराबंदी” भी है। “ये घेराबंदी अपने आप में एक लड़ाई है। यह पिछले वर्षों की तुलना में तेज़ हो रहा है।" ये "घेराबंदी" पश्चिमी शक्तियों के अहंकार के चलते है। जब तक ये सरकार सुधार का वचन नहीं देती है तब तक पश्चिमी देश सीरिया को बचाने और पुनर्वास में मदद नहीं करेगा।

बेशक केवल सीरिया नहीं बल्कि मध्य पूर्व के पूरे क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है लेकिन यह पश्चिमी शक्तियों को सऊदी अरब, बहरीन या मिस्र में सरकार का समर्थन करने से नहीं रोकता है। "सुधारों" को लेकर पूरे तर्क में पाखंड की बू आती है क्योंकि यदि सिर्फ पश्चिम और खाड़ी देशों ने अपने प्रॉक्सी जिहादियों को इस तरह बड़े पैमाने पर वित्त पोषित, सुसज्जित और विस्तारित नहीं किया होता तो 2011 में शुरू हुआ संघर्ष एक वर्ष के भीतर ही समाप्त हो जाता।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल ही में कहा कि उन्हें सबसे ज़्यादा खेद इस बात को लेकर है कि वे अपने शासनकाल में लीबिया को गृहयुद्ध और अराजकता से नहीं रोक पाए। वास्तव में वह सीरिया के विनाश के लिए और भी बड़ी ज़िम्मेदारी लेते हैं जो सामाजिक संरचना के मामले में यकीनन मुस्लिम मध्य पूर्व राष्ट्रों में कट्टर धर्मनिरपेक्ष प्रकृति वाले सबसे उन्नत राष्ट्रों में से एक था। सीरिया में पूर्व ब्रिटिश राजदूत के रूप में पीटर फोर्ड ने इस सप्ताह उल्लेख किया कि “ख़ून के प्यासे जिहादियों को अक्सर प्रशिक्षण देना और हथियार सप्लाई करना अमेरिका की आपराधिक लापरवाही थी। अमेरिका ने अल-कायदा और आईएसआईएस के ख़िलाफ़ लड़ाई सहित अन्य सभी चिंताओं से परे असद को हटाने को प्राथमिकता दिया।"

हालांकि अमेरिका और इसके सहयोगियों ने अन्य माध्यमों से दमिश्क सरकार को अस्थिर करने और गिराने की कोशिश को जारी रखा है। पश्चिमी कुटिलता ऐसी है कि मानवतावादी मुद्दे का विचारपूर्वक और व्यवस्थित राजनीतिकरण सीरियाई सरकार पर दबाव डालने और संकट को बढ़ाने के लिए वर्तमान में इसके इस्तेमाल का प्रयास चल रहा है। अटलांटिक पत्रिका ने हाल ही में लिखा, "असद कठिन स्थिति में है। उनके समर्थक पुनर्निर्माण के लिए बदला सहन नहीं कर सकते हैं; पश्चिम में उनके विरोधी कर सकते हैं लेकिन नहीं करेंगे। असद के अन्य प्रमुख समर्थक ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों से पीड़ित हैं और उन्हें गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है।"

 “फिर भी बहुत कुछ निर्माण करने की ज़रूरत है। लगभग 11 मिलियन लोग विस्थापित हो चुके हैं और अपना घर गंवा चुके हैं। इस लड़ाई ने विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले पूर्ववर्ती क्षेत्रों में पानी, सफाई और बिजली व्यवस्था को तबाह कर दिया है। स्कूल और अस्पताल बर्बाद कर दिए गए हैं। रक्का जैसे बड़े शहर नष्ट कर दिएगए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई प्रणाली अब काम नहीं कर रहे हैं; अनाजगृह नष्ट हो गए हैं।”

Idlib in northwestern Syria.jpg

(उत्तरपूर्व सीरिया का शहर इदलिब का क्षेत्र जहां जिहादियों का कब्जा है, ये तस्वीर 14 मार्च 2019 की है।)

सच्चाई यह है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अभी भी इस सच्चाई को स्वीकार करना बाकी है कि असद ने युद्ध जीत लिया। सीरिया के पुनर्निर्माण के लिए पश्चिम के दृष्टिकोण को पूर्व तथा वर्तमान समय के उचित लेखा जोखा के आधार पर तैयार किया जाना चाहिए। वास्तव में सीरिया में साफ तौर पर लोकतंत्र का नुकसान हो रहा है। लेकिन दूसरी ओर सीरिया के पुनर्निर्माण पर गतिरोध अगर इसी तरह जारी रहा तो इसके गंभीर नुकसान होंगे।

नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल द्वारा पिछले सप्ताह के अंत में एक फैक्ट शीट प्रकाशित की गई जिसमें 8 साल पुराने इस सीरियाई युद्ध के "क्रूर परिणामों" को सूचीबद्ध किया गया है :

#1: 11.7 मिलियन लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है

#2: 6.2 मिलियन सीरियाई आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं

#3: 50 प्रतिशत आबादी विस्फोटक के भय में जीते हैं।

# 4: 2.1 मिलियन स्कूल जाने वाले आयु वर्ग के बच्चे स्कूल से दूर हैं।

# 5: चार में से एक स्कूल क्षतिग्रस्त या नष्ट कर दिए गए हैं।

# 6: 5.7 मिलियन सीरियाई पड़ोसी देशों में शरणार्थी के तौर पर रहते हैं।

# 7: 70 प्रतिशत शरणार्थी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

# 8: सीरियाई शरणार्थियों के लिए रीजनल रेस्पॉन्स प्लान को पिछले साल आंशिक रूप से धन दिया गया।

आख़िर में अनदेखी करना मूर्खतापूर्ण है जो वर्ष 2011 में एक नागरिक संघर्ष के रूप में शुरू हुआ था और यह तुर्की, सीरिया, इज़राइल, कुर्द और फारस की खाड़ी के पेट्रोडॉलर राष्ट्रों में पूर्ण क्षेत्रीय संघर्ष में बदल गया है। अमेरिका अपनी सैन्य उपस्थिति को कम कर रहा है और अरब शेखों ने हाल ही में हटाया है लेकिन अन्य समर्थक अभी मौजूद हैं और नए मुक़ाबला के लिए तैयारी कर रहे हैं। प्रमुख उदाहरण हैं: तुर्की का "नव-ओट्टोमनवाद", ईरान क क्षेत्रीय उत्तेजना और गोलन हाइट्स के कब्जे वाले क्षेत्रों के लिए इजरायल की वैधता की तलाश। इसके बाद कुर्द का सवाल और "प्रतिरोध" की राजनीति अतिमहत्वपूर्ण है।

जो जटिल बनाता है वह ये कि यह मुक़ाबला नए शीत युद्ध की स्थितियों में जारी रहेगा। अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों ने सीरिया में स्थायी रूसी सैन्य ठिकानों के निर्विवादित सत्य को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। सीरियाई स्प्रिंगबोर्ड से रूस पहले से ही लेबनान और इराक में अपने प्रभाव का विस्तार कर रहा है और भूमध्य सागर में शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा तुर्की अपने वर्तमान नेतृत्व के अधीनतेजी से रूस का तथाकथित सहयोगी बन रहा है।

सोवियत काल में सीरिया एक उग्र स्वतंत्र राष्ट्र रहा है। यह अपनी सामरिक स्वायत्तता को दांव पर लगाने के लिए पर्याप्त रूप से लचीला है। कहना उपयुक्त होगा कि रूस के साथ सीरिया के समीकरण और वास्तव में ईरान के साथ भी ऊर्जस्वी हैं। अरब समूह में सीरिया पुनः एकीकरण के साथ गठबंधन बदल जाएगा। सीरिया के पुनर्निर्माण के लिए धनी अरब राज्यों की इच्छा पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

सउदी ने इराक के प्रति "नई विचारधारादिखाई है और इसका परिणाम दिख रहा है। पिछले सप्ताह ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की इराक की उच्चस्तरीय यात्रा के दो दिनों के भीतर बगदाद ने खुलासा किया है कि इराक के पीएम आदिल अब्दुल महदी सत्ता संभालने के बाद रियाद की अपनी पहली विदेश यात्रा करने जा रहे हैं। इसी तरह शीर्ष इराकी शिया धर्मगुरु अयातुल्ला अली अल सिस्तानी ने रूहानी से कहा कि जब उन्होंने "अपने पड़ोसियों के साथ इराक के संबंधों को मज़बूत करने के लिए किसी भी कदमका स्वागत किया तो वे "घरेलू मामलों में हस्तक्षेप के बिना राष्ट्रों की संप्रभुता के सम्मान के आधार पर" होन चाहिए। ईरान और सऊदी अरब के बीच बढ़ती शत्रुता के संदर्भ में सिस्तानी ने इराक पर भी जोर दिया और कहा कि "अपने राष्ट्रों क संकटों से बचाने के लिए इस संवेदनशील क्षेत्र में उदारवादी क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।"

स्पष्ट रूप से उपरोक्त तथ्य ये दर्शाता है कि अमेरिका द्वारा इराक के भयावह विनाश के बावजूद मेल-मिलाप संभव हो गया है। वास्तव में जब सीरिया की बात आती है तो यहां एक बड़ी बाधा खड़ी होती है जो ट्रम्प प्रशासन के लिए लगभग बहुत कठिन है जहां सीरिया को कमजोर और विभाजित रखने में इज़राइल का निहित स्वार्थ। सीरिया की दहलीज पर अपना पैर जमाने और प्रभाव डालने के लिए इज़राइल सब कुछ करेगा। इसका पूरा अनुमान है कि रूस के ख़िलाफ खड़े होने की कोशिश में कुछ बिंदु पर इजरायल अमेरिका, उसके यूरोपीय सहयोगियों और फारस की खाड़ी में सुन्नी राष्ट्रों को राजी करने के लिए वाशिंगटन को अपनी योजना पेश करेगा।

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