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पत्थलगड़ी सरकार के सर पर चढ़ी!

संवैधानिक अधिकार माँगनेवाले आदिवासी “देशद्रोही”!
पत्थलगड़ी

झारखण्ड प्रदेश में हाल के कई महीनों से आदिवासी बहुल इलाके ‘पत्थलगड़ी’ काफी सरगर्म हैI विशेष रूप से खूंटी ज़िले के अड़की प्रखंड समेत कई अन्य प्रखंडों के दर्जनों गांवों में आये दिन हज़ारों–हज़ार की संख्या में जुटकर आदिवासी समुदाय के लोग पूरे बाजे-गाजे के साथ पत्थलगड़ी कर रहें हैंI गौरतलब है कि ये वही इलाके हैं जो कभी बिरसा मुंडा के उलगुलान के सघन क्षेत्र रहें हैंI प्रदेश भाजपा सरकार इसे देशद्रोही करार देकर जितना पाबन्दी लगाना चाह रही है, आग और अधिक फैलती जा रही हैI हालात ऐसे बन गए हैं कि पत्थलगड़ी के सवाल पर राज्य का पूरा आदिवासी समुदाय और प्रदेश कि सरकार, दोनों बिलकुल आमने–सामने की स्थिति में आ गए हैंI हाल ही में पत्थलगड़ी अभियान के नेताओं को गिरफ्तार करने गयी पूरी पुलिस टीम को घंटों बंधक बनाये रखकर आदिवासियों ने मज़बूती भी दिखला दीI अब पत्थलगड़ी होनेवाले स्थलों पर पुलिस जा तो रही है लेकिन किनारे खड़ी रहती हैI लेकिन दूसरी ओर, सरकार के निर्देश पर पत्थलगड़ी में शामिल होनेवाले नेताओं समेत कई गाँव के सैंकड़ों आदिवासियों पर देशद्रोह समेत ढेर सारे मुकदमे थोप दिए गए हैं और कई नेताओं के खिलाफ गिरफ़्तारी के गंभीर वारंट जारी हो गए हैं I बावजूद इसके पत्थलगड़ी का अभियान कार्यक्रम सुनियोजित ढंग से जारी हैI

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फिलहाल प्रदेश भाजपा की रघुवर सरकार मीडिया के जरिये पुरे देश को चीख-चीख कर यह बताने में कि कैसे इस राज्य के आदिवासी “ देशद्रोह “ कर रहें हैं , जी तोड़ कवायद में लगी हुई है I वे इतने बेलगाम हो गए हैं कि सरकार , शासन – प्रशासन और खुद मुख्यमंत्री के मनाही के बावजूद गांव – गाँव पत्थलगड़ी कर रहें हैं I पत्थलगड़ी पर लिखाकर ग्रामसभा को सर्वोच्च व वैधानिक तथा भारत सरकार को अवैधानिक घोषित कर समानांतर – व्यवस्था चला रहें हैं और राज्य की कानून-व्यवस्था को खुली चुनौती दे रहें हैं I पत्थलगड़ी के पत्थरों पर अनाप – शनाप फरमान लिखाकर गाँव में दूसरों के प्रवेश से लेकर व्यापार करने तक पर प्रतिबन्ध घोषित कर रहें हैं I इन इलाकों में चलनेवाली सरकारी स्कूलों को बंद करवा कर सभी सरकारी योजनाओं के बहिष्कार का ऐलान कर रहें हैं I यहाँ तक कि आनेवाले चुनाव में वोट बहिष्कार करने तक की भी घोषणा कर रहें हैं I इन गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने जानेवाले पुलिस-बल को बंधक बना ले रहें हैं I मुख्य मंत्री मीडिया के अलावे पुरे राज्य में बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगवाकर पत्थलगाड़ी ना करने कि चेतावनी दे रहें हैं तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जी ने ऐसी घटनाओं पर सख्ती से काबू पाने की पहले ही हिदायत दे रखी है I सरकार कि मानें तो कुलमिलाकर राज्य के आदिवासी गुमराह होकर बेलगाम हो रहें हैं और राज्य की शासन – व्यवस्था को धता बताकर कानून और संविधान की धज्जियां उड़ा रहें हैं I इनसे निपटना राष्ट्रहित में बहुत ज़रूरी हो गया है तथा इससे राज्य और राष्ट्र का सम्पूर्ण विकास बाधित हो रहा है I

प्रथमदृष्टया इससे कोई भी चिंतित हो ही सकता है कि III आखिर इन भोले – भले आदिवासियों को अचानक से ये क्या हो गया है ? क्यों गाँव-गाँव पत्थलगड़ी कर खुलेआम ये ऐलान कर रहें हैं कि उनके इलाकों में कोई भी ‘ बाहरी ‘ बिना अनुमति के न तो प्रवेश कर सकता है और न ही किसी किस्म का व्यापार कर सकता है ? इतना ही नहीं उन्होंने अपना बैंक तक खोलने की खुलेआम घोषणा पूरी अर्थव्यवस्था को भी चुनौती दे दी है I सरकार के सुनियोजित मीडिया प्रलाप से लोगों में भी तरह – तरह कि आशंकाएं जन्म ले रहीं हैं I एक तो हाल के दिनों में सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों से राज्य के व्यापक आदिवासियों में पहले से ही रोष भरा हुआ था , पत्थलगड़ी विवाद आग में पेट्रोल का कम कर रहा है I इससे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में बसे बाहरी समाज के लोगों में असुरक्षा का भाव बढ़ रहा है , उनकी नज़र में हर आदिवासी अब संदेह-अविश्वास के घेरे में है I           

जबकि ज़मीनी हकीक़त इससे सर्वथा भिन्न है कि राज्य का पूरा आदिवासी समाज अपने ऊपर होनेवाले शोषण–लूट और उपेक्षा-वंचना से बुरी तरह परेशान हो चला है I अपने अस्तित्व और अस्मिता पर छाये संकटों अपनी तबाही के विरुद्ध आज पत्थलगड़ी को एक प्रतिक बनाकर अपने मिटते अस्तित्व और स्वायतत्ता का प्रतिरोधी एहसास करा रहें है I पत्थलगड़ी की सभाओं से खुलेआम कह रहें हैं कि सारा देश हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का जश्न मनाता है , लेकिन इतने दिनों बाद भी अपने जीवन यापन तक के लिए तड़पते आदिवासी समुदाय को देखने – पूछने वाला कोई नहीं है I आदिवासियों को आजतक उनका संवैधानिक हक़ नहीं मिला है हमारे लिए बनी पांचवी अनुसुचानुसूची और पेसा कानून सही ढंग से अभी लागू ही नहीं किया गया Iजिससे अपने ही राज्य में हम परदेसी बनते जा रहें हैं ‘यही कारण है कि अब अपने संवैधानिक अधिकारों को लेकर गाँव-गाँव पत्थलगड़ी कर आदिवासियों को जागरूक कर रहें हैंI हमारे इलाके के स्कूलों में सुचारू पठान–पाठन होता ही नहीं तो सरकारी स्कूल किस काम के? आदिवासियों की विकास योजनाओं की पुरी राशि का ऊपर ही ऊपर बंदर-बाँट ली जा रही हो तो उन योजाओं को हम अपने गावों में क्यों आने दें? सरकार कहती है कि हम पत्थलगड़ी करनेवाले संविधान की गलत व्याख्या कर रहें, अगर ऐसा है तो सरकार हमारी ग्राम साभा में आकर बताये कि सही क्या है!         

उक्त बातें कोई बनी-बनायीं नहीं बल्कि कड़वी ज़मीनी है हकीक़त है I दर्द की अंतहीन गाथा जो आज़ादी के पूर्व कायम थी , आज़ादी के बाद और अधिक गहरी होती जा रही है I खुद सरकारी आंकड़ों में आदिवासी समुदाय की जन संख्या लगातार घटती जा रही है I जिसका मूल कारण है , लोकतंत्र के नाम पर बनीं सरकारों द्वारा बनायी गयीं नीतियों से लगातार आदिवासियों को उनके जंगल – ज़मीन से बेदखल कर उन्हें विस्थापन – पलायन का शिकार बनाया जाना I पहले जब वे इसका विरोध करते थे तो उन्हें ‘ विकास विरोधी ‘ कहा गया फिर माओवादी कहकर भारी राज्य दमन किया गया और अब पत्थलगड़ी करने पर ‘ देशद्रोही ‘ करार दिया जा रहा है I झारखण्ड अलग राज्य गठन के आन्दोलन में सबसे अधिक जान की कीमत चुकानेवाले और बर्बर दमन का सामना करनेवाले इस राज्य के आदिवासी , आज अलग राज्य को लेकर देखे गए सारे सपनों को चूर – चूर होता देख रहें हैं I जंगल – ज़मीन और अपनी भाषा – संस्कृति – परम्परा की हिफाजत का सवाल सब धरे के धरे रह गए हैं I राज्य गठन के 17 वर्षों में, झारखण्ड राज्य गठन आन्दोलन की धुर विरोधी रहनेवाली भाजपा, छल – तिकड़मों से आंकड़ों कि बाजी जीतकर अबतक सबसे अधिक बार सत्ता में रहने के बाद आज पूर्ण बहुमत बनाकर काबिज़ है I प्रायः सभी सरकारों द्वारा किये विदेशी और बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ किये गए 150 से भी अधिक एम्ओयू जहाँ लागू होने हैं, सभी आदिवासी इलाके हैं I जिससे आदिवासियों में एक नए व बड़े विस्थापन–पलायन होने को लेकर काफी चिंता और भय कायम हैI हाल ही में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन तथा लैंड–बैंक बनाकर राज्य की सारी गैर-मजरुआ ज़मीनें छीने जाने से वर्तमान भाजपा की रघुबर सरकार से तो वे इतने भन्नाए हुए हैं कि चंद माह पूर्व पश्चिमी सिंहभूम के खरसाँवा के एक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री पर जूते भी चल गएI कई इलाकों के गांवों में भाजपा नेता – कार्यकर्ताओं समर्थकों का घुसना भी नापसंद किया जा रहा हैI अभी आदिवासियों आक्रोशित हैं अपनी बरसों पुरानी “ पत्थलगड़ी “ की परम्परा को राज्य सरकार द्वारा असंवैधानिक व देश विरोधी घोषित कर उन्हें बदनाम करने और सैंकड़ों निर्दोषों पर राज्य दमन ढाए जाने सेI

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विडम्बना है कि पत्थलगड़ी करनेवाले आदिवासियों पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगनेवाली वाली राज्य की सरकार और उसके प्रशासन को ये भली-भांति मालूम है कि इस प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र, आज़ादी के बाद से ही देश का अपना संविधान लागू होने के समय  से ही संविधान के प्रावधानों के तहत पांचवी अनुसूची के क्षेत्र घोषित हैं I जिसके तहत इन क्षेत्रों के आदिवासियों को विशेष सामाजिक संरक्षण और स्वायत्त विकास के लिए कई विशेषाधिकारों का प्रावधान हैI जिसे ज़मीनी स्तर पर लागू कराने की सीधी जवाबदेही सरकार और उसके प्रशासन की बनती हैI लेकिन इसे लागू करने की बजाये सरकार खुद इसका उल्लंघन कर इसे निष्प्रभावी बनाने के लगातार फैसले ले रही हैI जिसके खिलाफ 2003 में ही राज्य विधान सभा के बजट सत्र में जन लोकप्रिय  विधायक काI महेंद्र सिंह ने राज्य में पांचवीं अनुसूची को प्रभावहीन बनाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि यदि ऐसा ही हाल रहा तो एकदिन पांचवी अनुसूची राज्य से गायब ही हो जायेगीI उसी पाँचवी अनुसूची के अधिकारों और विशेष प्रावधानों को आज आदिवासी पत्थरों पर लिखकर गांव-गांव में गाड़ रहें हैं और सरकार को लागू करने का दबाव दे रहें हैं तो उन्हें “देशद्रोही” ठहराया जा रहा है I   

पत्थलगड़ी पर सरकार के नए मुख्य सचिव की टिपण्णी है कि ‘आदिवासी कुछ कहना चाहते हैं ‘लेकिन मुख्यमंत्री लगातार सख्ती से कुचलने पर अड़े हुए हैं I वहीँ आदिवासी सरकार से आर-पार करने का मूड बना रहें हैं I इसी बाईस फ़रवरी को खूंटी ज़िले के कुरुन्दा के ग्राम प्रधान सागर मुंडा को पत्थल गड़ी के मामले में गिरफ्तार करने गयी सीआरपीएफ-पुलिस की पूरी टीम को ग्रामीण आदिवासियों ने घंटों घेरकर रोके रखा I जब ज़िले के डीसी व एसपी ने घटनास्थल पर पंहुचकर लिखित आश्वासन दिया कि गिरफ्तारी नहीं होगी तब जाकर ग्रामीणों ने छोड़ा I सरकार ने इस घटना मीडिया के माध्यम से आदिवासियों द्वारा समानान्तर-सरकार चलाने के रूप में प्रचारित कराया I जबकि स्थानीय डीसी ने माना कि–ग्रामीण सरकार के उदासीन रवैये से नाराज़ हैंI

झारखण्ड के आदिवासियों के “पत्थल गड़ी” अभियान ने उनके संविधान प्रदत्त पांचवी अनुसूची के विशेषाधिकारों को सरकारों– प्रशासन व राजनेताओं द्वारा अप्रासंगिक बनाकर विकास के नारों की आड़ में आदिवासियों की ज़मीन-जंगल-खनिज व प्राकृतिक संसाधनों को बेलगाम लूटे जाने की भयावहता को सामने लाया दिया है I साथ ही, सघन जंगल-क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी सड़क– स्वास्थ–बिजली और शिक्षा जैसी नूनतम बुनियादी सुविधाओं के न होने तथा इन्हीं आदिवासियों के नाम पर हर साल मिलनेवाली  करोड़ों– करोड़ रुपयों के बंदर-बाँट के सच को भी उजागर कर दिया है I जिसके प्रतिवाद में ही इन क्षेत्रों के आदिवासी पत्थलगड़ी के जरिये खुला ऐलान कर रहें हैं कि उनके विकास के नाम पर जो योजनायें कागजों में बनाकर उसकी राशी ऊपर–ऊपर ही हड़प ली जा रही है, अब उन्हें नहीं चाहिएI उनकी माँग यह भी है कि उनके विकास की योजना बनाने में उनकी ग्राम– सभा की भागीदारी अनिवार्य रूप से सुनिश्चित हो क्योंकि आजतक उनकी वास्तविक ज़रूरतों से किसी को मतलब नहीं रहा हैI साथ ही संविधान की पांचवी अनुसूची के प्रावधानों ने उन्हें  जितने भी अधिकार दिए हैं सरकार उनपर दृढ़ता से अमल करे I अब देखना है कि क्या सरकार संविधान के विधि और न्याय संगत कार्य करती है अथवा विकास के नाम पर अपने जंगल-ज़मीनों से उजाड़े जाने का विरोध कर रहे आदिवासियों को अबतक तो विकास–विरोधी कहकर कुचलती रही है, अब उन्हें देश– विरोधी कहकर कुचलेगी!

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