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झारखण्ड: पत्थलगड़ी आन्दोलन और गैंगरेप मामला

झारखंड राज्य के गठन के साथ ही भाजपा सरकार के द्वारा वर्ष 2001 में औद्योगिक नीति बनायी गई थी, जिसमें झारखंड में औद्योगिक गलियारा बनाने का प्रस्ताव पहली बार आया और यहीं से आदिवासियों की उल्टी गिनती शुरू हो गई।
पत्थलगड़ी
Image Courtesy : हिंदुस्तान

झारखंड के मुंडा दिसुम में पाँच महिलाओं के साथ हुए गैंगरेप, तीन पुलिसकर्मियों का अगवा और एक निर्दोष आदिवासी की पुलिसिया कार्यवाही में हुई मौत एवं सैकड़ों आदिवासियों पर किये गये पुलिस जुल्म की भर्त्सना करते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि इस क्षेत्र में पिछले एक साल से चल रहा सांप-सीढ़ी का खेल मूलतः मुंडा दिसुम को कब्जा करने का है, जिसे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से समझना पड़ेगा। झारखंड राज्य के गठन के साथ ही भाजपा सरकार के द्वारा वर्ष 2001 में औद्योगिक नीति बनायी गई थी, जिसमें झारखंड में औद्योगिक गलियारा बनाने का प्रस्ताव पहली बार आया और यहीं से आदिवासियों की उल्टी गिनती शुरू हो गई। इसके बाद भाजपा सरकार ने मुंडा दिसुम को मित्तल नगर में तब्दील करने की भरपूर कोशिश की, जिसके लिए 2005 में झारखंड सरकार और मित्तल कंपनी के बीच एक समझौता पर हस्ताक्षर किया गया। उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार मित्तल कंपनी को 12 एमटी एक इंटीग्रोटेड स्टील प्लांट के लिए 25,000 एकड़ जमीन और 20,000 क्यूबिक पानी प्रतिदिन देने का प्रस्ताव था लेकिन आदिवासियों के भारी विरोध के कारण यह परियोजना अभी तक स्थापित नहीं हो सका है। यहां प्रश्न पूछना चाहिए कि 12 मिलियन टन प्रतिवर्ष स्टील बनाने के लिए एक कंपनी को 25,000 एकड़ जमीन क्यों चाहिए? क्या यह आदिवासी इलाके को कब्जा गैर-आदिवासियों का सम्राज्य स्थापित करने का षडयंत्र नहीं था?

जब आदिवासियों ने अपनी एकजुटता की बदौलत विकास और आर्थिक तरक्की के नाम पर मुंडा दिसुम को कब्जा करने के इस षडयंत्र को रोक दिया तब और एक षडयंत्र के साथ गैर-आदिवासी को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाकर आदिवासी इलाका को लूटने की योजना तैयार की गई। रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनते ही आदिवासियों की जमीन को उद्योगपतियों को देने के लिए झारखंड सरकार ने भूमि बैक का गठन कर 21 लाख एकड़ सामुदायिक, धार्मिक एवं वनभूमि को ग्रामसभाओं से अनुमति लिये बगैर भूमि बैंक में डाल दिया गया। इसके अलावा आदिवासियों की जमीन हड़पने के रास्ता रोड़ा बनने वाला सीएनटी/एसपीटी एवं भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन किया गया। इसी बीच 16-17 फरवरी 2017 को रांची में ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट का आयोजन किया गया, जिसमें दुनियां भर में 11,200 पूँजीपतियों को बुलाकर 210 एमओयू पर हस्ताक्षर करते हुए 3.10 लाख करोड़ रूपये में झारखंड को बेचने का समझौता हुआ। इसी समझौता में से कोरियाई समूह की कंपनी स्मोल ग्रिड प्रा.लि. ने 7000 करोड़ रूपये पूंजी लगाकर अपना काम शुरू किया। लेकिन आदिवासियों ने पत्थलगड़ी करते हुए उक्त कंपनी को जमीन देने से इंकार कर दिया।

इसी बीच मुंडा दिसुम में सोना का खान होने का पता चला, जिसने दिकुओं की लालच को बढ़ा लिया। खनिज सम्पदा, पानी और जमीन की उपलब्धता को देखते हुए इस इलाके में कई कंपनी अपना परियोजना स्थापित करना चाहते थे लेकिन आदिवासी महासभा के द्वारा चलाये जा रहे पत्थलगड़ी आंदोलन इसमें सबसे बड़ा रोड़ा बन गया। इस रोड़ा को हटाने के लिए पत्थलगड़ी आंदोलन को बदनाम करते हुए उसके अगुओं को रास्ते से हटाना ही एकमात्र रास्ता था। सरकार ने इस कार्य को अंजाम देने के लिए विज्ञापन और मुख्यधारा की मीडिया का पूरा सहारा लिया। पत्थलगड़ी आंदोलन के प्रमुख नेतृत्वकर्ताओं में अधिकांश लोगों के ईसाई धर्मालंबी होने से आंदोलन में ईसाई मिशनरी और विदेशी लिंग को तड़का लगाने में और ज्यादा आसान हो गया जबकि इसमें चर्च का दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं है। पत्थलगड़ी आंदोलन के द्वारा मुंडा गांवों में प्रवेश निषेद्य लगाने से न सिर्फ पुलिस-प्रशासन बल्कि नक्सली संगठन पीएलएफआई के लिए भी गांवों में जाना मुश्किल हो गया। पीएलएफआई झारखंड पुलिस के द्वारा माओवादियों के खिलाफ लड़ने के लिए बनाया गया था, जो इस इलाके में सरकारी ठेकेदारों से खूब पैसा वसूलता है। इसमें यह भी जानना दिलचस्प होगा कि इस इलाके के कुछ बड़े पत्रकार भी सरकारी ठेकेदारी में लिप्त हैं, जिन्हें पत्थलगड़ी आंदोलन के द्वारा सरकारी व्यवस्था को नाकारने से नुक्सान हुआ। इन्होंने पत्थलगड़ी आंदोलन को बदनाम करने के लिए कई भ्रमक रिपोर्ट छापकर सरकार पर पुलिसिया कार्रवाई के लिए दबाव बनाने की पूरी कोशिश की।

गैंगरेप ने इन षडयंत्रकारियों को एक नया अवसर दे दिया। गैंगरेप को पीएलएफआई एवं कुछ अन्य अपराधियों ने अंजाम दिया, जिन्हें पत्थलगड़ी वाले टोका-टोकी करते थे। रेप पीड़ित लड़की ने इस मसले को ट्रैफिकिंग के मुद्दे पर काम करने वाली एक महिला को बतायी और उसके बाद उक्त महिला ने रांची में बैठे एक बड़े पुलिस अधिकारी को बताया। इसके बाद गैंग रेप को पत्थलगड़ी और चर्च दोनों को निशाना बनाने के लिए रांची में रणनीति बनायी गयी। पीड़ितों को रांची बलाने पर वे आने को तैयार नहीं हुई तब पुलिस पदाधिकारियों ने ही कुछ खास पत्रकारों को उनके पास भेजा। लेकिन वैसे पत्रकारों को उनसे मिलने नहीं दिया जो हकीकत को सामने लाने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें गुमराह किया गया। पुलिस ने ऐसा खेल इसलिए खेला क्योंकि पत्थलगड़ी के अगुआ जोसेफ पुर्ति को पकड़ने के लिए किये गये कई प्रयास विफल हो चुके थे। जोसेफ पूर्ति के सुरक्षा में 300 धनुषधारी तीन घेरे में रहते थे, जिसे पुलिस भेद नहीं पायी थी। गैंगरेप को पत्थलगड़ी और चर्च से जोड़कर पुलिस ने अखबारी ज्ञान वाले शहरवासियों की सहानुभूमि बटोर ली। अंततः गैंगरैप के दोषियों को पकड़ने के बहाने पुलिस फोर्स गांवों में घुस गये और जोसेफ पूर्ति को घेरने की कोशिश की, जिससे गुसाये आदिवासियों ने सांसद कड़िया मुंडा के घर में हमला करते हुए तीन पुलिसकर्मियों को अगवा कर लिया। पुलिस पदाधिकारी चाहते थे कि ऐसा ही कुछ हो, जिससे पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों को सभी गांवों में खुल्लम-खुल्ला घुसने की छूट मिल जायेगा। गांवों में घुसने के बाद आदिवासियों पर जमकर पुलिसिया जुल्म ढाहा जा रहा है। पत्थलगड़ी आंदोलन को कुचलने के बाद, झाखंड सरकार इस क्षेत्र में विकास के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च करेगी, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा ठेकेदारों और सरकारी अफ़्सरों को मिलेगा तथा गिद्ध दृष्टि लगाये हुए काॅरपोरेट घराना भी अपना हिस्सा लेने के लिए टपक पड़ेंगे। इसलिए आदिवासियों को आपसी लड़ाई छोड़कर अपनी जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए एकजुट होना पड़ेगा। जागो आदिवासी, जागो! जय आदिवासी।

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