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राजनीति
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पुर्तगालः सेंटर-लेफ्ट सोशलिस्ट एक बार फिर विजयी
एंटोनियो कोस्टा की राजनीति में काफी हद तक भारत के लिए समकालीन प्रासंगिकता है क्योंकि उन्होंने यूरोप के सेंटर-लेफ्ट के किस्मत में गिरावट के ख़तरे को समाप्त कर दिया है जिसे तीन वामपंथी समूहों ने समर्थन दिया है।
एम.के. भद्रकुमार
09 Oct 2019
एम.के. भद्रकुमार

रविवार को हुए संसदीय चुनाव में पुर्तगाली प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा की सोशलिस्ट पार्टी की अल्पमत सरकार द्वारा हासिल किए गए हालिया जनादेश ने भारत को एक विशेष दिशा दिया है।

सेनोर कोस्टा का भारत से संबंध है जिनके पिता ओरलैंडो दा कोस्टा गोवा के पूर्व पुर्तगाली उपनिवेश के लेखक और कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थें जो पुर्तगाल में तानाशाही के खिलाफ लड़े थे। उनके पिता को सेक्रेट सर्विस द्वारा परेशान किया गया और उन्हें कई बार जेल में डाला गया था; उनकी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

एंटोनियो कोस्टा की राजनीति में काफी हद तक भारत के लिए समकालीन प्रासंगिकता है क्योंकि उन्होंने यूरोप के सेंटर-लेफ्ट के लिए भाग्य में गिरावट के ख़तरे को समाप्त कर दिया है जिसे तीन वामपंथी समूहों ने समर्थन दिया है। प्रचार अभियान के दौरान कोस्टा ने नेशनल रोड 2 से होकर दौरा करते हुए पूरे पुर्तगाल की यात्रा की।

यह एक मास्टरस्ट्रोक था। इस यात्रा ने मतदाताओं और कोस्टा को एक-दूसरे से अपने मामलों को लेकर सीधे संवाद करने की संभावना दी। दूरदर्शी नेता और समस्याग्रस्त लोग जैसे भीड़भाड़ वाले स्कूल; जटिल न्याय प्रणाली से जुड़ी कठिनाइयां; और चिकित्सा विशेषज्ञों की नियुक्तियों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षा जो उनके जीवन को प्रभावित करते हैं।

लेकिन कोस्टा कुछ भी हैं पर एक जनसमुदाय के नेता या सपने के व्यापारी हैं जो वोट हासिल करने के लिए लुभावने वादों को नकारते हैं। वह साधारण राजनेता से अलग है जो व्यक्तिगत सत्ता के लिए लालच से प्रेरित है। यहां तक राजनीतिक विरोधी भी कोस्टा की ईमानदारी और उनकी राजनीति में पूरी पारदर्शिता को स्वीकार करते हैं।

कोस्टा की सबसे बड़ी उपलब्धि वह प्रबंधन होनी चाहिए जिसे उन्होंने किया जिससे उन्हें वामपंथी दलों रूढ़िवादी कम्युनिस्ट पार्टी, दि ग्रीन्स और मार्क्सवादी वामपंथी ब्लॉक जैसी पार्टियों द्वारा सराहा जाएगा। चार साल तक अल्पमत की सरकार का नेतृत्व करते हुए उनके पास सेंटर-लेफ्ट पार्टियों से समर्थन हासिल करने का विकल्प था लेकिन उन्होंने अपने वार्ता कौशल पर भरोसा करते हुए तीन वामपंथी समूहों को प्राथमिकता दी और तीनों समूहों में से प्रत्येक के साथ समझौते किए।

इस बार भी चर्चा है कि कोस्टा का पहले से ही कम्युनिस्ट पार्टी के करिश्माई मुखिया जेरोनिमो डी सिका के साथ समझौता हो गया है। पूर्ववर्ती घटनाओं पर विचार करें तो दोनों राजनेताओं को अपने "गैर-गठबंधन" (जो यूपीए -1 के दौरान भारत में कांग्रेस पार्टी और वामपंथियों के बीच कामकाजी संबंधों के प्रति उत्सुकता रखता है।) के स्थायित्व के बारे में संतुष्ट होने का कारण है।

वास्तव में, समाजवादियों और कम्युनिस्टों के एक साथ आने का एक जटिल इतिहास है लेकिन पुर्तगाल में इसने शानदार ढंग से काम किया और कोस्टा को रविवार को हुए चुनाव में न केवल अपनी पार्टी के वोट शेयर में वृद्धि करने में सक्षम बनाया बल्कि बुनियादी तौर पर सरकार में लोगों के विश्वास को क़ायम रखा।

कोस्टा कहते हैं, "हमने वह सब कुछ किया जो हमने वादा किया था", जबकि कम्युनिस्ट नेता सौसा ने विनम्रतापूर्वक सहमति व्यक्त की कि "यह (" गैर-गठबंधन") बहुमूल्य था।" हाल ही में कोस्टा ने कहा कि कम्युनिस्टों के साथ एक स्पष्ट गठबंधन एक अच्छा विचार क्यों नहीं हो सकता है- "बेहतर है कि विफल शादी के चलते अच्छी दोस्ती को समाप्त न करें।"

दरअसल, "गैर-गठबंधन" विरोधाभासों से भरा हुआ है। लेकिन अच्छी बात यह है कि कोस्टा और सौसा दोनों का परस्पर सम्मान है और वे इस बात के प्रति सचेत हैं कि हर कीमत पर वामपंथ के विखंडन से बचा जाना चाहिए।

सौसा ने कोस्टा की मजबूरियों को समझा ताकि उन नीतियों को आगे बढ़ाया जा सके जो केन्द्रीय (सेंट्रिस्ट) मतदाताओं को आकर्षित करती हैं। इस तरह, जब हार्वर्ड-शिक्षित अर्थशास्त्री मायरियो सेंटेनो को कोस्टा ने अपना वित्त मंत्री बनाया तो कम्युनिस्ट ने आपत्ति नहीं जताई। सेंटेनो यूरोज़ोन स्टैबिलिटी पैक्ट और कठोर नियम पर आधारित मार्ग को स्थायित्व देने को तत्पर थें।

पर कोस्टा ने वामपंथियों को भी रियायतें दीं: लोक सेवकों के न्यूनतम वेतन, पेंशन और वेतन में वृद्धि की गई। कोस्टा के प्रचार में किए गए वादों में से एक इस समय यह है कि सरकार रेल नेटवर्क, सड़क निर्माण, स्कूलों और अस्पतालों में 10 बिलियन यूरो का निवेश करेगी।

कोस्टा ने हज़ारों हज़ार नए रोज़गार पैदा किए। पुर्तगाल में बेरोज़गारी आज लगभग 6 प्रतिशत है जो 2000 के बाद से सबसे कम है। अर्थव्यवस्था की 2 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर यूरोपीय संघ के औसत से अधिक है। पर्यटन में उछाल आया है। आज, लिस्बन यूरोप के सबसे लोकप्रिय शहरों में से एक है। यह एक स्टार्टअप हब है और वार्षिक वेब समिट लिस्बन में हजारों डिजिटल विशेषज्ञों को आकर्षित करता है।

चाइना-फ्रेंडली ईयू राष्ट्र होने के कारण पुर्तगाल को कठिन समय से बचने में मदद मिली। ऋण संकट के दौरान बीजिंग लिस्बन के बचाव में आया था। उदाहरण के लिए, चीन ने पुर्तगाली सरकार के बांड खरीदे, जो उस समय कोई और नहीं खरीदना चाहता था। चीनी कंपनियों ने 2010 में शुरू हुए ऋण संकट के बाद से पुर्तगाल में अरबों यूरो का निवेश किया। उन्होंने कई पुर्तगाली फर्मों को ख़रीदा, जिनमें पहले से स्वामित्व वाली पावर ग्रिड ऑपरेटर आरईएन, देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी, निजी अस्पतालों के साथ-साथ बैंक भी शामिल थे।

एक विश्लेषक का कहना है, “जब पुर्तगाल कठिन समय का सामना कर रहा था तो यूरोपीय संघ ने कठोर नियम थोप दिया, जबकि चीन ने देश में अरबों का निवेश किया। अब पुर्तगाल के प्रधानमंत्री चीन के खिलाफ यूरोपीय संघ की सख्त कार्यवाही को लेकऱ बोल रहे हैं।” पुर्तगाल में चीन की बढ़ती आर्थिक व्यस्तता के कारण कोस्टा यूरोप में चीनी निवेश के कट्टर समर्थकों में से एक समर्थक के रूप में उभरे हैं।

हाल के वर्षों में, कोस्टा ने खुद को चीन के एक मित्र और हमदर्द के रूप में पेश किया है। एक लिस्बन विद्वान के अनुसार, "एंटोनियो कोस्टा यूरोपीय संघ में चीन का ट्रोजन हॉर्स नहीं है। वह उनका वार हॉर्स है।”

रविवार के चुनाव में कोस्टा की सोशलिस्ट पार्टी ने 230 सीटों वाली संसद में 106 सीटें हासिल की जो सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्या से 10 सीटें कम। कोस्टा को कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी वामपंथी ब्लॉक के बाहरी समर्थन से एक और अल्पमत वाली सरकार का नेतृत्व करने की उम्मीद है।

कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी वामपंथी ब्लॉक, जिन्हें 32 सीटें मिली है वह कोस्टा की दूसरी सरकार की स्थिरता सुनिश्चित करेगी। उनके "गैर-गठबंधन" के पीछे राजनीतिक तर्क निहित है: रविवार के चुनावों में सेंटर-राइट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी का अपने इतिहास में सबसे खराब परिणामों में से एक था। इस चुनाव में उसे 28% वोट और संसद में 77 सीटें मिलीं।

हालांकि, असल बात यह है कि वर्तमान में यूरोप के सोशल डेमोक्रैट संघर्ष कर रहे हैं। यूरोपीय सामाजिक लोकतंत्र के लिए सबसे अच्छी उम्मीद इबेरियन प्रायद्वीप से है। प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ अप्रैल में स्पेन के चुनाव में विजयी हुए, उनकी सोशलिस्ट पार्टी पीएसओई ने लगभग 30% वोट हासिल किया। कोस्टा की पार्टिडो सोशल डेमोक्रेटा ने 36 प्रतिशत मतदान हासिल करते हुए बेहतर प्रदर्शन किया है।


 

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