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प्रयागराज : जावेद मोहम्मद के घर के विध्वंस के मामले में उभरे सवाल जिनका जवाब ज़रूरी

क़ानूनी विशेषज्ञों ने कई विसंगतियों की ओर इशारा किया है। यदि पीडीए ने आदेश और आधिकारिक संचार में ग़लती की, तो क्या यह विध्वंस ग़ैरक़ानूनी नहीं था?
Prayagraj

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में करेली इलाके में वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के नेता जावेद मोहम्मद के आवास (जेके आशियाना) को 13 जून को तब तोड़ दिया गया था, जब उन्हें हिरासत में ले लिया गया था और जिले के अटाला इलाके में 10 जून की हिंसा का "मास्टरमाइंड" घोषित कर सलाखों के पीछे बंद कर दिया था। पूर्व न्यायाधीशों और बुद्धिजीवियों ने इसे "अवैध", "न्यायिक प्रक्रिया से परे की ज्यादती" और "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के  उल्लंघन" के रूप में वर्णित किया है।

उन्होंने घर ढाहने के अधिकारियों के तौर-तरीकों में पाई गई कई विसंगतियों को चिह्नित किया है। आइए उचित प्रक्रिया के उल्लंघन और उन प्रश्नों पर एक नज़र डालें जिनका जवाब जरूरी है।

क़ानून क्या कहता है 

प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने उत्तर प्रदेश शहरी योजना और विकास अधिनियम, 1973 के तहत विध्वंस किया है।

अधिनियम की धारा 27, जो इमारतों के विध्वंस के आदेश से संबंधित है, कहती है कि किसी भी इमारत/संपत्ति को गिराने या हटाने के काम को उस नोटिस के "कम से कम 15 दिनों" के बाद किया जा सकता है जिसे विध्वंस के आदेश की एक प्रति और उसके कारणों के संक्षिप्त विवरण के साथ मालिक को सौंपी गई हो। 

जावेद के परिवार का कहना है कि उन्हें नोटिस मिला था, जिसे कार्रवाई करने से सिर्फ आधा दिन पहले उनके घर पर चिपका दिया गया था।

जावेद की छोटी बेटी, 19 वर्षीय सुमैया फातिमा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हमें जो पहला नोटिस मिला, वह शनिवार (11 जून की देर रात) रात 10 बजे के बाद हमारे घर पर चिपकाया गया था।"

12 जून को दोपहर से पहले ही घर को गिरा दिया गया था।

पीडीए के आदेश में कहा गया है कि जावेद मोहम्मद को कारण बताओ नोटिस 10 मई, 2022 को जारी/अधिसूचित किया गया था। कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इमारत को हटाने के आदेश की एक प्रति मालिक को देनी होगी और उसके बाद 15 दिन की अवधि शुरू होती है। 

घर के गेट पर चस्पा किए गए नोटिस में कहा गया है कि 25 x 60 फीट का निर्माण बिना अनुमति के ग्राउंड फ्लोर और उस पर पहली मंजिल का निर्माण किया गया था। 

जावेद के वकील एडवोकेट केके रॉय ने आरोप लगाया है कि प्रयागराज प्रशासन ने यह दावा करने के लिए "बैक-डेट" यानि 10 मई, 2022 का नोटिस जारी किया था और उन्हें ऐसा कोई नोटिस कभी नहीं मिला था।

इसलिए, पीडीए को स्पष्ट करना होगा और सार्वजनिक डोमेन में बताना होगा कि नोटिस वास्तव में 10 मई को दिया गया था और 15 दिन की अवधि का पालन किया गया था। लेकिन ऐसा अब तक नहीं हुआ है। 

कथित विसंगतियों पर प्रतिक्रिया के लिए न्यूज़क्लिक द्वारा संपर्क किए जाने पर, पीडीए सचिव अजीत कुमार सिंह और संयुक्त सचिव अजय कुमार (विध्वंस नोटिस के दो हस्ताक्षरकर्ता) ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। प्रयागराज के जिलाधिकारी संजय कुमार खत्री को सेल फोन पर संपर्क करने से कोई जवाब नहीं मिला है। 

कारण बताओ के अवसर को धता बता दिया गया?

यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट - में यह भी कहा गया है: "ऐसा कोई आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि मालिक या संबंधित व्यक्ति को यह बताने का उचित अवसर न दिया गया हो कि आदेश क्यों नहीं लागू किया जाना चाहिए।"

सुमैया ने कहा: “हम पिछले 20 वर्षों से इस घर में रह रहे थे, लेकिन हमें कभी किसी प्राधिकरण ने यह नहीं बताया कि यह एक अवैध निर्माण था। शनिवार की रात तक हमें अपने घर के बारे में किसी अधिकारी की ओर से कोई नोटिस नहीं मिला। अगर इतने सालों से हमारा घर अवैध था, तो हमें अब इसके बारे में क्यों नहीं बताया गया था? फिर क्यों हम, लगातार हाउस टैक्स, वाटर टैक्स और बिजली बिल का भुगतान कर रहे थे।

कानून कहता है कि विध्वंस का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि संपत्ति के मालिक को खुद को समझाने का उचित अवसर नहीं दिया जाता है। इसलिए, विध्वंस आदेश जारी होने से पहले कारण बताने का अवसर दिया जाना चाहिए था।

इसके अलावा, विध्वंस से पहले कम से कम 15 दिन की अवधि होनी चाहिए।

जावेद के परिवार का कहना है कि उन्होंने सबसे पहला आदेश तब सुना जब उसे शनिवार की रात घर पर चिपका दिया गया था। फिर शो कॉज़ का अवसर कहाँ गया?

जावेद को पुलिस ने शनिवार को गिरफ्तार कर लिया था। पहले शुक्रवार की दोपहर को उन्हे उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था। उनकी पत्नी परवीन फातिमा और बेटी सुमैया को भी हिरासत में लिया गया था। रविवार सुबह मां-बेटी को छोड़ दिया गया था।

जैसा कि उन्हें शनिवार को नोटिस जारी किया गया था, उनके घर को गिराने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए वास्तव में कितना समय दिया गया था?

कोई भी विध्वंस जो कारण बताए बिना होता है, वह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होगा, क्योंकि यह किसी को अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना उसे दंडित करने जैसा है।

सामूहिक सजा?

पीडीए विध्वंस आदेश मोहम्मद अजहर के बेटे जावेद को संबोधित किया गया था। जबकि परिवार का कहना है कि घर की मालिक जावेद की पत्नी परवीन हैं।

अपने दावे के समर्थन में, उन्होंने प्रयागराज के जल कल विभाग (जो शहर के पानी की आपूर्ति और सीवरेज सिस्टम के संचालन और रखरखाव का प्रबंधन करता है और कर एकत्र करता है) द्वारा जारी 8 फरवरी की एक रसीद और 28 जनवरी को जारी एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है। प्रयागराज नगर निगम (नगर निगम) – द्वारा यह प्रमाणित करते हुए कि "हाउस नंबर 39सी/2ए/1 परवीन फातिमा के नाम पर पंजीकृत है" और वित्तीय वर्ष 2020-2021 के लिए हाउस टैक्स का भुगतान किया जा चुका है।

तो पीडीए ने, नोटिस को जावेद मोहम्मद के नाम पर क्यों संबोधित किया था?

द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा उद्धृत एक अनाम वरिष्ठ पीडीए अधिकारी ने एक विचित्र तर्क दिया। उन्होंने कहा कि प्राधिकरण का किसी संपत्ति के कानूनी मालिक से कोई लेना-देना नहीं है और यह स्थानीय निवासियों से विवरण एकत्र करने के बाद निर्माण करने वाले व्यक्ति को नोटिस जारी करता है।

उन्होंने कहा कि संबंधित अधिकारियों को चारदीवारी पर एक नेम प्लेट मिली जिस पर 'जावेद एम' लिखा हुआ था और स्थानीय लोगों ने पुष्टि की कि घर जावेद का है; इसलिए, उनके नाम का नोटिस चिपकाया गया और बाद में विध्वंस की कार्यवाही की गई थी।

यदि पीडीए ने आदेश और आधिकारिक संचार में गलती की है, तो क्या विध्वंस को गैरकानूनी और नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा?

सुमैया ने कहा कि घर उनकी मां के नाम पर पंजीकृत है और यह उनकी मां को उनके नाना ने उपहार में दिया था। इसलिए, मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, जब तक उसकी मां जीवित है, उसके पिता के पास संपत्ति का कोई कानूनी स्वामित्व नहीं है।

नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के कुलपति, शिक्षाविद और कानूनी विद्वान फैजान मुस्तफा ने कहा है कि कानून के तीन सिद्धांत हैं: न्याय में देरी का मतलब न्याय से वंचित करना, न्याय में जल्दबाजी यानि न्याय को दफन करना, और न्याय को केवल किया नहीं जाना चाहिए, बल्कि ऐसा लगना चाहिए कि न्याय किया गया है। 

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "भले ही हम मान लें कि घर अवैध रूप से बनाया गया था और जल्दबाजी में किया गया उसका विध्वंस क्या न्याय था, त्वरित कार्रवाई न्याय को दफनाने के  समान है, क्योंकि इसमें भी कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए था।"

उन्होंने कहा कि विध्वंस कार्रवाई की गति ने संदेह का एक तत्व पैदा कर दिया है, और इस मामले में ऐसा लगता होता है कि न्याय नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, "ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और कई बुद्धिजीवियों जैसे कानूनी विशेषज्ञों ने बुलडोजिंग को अवैध बताया है।" 

यह पूछे जाने पर कि किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कथित अपराध के लिए सामूहिक दंड कितना उचित है, मुस्तफा ने कहा: "यह न्याय की अवधारणा पर एक प्रश्न चिह्न लगाता है। भले ही हम मान लें कि आरोप सही हैं, देश का कानून, जो वर्षों में विकसित हुआ है और अब अधिक आधुनिक और परिष्कृत है, तो वह किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कुछ अवैध निर्माण के लिए सामूहिक दंड की अनुमति नहीं देता है। यदि संपत्ति उनकी पत्नी के नाम पर दर्ज की गई थी, जैसा कि दावा किया जा रहा है, इसे उनके पति द्वारा किए गए कथित अवैध कार्य के लिए नहीं तोड़ा जा सकता है।

मुस्तफा ने कहा कि केवल डर पैदा करने के लिए कार्रवाई शुरू करने से समाज में कानून के प्रति सम्मान खत्म हो जाएगा। "जो हुआ है उसे सही ठहराने के बजाय, अगर यह स्वीकार किया जाता है कि निचले स्तर के अधिकारियों द्वारा एक गलती की गई है और यह आश्वासन दिया जाता है कि सरकार सुधारात्मक कार्रवाई करेगी, तो यह एक उपचारात्मक स्पर्श के रूप में काम करेगी और समाज में सरकार और देश के कानून के प्रति सम्मान को बढ़ावा मिलेगा। अगर कानून के प्रति यह सम्मान खत्म हो गया तो देश में अराजकता फैल जाएगी।"

क्या यह एक संयोग था?

उत्तर प्रदेश पुलिस ने दावा किया है कि जावेद 10 जून की हिंसा का "मास्टरमाइंड" था, उसके एक दिन बाद घर को तोड़ा गया था। पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि तोड़फोड़ का जावेद के खिलाफ हिंसा के मामले से कोई लेना-देना नहीं है।

उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि “हम विध्वंस नहीं कर रहे हैं, यह जिला विकास प्राधिकरण है जो इसे कर रहा था। हम वहां केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए थे।” 

तो क्या यह पूर्ण संयोग है? यदि यही संयोग मध्य प्रदेश के खरगोन, गुजरात के खंभात और हिम्मतनगर, उत्तर पश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी और उत्तर प्रदेश में कहीं और कई मौकों पर न होता तो यह सवाल ही नहीं उठता।

एडवोकेट रॉय ने आरोप लगाया है कि विध्वंस की कार्यवाही शुरू करने का पीडीए नोटिस, 10 मई की पिछली तारीख का था और नोटिस की बैकडेटिंग कथित तौर पर केवल यूपी पुलिस द्वारा जावेद को प्रयागराज हिंसा मामले में "मास्टरमाइंड" के रूप में नामित करने के बाद ही की गई थी। 

इस बीच, 12 जून को वकीलों के एक समूह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि विध्वंस अवैध था और मामले को देखने के लिए अदालत से गुहार लगाई। यदि उच्च न्यायालय ने याचिका पर विचार करता है तो जिला प्रशासन और पीडीए को ऊपर उल्लिखित कमियों को दूर करना होगा।

इस बीच, वकील नजमुसाकिब खान के अनुसार, याचिका दायर करने वाले वकीलों में से एक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें एक नई याचिका दायर करने को कहा गया है क्योंकि अब इसमें जल्द सुनवाई की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इमारत को गिराया जा चुका है।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

Prayagraj: Questions That Beg Answers in Javed Mohammad’s House Demolition

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