प्रयागराज हिंसा : मलबे का ढेर बन गया आफ़रीन फ़ातिमा का घर, गोदी मीडिया ने मनाया जश्न, विपक्ष रहा ख़ामोश
रविवार दोपहर को प्रयागराज के करेली इलाक़े में अधिकारियों ने वेलफ़ेयर पार्टी ऑफ इंडिया के नेता और एक्टिविस्ट-छात्रा आफ़रीन फ़ातिमा के पिता मोहम्मद जावेद के घर पर बुलडोज़र चला दिया। दशकों पुराना उनका घर मलबे का ढेर बना दिया गया क्योंकि पुलिस का मानना है कि वह प्रयागराज में 10 जून को विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के 'मास्टरमाइंड' थे।
रविवार शाम को एसएसपी प्रयागराज अजय कुमार ने एक बयान में कहा कि जावेद के घर से पुलिस को 2 तमंचे, कारतूस और आपत्तिजनक पोस्टर और लिखित सामग्री बरामद हुई है।
The demolition of Afreen Fatima’s house is a resounding message to all dissenters and critics of the Modi government. This video is the most precise definition of fascism and Indians need to collectively hang their heads in shame. This petty vindictiveness is us as a nation pic.twitter.com/mvnqgWNy9b
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) June 12, 2022
इस पूरी कार्रवाई के दौरान विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध करते हुए मुश्किल ही कोई बयान दिया। उत्तर प्रदेश की विपक्षी पार्टियां समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बीएसपी किसी ने इस पर दिन भर कोई बयान नहीं दिया, शाम के वक़्त जैसे हाज़िरी लगाते हुए अखिलेश यादव ने एक ट्वीट कर दिया।
जावेद मोहम्मद के घर पर हुए बुलडोजर ध्वस्तीकरण के ख़िलाफ़ अधिवक्ता मंच संगठन की तरफ़ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक पत्र याचिका भेजी गई है। इस में आरोप लगाया गया है कि जिस मकान को प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने ध्वस्त किया है, वह जावेद पंप के नाम पर नहीं बल्कि उनकी पत्नी के नाम पर है।
यह पत्र याचिका प्रयागराज के अधिवक्ता मंच से जुड़े हाईकोर्ट के छह अधिवक्ताओं की ओर से दाखिल की गई है इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल को भेजी गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि अवैध तरीके से जावेद मोहम्मद की पत्नी परवीन फ़ातिमा का मकान ध्वस्त किया गया है। यह भी कहा गया है कि यह मकान परवीन फ़ातिमा को उनके पिता से शादी से पूर्व गिफ्ट के रूप में मिला था।
न्यूज़क्लिक को मिले एक डॉकयुमेंट में भी इस बात की तसदीक़ हुई है कि घर परवीन फ़ातिमा के नाम पर है और कई सालों से इस घर का टैक्स सरकार को चुकाया जा रहा था।
प्रयागराज के अधिवक्ता मंच के अधिवक्ता केके राय, मोहम्मद सईद सिद्दीकी, राजवेन्द्र सिंह, प्रबल प्रताप, नजमुस साकिब ख़ान और रविंद्र सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस को पत्र याचिका भेजी है।
साथ ही कहा गया है कि घर पर जावेद मोहम्मद का मालिकाना हक ना होने के बावजूद उन्हें नोटिस दिया गया। वहीं, मकान उनकी पत्नी का गिराया गया है। इसके साथ अधिवक्ता मंच ने पीडीए की कार्रवाई को अवैध बताते हुए मुआवजा और दोषी अधिकारियों को दंडित किए जाने की मांग की है।
आफ़रीन फ़ातिमा के घर पर चले बुलडोज़र का विरोध विपक्षी पार्टियों की तरफ़ से तो व्यापक स्तर पर नहीं हुआ मगर सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्र संगठनों और बुद्धिजीवियों ने इस कार्रवाई की भरसक निंदा की है। ट्विटर पर सुबह से #standwithafreenfatima ट्रेंड करवाया जा रहा था। सभी संगठनों ने इस कार्रवाई को अवैध बताया है।
शायर आमिर अज़ीज़ ने ट्विटर पर लिखा, "पुरखों की ज़मीन थी रातों रात ग़ैर क़ानूनी हो गई, मुसलमान का घर था दिन दहाड़े ढा दिया गया। आज रविवार को हर जगह घर गिराने का जश्न ख़ूब धूमधाम से मनाया गया, जश्न मना रहे लोगों से अनुरोध अब अपने अपने घरों को लौट जाएँ आपके वहशी होने का शुक्रिया!!"
There are no words to express what one feels looking at this onslaught. There is not a shred of humanity left in the oppressors and their abetters. Afreen's broken home has broken us. May Allah grant sabr to her and her family. #StandWithAfreenFatima pic.twitter.com/NRn5SJ99P0
— Nabiya Khan | نبیہ خان (@NabiyaKhan11) June 12, 2022
रविवार शाम को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में जेएनयूएसयू के बैनर तले आफ़रीन फ़ातिमा के समर्थन में और इस कार्रवाई का विरोध भी किया गया।
शुक्रवार, 10 जून को निलंबित बीजेपी सदस्य नूपुर शर्मा और निष्कासित सदस्य नवीन कुमार जिंदल द्वारा पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी के विरोध में देश भर में प्रदर्शन हुए। कुछ जगहों पर प्रदर्शन हिंसक हो गए, और आगज़नी गोलीबारी जैसी घटनाएँ भी हुईं। पुलिस ने प्रयागराज में अब तक 91 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है। पुलिस ने इस मामले में अब तक क़रीब 70 नामज़द और 5000 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली है। इनमें से 10 लोग ऐसे हैं जिन्हें मुख्य आरोपी बताया जा रहा है। यह 10 लोग एआईएमआईएम, पीएफ़आई, आइसा, सीपीआई-एम, सपा से जुड़े हुए हैं। और यह सभी लोग एंटी सीएए प्रदर्शनों के वक़्त भी सक्रिय थे और आंदोलन का हिस्सा रहे थे। पुलिस का दावा है कि इनमें से एक जावेद महम्मद को गिरफ़्तार कर लिया गया है और बाकियों की तलाश की जा रही है। जावेद मुहम्मद शहर के सामाजिक कार्यकर्ता हैं और एंटी सीएए प्रदर्शनों के वक़्त भी सक्रिय थे।
जावेद मोहम्मद की बेटी आफ़रीन फ़ातिमा ने पुलिस पर आरोप लगाए हैं कि पुलिस उनके पिता, उनकी माँ और छोटी बहन को ज़बरदस्ती हिरासत में ले गई थी। आफ़रीन ने राष्ट्रीय महिला आयोग को एक ख़त लिखते हुए कहा कि वह अपने परिवार और अपने घर की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं।
पत्र में उन्होंने बताया, "10 जून को 8 बजे पुलिस मेरे पिता को ले गई, उन्हें कहाँ ले जा रहे थे हमें पता नहीं था, उसके बाद रात 12 बजे मेरी डायबिटिक माँ को और छोटी बहन को भी थाने ले गए। देर रात 2 बजे पुलिस फिर से घर आई और हमें भी थाने चलने को कहा जब हमने मना किया तो हमसे घर ख़ाली करके ताला लगा देने को कहा गया।"
जावेद पर आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। जावेद की क्या भूमिका थी यह भी नहीं बताया गया है। ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि जब दोषियों के भी घर पर बुलडोज़र चलाने का कोई क़ानून नहीं है तो उसके घर को कैसे नष्ट किया जा सकता है जो दोषी है या नहीं यह पता ही नहीं है?
आपको बता दें कि हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अधिकारियों से कहा था कि "उपद्रवियों पर कार्रवाई ऐसी हो, जो असामाजिक सोच रखने वाले सभी तत्वों के लिए एक उदाहरण बने और माहौल बिगाड़ने के बारे में कोई सोच भी न सके।"
मेनस्ट्रीम मीडिया में सुबह से ही इस 'बुलडोज़र न्याय' का जश्न मनाया जा रहा था। साथ ही दक्षिणपंथी संगठन भी इस कार्रवाई का जश्न मनाते हुए मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपनी नफ़रत का मुज़ाहिरा कर रहे थे।
न्यूज़क्लिक ने सुप्रीम कोर्ट वकील अनस तनवीर से जानने की कोशिश की कि पुलिस-प्रशासन किस क़ानून के तहत बुलडोज़र का इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने बताया, “ऐसा एक भी क़ानून नहीं है जो सरकार को आरोपी व्यक्ति के घर को तोड़ने की ताक़त देता है। किसी भी राज्य में ऐसा कोई क़ानून नहीं है। यह पूरी तरह से क़ानून का नाजायज़ इस्तेमाल है, सरकार उस ताक़त को लगा रही है जो उसके पास है ही नहीं।”
अनस तनवीर ने कहा कि क़ानून व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया है। उन्होंने आगे कहा, “यह एक असंवैधानिक कृत्य है जो सिर्फ़ अल्पसंख्यकों को डराने के लिए किया जा रहा है, यह पूरी तरह से गुंडागर्दी है।”
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के 6 जिलों में हुई हिंसा के मामले में पुलिस ने ज़्यादातर मुसलमानों को ही गिरफ़्तार किया है।
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