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पुरी एयरपोर्ट : भूमि अधिकारों के लिए दलित एवं भूमिहीन समुदायों का संघर्ष जारी

एक अनुमान के मुताबिक हवाई अड्डे के लिए पांच लाख पेड़ों को काटा जाना है, जबकि स्थानीय लोग पिछले दो दशकों से अपने भूमि अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
puri protest

जैसा कि उड़ीसा सरकार ने पुरी जिले के समुद्र तट के साथ लगे सिपासरूबलि क्षेत्र में एक नए हवाई अड्डे के निर्माण की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की, विभिन्न समुदायों की ओर से इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी तेज हो गए हैं क्योंकि वे इस प्रयास को उनके द्वारा पिछले दो दशकों से चल रहे भूमि अधिकार के संघर्ष को हथियाने की एक और कोशिश के रूप में देखते हैं।

जहां एक तरफ सरकार ने दावा किया है कि 1,500 एकड़ में फैले इस हवाई अड्डे को 2022-23 तक चालू कर दिया जायेगा, वहीं दलित एवं भूमिहीन समुदायों के लिए यह उनके प्राकृतिक आवास एवं भूमि अधिकारों के लिए एक नए सिरे से खतरे की घंटी के समान है।

3 जुलाई को, सैकड़ों की संख्या में लोगों ने पुरी के सिपासरुबली मौजा में उपाकुलिया जामी ओ जंगल सुरक्षा समिति (यूजेजेएसएस) के झंडे तले एक हवाईअड्डे के निर्माण के लिए इस तटीय भूमि को कॉरपोरेट्स को सौंपने के सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ एक विरोध रैली और सभा की। इस आंदोलन का उद्देश्य परियोजना को निरस्त करना है क्योंकि यह स्थानीय लोगों की आजीविका एवं सांस्कृतिक पहचान को संकट में डालने वाली परियोजना है। 

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए याचिकाकर्ताओं में से एक प्रफुल्ल सामंत, जिन्होंने शामुका इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट को स्थगित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ने बताया: “पिछले दो दशकों से इस भूमि पर निवास करने वाले समुदायों ने इस तटीय क्षेत्र के नियम-कानूनों का उल्लंघन करने वाली गतिविधियों को रोक रखा है। सरकार द्वारा अपने तमाम प्रयासों के जरिये इस बात को सुनिश्चित किया जाता रहा है कि यह भूमि समुदायों को न दी जा सके, बल्कि वह इसे कॉरपोरेट्स को सौंपने के लिए बैचेन नजर आती है; पहले एक इको-टूरिज्म प्रोजेक्ट के जरिये और अब बेहद संवेदनशील तटीय भूमि पर एक हवाईअड्डे के निर्माण के नाम पर, जिसने चक्रवात जैसे खतरों के खिलाफ एक बाधा के रूप में काम किया है।

सिपासरूबलि में भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष की शुरुआत 1994 में हो चुकी थी, जब ओडिशा उच्च न्यायालय ने राज्य को 214 एकड़ और एक अन्य 33 एकड़ सीलिंग अधिशेष भूमि को गरीबों को जमीन के स्वामित्व के साथ वितरित किये जाने के निर्देश दिए थे। लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच का इस बारे में कहना है कि “सिर्फ कुछ परिवारों को ही पट्टे दिए गए, लेकिन जमीन नहीं दी गई।” इसके अलावा, 25 साल पहले शुरू की गई शामुका टूरिज्म प्रोजेक्ट, जिसे करीब 3,000 एकड़ जमीन पर पुरी से करीब दस किलोमीटर दक्षिण में सिपासरूबलि के निकट, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर तैयार किया जाना था। उपर्युक्त प्राधिकारी से आवश्यक मंजूरी हासिल करने के बाद चार और पांच सितारा होटलों एवं एक गोल्फ कोर्स के लिए निविदाएं आमंत्रित किये जाने की योजना बना ली गई थी। इसी प्रकार से पहले चरण के क्रियान्वयन के दौरान 304 एकड़ भूमि में फैले गोल्फ विला के साथ एक गोल्फ कोर्स के लिए निवादाओं की योजना तैयार कर ली गई थी। निरंतर विरोध प्रदर्शनों के बाद जाकर, एनजीटी ने 2015 में इस परियोजना पर रोक लगा दी थी। 

हालांकि, इन समुदायों को इस आंदोलन के दौरान क्रूर कार्यवाइयों एवं दमन का सामना करना पड़ा है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कार्यकर्ता श्रीकांत मोहंती ने बताया: “हमारे अनुमानों के मुताबिक, हवाई अड्डे के लिए पांच लाख से अधिक की संख्या में पेड़ों को काटा जाना है। इसके अलावा, इससे हमारे पर्यावरण और आजीविका के लिए अपूरणीय क्षति होने जा रही है। समुदाय को इस क्षेत्र के भूमाफिया से भी गंभीर हमलों का सामना करना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ राज्य द्वारा हमारे आंदोलन को रोकने के प्रयास में कई लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डाल दिया गया है। हम इन दोनों ही परियोजनाओं के खिलाफ हैं। हमारे भूमि अधिकार हमें दिए जाएं को सुनिश्चित करने के लिए हमारा आंदोलन इन परियोजनाओं के खिलाफ में खड़ा है।

इससे पूर्व जून में एक विरोध प्रदर्शन के उपरांत, यूजेजेएसएस के सदस्यों में इसके संयोजक बटाकृष्ण स्वेन सहित बिदेशी नायक, कालू भोई, मनोज भोई, कुमार बराल और बिजय भोई को गिरफ्तार कर लिया गया था।

उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) सहित कई अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। स्वेन का कहना था “हमें इसलिए आरोपी बनाया गया था क्योंकि हम सभी भूमिहीन एवं दलित समुदाय से आते हैं और हमारा एकमात्र अपराध यह है कि हम अपने उन भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं, जिसे सत्ता में आने वाली तमाम सरकारों ने सौंपने से इंकार कर दिया है।”

स्वेन ने कहा “हम मांग करते हैं कि यहां पर हवाई अड्डे का निर्माण न किया जाये। इससे प्राकृतिक पर्यावरण के साथ-साथ जंगल भी नष्ट हो जायेंगे। इससे हमें कौन सा फायदा होने वाला है? हम अपनी जमीन, जंगल और पर्यावरण की खातिर संघर्ष कर रहे हैं; हम सभी लोग इन तीनों को चाहते हैं। हम इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि हमारी जमीनें हमसे छीनी जा रही हैं। पुलिस आज भी हमारे खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर रही है।”

इस वर्ष अप्रैल माह में, सीपासरूबलि क्षेत्र की बीस महिला सदस्यों पर तब हमला किया गया था, जब वे सरकारी भूमि से काजू तोड़ने के लिए जा रही थीं, जिस पर ये गरीब परिवार 20 या उससे भी अधिक वर्षों से आश्रित हैं। महिला सदस्यों ने जिले में कुख्यात भू-माफिया के खिलाफ तत्काल कार्यवाई किये जाने के सिलसिले में पुरी जिलाधिकारी व एसपी को ज्ञापन सौंपा था। हालांकि, इस बारे में कोई कार्यवाई नहीं की गई है

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/puri-airport-dalit-landless-communities-continue-struggle-land-rights

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