अमेरिकी-ईरान गतिरोध भंग करने के मिशन पर क़तर
अगले तीन दिनों के भीतर ईरान का परमाणु कार्यक्रम का मुद्दा 21 फरवरी को एक निर्धारित समय सीमा की ओर चुपचाप खिसक रहा है। जब तेहरान अपने घरेलू कानून के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा संस्था द्वारा निरीक्षण की अनुमति देने पर रोक लगा सकता है, जब तक कि अमेरिकी प्रतिबंधों में ईरान को ढील नहीं दी जाती है। वाशिंगटन में इसको लेकर किसी भी प्रकार की हड़बड़ी के संकेत नजर नहीं आते। लेकिन यह दिखावा भ्रामक भी हो सकता है।
सोमवार को क़तर के विदेश मंत्री शेख मुहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल-थानी द्वारा तेहरान की अनिर्धारित यात्रा इस बारे में काफी कुछ कहती है। वहीँ दूसरी तरफ सोमवार को बाद में कुर्दिश उत्तरी इराक के एर्बिल में अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य ठिकाने पर कई राकेट हमले देखने को मिले, जो रेखांकित करते हैं कि “गड़बड़ मचाने वाले” तनाव को भड़काने के अपने काम पर लगे हुए हैं।
ईरानी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर सावधानीपूर्ण शब्दों में लिखी रिपोर्ट दर्शाती है कि यात्रा पर आये क़तर के विदेश मंत्री द्वारा ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ के साथ हुई बैठक में की गई टिप्पणी कुछ और नहीं बल्कि इस ओर इशारा करती है कि जिन स्थितियों से ईरान घिरा हुआ है उसे संबोधित करने के लिए उनके देश की “एक प्रभावी एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के पूरी तरह से तैयार भूमिका” को रेखांकित करने के उद्येश्य से वे यहाँ आये थे।
दरअसल कतर के मंत्री इससे पूर्व पिछले हफ्ते ईरान के लिए नियुक्त अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि रॉबर्ट माले और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन के साथ दो अलग-अलग बार फोन वार्ता कर चुके थे। बाद में बुधवार को अल थानी को राजकीय समाचार एजेंसी क्यूएनए द्वारा यह कहते हुए उद्धृत किया था कि 2015 वाले ईरान परमाणु समझौते पर वापस आने की वकालत करके दोहा तनाव को कम करने पर काम कर रहा है। उनके शब्दों में कहें तो “क़तर परमाणु समझौते पर वापस लौटने के लिए एक राजनीतिक एवं कूटनीतिक प्रक्रिया के जरिये तनाव को कम करने पर काम कर रहा है।”
अल थानी ने कहा कि क़तर के दोनों देशों के साथ के रणनीतिक संबंधों को देखते हुए वह ईरान और अमेरिका दोनों के साथ संपर्क में बना हुआ है। गौरतलब है कि अमेरिकी सेंट्रल कमांड प्रमुख जनरल केनेथ मेकेंजी ने भी पिछले बुधवार को एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान कहा था कि क़तर की भौगौलिक स्थिति ईरान और अमेरिका के बीच में मध्यस्तता के प्रयासों में मदद करने में सहायक साबित हो सकता है। [अमेरिकी सेंट्रल कमांड का मुख्यालय दोहा में है।]
इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन ने एर्बिल पर राकेट हमले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है “आरंभिक रिपोर्टों से इस बात का संकेत मिलते हैं कि इस हमले में एक नागरिक ठेकेदार मारा गया है और एक अमेरिकी सेवा सदस्य और कई अमेरिकी ठेकेदारों सहित गठबंधन के कई सदस्यों को घायल कर दिया है।” अपने पूर्ववर्ती माइक पोम्पेओ के पवलोवियन भाव-भंगिमाओं से उल्लेखनीय तौर पर अलग ब्लिंकेन ने शांतिपूर्वक “जाँच के प्रयासों में पूर्ण सहयोग देने और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने” का संकल्प लिया।
जाहिर है कि ब्लिंकेन ने इस बात को ध्यान में रखा है कि वे ईरान के खिलाफ किसी भी प्रकार के बेबुनियाद आरोप नहीं मढेंगे। लेकिन ब्लिंकेन का यह संयम तेल अवीव में बेहतर अर्थों में नहीं लिया जाने वाला है। राष्ट्रपति जो बिडेन ने अभी तक प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू से फोन पर बात नहीं की है। और नेतान्याहू के लिए यह भावनात्मक मुकाम है जो अगले महीने एक बार फिर से चुनावों के लिए कमर कस रहे हैं, और हमेशा ओवल ऑफिस के साथ अपने खास जुड़ाव के बारे में डींगें हांकते हैं। चुनावी अभियान के दौरान नेतान्याहू की विश्वसनीयता को बट्टा पहुँच सकता है जब वे ईरान पर कड़ी बयानबाजी पर सवार हो रहे हैं, जबकि बिडेन के साथ अभी तक उनका कोई सीधा संवाद स्थापित नहीं हो सका है।
इस बीच खबरें आ रही हैं कि मध्य पूर्व मामलों के निपटान के लिए रुसी दूत व्लादिमीर सैफ्रोंकोव और इसरायली एवं फिलिस्तीनी मामलों के अमेरिकी उप सह सचिव हादी अम्र ने पश्चिम एशियाई शांति प्रक्रिया को लेकर “रचनात्मक सहयोग को बढ़ावा दिए जाने” पर चर्चा की है।
रुसी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि “दोनों पक्षों द्वारा फिलिस्तीनी-इसरायली समझौते के ट्रैक पर मास्को और वाशिंगटन के बीच सहयोग की संभावनाओं पर बातचीत हुई है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों के मध्य पूर्व चौकड़ी के प्रारूप भी शामिल थे। रुसी पक्ष ने चौकड़ी में अपनी पूर्ण भागीदारी को फिर से शुरू करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की तत्परता का स्वागत किया है और मध्य पूर्व की निपटान समस्याओं पर द्विपक्षीय वार्ता को बढ़ावा देने के पक्ष में बोला है। आम तौर पर दोनों पक्षों ने मध्य पूर्व में शांति प्रक्रिया को बढ़ावा दिए जाने के लिए रचनात्मक सहयोग के साझे वायदे की घोषणा की है।”
यह इजराइल के लिए किसी शारीरिक आघात से कम नहीं है, जो अभी तक ईरान परमाणु मुद्दे को भुनाने की रणनीति को लेकर सफल रहा था। इसका सारा ध्यान फारस की खाड़ी देशों के बीच में विवादों को हवा देने, अमेरिकी-ईरान तनाव को भड़काने और सैन्य मुठभेड़ के लिए उकसाने, और वास्तव में किसी भी प्रकार के अमेरिका-ईरान के बीच किसी भी प्रकार की बातचीत के संभावित संकेत के न होने के बावजूद, जितना भी संभव हो सके अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान फिलस्तीनी मुद्दे से भटकाए रखने की कोशिशों में लगा रहता है।
लेबनान में जन्मे अरब-अमेरिकी राजदूत हादी अमा, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के इजरायल-फिलिस्तीनी आर्थिक समझौते और गाजा के लिए इजरायल-फिलिस्तीनी समझौता वार्ता के लिए उप विशेष दूत थे। बिडेन ने उन्हें विदेश विभाग के ब्यूरो ऑफ़ नियर ईस्टर्न मामलों के प्रमुख के तौर पर वापस नियुक्त कर दिया है। अमा को फिलिस्तीनी नेतृत्व के साथ करीबी संबंध बनाए रखने का श्रेय दिया जाता है।
बिडेन प्रशासन ने घोषणा की है कि अमेरिका, फिलिस्तीनी नेतृत्व के साथ रिश्तों को एक बार फिर से बहाल करने जा रहा है, फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के राजनयिक मिशन को वाशिंगटन में दुबारा से खोला जायेगा, और यूएनआरडब्ल्यूए को मदद को नवीनीकृत (संयुक्त राष्ट्र की संस्था जो दुनियाभर में फिलिस्तीनी शरणार्थियों के मुद्दों का निपटान करती है (यूएनआरडब्ल्यूए)। फिलिस्तीनी अधिकारियों की ओर से इन घोषणाओं का स्वागत किया गया है।
अब अम्र बिडेन द्वारा प्रशासन में शीर्ष पदों पर की गई अरब-अमेरिकियों की कई नियुक्तियों में से एक हैं। इनमें रीमा डोदीन (फिलिस्तीनी मूल की) को व्हाइट हाउस ऑफिस के विधाई मामलों के उप-निदेशक के तौर पर, बेकी चौकेयर (लेबनानी मूल) को व्हाईट हाउस के टीकाकरण कोऑर्डिनेटर, डाना शुबात (जॉर्डन मूल) को राष्ट्रपति के वरिष्ठ क़ानूनी मामलों के सलाहकार के तौर पर और महर बिटार (फिलिस्तीनी मूल) को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में ख़ुफ़िया मामलों के निदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया है।
कुल मिलाकर कहें तो सोमवार को तेहरान के विदेश मंत्री अल थानी के अभियान में आँखें दो चार करने से कुछ अधिक बात थी। बिडेन प्रशासन में एक जटिल तस्वीर उभर कर सामने आ रही है जो जेसीपीओए (2015 परमाणु समझौते) के इर्द-गिर्द नाच रही है और ईरान के साथ बातचीत में शामिल होने से पहले रचनात्मक चर्चा करने के लिए अनुकूल माहौल को तैयार कर रही है।
वास्तव में बिडेन ने कुछ सकारात्मक कदम उठाये हैं, जो पहले से ही तेहरान के साथ तनाव को कम करने की इच्छा का संकेत दे रहे हैं। इस प्रकार बिडेन ने कुछ निम्न कदम उठाये हैं:
- विमानवाहक पोत यूएसएस निमित्ज को फारस की खाड़ी से बाहर करने का आदेश;
- यूएई और सऊदी अरब के साथ मल्टी-बिलियन मेगा हथियार सौदों पर स्थगन;
- यमन में सऊदी के नेतृत्त्व में जारी युद्ध में अमेरिकी समर्थन को खत्म करने;
- कूटनीति के पक्ष में वकालत करने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा टीम (ईरान में राजनयिक रॉबर्ट माले, एनएसए जैक सुलीवान, सीआईए निदेशक विलियम बर्न्स) को इकट्ठा किया है।
ज्ञात अज्ञात है कि क्या बिडेन ने इस बीच रूस और चीन तक अपनी पहुँच बनाई है। इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि वाशिंगटन दो प्रमुख जेसीपीओए हस्ताक्षरकर्ताओं (और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों को) को मेज पर लाने पर काम कर रहा है, जो ईरान के उपर प्रभाव रखने के लिए जाने जाते हैं। रोचक पहलू यह है कि कैरी जो कि जेसीपीओए के मुख्य वास्तुकार हैं, ने सोमवार को रुसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव को फोन किया था (जाहिरा तौर पर जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए।)
आदर्श रूप में देखें तो अमेरिका फारस खाड़ी के बीच में आपसी तनाव को शांत होते देखना चाहेगा। क़तर जो कि ईरान के साथ एक प्रमुख गैस फील्ड साझा करता है, ने उस दौरान भी खाड़ी के अरब देशों को ईरान के साथ वार्ता में जाने के लिए आह्वान किया था, जबकि ट्रम्प प्रशासन ने खाड़ी में तेहरान के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने पर काम किया था।
ईरान के राष्ट्रपति हसन रौहानी ने 15 फरवरी, 2021 को तेहरान के दौरे पर आये क़तर के विदेश मंत्री की अगवानी की
तेहरान ने स्पष्ट कर दिया है कि वार्ता शुरू करने के लिए अमेरिका से उसकी क्या अपेक्षाएं हैं। तात्कालिक प्रश्न अब यह है कि 21 फरवरी को क्या होने जा रहा है। जैसा कि अनुमान है, अल थानी ने तेहरान को एक संभावित रोड मैप पर आने के लिए तैयार कर लिया है। उन्होंने क़तर के अमीर से प्राप्त एक पत्र को ईरान के राष्ट्रपति को सौंपा है। कुलमिलाकर लुब्बोलुआब यह है कि चीजें उतनी धूमिल नहीं हैं, जितनी नजर में आ रही हैं। वाशिंगटन के लिए इजरायली राजनयिक के शब्दों में एक प्रकार से मूक स्वीकारोक्ति का भाव नजर आता है – मानो कि ट्रेन छूटने के लिए तैयार है और इजराइल उसमें सफर नहीं कर रहा है।
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