रिपोर्ट : भारत में हर आठ में से एक मौत वायु प्रदूषण की वजह से

आज की दुनिया उपभोग और प्रबन्धन की दुनिया है। इससे इंसान और प्रकृति में सहअस्तित्व की बजाय दोहन ने जगह ले ली है और इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रकृति की तबीयत खराब हो रही है और इंसान चुपचाप मरता जा रहा है।
द लांसेट प्लानेट्री हेल्थ जर्नल ने भारत में वायु प्रदूषण पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के तहत हाल में भारत में आठ में से एक मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो रही है। और मौत की यह दर तम्बाकू खाने की वजह से होने वाली मौतों से अधिक है। वायु प्रदूषण की वजह से सबसे अधिक मौतें उत्तर भारत में हुई हैं। यह पहली ऐसी रिपोर्ट है जो वायु प्रदूषण की वजह से इंसानों की जीने के उम्र में होने वाली कमी, उनको होने वाली बीमारी, उनके मृत्यु का आकलन करती है।
पूरी दुनिया में भारतीय आबादी 18 फीसदी है लेकिन वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में इनकी हिस्सेदारी 26 फीसदी है। साल 2017 में वायु प्रदूषण की वजह से तकरीबन 12.4 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसमें से आधे से अधिक लोगों की मौत 70 साल की उम्र से पहले ही हो गयी। इस रिपोर्ट के तहत वायु प्रदूषण की वजह से सबसे अधिक मौते तकरीबन 2.4 लाख उत्तर प्रदेश, 1.6 लाख महाराष्ट्र और 96 हजार बिहार में हुई हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि अगर वायु प्रदूषण में जीने का माहौल नहीं रहता तो भारत में इंसानों की जीने की औसत उम्र में तकरीबन 1.7 साल का इजाफा होता। वायु प्रदूषण की वजह से साँस के संक्रमण की जुड़ी बीमारियाँ, फेफड़ें की बीमारियाँ, हृदय की बीमारियाँ, मधुमेह जैसी कई तरह की बीमारियों की परेशानियों से जूझना पड़ता है। राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों के तहत निर्धारित मानकों को पार करती हुई भारत की 75 फीसदी आबादी हमेशा वायु प्रदूषण की चपेट में रहती है।
इस मामले में पूरे भारत में दिल्ली के वायु का सबसे खराब रहा है। दिल्ली की वायु में उन सूक्ष्म धूलकणों की संख्या अधिक है जिनका व्यास ढाई माइक्रोन से अधिक है। भारत में थर्मल पॉवर में कोयले का जलना, उद्योग संयंत्रों से खराब हवाओं का उत्सर्जन, यातायात के साधनों से निकला धुआं, शहरों में होने वाले बड़ी निर्माण परियोजनाओं से फैलते धूलकण, खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला जैव इंधन, ईंट भट्टे से निकला धुआं, वाहन जैसे तमाम तरह की आधुनिक गतिविधियाँ वायु प्रदूषण फ़ैलाने का काम करती हैं। इन तमाम कारणों के साथ इस रिपोर्ट में सबसे अधिक ध्यान खाना बनाने वाले जैव इंधनों से होने वाले वायु प्रदूषण की तरफ दिया गया है, जिसकी चपेट में ग्रामीण महिलायें सबसे अधिक आती हैं। इस रिपोर्ट का कहना है कि अगर भारत के माहौल को खुद को वायु प्रदूषण से बचाना है तो उसे विकास के तमाम क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा।
भारत, चीन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन सहित दुनिया के उन चार देशों में शामिल है जिनकी रोजाना की गतिविधयों की वजह से सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है। आर्थिक तौर पर दमदार बनने के चक्कर में इस साल भारत के कार्बन उत्सर्जन में तकरीबन 6.3 फीसदी बढ़ोतरी होने की सम्भावना है। इसका मतलब यह है कि आने वाले साल में वायु प्रदूषण की वजह से इस साल से अधिक लोगों के मौत की सम्भावना है। लांसेट की रिपोर्ट भी यही कहती है कि वायु प्रदूषण का प्रभाव अल्प विकसित और विकासशील देशों पर सबसे अधिक पड़ रहा है। यानी प्रकृति से प्रेम की जगह प्रबन्धन के सहारे अपनी दुनिया को खूबसूरत बनाने की चाहत बनाने वाले लोग दुनिया को और अधिक बर्बाद करने की राह पर बढ़ते जा रहे हैं और इसे रोकने वाला कोई नहीं है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।